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गांव और किसानों का पहरुआ

‘जय किसान-जय विज्ञान’ का नारा देने वाले वाजपेयी का किसानों को तकनीक उपलब्ध कराने पर जोर रहा
अटल बिहारी वाजपेयी (1925-2018)

अटल बिहारी वाजपेयी ने कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए अत्यंत ठोस और क्रांतिकारी कदम उठाए। किसानों की चल-पूंजी की आवश्यकता को पूरी करने के लिए किसान क्रेडिट कार्ड जारी करने का श्रेय उन्हीं को है। इस संबंध में जब कृषि मंत्रालय ने प्रस्ताव दिया तो वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक के कुछ अधिकारियों ने कई शंकाएं प्रकट कीं। पूरी राशि डूबने और बैंकिंग व्यवस्था पंगु होने की आशंका जताई। लेकिन तमाम आपत्तियों को दरकिनार कर अटल जी ने क्रेडिट कार्ड जारी करने का आदेश दिया।

आज देश के करीब-करीब हर किसान के पास क्रेडिट कार्ड की सुविधा है और महंगी ब्याज दर पर ऋण लेने की विवशता से निजात पाकर वह भारी राहत महसूस करता है। यह किसानों के प्रति अटल जी के प्रेम और विश्वास को दर्शाता है। इतना ही महत्वपूर्ण कार्य राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना का भी है। यह योजना भी 1998-99 के उनके कार्यकाल में ही बनकर तैयार हुई थी। इस योजना में प्रत्येक किसान को इकाई माना गया था और कोई भी कृषक जीवन बीमा या कार, फ्रिज, मकान वगैरह की तर्ज पर स्वेच्छा से बीमा करा सकता था। छोटे और सीमांत कृषकों को बीमा प्रीमियम में 50 फीसदी अनुदान सरकार की तरफ से दिए जाने की व्यवस्था थी। इसकी घोषणा से तीन-चार दिन पूर्व ही अटल जी की सरकार एक वोट से गिर गई थी। फिर चुनाव हारने के कारण मैं मंत्रिमंडल से बाहर हो गया। उसके बाद जो बीमा-योजना आई वह अपेक्षाकृत अधिक जटिल होने के कारण उतनी किसान सुलभ नहीं है, जैसी मूलरूप में थी।

अटल सरकार का तीसरा क्रांतिकारी सुधार था चीनी मिलों को लाइसेंस प्रणाली से मुक्त करना। इससे न केवल गन्ना किसानों को लाभ हुआ बल्कि चीनी उद्योग का भी भारी विस्तार हुआ। किसान के लाभ का चौथा कार्य था उसकी उपज के दाम बढ़ाना। 1998-99 की रबी फसलों के समर्थन मूल्य में ऐतिहासिक वृद्धि की गई थी। मसलन, गेहूं का दाम उससे पूर्व वर्ष में 460 रुपये प्रति क्विंटल था, जिसे बढ़ाकर 550 रुपये प्रति क्विंटल किया गया। यानी लगभग 20 फीसदी की वृद्धि। इतनी वृद्धि न कभी पहले हुई थी और न बाद में कभी हुई।

2004 के प्रारंभ में उनकी सरकार ने ही राष्ट्रीय किसान आयोग की स्थापना की। इस आयोग को मुख्य रूप से कृषक वर्ग, जिसमें भूमिहीन कृषक भी सम्मिलित थे, की आय में स्थिरता तथा वृद्धि के उपाय सुझाने का काम सौंपा गया था। मुझे इसका अध्यक्ष बनाया गया था। लगभग तीन महीने काम करने के बाद मई 2004 में भाजपा चुनाव में असफल रही। इसके बाद यूपीए सरकार ने आयोग का पुनर्गठन किया और प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन को अध्यक्ष नियुक्त किया, जिसने खेती की सी-2 लागत पर 50 फीसदी जोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करने की सिफारिश की थी, जो आज तक लागू नहीं हुई।

अटल जी की सरकार ने बहु-राज्यीय सहकारी संस्था कानून में संशोधन किया। इसके कारण ही इफको, कृभको, नेफेड, राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड और अमूल जैसी सहकारी संस्थाएं आज बड़ी से बड़ी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों से स्पर्धा कर रही हैं। अटल जी ने ग्रामीण क्षेत्रों में वैकल्पिक रोजगारों के सृजन हेतु ग्रामीण स्वरोजगार योजना शुरू की थी। कृषि उपज को बाजार तक पहुंचाने में पक्की सड़कों का महत्व समझकर अटल जी ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का महत्वाकांक्षी काम शुरू कराया। इसकी सफलता अब सर्वविदित है। कृषि विज्ञान और नवीन तकनीकों को प्रोत्साहित एवं किसानों को उपलब्ध कराने पर उन्होंने जोर दिया। ‘जय किसान-जय विज्ञान’ का नारा उन्हीं की देन है।

1999 के संसदीय चुनाव के प्रचार के अंतिम दिन बड़ौत में अटल जी ने जनसभा को संबोधित करते हुए मेरे विषय में जो शब्द कहे वे मेरे जीवन की अमूल्य धरोहर बनकर रहेंगे। उन्होंने कहा था, “बागपत के भाइयों-बहनों, मैं 1957 से लगभग लगातार संसद में रहा हूं। इस दौरान कई प्रधानमंत्री और मंत्री हमने देखे। परंतु एक बात दावे से कह सकता हूं कि आज तक भारत को हमारे साथी सोमपाल जैसा योग्य, बुद्धिमान, निष्ठावान कृषि मंत्री कभी नहीं मिला।” मंत्रिमंडल की बैठकों में मैं जानबूझकर शुद्ध हिंदी बोलता था। एक दिन अटल जी ने अलग बुलाकर कहा कि अंग्रेजी में बात किया करें क्योंकि कई बार हमारे अहिंदी भाषी सहयोगी हिंदी नहीं समझ पाते और उनके मन में यह आ सकता है कि हम कुछ बातें उनसे अलग कर लेते हैं। जसवंत सिंह और यशवंत सिन्हा वगैरह को भी यही निर्देश दिया। यह गठबंधन धर्म के प्रति अटल जी की निष्ठा और संवेदनशीलता का प्रमाण है।  

सहयोगी दलों की भावनाओं और स्थानीय आवश्यकताओं का सम्मान रखते हुए अटल जी सामूहिक उत्तरदायित्व का वहन करते थे। कटु आलोचना का उत्तर देते समय भी संसदीय मर्यादा और गरिमा का कभी उल्लंघन नहीं करते थे। बोझिल वातावरण को हास्यपूर्ण सधी भाषा से हल्का-फुल्का कर विरोधियों को निरुत्तर करने की कला में उनका कोई सानी नहीं था। उनके उदार, रचनात्मक और प्रगतिशील दृष्टिकोण का ही परिणाम था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जनसंघ और भाजपा जैसे हिंदुत्ववादी और दक्षिणपंथी संगठनों के सदस्य और नेता होते हुए भी वे सदैव संकीर्णता से ऊपर रहे।

(लेखक वाजपेयी सरकार में केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री रह चुके हैं)

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