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संगठन समस्या बनेगा या संबल

आने वाले साल में पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। कांग्रेस-मुक्त भारत के सपने से पहले जीत की साख दांव पर
रणनीति बनाते अमित शाह और नरेंद्र मोदी

मुहावरे की भाषा में कहें तो 11 अशोक रोड में किसी को ‘दम मारने’ की भी फुर्सत नहीं है। कोझीकोड की राष्ट्रीय परिषद के बाद उत्तर प्रदेश, पंजाब के चुनाव के लिए तैयारी करनी है। गोवा में संघ की बगावत को भी देखना है, गुजरात में ताज की लाज रखनी है और राजस्थान में सत्ता और संगठन को मजबूत गांठ में बांधना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके सबसे विश्वसनीय सहयोगी अमित शाह जानते हैं कि देश की जनता का मिजाज समझना टेढ़ी खीर है और ढाई साल बाद होने वाली अग्नि परीक्षा से पहले अंगारों के छोटे-छोटे परीक्षण पार करने हैं। उत्तर प्रदेश के चुनाव सिर पर हैं। पार्टी और संगठन ने मिल कर कमर कस ली है। सारा उत्साह और योजनाओं का फोकस अभी इसी राज्य पर है। हालांकि गुजरात में संघ में बगावत और राजस्थान में संगठन न बनने से होने वाली असंतोष की छिटपुट बूंदाबांदी पार्टी के माथे पर कभी-कभी चिंता की लकीरें ले आती हैं।

खबरें भले ही आती रहें लेकिन पार्टी से जुड़े सूत्र एक सिरे से नकार देते हैं कि वसुंधरा को कोई नाराजगी है। राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी में किसी भी तरह की फूट नहीं है, न ही सत्ता और संगठन के बीच तनाव की स्थिति है। फिलहाल पार्टी का पूरा ध्यान उत्तर प्रदेश पर है क्योंकि दिल्ली, बिहार के बाद उत्तर प्रदेश की हार वह कतई बर्दाश्त करना नहीं चाहेगी। राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का आदेश अंतिम रहेगा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव अभियान को संभालेंगे। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री उम्मीदवार के नाम में अब तक किसी नाम को पेश करने का इरादा नहीं बना है। इस दृष्टि से उत्तर प्रदेश के वरिष्ठतम नेता गृहमंत्री राजनाथ सिंह को सबसे आगे रखने का प्रयास होगा ताकि ‘सपा के कुशासन’ की छवि और बसपा राज में कानून व्यवस्था संभल सकने की गलतफहमियों को दूर करते हुए अनुभवी सफल प्रशासक मैदान में मोर्चा संभाले। फिर जातिगत समीकरणों की दृष्टि से वरिष्ठ नेता एवं मंत्री कलराज मिश्र, दूसरी पंक्ति के नेता केशव प्रसाद मौर्य, महेश शर्मा, मनोज सिन्हा, योगी आदित्यनाथ जैसे नेताओं को विभिन्न क्षेत्रों की कमान देने पर विचार-विमर्श हुआ है। भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता अनिल बलूनी उत्तर प्रदेश को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं। वह कहते हैं, ‘यहां संगठन पूरी तरह तैयार है। उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर भाजपा सबसे आगे है। बूथ स्तर तक संगठन बन चुके हैं। पार्टी अध्यक्ष खुद लगातार प्रवास पर हैं।’ साफ शब्दों में वह कहते हैं, ‘यह संसदीय कमेटी तय करेगी चेहरा कौन हो। संगठन और चुनाव में चेहरा अलग-अलग बातें हैं।’ उत्तराखंड में भी तैयारियां चालू हैं। वहां फिर सरकार बनाने के लिए संगठन मंत्री संजय कुमार और प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट प्रभारी श्याम जाजू के साथ समय-समय पर बैठक कर रहे हैं। प्रदेश के पूर्व तीन मुख्यमंत्रियों भुवन चंद्र खंडूड़ी, रमेश पोखरियाल निशंक, भगत सिंह कोश्यारी को पार्टी की सफलता के लिए विभिन्न क्षेत्रों के कार्यकर्ताओं को जोड़े रखने की जिम्मेदारी दी जा रही है। अनिल बलूनी कहते हैं, ‘उत्तराखंड में कांग्रेस अब हरीश कांग्रेस बन कर रह गई है। भाजपा ने विकास के मुद्दे पर विजन डॉक्यूमेंट बनाया है जिसमें सबसे पहले पलायन की समस्या को रोकना है। शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार हमारा मुख्य मुद्दा है और यह तीनों सुविधाएं हम देवभूमि को देकर रहेंगे।

भारतीय जनता पार्टी हमेशा से संगठन की मजबूती के लिए जानी जाती है। जब चुनाव होते हैं तो संघ का भी प्रत्यक्ष-परोक्ष दोनों रूपों में सहयोग मिलता है। इस बार कोझीकोड में भी संगठन और सत्ता के बीच तालमेल में कोई गड़बड़ी न हो इसकी चर्चा मुख्य रूप से हुई। राष्ट्रीय परिषद में इकट्ठा हुए 1700 लोगों में सभी सांसदों, विधायकों, राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य, हर राज्य के परिषद के सदस्य, सभी

राज्यों के अध्यक्ष, राज्य संगठन मंत्रियों ने मिल कर एक ही बात तय की और वह थी, आने वाले सभी पांच राज्यों के चुनावों में भाजपा की जीत। भाजपा सचिव, आंध्र प्रदेश के प्रभारी और बंगाल के सह प्रभारी सिद्धार्थनाथ सिंह दक्षिण में भी कमल खिलने के प्रति आशान्वित हैं। केरल में इसी साल हुए चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का पहली बार खाता खुला है। इस बार राष्ट्रीय परिषद बैठक भी केरल में हो रही है। सिद्धार्थ नाथ सिंह कहते हैं, ‘इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा ने वाम के गढ़ में अपनी पकड़ मजबूत की है। सन 2019 में हमें बड़ी सफलता की उम्मीद है।’ केंद्र में भाजपा की सरकार की वजह से राज्यों में भी भाजपा से उम्मीदें बढ़ी हैं। पंजाब में अकाली दल के साथ भाजपा की सरकार होने की वजह से वहां सत्ता विरोधी वोट पड़ने की संभावना बढ़ गई है। आम आदमी पार्टी भी चुनौती देने को तैयार है वहीं नवजोत सिंह सिद्धू के ढुलमुल रवैये से हर पक्ष उम्मीद बनाए रखेगा। हालांकि पंजाब प्रभारी प्रभात झा अपनी पार्टी की जीत के प्रति सौ टके विश्वास से भरे हए हैं। वह जल्द ही अपना पंजाब दौरा शुरू कर रहे हैं। वह कहते हैं, ‘आम आदमी पार्टी राजनीतिक दुर्घटना है। पंजाब में उनके जीत की संभावना कम है। जिन्हें जेल में होना चाहिए वे विधानसभा में कैसे पहुंचेंगे। हमने बूथ स्तर पर तैयारी शुरू कर दी है। अरुण जेटली ने 170 विधानसभा में बैठकें ले ली हैं।’ प्रभात झा का कहना है कि संगठन और पार्टी साथ मिल कर काम कर रही है। उन्हें कांग्रेस और नीतीश की जद (यू) या उनके प्रशांत किशोर से कोई खतरा नहीं दिख रहा है।

भाजपा में गुजरात को लेकर जो चिंता की लकीरें हैं उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद पोंछने के लिए जुट गए हैं। पिछले दिनों उन्होंने दक्षिण गुजरात का दौरा किया ताकि पार्टी और संगठन पर पकड़ फिर मजबूत की जा सके। चूंकि मौका उनके जन्मदिन का था इसलिए बहुत सियासी बवाल भी नहीं हुआ। गुजरात प्रधानमंत्री का गृहराज्य रहा है और यहीं से वह मजबूत मुख्यमंत्री होते हुए देश के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे हैं। हालांकि गुजरात में चुनाव अगले साल यानी सन 2017 के अंत में हैं। पर जिस तरह पाटीदार आंदोलन और पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल के खिलाफ संगठन में असंतोष पनपा था उसे खत्म करने के लिए पार्टी नेता मानते हैं कि मेहनत करनी होगी। मोदी असंतोष के बजाय सौहार्द को खाद-पानी देना चाहते हैं। तभी उन्होंने दाहोद सिंचाई परियोजना और नवसारी में दिव्यांगों को ट्रायसाइकिल और अन्य उपकरण बांटने का काम खुद किया। नवसारी और दाहोद दोनों ही में भाजपा की स्थिति हमेशा से मजबूत रही है। आदिवासी बहुल दोनों क्षेत्र भाजपा के ठोस वोट बैंक हैं लेकिन लंबे समय से भाजपा की सरकार और इस बार गुजरात में दलितों, पिछड़ा वर्ग के साथ दुर्व्यवहार से पार्टी को रुख पलटने का डर सता रहा है। मध्य प्रदेश में भले ही राजस्थान की तरह हालत न हो और यहां संगठन बन गया हो लेकिन यहां अभी चिंता का विषय है कि संगठन नंदकुमार चौहान, शिवराज सिंह चौहान और हटाए गए अरविंद मेनन की तिकड़ी को तोड़ पाने में सफल नहीं हो सका है। एक व्यक्ति एक पद का पालन कराना भी मुश्किल है। संगठन की स्थिति उतनी अच्छी नहीं है जैसी दिख रही है। हालांकि नए प्रदेश संगठन मंत्री सुहास भगत पूरी निष्ठा से जुटे हुए है। यहां संगठन का कांग्रेसीकरण हो गया है। यानी पार्टी समझती है कि उन्हें किसी भी हालत में संगठन को बचाना होगा। इसके रसातल में जाने का मतलब है, वजूद का खात्मा। 

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