रसूख के दम पर एनजीओ कानून को ताक पर रख किस तरह शेल्टर होम का संचालन करते हैं उसका नायाब नमूना देवरिया बालिका गृह का मामला है। बिहार के मुजफ्फरपुर के एक बालिका गृह में यौन शोषण का मामला सामने आने के बाद तीन अगस्त को ही उत्तर प्रदेश की सरकार ने सभी डीएम को शेल्टर होम की जांच का आदेश दिया था। लेकिन देवरिया बालिका गृह से सेक्स रैकेट के संचालन का मामला तब सामने आया जब पांच अगस्त को यहां से 12 साल की एक लड़की भागने में कामयाब हुई।
इस लड़की ने पुलिस को बताया कि केंद्र में रहने वाली 15 साल और उससे ज्यादा उम्र की लड़कियों को हर शाम कुछ गाड़ियां बाहर ले जाती हैं और सुबह जब ये लड़कियां लौटती हैं तो रोती रहती हैं। इसके बाद पुलिस ने केंद्र से 24 लड़कियों को मुक्त कराया और 18 लड़कियां गायब मिलीं। इस केंद्र का संचालन मां विंध्यवासिनी महिला प्रशिक्षण एवं समाज सेवा संस्थान करता है। केंद्र की संचालिका गिरिजा त्रिपाठी हैं। उनके पति मोहन त्रिपाठी और बेटी कंचनलता फिलहाल गिरफ्तार हैं। मामला सामने आने के बाद कई पुलिसवालों पर भी कार्रवाई की गई है। देवरिया बालिका गृह का संचालन करने वाले एनजीओ का रजिस्ट्रेशन बीते साल जून में ही खत्म कर दिया गया था। लेकिन, ऐसा केवल कागजों में ही हुआ। यही कारण है कि इस साल जून में भी पुलिस वहां एक लड़की को छोड़ आई। यूपी सरकार खुद 56 शेल्टर होम चलाती है जबकि 175 का संचालन एनजीओ कर रहे हैं। देवरिया की घटना सामने आने के बाद जब सभी शेल्टर होम की जांच कराई गई तो कई और चौंकाने वाली जानकारी सामने आई। मसलन, हरदोई के एक शेल्टर होम में रहने वाली महिलाओं की संख्या ज्यादा बताकर सरकार को चूना लगाया जा रहा था। इसके बाद राज्य सरकार ने सभी एनजीओ को फंड जारी करने पर रोक लगा दी है।
प्रदेश के सभी शेल्टर होम का सोशल ऑडिट 2015 में राममनोहर लोहिया विधि विश्वविद्यालय ने किया था। इसके बाद 2016-17 में आठ विश्वविद्यालयों से इन संस्थाओं का सोशल ऑडिट कराया गया। इसमें डी श्रेणी में आने वाली संस्थाओं को बंद करने का आदेश दिया गया था। लेकिन, इनमें से कई केंद्र अब भी चल रहे हैं। पिछले साल सभी गृहों में सीसीटीवी कैमरे और बॉयोमीट्रिक डिवाइस लगाने के निर्देश दिए गए थे। पर जमीनी हकीकत यह है कि कई केंद्रो में सीसीटीवी नहीं हैं और इनकी मॉनीटरिंग की व्यवस्था भी लचर है। इतना ही नहीं, केंद्र सरकार की ओर से संचालित स्वाधार और अल्पावास योजना की जब 2016-17 में जांच कराई गई तो पता चला था कि 38 संस्थाओं का अस्तित्व ही नहीं है।