शहरी मंत्रालय का सर्वे बता रहा है कि भारत में रहने के लिए सबसे कायदे का शहर है-पुणे और पुणे वालों से पूछो तो परेशान रहते हैं कि हाय मारे ट्रैफिक जाम के हालत खराब है। सुखी कोई नहीं है। खुश कोई नहीं है। शहरों की लिस्ट में टॉप पर नाम है पुणे का। फिर भी बवाल खत्म नहीं हैं। पुणे वाले खुद को सचमुच का टॉपर महसूस न कर रहे, जैसे कई मामलों में बिहार के टॉपर होते हैं न, दिखते हैं होते नहीं हैं। पुणे सुरेश कलमाड़ी (कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला फेम) का शहर है। एक दिलजले ने कहा कि पुणे वाले लकी हैं कि सुरेश कलमाड़ी का कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले में नाम आया। स्थानीय सड़क घोटाले या नाली निर्माण घोटाले में नाम न आया। नेता ऐसा ही होना चाहिए दूर कहीं जाकर हाथ मारे। अपने शहर को साफ-सुथरा रखने वाली योजनाओं को स्मूथली चलने दे। कॉमनवेल्थ गेम्स में रकम साफ हो गयी, पुणे साफ-सुथरा रह गया।
बड़े-बड़े शहर टापते रह गए कलमाड़ी का पुणे टॉप पर आ लिया। नई दिल्ली परम महाबलियों का शहर है, शहरी मंत्रालय की सूची में नई दिल्ली 65वें नंबर पर है। शहर को टॉप बनाना है, तो कलमाड़ी को नेता बनाना है, ऐसे नारे अगले चुनावों में अस्तित्व में न आ जाएं। दिल्ली के टंटे अलग हैं। दिल्ली है किसका शहर, यह अभी साफ नहीं है। गंदगी होती है, केजरीवाल जी कहते हैं कि केंद्र ने कराई है। केंद्र सरकार कह देती है, यह गंदगी राज्य सरकार ने कराई है। कूड़ा है कहां का, यही तय न हो पाता। शुक्र है ऊपरवाले का कि ऑक्सीजन हवा जैसी भी है, दिल्ली में बिना केंद्र और दिल्ली के लफड़े के मौजूद है। वरना मार इसी पर हो रही होती की हवा मुहैया कराना दिल्ली सरकार की जिम्मेदारी है या केंद्र सरकार की। हवा रुक जाती तो कोई भी दोबारा चालू न करता। केजरीवाल जी बेंगलूरू चले जाते, मोदी जी ट्रिनिडाड चले जाते। जो न केजरीवाल हैं न मोदी हैं, उनकी आफतों की किसी को चिंता ही न होती।
दिल्ली किसकी यह नहीं पता, लेकिन दिल्ली में कूड़े का पहाड़ सबका है। कूड़े के पहाड़ के सामने मकान नंबर 410 यह ठिकाना आसानी से बताया जा सकता है। जिन शहरों में लैंड कायदे की होती है, वहां लैंडमार्क होते हैं। दिल्ली में कूड़े के पहाड़ कायदे के हैं, तो यहां कूड़ा मार्क होता है। दिल्ली का विकास कितनी तेज गति से हो रहा है, इसका पता इससे चलता है कि कूड़े के पहाड़ का विकास बहुत रफ्तार से हो रहा है। अभी सामान्य टाइप का कचरा आता है। जिस दिन बड़ी कारें, महंगे मोबाइल बतौर कचरे यहां आने लगें, तब माना जाएगा कि दिल्ली का भरपूर विकास हो लिया है। कूड़े से विकास के स्तर का पता चलता है। गरीब के कूड़े में एक किलो के आटे की थैली होती है और 250 ग्राम आलू की पॉलीथिन। अमीर के कूड़े में ब्लैक डॉग स्काच व्हिस्की होती है। परम अमीर के कूड़े में दो लाख का मोबाइल फोन होता है। जिस दिन दिल्ली के कूड़े के पहाड़ में पांच लाख के मोबाइल फोनों का कचरा आने लगेगा, उस दिन कह सकते हैं कि दिल्ली का भरपूर विकास हो लिया।
रहने के लिहाज से देश का घटियातम शहर रामपुर यूपी में है। रामपुर को अगली बार यूएस आर्मी कठिन कमांडो ट्रेनिंग में शामिल करने की सोच सकती है। ऐसे हालात में आम आदमी रह लेता है। नाली की बदबू से कमांडो बेहोश हो सकते हैं कि रामपुर के नागरिक नहीं। कुछ दिनों बाद यह तक संभव है कि अपने कूड़े, अपनी नालियों की बदबू के इस कदर आदी हो जाएं, रामपुर वाले, दिल्ली वाले कि पुणे में जाकर बेहोश होकर गिर जाएं। नालियों के पास उन्हें ले जाया जाए, तब ही होश आए। यूपी वालों के नेता ज्यादा घटिया हैं या शहर ज्यादा घटिया, इस सवाल पर गहन विमर्श होना चाहिए। नेताओं को कलमाड़ी मॉडल पर काम करना चाहिए कि अपना शहर टिप-टाप रहे, ऐसा जुगाड़ करना चाहिए। भारत की पब्लिक बहुत उदार है। नेता शहर ठीक-ठाक रखे और खाने-पीने का इंतजाम कर दे, वोट दे आती है। कई राज्यों में सजायाफ्ता नेता तक बहुमत ले आते हैं। हमें ऐसे नेता चाहिए जो गेम्स खा जाएं, दूर दराज की तोप खा जाएं, पुल खा जाएं, पर शहर फिट रखें।