समय कैसे बीत जाता है मगर कुछ चीजें नहीं बदलतीं। पिछले वर्ष इसी समय के आस-पास मानव संसाधन विकास मंत्रालय के साथ विवाद को लेकर आईआईटी चर्चा में थे। इस वर्ष मेडिकल कॉलेज चर्चा में हैं जो कि पूरे देश में सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों की एक ही प्रवेश परीक्षा (एनईईटी) आयोजित किए जाने की सर्वोच्च न्यायालय की मंशा के खिलाफ बेसब्री से सरकार के साथ विचार-विमर्श में उलझे हैं। न्यायालय की इस मंशा से निश्चित रूप से छात्रों को फायदा होगा जिन्हें प्रवेश की काउंसिलिंग से पहले एक ही प्रवेश परीक्षा के आधार पर अखिल भारतीय रैंकिंग मिल सकेगी। इससे उस भ्रष्टाचार को दूर करने में भी मदद मिलेगी जो कि कई निजी मेडिकल कॉलेजों में जड़ जमा चुका है और साथ ही राज्यों द्वारा मनमाने तरीके से मेडिकल कॉलेजों के संचालन पर भी रोक लगेगी।
हालांकि सरकार और अदालत साल 2016 में एनईईटी को स्थगित करने पर सहमत हो गए हैं मगर यह अगले वर्ष से अस्तित्व में आ जाएगा। खबरों की मानें तो सरकार यही व्यवस्था इंजीनियरिंग कॉलेजों के लिए भी करना चाहती है और सभी प्रवेश परीक्षाओं को संयुक्त प्रवेश परीक्षा या जेईई के साथ जोड़ देना चाहती है। जैसा कि लोग कहते हैं, कुछ तो पक रहा है। मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों के लिए और जानकार शिक्षक जुटाना बेहद मुश्किल हो गया है। दूसरी बड़ी समस्या, जो खासकर इंजीनियरिंग कॉलेजों की है, खाली सीटों की है। एक अनुमान के अनुसार पिछले वर्ष इंजीनियरिंग की करीब 40 फीसद सीटें खाली रह गईं यानी छात्रों ने उनमें कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखाई। महाराष्ट्र, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में सबसे अधिक सीटें खाली हैं।
इन खाली सीटों की सबसे बड़ी वजह इंजीनियरिंग स्ट्रीम में छात्रों की घटती रुचि है। गैर आईआईटी और गैर एनआईटी कॉलेजों में इस घटती दिलचस्पी की वजह एक नियमित, बेहतर वेतन वाली नौकरी हासिल करने में होने वाली परेशानी है। विशेषज्ञों के अनुसार, जहां अधिकांश छात्रों को कैंपस से नौकरी ही नहीं मिलती वहीं कई को बेहद कम वेतन वाली नौकरी मिली है। यह वेतन आमतौर पर कॉमर्स से स्नातक होने वाले छात्रों को मिलने वाले वेतन के बराबर या उससे कम होता है जो कि इंजीनियरिंग के छात्रों के मुकाबले कम समय, कम मेहनत और कम खर्च में इतना वेतन हासिल कर लेते हैं।
ऐसी अनिश्चितता के बीच आउटलुक की देश के बेहतरीन प्रोफेशनल कॉलेजों की रैंकिंग (दृष्टि स्ट्रैटजिक रिसर्च प्रा. लिमिटेड के साथ साझेदारी में) महत्वपूर्ण हो जाती है, खासकर उन छात्रों के लिए जो किसी कॉलेज में प्रवेश की प्रक्रिया पूरी करने से पहले खुद को हर जानकारी से लैस करना चाहते हैं और उसी आधार पर फैसला लेना चाहते हैं। पिछले वर्ष की तरह ही हमारे शीर्ष इंजीनियरिंग कॉलेजों की सूची के शीर्ष दस स्थानों में कोई चौंकाने वाला नाम नहीं है और स्वाभाविक दावेदारों, जिनमें अधिकांश आईआईटी शामिल हैं इन स्थानों पर कब्जा जमा रखा है। इस वर्ष हौसला बढ़ाने वाली बात यह है कि नए कॉलेजों ने बड़ी संख्या में इस सर्वे में हिस्सा लिया जिसके कारण शीर्ष 100 की सूची में कई नए नाम शामिल हुए हैं और इसके कारण पुराने कॉलेजों के लिए नई चुनौती पैदा हुई है। इन नए कॉलेजों के कारण इस वर्ष पूरी प्रक्रिया भी पिछले वर्ष के मुकाबले ज्यादा दिलचस्प हो गई है। इंजीनियरिंग कॉलेजों जैसा ही ट्रेंड मेडिकल कॉलेजों की रैंकिंग में देखने को मिला है जहां एम्स, एएफएमसी, सीएमसी, वेल्लोर और सेंट जॉन्स, बेंगलुरू शीर्ष स्थानों पर काबिज हैं।
इस वर्ष उन सभी नौ स्ट्रीम जिनकी रैंकिंग हम दे रहे हैं उनके चुनिंदा विशेषज्ञ जीवन की पाठशाला के सबक भी आपके सामने रख रहे हैं। इसके अलावा केंद्र सरकार द्वारा आरंभ किए गए प्रोफेशनल कॉलेजों की रैंकिंग व्यवस्था की खामियां भी हम आपको बता रहे हैं। साथ ही, शिक्षा व्यवस्था में स्कूल के दौर से ही क्या बदलाव किया जाना चाहिए इस पर भी एक आलेख आप पढ़ सकते हैं। हमें उम्मीद है कि हमारी रैंकिंग से आपको अपना फैसला करने में आसानी होगी। फिर भी हमेशा की तरह हमारी सलाह है कि चयन पूरे सोच-विचार के बाद करें।
पद्धति 2016 आउटलुक - दृष्टि सर्वेक्षण
भारत के सर्वश्रेष्ठ प्रोफेशनल कॉलेजों की रैंकिंग प्रक्रिया कॉलेजों से संबंधित आउटलुक की मुख्य सूची को अद्यतन बनाने और पिछले वर्षों में इस सर्वे में शामिल हुए संस्थानों के निदेशकों को पत्र लिखने के साथ शुरू हुई। जैसा कि नियम है, इसमें सिर्फ सरकारी मान्यता प्राप्त या संबद्ध और कम से कम तीन बैच को डिग्री देने वाले संस्थानों पर ही विचार किया गया है। इस वर्ष फोन, ई-मेल और फील्ड के दौरों के जरिये इस प्रश्नावली के बारे में विस्तृत फॉलोअप किया गया ताकि नए भागीदारों के साथ-साथ अन्य कॉलेजों की भागीदारी व्यापक हो सके। इसके बाद इंजीनियरिंग, चिकित्सा, दंत चिकित्सा, सामाजिक कार्य, विधि, होटल प्रबंधन, वास्तुकला, फैशन टेक्नोलॉजी और जनसंचार जैसे सभी नौ पाठ्यक्रमों के 1700 से अधिक कॉलेजों को विस्तृत प्रश्नावली भेजी गई। पिछले वर्ष की तरह कॉलेजों को इस बात के लिए प्रेरित किया गया कि वह आउटलुक की वेबसाइट से प्रश्नावली को डाउनलोड करें ताकि भविष्य में पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन हो सके। वस्तुनिष्ठ प्रश्नावली में कॉलेजों का मूल्यांकन पांच मुख्य मानकों - चयन प्रक्रिया, शैक्षणिक उत्कृष्टता, व्यक्तित्व विकास एवं औद्योगिक संपर्क, अधोसंरचना और रोजगार- के आधार पर किया गया। इन सभी मानकों के अंक पिछले वर्ष के समान ही रखे गए थे ताकि पिछली रैंकिंग से उसकी तुलनात्मकता बनी रही। रैंकिंग और उनके महत्व के मानक और उपमानक तय करने के लिए अपने-अपने क्षेत्रों के काबिल विशेषज्ञों के एक पैनल से 2010 में संपर्क किया गया था। यही मानक इस वर्ष भी अपनाए गए। देश के 17 शहरों-दिल्ली, चंडीगढ़, लखनऊ, मुंबई, पुणे, इलाहाबाद, जयपुर, चेन्नई, बेंगलूरु, हैदराबाद, कोयंबटूर, कोलकाता, पटना, भुवनेश्वर, इंदौर, भोपाल और कोच्चि में छात्रों, शिक्षकों और नियोक्ताओं, डॉक्टरों, दंत चिकित्सकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, मीडिया हस्तियों, वकीलों, होटल प्रबंधकों, आर्किटेक्ट, फैशन डिजाइनरों, इंजीनियरों तथा अन्य प्रोफेशनल्स के बीच एक अलग अनुभव आधारित सर्वे कराया गया।
इस वर्ष हमें सभी धाराओं को मिलाकर करीब 346 संस्थाओं से भागीदारी का आवेदन मिला जो पिछले वर्ष से 17 फीसदी अधिक है। इसमें 161 आवेदन इंजीनियरिंग संस्थानों से आए थे। इस वर्ष हमने पांच भागीदारी नहीं करने वाले पांच संस्थानों को पिछले वर्ष के आंकड़ों के आधार पर रैंकिंग दी। फील्ड रिसर्चरों की टीम ने छात्रों, नियोक्ताओं तथा प्रोफेशनल्स के बीच सर्वे किया। इस वर्ष हमने छात्रों, नियोक्ताओं तथा प्रोफेशनल्स के बीच प्रश्नावली आधारित कुल 6010 इंटरव्यू किए जो कि पिछले बार के चार गुणे से भी अधिक है। इस वर्ष इस आंकड़े में इतनी वृद्धि इसलिए देखने को मिली क्योंकि संस्थानों को इस बात के लिए प्रेरित किया गया था कि वे छात्रों और अपने फैकल्टी को ऑनलाइन अनुभव आधारित सर्वे में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करें।
अंतिम दौर में एक विस्तृत ऑडिट किया गया और दृष्टि के शोधकर्ताओं ने 15 शहरों के 160 कॉलेजों का खुद दौरा किया। अंतिम मूल्यांकन सभी धाराओं में वस्तुनिष्ठ और अनुभव आधारित अंकों को मिलाकर किया गया।
(दृष्टि की रिसर्च टीम में दीपक राउत, व्योमा शाह और विपुल सिंघल शामिल हैं।)