दर्द से कराहती 73 वर्षीय रोजी थेलक्कट 15 अगस्त की रात को डरावनी काली रात के रूप में याद करती हैं। मूसलाधार बारिश का पानी अपने रास्ते में आने वाली तमाम चीजों को बहा ले गया। चलकुडी के थाइकूडम कड़कुट्टी के चारों ओर मीलों तक डरे और लाचार जानवरों की चीखें बहते पानी की गर्जना को चीर रही थीं। रोजी को बाद में पता चला कि उनकी दो गायें ही बच गई हैं। ये गायें पूरी रात और दिन भर बाड़े की दीवार का सहारा लिए अपने पिछले पैरों पर खड़ी रहीं। पानी इतना ज्यादा था कि गायें पूरी डूब चुकी थीं और उनकी सिर्फ नाक ही पानी के ऊपर थीं जबकि बछड़ा डूब गया था। पानी में घिरकर रोजी, उनके दो बेटे और उनकी पत्नियां छत पर बनी छतरी के नीचे खड़े थे। वे छत से बेबस होकर बड़े बेटे के घर को पानी में डूबते हुए देखती रहीं। आंखों में आंसू भरे रोजी कहती हैं, “हमने तेज घुमड़ते और भंवर खाते पानी को इंच दर इंच अपनी तरफ बढ़ते देख कई रातें काटी हैं। अच्छी तरह पता था कि निकलने का कोई रास्ता नहीं है, इसलिए हमने बस इंतजार किया। अगली दोपहर मछुआरे हमें बचाने आए।” केरल की भयानक बाढ़ से प्रभावित लाखों लोगों की तरह रोजी का परिवार भी अपने घर में जमा टनों गाद हटाने में जुटा है। उतरती बाढ़ ये गाद छोड़ गई। चलकुडी बाजार में ऐसा कोई नहीं था, जिसे इस बाढ़ से नुकसान न पहुंचा हो। वे तेजी से हमारी ओर बढ़ते और हाथ जोड़कर विनती करते कि हम उनकी दुकानें देखें। उन्हें लगा कि हम सरकारी नुमांइदे हैं, जो नुकसान का सर्वे करने आए हैं।
बाजार में किराने की दुकान चलाने वाले वी.जे. पॉल्सन बताते हैं, “हम कुछ समझ पाते, उससे पहले ही सड़क नदी बन चुकी थी और हमें सीने तक पानी पार करके जान बचानी पड़ी।” जुलाई के अंत तक चलकुडी नदी के सभी छह बांध अपनी हदों से ऊपर बहने लगे थे। फिर लगातार बारिश ने लोगों और खासतौर पर चलाकुद्यार संरक्षण समिति के एस.पी. रवि को चिंतित कर दिया। जुलाई के मध्य में चलकुडी के लोग पहले ही छोटी-सी बाढ़ देख चुके थे, जिसका पानी अभी भी कम नहीं हुआ था। रवि आउटलुक को बताते हैं, “हमने प्रशासन को यह समझाने की कोशिश की कि बारिश अगर ज्यादा हुई तो पिछली बाढ़ से पानी का स्तर एक से दो मीटर और बढ़ सकता है। हमने बाढ़ क्षेत्र की पहचान करने और वहां से लोगों को हटाने का भी आग्रह किया, ताकि कम-से-कम नुकसान हो।”
जैसा कि रवि और उनके साथियों ने चेताया था, बांध ऊपर बहने लगे थे और 15 अगस्त तक उसके सारे गेट खोलने पड़े। उसके अगले दिन ऊपरी इलाके के पांचों बांध से इतना पानी छोड़ा गया कि यह तेजी से अपेक्षाकृत कम क्षमता वाले 424 मीटर के पोरिंगलकुथु बांध में पहुंचा और यह बांध की क्षमता से 2.5 मीटर ऊपर चला गया और पानी चलकुडी की ओर बहने लगा। पोरिंगलकुथु बांध से पानी बेहिसाब तेजी से बह रहा था। उसकी राह में आने वाले बड़े-बड़े पेड़ उखड़ गए और बांध के सामने फंस गए। बांध के एक किनारे से भारी मात्रा में मलबा और पत्थर बह गए। अगर ढांचे ने जल प्रपात की तरह गिरने वाले बाढ़ के पानी को नहीं रोका होता, तो चलकुडी और उसके आसपास के शहर अरब सागर में बह गए होते। कासरगोड को छोड़ केरल का हर जिला राज्य की 44 नदियों या उनकी सहायक नदियों से प्रभावित था। केरल में 61 बड़े और सिंचाई के लिए लगभग इतने ही छोटे बांध हैं। सरकार का दावा है कि बांध बाढ़ से बचाते हैं। इस साल लगातार होने वाली बारिश से बांध पूरी तरह भर गए और धीरे-धीरे इनके गेट खोलने से समस्या जटिल होती गई। फिर राज्य की तीन बड़ी नदियों ने अपना रास्ता बदल लिया। बाढ़ नियंत्रण और पूर्वानुमान योजना पर 2017 की कैग रिपोर्ट के अनुसार, केरल ने अचानक बांध टूटने की स्थिति में आपदा से नुकसान कम हो, इसके लिए किसी भी बांध के लिए आपातकालीन योजना नहीं बनाई थी। जब 26 साल बाद पहली बार इडुकी बांध को खोला गया, तो पेरियार नदी के पास ऊपरी क्षेत्र में रहने वाले लोगों को चेतावनी जारी की गई थी। लेकिन निचले इलाके में नदी के मुहाने अलुवा और एर्नाकुलम में रहने वाले लोग इस भीषण बाढ़ से निपटने के लिए पर्याप्त तैयार नहीं थे।
यह केरल के लिए शर्मिंदगी वाली बात थी कि एलुवा के नेदुम्बस्सरी में कोचीन इंटरनेशल एयरपोर्ट (सीआइएएल) को बाढ़ के कारण कई हफ्तों तक बंद करना पड़ा। इस एयरपोर्ट का निर्माण पेरियार नदी के बाढ़ वाले मैदान पर किया गया है। इसका रनवे पेरियार की सहायक नदी चेनागालथोडु के बाढ़ के मैदानी हिस्से तक जाता है। नदी की एक छोटी धारा को एयरपोर्ट के पास तक ले जाया गया और इसके चारों ओर सोलर पैनल लगाए गए हैं, जिसने पानी के बहाव को रोका था। एयरपोर्ट की ऊंची दीवार पानी के प्राकृतिक बहाव को रोकती है और इससे आसपास के इलाकों में बाढ़ की स्थिति पैदा हुई। श्रीमूलनगरम पंचायत के वॉर्ड सदस्य वी.वी. सेबस्टियन बताते हैं, “10 अगस्त को गेट खोले जाने से आसपास के चार पंचायत कंजूर, नेदुम्बस्सरी, श्रीमूलनगरम और चेंगामनाद बाढ़ से प्रभावित हुए।” पर्यावरणविद जॉन पेरुवंथानम का कहना है कि सीआइएएल से ही इस नुकसान की भरपाई करानी चाहिए। वह कहते हैं, “जब तक जवाबदेही तय नहीं होगी, वे पर्यावरण को इसी तरह नुकसान पहुंचाते रहेंगे और गरीब इसका खामियाजा भुगतते रहेंगे।” तेज बारिश और बांध खुलने से पेरियार नदी को नया जीवन मिल गया। यह पूरी रवानी में बही और अतिक्रमण को बहाती हुई प्राकृतिक रास्ता अख्तियार कर लिया। आधुनिकता के प्रतीक के रूप में एयरपोर्ट भी चेंगालथोडु की धारा को नहीं रोक सका। बाढ़ का पानी एयरपोर्ट के एक तरफ की दीवार को तोड़कर अंदर घुस गया और इसने दूसरी ओर की दीवार को भी तोड़ दिया।
श्रीमूलनगरम पंचायत की सचिव मीना एस.जी. कहती हैं कि उन्होंने बाढ़ की स्थिति से निपटने के लिए 250 लोगों की क्षमता वाले तीन राहत शिविर बनाए थे। पर सरकार को 16 कैंप और तमाम राहत कैंप खोलने पड़े। मीना कहती हैं, “कुछ लोग न जाने नाव से कहां से आए और लगभग 90 फीसदी लोगों को बचाया, उन्हें मैं फरिश्ता कहती हूं।”
अलुवा में मंगलथोडु नहर के मामले में प्रकृति से छेड़छाड़ का नतीजा भी देखने को मिला है। इसके पानी को पाइपलाइन से नियंत्रित किया गया था। जब पाइप के ऊपर बनी सड़क बाढ़ में बह गई, तो इंजीनियरिंग यहां गच्चा खा गई। सेंटर फॉर हेरीटेज, एनवायरमेंट ऐंड डेवलपमेंट के डायरेक्टर राजन चेदंबत कहते हैं कि केरल को पर्यावरण की रक्षा के लिए सड़कों और इमारतों का विचार छोड़ देना चाहिए। वह कहते हैं, “यह बाढ़ हमारे लिए बड़ा सबक है और इसे अवसर के रूप में लेना चाहिए। सियोल और हैम्बर्ग जैसे शहर हमें रास्ता दिखा रहे हैं। उन्होंने सियोल में एक ऐसी ऐलीवेटेड सड़क को तोड़ दिया, जिससे रोजाना दो लाख गाड़ियां गुजरती थीं। ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि इसके नीचे चेंओंगीचोन नदी दम तोड़ रही थी। कुछ इलाकों में मोटर गाड़ियों को बंद किया जा रहा है।”
पश्चिमी घाट पर माधव गाडगिल की अध्यक्षता में बनी एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट को केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया था। इसमें इकोलॉजिकल सेंस्टिविटी को सीमा के रूप में इस्तेमाल करते हुए इलाके को अलग-अलग जोन में बांटा गया है। इस रिपोर्ट में सुझाव दिए गए हैं कि नए विशेष आर्थिक क्षेत्र को मंजूरी न दी जाए। बांध, खनन, हिल स्टेशन, सड़कें, रेलवे लाइन की मंजूरी जोन की संवेदनशीलता को ध्यान में रखकर दी जानी चाहिए। रिपोर्ट कहती है, “जो बांध और थर्मल प्रोजेक्ट अपनी अवधि पूरी कर चुके हैं, उन्हें चरणबद्ध तरीके से नष्ट करना चाहिए।” केरल ने रिपोर्ट को ‘विकास विरोधी’ बताकर ठंडे बस्ते में डाल दिया।
एक पर्यावरणविद ने सुझाव दिया है कि केरल के पुनर्निर्माण के लिए स्पेशल पर्पज व्हीकल (विशेष उद्देश्य वाले निकाय) बनाया जाना चाहिए। इसे उन लोगों के साथ मिलकर बनानी चाहिए, जो अपने काम को लेकर प्रतिबद्ध हों, क्योंकि नए केरल को बनाने के लिए नए साधन चाहिए। यह तर्क दिया गया कि पीडब्ल्यूडी जैसे सरकारी विभागों के साथ केरल का पुनर्निर्माण त्रासदीपूर्ण होगा। पश्चिमी एशिया के बिजनेसमैन भले ही बाढ़ राहत के लिए बड़ी रकम का प्रस्ताव दे रहे हों, लेकिन उन्हें इसका नियंत्रण सौंपते समय सावधानी बरतने की जरूरत है। पेरुवंथानम मानते हैं कि अगर पारिस्थितिकी का ध्यान नहीं रखा गया तो ‘केरल का पुनर्निर्माण’ बहुत डरावना हो सकता है। वह कहते हैं, “हमें सार्वजनिक परिवहन के इस्तेमाल के बारे में बेहद गंभीरता से सोचना होगा। तीन करोड़ तीस लाख लोगों के लिए पहले से ही सड़कों पर एक करोड़ बीस लाख गाड़ियां हैं। और अब, पंचायत, पीडब्ल्यूडी और केरल राज्य बिजली बोर्ड वनों और नदियों का सफाया कर सड़कें बनाने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।” व्यापारी वर्ग के लिए पर्यावरणविद अनचाहे साथी हो सकते हैं। लेकिन इस भारी नुकसान से विचलित होने के बाद वे ग्रीन केरल की अवधारणा अपनाने के लिए तैयार हैं। सीआइआइ-केरल के अध्यक्ष सजीकुमार के मुताबिक, राज्य को 30 हजार करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान पहुंचा है। वे कहते हैं, “हमें 50 हजार करोड़ रुपये की जरूरत होगी। सरकार ने एसएमई को लोन देने का वादा किया है। और क्या केरल में व्यापार को जीएसटी से मुक्त किया जा सकता है?” वेम्बानंद झील पर बने हाउसबोट्स के लिए मशहूर कुमराकोम को बाढ़ की वजह से खाली करना पड़ा था। केरल की बैक-वॉटर की सबसे बड़ी झील वेम्बानंद अब अपने पहले के आकार की एक-तिहाई हो चुकी है। इस अतिक्रमण में लुलु कन्वेंशन सेंटर भी शामिल है, जो बोलगट्टी द्वीप पर बना है। एम.के. प्रसाद जैसे पर्यावरणविदों ने बहुत पहले ही झील की जमीन पर कब्जा करने के खतरनाक नतीजे भुगतने की चेतावनी दे दी थी, क्योंकि बाढ़ के दौरान ये बफर का काम करती हैं। हाईस्कूल में जीवविज्ञान के शिक्षक पी.वी. प्रभाकरण सरकारी स्कूल में छात्रों के बीच प्रकृति की सुरक्षा को बढ़ावा देते हैं। वह कहते हैं कि केरल में कभी वर्षा वन विशाल 700 वर्ग किमी. में फैले थे, जो काफी कम हो गए हैं। ये भी बफर का काम करते।
संभवतः हम पर्यावरण को लेकर जो सोच रखते हैं, उसमें हर तरह भाषाई, सांस्कृतिक, वास्तुशिल्प के नजरिए से, धार्मिक और यहां तक कि प्रशासनिक तरीके से बदलाव की जरूरत है। भाषाई स्तर पर शुरुआत करना सबसे बेहतर होगा। हाल में एक पर्यावरणविद ने कहा कि केरल के लोग पुल्लू (घास) को बेकार न समझें। यही घास भूस्खलन के खिलाफ सबसे पहली परत का काम करती है। हम इसका इस्तेमाल गलत संदर्भों में करने लगे हैं। जैसे एनिक्कु पुल्लानु यानी मैं इसे बिलकुल भाव नहीं देता या वह घास की तरह बेकार है। यह सही है कि हम पर्यावरण को बिलकुल भाव नहीं देते और हमने इसकी कीमत चुकाई। बड़ी भारी कीमत।
- साथ में अतिरापिल्ली व वयानाड से तुफैल पीटी