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समान संस्कृति के देश हैं भारत-नेपाल

नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड के भारत दौरे से दोनों देशों के संबंधों में गर्मजोशी की उम्मीद
नरेंद्र मोदी के साथ प्रचंड

नेपाल और भारत के संबंधों का इतिहास बहुत पुराना है। यह इतिहास इतना महत्वपूर्ण है कि इसे भुलाया नहीं जा सकता है। इसके कई कारण भी हैं। दोनों देशों के बीच धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक तौर पर साझी विरासत है। दोनों देशों के बीच सीमा नहीं है। नेपाल और भारत के लोग एक-दूसरे के देश में आसानी से आते-जाते रहते हैं और यह लगातार बना रहता है। ऐसा नहीं है कि नेपाल कोई छोटा देश है। यह जरूर है कि वह दो बड़े देशों के बीच में स्थित है। क्षेत्रफल में यह लगभग स्विट्जरलैंड जितना है। दो बड़े देशों चीन और भारत के मुकाबले यह छोटा देश है। इस वजह से यह खुद को छोटा देश मानता है। नेपाल को यह भी लगता है कि कहीं ये दोनों बड़े देश उस पर हावी न हो जाएं। भारत से नेपाल की हमेशा नजदीकी रही है। जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं और वह जिस राजनीतिक दल और विचारधारा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं उससे हम नेपाल और भारत के बीच अच्छे संबधों की कामना करते हैं। यह कामना हम इसलिए भी करते हैं कि दोनों देशों के बीच रोटी-बेटी का संबंध माना जाता है। दोनों देशों के बीच धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत एक-सी है। अगर भगवान राम भारत के हैं तो माना जाता है कि राजा जनक और सीता नेपाल के हैं। अगर महात्मा बुद्ध को निर्वाण प्राप्ति भारत में हुई थी तो उनका जन्म लुंबिनी (नेपाल)में हुआ था। भारत में 30 लाख नेपाली रोजी-रोटी कमा रहे हैं और यहीं रह रहे हैं। नेपाल में भी अंदाजन 10,000 भारतीय रह रहे हैं। दोनों देशों में हिंदी बोली जाती है। इस प्रकार की अनेक नजदीकियों की वजह से दोनों देशों के बीच अच्छे संबंध रहे हैं। भारत ने भी हमेशा नेपाल का हित चाहा है। कुछ समय पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत गर्मजोशी से नेपाल गए थे। नेपाल में भूकंप आने के बाद भारत ऐसा पहला देश था जिसके हवाई जहाज नेपाल पहुंचने शुरू हो गए थे। यह एक मेल खाती बात नहीं है कि भारत तो खुद को नेपाल का हितैषी मानता है लेकिन नेपाल के संदर्भ में हमेशा ऐसी बात रही है कि उसे यह लगता रहा है कि कहीं भारत उस पर हावी न हो जाए इसलिए चीन से भी संबंध बनाकर रखे जाएं। चीन जिस प्रकार आर्थिक तौर पर मजबूत है, नेपाल को लगता है कि चीन से उसे बहुत कुछ मिल सकता है। नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली इस बात को काफी आगे ले गए थे। नेपाल में भी यह दृष्टिकोण आगे बढ़ चुका है कि चीन के साथ संबंधों को प्राथमिकता दी जाए।

लेकिन नेपाल में अब जो राजनीतिक समीकरण बने हैं उनसे ज्यादा उम्मीदें हैं। प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड ने प्रधानमंत्री बनने के बाद शुरू से ही जिस प्रकार के विचार प्रकट किए हैं उससे लगता है कि भारत और नेपाल दोनों के बीच संबंध तेजी से आगे बढ़ेंगे। हाल ही में प्रचंड ने भी भारत का दौरा किया था। उस दौरान भारत ने घोषणा की कि भारत अपने पड़ोसी मुल्क नेपाल को पुनॢनर्माण कार्य के लिए एक बिलियन डॉलर की सहायता राशि देगा। खासकर तराई के इलाके में विकास करने के लिए। भारत ने नेपाल से गुजारिश भी की है कि नेपाल अपने संविधान को प्राथमिकता से आगे बढ़ाएगा और सारे समाज जैसे थारू जनजाति समेत अन्य जनजातीय समूहों और मधेशियों को साथ लेकर आगे  बढ़ेगा। दोनों देशों की सुरक्षा भी आपस में नजदीक से जुड़ी हुई है। इसलिए भारत-नेपाल के रिश्तों को आगे बढ़ाना दोनों देशों की सरकारों का कर्तव्य भी है। हाल ही में प्रचंड ने पतंजलि योगपीठ को नेपाल में भी फैक्ट्री खोलने का न्योता दिया है। नेपाल में भी हर्बल और जैविक खाद्य पदार्थों की भरमार है। प्रचंड का मानना है कि ऐसा होने से वहां के युवाओं को रोजगार मिलेगा।

(लेखक भारत के पूर्व विदेश सचिव हैं)

(मनीषा भल्ला से बातचीत पर आधारित) 

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