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कितनी स्वैच्छिक है आय घोषणा योजना

आयकर विभाग उन करदाताओं को भी नोटिस भेज रहा है जो पहले ही अपने कर का भुगतान कर चुके हैं
गुजरात में आईडीएस का ऐलान करने के कार्यक्रम में अरुण जेटली

आय घोषणा योजना (आईडीएस) 2016 को लेकर सरकार ने जैसी परिकल्पना की थी कि इससे भारी मात्रा में पैसे की उगाही हो सकेगी, वैसा नहीं हो पाया। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि मेरे कई ऐसे मित्र हैं जो कर का भुगतान करते हैं, मैं जानता हूं कि उन्हें आयकर विभाग के अधिकारियों से ऐसे रिमाइंडर नोटिस मिले हैं जिनमें कहा गया है कि वे अंतिम तिथि के पहले इस माफी योजना के तहत अपने काले धन या फिर अघोषित आय को घोषित करें। हम सभी अपने सेवा प्रदाताओं जैसे-मोबाइल ऑपरेटर्स, बिजली आपूर्तिकर्ता या गैस आपूर्तिकर्ता से ऐसे संदेश प्राप्त करते हैं, वे अकसर एक लाइन का रिमाइंडर नोटिस बकाया बिलों के संबंध में भेजते हैं कि -‘अगर आपने भुगतान कर दिया है तो इस रिमाइंडर नोटिस को नजरअंदाज करें।’ लेकिन इस मामले में आयकर विभाग का यह नोटिस बिलकुल अलग है और इसमें ऐसा कुछ उल्लिखित नहीं है। दरअसल, यह नोटिस पिछले कुछ साल के आईटी रिटर्न का संक्षिप्त सारांश था, जो अच्छी तरह से ऑडिट किया हुआ तथा भुगतान किया हुआ था।

यद्यपि इस सूचना का आशय बहुत स्पष्ट है कि हम आप पर भरोसा नहीं करते और अगर आप अपनी अघोषित आय (काले धन) को घोषित करने के अवसर का लाभ नहीं उठाते तो किसी तरह की कार्रवाई के लिए आप स्वयं उत्तरदायी हैं। मैं लंबे समय से सोच रहा हूं कि इस योजना का मतलब बेईमान करदाताओं या फिर कर न देने वालों को पाक-साफ करार देना है। अगर हम अतीत को देखें, 1951 से लेकर 1997 तक तो ऐसी 10 माफी योजनाएं लोगों के लिए लाई गईं। हां, बहुत सारे लोगों ने इसका पालन किया, ऐसी योजनाओं में बेईमान लोगों ने अघोषित आय को घोषित किया तथा जुर्माने के तौर पर बहुत कम राशि का भुगतान भी किया।

देखा गया कि इनमें से केवल दो ऐसी योजनाएं थीं जो सफल रही : माफी प्रपत्र 1985/86 के तहत आय की घोषणा योजना के तहत 10,778 करोड़ रुपये और वीडीआईएस 1997 से 33,000 करोड़ रुपये एकत्र किए जा सके। अब तक जो सूचनाएं हैं उसके अनुसार आईडीएस 2016, 1997 की योजना की तुलना में भी पीछे है। इसका कारण है कि बीते दशक में काला धन जमा करने की कम गुंजाइश रही, जबकि सरकार का आकलन था कि इस प्रणाली में काला धन बहुत जमा किया गया होगा।

बहुत सारा काला धन अमीर किसानों के पास भी हो सकता है जो कि आयकर के दायरे में नहीं आते। कृषि से होने वाली आय को, टैक्स के उद्देश्य से जो आय है, उसमें छूट दी गई है। हमारी चिंता है कि बहुत सारे ईमानदार करदाता ऐसे नोटिस या कम्युनिकेशन से परेशान होते हैं, जैसा कि मैंने सुना है कि ऐसे नोटिस लाखों करदाताओं तक पहुंचे हैं। अब ऐसी मान्यता बनती जा रही है कि हर करदाता बेईमान है और वह आयकर विभाग के खिलाफ खड़ा है।

हाल ही में आयकर विभाग द्वारा एक डाटा जारी किया गया, उसके अनुसार वर्ष 2012-13 में 2.87 करोड़ लोगों ने आयकर रिटर्न दाखिल किया था लेकिन इनमें से 1.62 करोड़ लोगों ने किसी प्रकार के टैक्स का भुगतान नहीं किया था। ऐसे करीब 35 मिलियन करदाता हैं जो सरकार और कर विभाग के कर दायरे को बढ़ाने के प्रयासों को फीका करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। आईडीएस योजनाओं का स्वागत है। परंतु उन्हें लागू करते वक्त यह ध्यान रखना जरूरी है कि उनके द्वारा ज्यादा-से-ज्यादा करदाताओं को कर भुगतान के दायरे में लाया जाए, न कि जो पहले से कर चुका रहे हैं, उनसे ज्यादा वसूली की मंशा रहे।

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