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कामयाबी का मूल मंत्र

जिस भी सरकारी अधिकारी ने जनता के हितों को सर्वोपरि माना, जनता से सीधा संवाद किया, सफलता ने उसके कदम चूमे। ईमानदारी और पारदर्शिता दिखाती है बेहतर प्रबंधन से सबके हित की राह
बच्चों के साथ शील मधुर

शील मधुर

देशभक्ति का जुनून और हर घर जगमग का अभियान

पुलिस विभाग का काम ऐसा होता है कि समय ही नहीं मिलता। लेकिन कुछ करने का जुनून हो तो इनसान सबकुछ हासिल कर सकता है। कुछ ऐसा ही है हरियाणा कैडर के 1985 बैच के आईपीएस अधिकारी शील मधुर के साथ। एक तरफ उन्होंने लोगों को देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत किया तो दूसरी ओर हर घर में रौशनी हो इसके लिए हर घर सूरज हर घर जगमग अभियान शुरू किया। मूल रूप से उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के रहने वाले शील मधुर को शुरू से ही समाजसेवा और देशभक्ति से लगाव रहा है। आईपीएस बनने के बाद उन्होंने अपने इस शौक को जारी रखा। जहां भी पोस्टिंग हुई वहां भ्रष्टाचार खत्म करना, लोगों से मिलना उनकी समस्याएं सुनना, देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत करना यह उनका मुख्य विषय रहा। महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी उनका प्रयास सराहनीय रहा है। हरियाणा के कई जिलों में लड़कियों को आत्मरक्षा का गुण सिखाने से लेकर उन्हें सशक्त बनाने का लगातार अभियान जारी रखे हुए हैं। इस काम के लिए उन्होंने ‘सादर इंडिया’ नाम से एक संस्था का गठन किया और लगातार संस्था के जरिये जरूरतमंदों की मदद करते रहे। देशभक्ति की भावना का लोगों में संचार हो इसके लिए सादर इंडिया नाम से एक पत्रिका की शुरुआत भी की। इसके साथ ही ‘जन-गण-मन’ नाम से एक ऑडिया-वीडियो एलबम भी लॉंच किया ताकि लोगों को देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत किया जा सके। हाल ही में ‘मेक इंडिया’ नाम से एक वीडियो गीत भी लांच किया है। खास बात यह है कि इस गीत को उन्होंने स्वयं ही लिखा है और गाया है। शील मधुर का लगाव केवल हरियाणा से ही नहीं है बल्कि अपने पैतृक गांव पूरे बसावन, जिला प्रतापगढ़ से भी है। जहां उन्होंने ‘हर घर सूरज, हर घर जगमग’ अभियान की शुरुआत की है। शील मधुर बताते हैं कि जब उन्हें पता चला कि उनके गांव में बिजली नहीं पहुंची है तो उन्होंने इस अभियान की शुरुआत की। इस अभियान के तहत हर घर में रोशनी हो इसके लिए होम लाइट सिस्टम दिए गए। ताकि हर घर में रोशनी हो सके। इस सिस्टम से एक घर में चार बल्ब और एक पंखा आसानी से चल सकता है। इस अभियान के तहत अब उन गांवों को चिह्नित किया जा रहा है जहां बिजली नहीं है। वर्तमान में पुलिस महानिदेशक सतर्कता के पद पर कार्यरत शील मधुर कहते हैं कि जब लोगों में देशभक्ति की भावना का संचार होगा तो भ्रष्टाचार, गरीबी और सांप्रदायिकता जैसी समस्याओं का अंत होगा। इसके लिए बस जरूरत है तो काम करने का संकल्प ले।

 

विभूति नारायण राय

विभूति नारायण राय

प्रबंधकीय कौशल के लिए फोकस होना जरूरी

उत्तर प्रदेश कैडर के 1975 बैच के आईपीएस अफसर विभूति नारायण राय अपने कॅरिअर में संवेदनशील पुलिस अधिकारी माने जाते रहे। वह हिंदी के साहित्यकार भी हैं। रिटायर होने के बाद हिंदी को लेकर बहुत काम कर रहे हैं। प्रगतिशील विचारधारा के श्री राय के उपन्यास शहर में कर्फ्यू की बड़ी चर्चा रही है और उसका इंग्लिश, उर्दू, पंजाबी, बांग्ला, मराठी, असमिया, ओड़िया और मलयाली समेत कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। उनके कई अन्य उपन्यास बेहद चर्चित रहे हैं। उन्होंने अपने गांव जोकहरा (जिला आजमगढ़, उत्तर प्रदेश) में एक पुस्तकालय खोला है।

वह महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके हैं। उनके कार्यकाल में इस विश्वविद्यालय का कामकाज सुचारु रूप से शुरू हो सका। यह आवासीय विश्वविद्यालय बन गया है, जहां हिंदी भाषा, पत्रकारिता के साथ ही प्रबंधन को लेकर भी कई पाठ्यक्रम पढ़ाए जा रहे हैं। यहां अब चीन, थाईलैंड, मॉरिशस और श्रीलंका से छात्र दाखिला ले रहे हैं। श्री राय का कहना है कि इसे भारत के सबसे बड़े कैंपस के रूप में गढ़ने में उनका प्रशासकीय अनुभव बेहद काम आया। वह कहते हैं, ‘ब्यूरोक्रेट अगर अपने काम में फोकस्ड हो तो अपना काम पूरा कर लेता है।’ विभूति नारायण राय के अनुसार, कुशल प्रबंधक के रूप में ब्यूरोक्रेट्स के दोनों तरह के रिकॉर्ड रहे हैं। अगर ब्यूरोक्रेट में स्थानीयता का बोध नहीं है तो वह ढंग का प्रबंधन नहीं कर सकता। ऐसे ब्यूरोक्रेट्स का आर्थिक और सामाजिक मुद्दों पर जनता से सीधा संपर्क कभी नहीं बन पाया। पीएसयू चलाने वाले आईएएस अफसरों का रिकॉर्ड इस लिहाज से सटीक होता है। लेकिन प्रशासकीय पदों पर उनके काम का नेचर बदलते रहने के कारण वे कुशल प्रबंधक के रूप में नहीं उभर पाते।

इस मामले में आईपीएस कैडर वाले अफसरों का रिकॉर्ड बेहतर रहा है- ऐसा वह मानते हैं। वह कहते हैं कि दूसरी तरफ एक आईपीएस अफसर के काम का नेचर नहीं बदलता। वर्धा में हिंदी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय को गढ़ते हुए बतौर आईपीएस अनुभव बेहद काम आया। वह कहते हैं, समाज और अर्थव्यवस्था की जरूरत के अनुसार मैंने वहां पाठ्यक्रमों का स्वरूप तैयार किया। हिंदी, भाषा के आलावा पत्रकारिता और प्रबंधन के पाठ्यक्रम शुरू किए गए। देश के मार्केट का स्वरूप देखकर हिंदी में एमबीए पाठ्यक्रम का प्रयोग शुरू किया। हमने महसूस किया कि उपभोक्ता से कम्युनिकेट करने की जरूरत है।

 

भगीरथ प्रसाद

भागीरथ प्रसाद

निष्पक्षता का प्रबंध सीखो

मध्य प्रदेश कैडर (तब छत्तीसगढ़ सम्मिलित था) के आईएएस भागीरथ प्रसाद के लिए ब्यूरोक्रेसी अच्छाई-बुराई का ढांचा है जिसमें निष्पक्ष रहना सबसे महत्वपूर्ण है। एक अच्छा ब्यूरोक्रेट वही है जो संविधान और कानून के अनुसार काम करे और अपने क्षेत्र की तरक्की, जनता के हित को सर्वोपरि माने। दरअसल, शासकीय योजनाओं के लिए ब्यूरोक्रेट एक कड़ी की तरह होते हैं। इस कड़ी को मजबूती प्रदान करना जरूरी है। भागीरथ प्रसाद ने इस काम को बखूबी किया।

वह कहते हैं,  जब जनता के लिए कुछ करने की ठान लो तो ही शानदार सफलता मिलती है। निष्पक्ष होने के लिए जरूरी है कि राजनीतिक प्रभाव से दूर रहें। खुद को कभी किसी स्वार्थ के लिए इस्तेमाल न होने दें। राजनेता का सहयोग लेकर काम किए जाएं तो जनता को सबसे ज्यादा फायदा होता है। विकास भी तेजी से होता है और टकराहट की संभावना घट जाती है। नए अफसरों को जनप्रतिनिधियों से भी सलाह ले कर काम करना चाहिए। वे शासन को जनता से जोड़ने में सेतु की तरह काम कर सकते हैं। वह कहते हैं, ‘लोकतंत्र की स्थापना अलग बात है और लोकतंत्र को चलाना अलग। आजादी के बाद लोकतंत्र की व्यवस्था तो बनी पर इसका आधारभूत ढांचा नहीं बना। बस इसे ही बनाने और उस पर अमल की जरूरत है।’

भागीरथ प्रसाद जब संभाग कमीश्नर (भोपाल-होशंगाबाद) थे तब इंदिरा आवास योजना के तहत एक लाख मकान बनाने की योजना थी। उस वक्त ईंट-रोड़ा, कवेलू सभी तरह की सामग्री शहर से जाती थी। ग्रामीण क्षेत्र तक पहुंचते-पहुंचते सामग्री की कीमत बढ़ जाती थी। उन्होंने शहर से निर्माण सामग्री पर प्रतिबंध लगा दिया और गांव से ही ईंट, कवेलू लेने की व्यवस्था की। उस वक्त जो ईंट 1 रुपये में आती थी उसकी कीमत घट कर 7 पैसे हो गई। उन्होंने चौखट, दरवाजे भी गांव से ही बनवाए। इससे मकान सस्ते बने और गांव वालों को रोजगार भी मिला। आदिवासियों ने इस योजना पर गंभीरता से अमल किया और पचास हजार मकान बनवा लिए गए। उन्होंने आदिवासी विकास के प्रमुख सचिव रहते हुए नर्मदा परियोजना में आदिवासियों की जमीन अधिग्रहण के वक्त भी बड़ी भूमिका निभाई। जिन लोगों को अच्छी जमीन के बदले खराब जमीन दी गई या जिन्हें पूरा पैसा नहीं मिला उन अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की और लोगों को न्याय दिलवाने में बड़ी भूमिका निभाई। उसी का परिणाम है कि जनता के बीच आज भी लोकिप्रयता बरकरार है।

 

अश्विनी लोहानी

खूबियों को जानो और खामियां दूर करो

एयरइंडिया के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर अश्विनी लोहानी का मानना है कि किसी भी संस्थान को कामयाबी के मुकाम पर पहुंचाना है तो उसका सबसे बेहतर तरीका उपलब्ध मानव संसाधन के अधिकतम उपयोग का है। यदि आप अपने मातहतों के हितों पर ध्यान देंगे तो वे संस्थान के लिए जी जान से काम करेंगे। उनकी जरूरतों का ख्याल रखेंगे और उन्हें पर्याप्त मान सम्मान देंगे तो वह भी संस्था को सम्मान दिलाएंगे। एक टीम लीडर को यह भी पहचान करना चाहिए कि उसके यहां कार्यरत मुलाजिमों की खूबियां क्या हैं? यह काम कर लिया तो आधा काम हो गया। उसकी काबिलियत और हुनर के मुताबिक काम दे दिया तो कामयाबी मिलने से कोई आप को नहीं रोक सकता। खूबियों को जानो और खामियां पहचानो। खूबियों को उकेरो और खामियों से निजात पाओ।

लोहानी के मुताबिक मैनेजमेंट के किसी भी विद्यार्थी के लिए कामयाब होने का मूलमंत्र यही है। 2004 में मध्य प्रदेश में जब मुख्यमंत्री के रूप में उमा भारती ने कार्यभार संभाला था, तब देश के पर्यटन नक्शे से मध्य प्रदेश गायब था। तब उमा भारती अश्विनी लोहानी को लेकर भोपाल आईं। वह लोहानी का काम केंद्रीय पर्यटन मंत्री के रूप में आईटीडीसी के प्रबंध संचालक के बतौर देख चुकी थीं। लोहानी ने आईटीडीसी की अशोका होटलों को घाटे से निकालकर 58 करोड़ के मुनाफे तक पहुंचा दिया था। लोहानी मध्य प्रदेश आए और उन्होंने 4 साल के भीतर ही काया पलट कर दी। जिस मध्य प्रदेश का पर्यटन के क्षेत्र में कोई नामो निशान नहीं था, वह 2008 में देश में पहली पायदान पर आ गया। दो साल पहले लोहानी मध्य प्रदेश पर्यटन निगम प्रबंध संचालक के दायित्व से मुक्त होकर एयर इंडिया में जा पहुंचे, लेकिन मध्य प्रदेश पर्यटन निगम अब पीछे मुड़कर देखने को तैयार नहीं है। भारत सरकार उसे हर साल पुरस्कृत कर रही है। लोहानी को दो साल पहले एयर इंडिया की जिम्मेदारी सौंपी गई। वह एयर इंडिया को विश्व की विमानन कंपनियों के बीच अगली पांत में खड़ा करने के लिए जमीन-आसमान एक कर रहे हैं। लोहानी कहते हैं कि एयर इंडिया की कमान संभालने के बाद हमने दो तरह की योजनाओं पर काम किया है। पहला देश के भीतर एयर इंडिया की उड़ान बढ़ाई जाएं। नए शहरों में सेवाओं का विस्तार किया जाए। दूसरा देश के बाहर मुसाफिरों को सीधी विमान सेवा उपलब्ध कराई जाए। विस्तार की योजना को आकार देने के लिए हमारे सामने दो ही विकल्प थे। या तो नए विमान खरीदकर विमान बेड़े को बड़ा किया जाए। या फिर लीज पर विमान लेकर चलाए जाएं। हमने दूसरे विकल्प को सस्ता मानते हुए अपनाया है। दिल्ली अहमदाबाद से अब न्यूयॉर्क के अलावा लंदन और वाशिंगटन की उड़ानें भी शुरू हुई हैं तो दक्षिण अफ्रीका में भी इन सेवाओं का विस्तार किया है।

अश्विनी लोहानी आईआरएसएमई अफसर हैं। चार साल में चार विषय में इंजीनियरिंग करने को लेकर उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है। मैकेनिकल, इलेक्ट्रीकल, मैटलर्जिकल तथा इलेक्ट्रॉनिक एवं कम्यूनिकेशंस इंजीनियरिंग के डिग्रीधारी लोहानी का नाम विश्व की सबसे पुराने भाप इंजन वाली ट्रेन फेयरी क्वीन एक्सप्रेस के सफल संचालन के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है।

 

अशोक खेमका

अशोक खेमका

भ्रष्टाचार के विरुद्ध जंग

भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले आईएएस अधिकारी अशोक खेमका के नाम तबादलों का रिकॉर्ड बन गया है। हरियाणा कैडर के 1991 बैच के इस अधिकारी को किसी भी सरकार ने केवल इसलिए नहीं पसंद किया कि वह जिस विभाग में रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहे। इसलिए तबादला दर तबादला होता रहा। खेमका ने साल 2012 में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा और रीयल एस्टेट कंपनी डीएलएफ के बीच हुए जमीन सौदे के दाखिल-खारिज को रद्द कर मामले की जांच का आदेश दिया था। उस समय उन्होंने खूब सुर्खियां बटोरी थीं।

कोलकाता में जन्मे अशोक खेमका ने आईआईटी खड़गपुर से पास करने के बाद मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च से कंप्यूटर साइंस में पीएचडी किया। खेमका पहली बार तब चर्चा में आए थे जब ओमप्रकाश चौटाला मुख्यमंत्री थे और सीएमओ द्वारा जारी किए गए एक कथित नोट को लेकर हुए खुलासे से सरकार ने उनका तबादला कर दिया। यहां तक कि उनसे कार भी वापस ले ली गई। तब खेमका पैदल अथवा साइकिल पर चलकर सचिवालय जाने लगे। भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कार्यकाल में भी खेमका चर्चा में रहे और कभी चार्जशीट, कभी तबादले, कभी मूंग के बीज के खरीद के मामले होते रहे। खेमका ने हाल ही में पंजाब विश्वविद्यालय से लॉ एंट्रेंस की परीक्षा को पास किया। वह कहते हैं कि उनकी शुरू से ही लॉ में दिलचस्पी है और नौकरी से रिटायर होने के बाद इस प्रोफेशन को अपनाएंगे।     

 

अभयानंद

अभयानंद

पढ़ने और पढ़ाने के जुनून ने बनाया आईजी अंकल

कहते हैं जहां चाह होती है वहीं राह भी होती है। बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक रह चुके अभयानंद की पहचान आज छात्रों के बीच आईजी अंकल के नाम से हो चुकी है। इसके पीछे की कहानी यही है कि आईजी रहते हुए अभयानंद की पोस्टिंग बीएमपी (बिहार सैन्य पुलिस) में हो गई थी। बीएमपी की पोस्टिंग शंट पोस्टिंग माना जाता है। ऐसे में अभयानंद ने अपने बेटे को फिजिक्स पढ़ाने में ज्यादा समय दिया। उनके बेटे ने आईआईटी क्रैक कर लिया। तब अभयानंद ने सोचा कि जब बेटे को पढ़ाकर आईआईटी भेज सकते हैं तो अन्य बच्चों को क्यों नहीं पढ़ाया जा सकता। यहीं से शुरू हुआ उनके जीवन का बदलाव। व्यस्त समय के बावजूद अभयानंद ने सुपर 30 में पढ़ाना शुरू किया और वहां बच्चे उन्हें आईजी अंकल के नाम से बुलाते थे। उसके बाद तो अभयानंद ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और लगातार बच्चों को पढ़ाने का सिलसिला जारी रखा। सुपर-30 से अलग होने के बाद उन्होंने अभयानंद सुपर 30 की स्थापना की और बच्चों को शिक्षा देने का अभियान जारी रखा। उनके अभियान का असर दिखा और उनके पढ़ाए बच्चों की संख्या लगातार आईआईटी में बढ़ती गई। अभयानंद ने मुस्लिम बच्चों की शिक्षा को लेकर भी पहल की इसके लिए रहमानी सुपर-30 की स्थानपना हुई। इसके बच्चे भी हर साल आईआईटी में सफलता का परचम लहराते रहे हैं। अभयानंद आईजी के बाद एडीजी बने और डीजीपी बनकर रिटायर भी हो गए लेकिन बच्चों के बीच आज भी आईजी अंकल के नाम से जाने जाते हैं। मूलरूप से पटना बिहार के रहने वाले अभयानंद 1977 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे हैं। बिहार के पुलिस महानिदेशक रहते हुए भी अभयानंद आम जनता के बीच खासे लोकप्रिय रहे हैं। रिटायर होने के बाद पूरा समय बच्चों को पढ़ाने के लिए दे रहे अभयानंद मोबाइल फोन पर भी बच्चों के सवालों का जवाब देते हैं। आज अभयानंद सुपर 30 केवल पटना ही नहीं बल्कि देश के कई शहरों में सफलता का परचम लहरा रहा है। आज अभयानंद के मार्गदर्शन में शिक्षकों की एक टीम काम कर रही है। अभयानंद बताते हैं कि अब पूरा समय बच्चों को पढ़ाने पर दे रहा हूं। उनकी इच्छा है कि अब हर समाज के लोग बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान दें ताकि देश, समाज आगे बढ़ सके।

 

दुर्गाशक्ति नागपाल

दुर्गा शक्ति नागपाल

ईमानदारी के काम से बटोरी सुर्खियां

उत्तर प्रदेश में खनन माफिया के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने वाली दुर्गा शक्ति नागपाल उस समय सुर्खियों में आईं जब उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया। मूल रूप से पंजाब कैडर की 2010 बैच की आईएएस अधिकारी दुर्गा के पति उत्तर प्रदेश कैडर के अधिकारी हैं। इसलिए उन्होंने अपना कैडर बदल कर उत्तर प्रदेश में करा लिया। नोएडा में तैनाती के दौरान जब दुर्गा शक्ति नागपाल ने अवैध तरीके से खनन करने वाले माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई करनी शुरू की तो चर्चा में आ गईं। इस दौरान पंचायत की जमीन कब्जाने वाले एक खनन माफिया के खिलाफ कार्रवाई की तो उन्हें निलंबित कर दिया गया और आरोप लगाया गया कि उन्होंने अवैध रूप से बनाई जा रही एक मस्जिद की दीवार को गिरा दिया था। जिससे इलाके में सांप्रदायिक तनाव फैल जाने की आशंका थी। उस खनन माफिया के प्रदेश की सत्तारूढ़ सरकार के साथ बेहतर संबंध हैं। निलंबन के दौरान दुर्गा शक्ति को जनता से लेकर आईएएस एसोसिएशन का भरपूर सहयोग मिला। हर जगह निलंबन को लेकर आलोचना होती रही। बाद में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के समक्ष दुर्गा ने अपना पक्ष रखा और सही स्थिति की जानकारी दी। उसके बाद ही उनका निलंबन वापस हुआ। युवा और स्वभाव से तेज दुर्गा शक्ति ने यमुना नदी की अवैध रेत निकालने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की। जिसके चलते अवैध खनन माफिया उनके पीछे पड़ गए और अपने सियासी रसूख का इस्तेमाल कर निलंबित करवा दिया। दुर्गा जब नोएडा में कार्यरत थीं उस दौरान 1.36 करोड़ रुपये की राजस्व वसूली हुई थी। इतना ही नहीं, उनके कार्यकाल के दौरान 60 एफआईआर दर्ज होने के साथ-साथ सौ से अधिक लोगों की गिरफ्तारी हुई। यह हाईकोर्ट तक पहुंच गया। मामला इतना बढ़ा कि दुर्गा के पति अभिषेक सिंह को भी उत्तर प्रदेश सरकार ने सस्पेंड कर दिया। उत्तर प्रदेश सरकार के बढ़ते हस्तक्षेप को देख दुर्गा ने अपना तबादला कराना ही उचित समझा। केंद्र सरकार ने भी उनके कामकाज को देख उनकी तैनाती के लिए जल्द ही आदेश जारी कर दिया। वर्तमान में दुर्गा केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह की ओएसडी के तौर पर कार्य कर रही हैं। मंत्रालय में कामकाज को लेकर अधिकारियों के बीच चर्चा में बनी रहती हैं।

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