प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कृषि और किसानों की बेहतरी के लिए जो सतत प्रयास किए गए हैं उनके उत्साहजनक और सकारात्मक परिणाम दिखने लगे हैं। मोदी सरकार किसानों के कल्याण के लिए जिस मनोयोग से काम में जुटी है, इससे किसानों के जीवन में गुणात्मक सुधार आ रहा है। मोदी सरकार ने विकास के लिए देश के सामने नई कार्यविधि, पारदर्शी कार्यशैली के नए प्रतिमान रचे हैं। सरकार ने समयबद्ध तरीके से प्रधानमंत्री के कुशल मार्गदर्शन में किसान कल्याण की योजनाओं के पूर्ण क्रियान्वयन के लक्ष्यों को मिशन मोड में परिवर्तित किया है।
राष्ट्रीय किसान आयोग के अध्यक्ष डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन ने तत्कालीन सरकार को वर्ष 2006 में दी गई रिपोर्ट में यह अनुशंसा की थी कि कृषि आधारित सोच के साथ-साथ किसानों के कल्याण पर भी उचित ध्यान दिया जाना चाहिए। यह किसान ही है जो आर्थिक बदलावों में किए गए प्रयासों को महत्वपूर्ण दिशा प्रदान करता है। इसलिए व्यवस्था में आमूल परिवर्तन के लिए कृषि में फसल उपरांत प्रसंस्करण बाजार और इससे संबंधित व्यवस्था पर समुचित ध्यान देना होगा। साथ ही प्राकृतिक संपदाओं में लगातार क्षरण और जलवायु परिवर्तन को देखते हुए किसान आयोग ने प्राकृतिक संसाधनों के वैज्ञानिक प्रबंधन, सतत उत्पादन और विकास की तरफ भी ध्यान देने की बात कही थी।
बीते छह अगस्त को डॉ. स्वामीनाथन ने एक समाचार पत्र में प्रकाशित अपने लेख में कहा है, “हालांकि, राष्ट्रीय किसान आयोग की रिपोर्ट वर्ष 2006 में प्रस्तुत की गई थी लेकिन जब तक नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार नहीं बनी थी तब तक इस पर बहुत काम नहीं हुआ था। पिछले चार वर्षों के दौरान किसानों की दशा और आय में सुधार करने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं।”
पिछले चार वर्षों में कृषि क्षेत्र में सतत विकास, किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने और कृषि उत्पादन लागत में कमी करने के लिए प्रयास किए गए हैं। इन प्रयासों से हमारे जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन हो रहे हैं। देश भर में सॉयल हेल्थ कार्ड जारी करना इसी सोच का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
नाइट्रोजन उपयोग क्षमता को बढ़ाने के लिए और उपयोग की मात्रा और इसकी लागत को घटाने के लिए सरकार ने कृषि में केवल नीम कोटेड यूरिया के उपयोग को अनिवार्य बनाया है। इससे उत्पादकता में तो सुधार हुआ ही खेती की लागत भी घटी है। साथ ही गलत और गैर-कृषि क्षेत्र में इसके उपयोग को रोकने में भी मदद मिली है। सतत कृषि विकास और मृदा स्वास्थ्य के लिए ऑर्गेनिक खेती को परंपरागत विकास योजना के साथ जोड़ दिया गया है, जिसमें पुआल का इन-सीटू प्रबंधन भी शामिल है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के लागू होने से खेती के कार्यों में उचित जल प्रबंधन हो सकेगा। सरकार ने पुरानी योजनाओं के विस्तृत अध्ययन के बाद उनमें सुधार किया है और दुनिया की सबसे बड़ी किसान अनुकूल प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और मौसम आधारित फसल बीमा योजना 2016 में शुरू की। इसके तहत कृषि क्षेत्र को सभी जोखिमों से सुरक्षा प्रदान की गई है।
राष्ट्रीय किसान आयोग ने किसानों की आय बढ़ाने के लिए कई सुधारों की संस्तुति की थी, जिसको आधार मानकर सरकार ने सुधार योजनाएं लागू की हैं। मॉडल एग्रीकल्चर लीजिंग एक्ट, 2016 राज्यों को जारी किया गया, जो कृषि सुधारों के संदर्भ में अत्यंत ही महत्वपूर्ण कदम है, जिसके माध्यम से भू-धारक और लीज प्राप्तकर्ता दोनों के हितों का ख्याल रखा गया है। बाजार सुधार लागू करने से बाजारों में पारदर्शिता बढ़ी है। राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक ई-मार्केट स्कीम 2016 (ई-नाम) एक ऐसा ही एकीकृत उपाय है जो देश के कृषि बाजारों को एक साथ जोड़ता है। सरकार ने देश की 585 कृषि उत्पाद समितियों के अलावा मंडियों के बीच भी खुले व्यापार पर ध्यान देकर राष्ट्रीय कृषि बाजार की स्थापना की है।
2018 के बजट में, नई बाजार संरचना के बारे में बहुत सारी बातें कही गई हैं, जिसकी लंबे समय से आवश्यकता भी थी। छोटे और सीमांत किसान, अपनी छोटी-सी उपज को नजदीक के बाजार में बेच सकें, इसके लिए भी व्यवस्था की गई है। 22 हजार ग्रामीण बाजारों का देश भर में फैलाव, ग्रामीण कृषि मार्केट के विकास के अंतराल को कम करता है। नए आधारभूत ढांचे के तहत, छोटे और सीमांत किसान, एपीएमसी या ई-नाम से जुड़कर अपनी छोटी-छोटी उपज को भी प्रभावशाली ढंग से बेच सकेंगे। ग्रामीण कृषि बाजार स्थापित होने से किसान सीधे तौर पर उपभोक्ताओं या रिटेलर्स को अपना उत्पाद बेच सकेंगे। हम और एक मजबूत तथा सक्षम कृषि बाजार के उचित न्यायिक ढांचे का विकास हासिल कर सकें, इसके लिए मोदी सरकार ने मॉडल (कृषि उत्पाद एवं पशुधन विपणन अधिनियम 2016) बनाकर सभी प्रदेशों को दिया है और कृषि उत्पाद तथा पशुधन कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एवं सेवा नियमावली 2018 भी राज्यों को लागू करने के लिए दिया गया है।
लागत से न्यूनतम 50 फीसदी ज्यादा समर्थन मूल्य देने का निर्णय लेकर केंद्र सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है, जिससे किसानों के बड़े हितों की भरपाई हो सके। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य को लागू करने के लिए भी प्रतिबद्ध है। हरित क्रांति की शुरुआत से ही सरकारी खरीद केवल धान और गेहूं तक सीमित रही है। कभी-कभी कुछ और जिंसों की खरीदारी भी की जाती रही है। लेकिन, मोदी सरकार के आने के बाद दलहन और तिलहन की खरीदारी में भारी वृद्धि हुई है। हम सभी तरह के किसानों, जिनमें दलहन, तिलहन के अलावा अन्य मोटे अनाजों का उत्पादन करने वाले किसान शामिल हैं, को अपने कार्यक्रमों से जोड़कर राज्य सरकारों के माध्यम से लाभ पहुंचाएंगे।
न्यूनतम समर्थन मूल्य पर इन फसलों की सुनिश्चित खरीद से इनके उगाने वाले किसानों को कीमतों में महत्वपूर्ण वृद्धि मिलेगी। ये ऐसी फसलें हैं, जो जलवायु के अनुकूल हैं और भविष्य में जलवायु परिवर्तन को सहने की क्षमता भी रखती हैं। प्रधानमंत्री के देश की आजादी के 75वें वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य से एक बड़े उद्देश्य की प्रतिपूर्ति होगी। न्यूनतम समर्थन मूल्य के निर्धारण के लिए नई नीति का निर्माण कर तथा सुनिश्चित लाभ दिलाकर विभिन्न फसलों और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार, जिसमें समानता और किसान कल्याण शामिल है, सरकार कृषि को एक नई दिशा प्रदान कर रही है।
छह अगस्त के लेख में डॉ. स्वामीनाथन ने कहा है कि “कृषि की आर्थिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिए किसान आयोग की सिफारिश के आधार पर लाभकारी मूल्यों की हाल ही में की गई घोषणा महत्वपूर्ण कदम है। इस बात पर बल देने के लिए सरकार ने अपनी अधिसूचना में यह सुनिश्चित किया है कि खरीफ, 2018 से अधिसूचित फसलों का एमएसपी पैदावार की लागत का कम से कम 150 प्रतिशत होगा और मोटे अनाज के लिए एमएसपी 150-200 प्रतिशत होगा।”
खेती के अलावा पशुपालन, मछली पालन, जलजीवों के विकास को भी सरकार ने अपनी नीतियों और योजनाओं में उचित प्राथमिकता दी है। राष्ट्रीय गोकुल मिशन, जो कि देसी नस्लों के संरक्षण और विकास पर आधारित है, पर ध्यान दिया जाना समुचित कृषि विकास का अभिन्न अंग है। इससे बहुत सारे लघु एवं सीमांत किसानों और पशुओं की देसी नस्लें पालने वाले भूमिहीन कृषि मजदूरों को उचित लाभ मिल रहा है। देश में 161 देसी नस्लों का पंजीकरण किया गया है, जिसके विकास के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद क्रियाशील है।
इसी तरह से मछली उत्पादन विकास जिसमें कि समुद्री और मीठे पानी की मछलियां शामिल हैं, के लिए लागू परियोजनाओं से मछुआरों के जीवन में आशातीत सुधार हो रहा है। मछली उत्पादन क्षेत्र ने कृषि के सभी क्षेत्रों से ज्यादा वृद्धि दर हासिल की है।
ऐसे लघु किसान जो परिवार के भरण-पोषण के लिए समुचित आय नहीं कमा सकते हैं उन के लिए सहयोगी कृषि को बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकार की कृषि आधारित सहयोगी योजनाओं में मधुमक्खी पालन, मशरूम उत्पादन, कृषि वानिकी और बांस उत्पादन शामिल हैं। प्राकृतिक संपदाओं के उत्पाद से कृषि जगत में अतिरिक्त रोजगार और आमदनी पैदा करने में सहायता मिलेगी।
राष्ट्रीय किसान आयोग द्वारा दी गई उत्पादकता बढ़ाने तथा कुपोषण दूर करने संबंधी सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा केवल पिछले चार साल में फसलों की कुल 795 उन्नत किस्में विकसित की गई हैं। इनमें से 495 किस्में जलवायु के विभिन्न दबावों को सहने में सक्षम हैं, जिसका लाभ किसान उठा रहे हैं।
कुपोषण की समस्या जो कि लंबे समय से भारतीय समाज में व्याप्त है, को दूर करने की दिशा में पहली बार सरकार द्वारा ऐतिहासिक पहल की गई, जिसके अंतर्गत कुल 20 बायो-फॉर्टिफाइड किस्में विकसित कर खेती के लिए जारी की गईं। सीमांत और लघु किसान परिवारों की आमदनी को बढ़ाने की दिशा में पहल करते हुए कुल 45 एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल विकसित किए गए, जिनसे मृदा स्वास्थ्य, जल उपयोग प्रभावशीलता को बढ़ाया जा रहा है और साथ ही कृषि की जैव विविधता का संरक्षण किया जा रहा है। विभिन्न राज्यों में आर्थिक दृष्टि से मूल्यांकन करने पर ये मॉडल लाभकारी पाए गए हैं। भारत सरकार द्वारा इन मॉडलों को गांव-गांव तक पहुंचाने के लिए प्रत्येक कृषि विज्ञान केंद्र में इस मॉडल को स्थापित किया जा रहा है और इनके प्रदर्शन भी किए जा रहे हैं, ताकि किसान भाई इसकी सफलता को देखकर इसे अपनाने के लिए प्रेरित हों और खेती से कहीं अधिक लाभ कमा सकें। कृषि क्षेत्र में नीतिगत सुधारों और नई-नई योजनाओं को सरकार द्वारा लागू करने के लिए जरूरत के मुताबिक, बजट की व्यवस्था की गई है। पिछले वर्षों में मोदी सरकार ने ऐसी योजनाओं के क्रियान्वयन और उन्हें मजबूती प्रदान करने के लिए 2,11,694 करोड़ रुपये का बजटीय प्रावधान किया है।
इसके अलावा भी सरकार ने डेयरी को-आपरेटिव, मछली और जलजीवों के उत्पादन, पशुपालन, कृषि बाजार तथा सूक्ष्म सिंचाई के आधारभूत ढांचे तथा व्यवस्था में सुधार के लिए सक्षम कार्पस फंड बनाए हैं। इस प्रकार से सरकार ने कृषि जगत और किसानों के कल्याण के लिए तथा उपभोक्ताओं की अभिरुचि को ध्यान में रखकर सतत उत्पादन की तरफ आय केंद्रित दृष्टिकोण अपनाया है। किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए प्रधानमंत्री ने देश के सामने एक लक्ष्य रखा है। यह लक्ष्य है वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का।
देश में पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने किसानों की समग्र भलाई और कल्याण के लिए इस तरह का कोई लक्ष्य देशवासियों के सामने रखा है। इस विजन के अनुसरण में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय अगस्त 2022 में, जब हमारा देश 75वां स्वतंत्रता दिवस समारोह मना रहा होगा, उस समय तक किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए गठित समिति की सिफारिशों के आधार पर ठोस कार्यनीति अपना रहा है। इसके परिणाम भी सामने आ रहे हैं।
(लेखक केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री हैं)
 
                                                 
                                                                     
			 
                     
                    