हाल ही में एक दैनिक कारोबारी खबर वाले अखबार ने कुछ बिजनेस ग्रेजुएट्स के बीच सर्वे कराए और उनसे पूछा, ‘क्या कॅरिअर विकल्प के रूप में स्टार्टअप्स अपनी विश्वसनीयता खो रहे हैं?’ आश्चर्य है कि आज के स्टार्टअप्स के युग में लगभग 75 प्रतिशत छात्रों ने कहा कि हां, स्टार्टअप्स अपनी विश्वसनीयता खो रहे हैं। बीते पांच वर्षों में जो देखा गया है वह यही स्थिति बयान कर रहे हैं। बीते कुछ वर्षों से बी-स्कूल प्लेसमेंट को लेकर जूझ रहे हैं। ऐसा नहीं है कि सिर्फ स्टार्टअप्स में ही प्लेसमेंट को लेकर दिक्कतें हैं। पारंपरिक ब्रिक्स और मोर्टार कंपनियों में भी मंदी व्याप्त है।
कैंपस प्लेसमेंट का सीजन नजदीक है। इसे लेकर कॉलेज और कंपनियां अपनी तैयारी में लग जाएंगे। कैंपस प्लेसमेंट की कवायद कुछ दिनों या कुछ सप्ताह के लिए होगी, जहां प्रतिभाशाली कर्मचारी की पहचान व्यक्तिगत तौर पर कंपनियां करेंगी। जब स्टार्टअप्स सेक्टर में बूम आया था तो एमबीए स्नातकों को इसमें अपना बेहतर कॅरिअर विकल्प दिखता था।
लेकिन अब स्थिति वैसी नहीं है। बहुत सारे स्टार्टअप्स विफल साबित हुए हैं। स्टार्टअप्स सेक्टर में आई हाल की मंदी और स्टार्टअप सेक्टर में सुधार के बाद, कई वर्षों बाद भी बहुत कम ऐसी कंपनियां हैं, जो बिजनेस स्कूलों से कर्मचारियों का चयन कर रही हैं। नई दिल्ली स्थित इंटरनेशनल मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट में प्लेसमेंट के डीन पिनाकी दासगुप्ता कहते हैं, ‘खास कर ई-कॉमर्स के क्षेत्र में स्टार्टअप्स ने प्लेसमेंट की गुंजाइशों को कम कर दिया है।’ वह आगे कहते हैं, ‘कॉलेज अब ऐसी कंपनियों के प्रदर्शन में एकदम से गिरावट आने के चलते प्लेसमेंट के लिए अन्य रास्ते तलाश रहे हैं, क्योंकि उनकी जवाबदेही भी बनती है।’
कई स्टार्टअप्स में देखा गया है कि वे कर्मचारियों की संख्या कम करने लगे हैं और इससे स्टार्टअप्स के कॉलेजों में विश्वसनीयता कम हुई है। अविश्वास की स्थिति यह है कि आईआईटी ने प्लेसमेंट के लिए लगभग 30 ऐसी कंपनियों को ब्लैकलिस्ट किया है। हाल ही में आईआईएम के निदेशकों की मुंबई में एक बैठक हुई, जिसमें कई स्टार्टअप्स कंपनियों द्वारा विभिन्न बी-स्कूल के कैंपस से प्लेसमेंट पर प्रतिबंध लगाने की सूची तैयार करने की संभावना पर विचार किया गया।
इस तरह का कठोर कदम उठाने का मुख्य कारण ऐसे स्टार्टअप्स द्वारा किए गए वादों को नहीं निभाना है। ई-कॉमर्स कंपनियां- जैसे फ्लिपकार्ट और फूड पांडा ने कैंपस प्लेसमेंट से चयनित उम्मीदवारों की ज्वाइनिंग की तारीख को रद्द कर दिया या फिर उनकी नियुक्ति को ही रद्द कर दिया। आईआईएम इंदौर के फैकल्टी इन चार्ज अमिताभ कोडवानी कहते हैं, ‘आज के स्टार्टअप्स में एक ट्रेंड देखा जा रहा है कि वे प्लेसमेंट के दौरान कभी-कभी बहुत ज्यादा वादे कर देते हैं, जिन्हें वे ज्वाइनिंग के समय पूरा नहीं कर पाते।’
दूसरी ओर, इस तरह के स्टार्टअप्स कॉलेजों से मांग और आपूर्ति के बीच की कमी भी बड़ा कारण है। आर्थिक माहौल में लगातार हो रहे बदलाव की स्थिति में कई अग्रणी कंपनियां एकदम से कट्टरपंथी दृष्टिकोण की तुलना में और अधिक विवेकपूर्ण ढंग से कदम उठाने के लिए आगे आ रही हैं। ई-कॉमर्स कंपनियों का कहना है कि इस तरह से नियुक्ति में बदलाव सिर्फ निचले स्तर के प्रबंधकों में ही नहीं बल्कि अनुभवी लोगों की ज्वाइनिंग और विकास की रणनीति को संभालने में आई है।
रोजगार सृजन के बगैर अर्थव्यवस्था में विकास के अद्वितीय माहौल ने व्यावसायिक स्नातकों के मन में एक अंधकारमय भविष्य का भय बैठा दिया है, जब कि अर्थव्यवस्था में हो रहे विकास को एक बहुत बड़े योगदान के रूप में देखा जा रहा था। लेबर ब्यूरो के बीते तिमाही के सर्वे में कहा गया है कि वर्ष 2009 में जब सर्वे आरंभ किया गया, तब से अब तक भारत में कोई व्यापक रोजगार सृजन नहीं हुआ है।
नए कर्मचारियों की नियुक्ति को लेकर समस्या केवल स्टार्टअप्स तक ही सीमित नहीं है। एसपी जैन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के उप निदेशक अब्बास अली गुबुला कहते हैं, ‘कोर कंपनियों के बीच, आईटी
सेक्टर को सबसे बड़ा झटका लगा है। अधिक तकनीकी प्रगति की वजह से आईटी सेक्टर की कंपनियों के सामने समस्याएं खड़ी हुईं। इस तरह की कंपनियों ने अब एक स्वचालित जानकारी प्रबंधन प्रणाली अपना ली है जिसने अब कई श्रेणी की नौकरियों को निरर्थक बना दिया है। कंपनियां बगैर कर्मचारियों की संख्या बढ़ाए विकास की संभावनाएं तलाश रही हैं। इससे आईटी और मैनेजमेंट सेक्टर- दोनों में नौकरी की संभावनाएं प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुई हैं। हालात ये हैं कि देश में मात्र 24 प्रतिशत बिजनेस ग्रेजुएट्स ही स्नातक की पढ़ाई करने के बाद नौकरी पाने के योग्य होते हैं।’ सिंबायोसिस इंस्टीट्यूट ऑफ बिजनेस मैनेजमेंट (एसआईबीएम) के निदेशक आर रमण ने कहा कि एफएमसीजी और फार्मास्यूटीकल्स सेक्टर में रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं।
दूसरी ओर छात्र अस्थायी नौकरी की ओर देख रहे हैं, बहुत सारे युवा स्टार्टअप्स में मैनेजमेंट के पद की ओर देखना छोड़ चुके हैं। एसआईबीएम, पुणे के छात्र वरुण राव, जो खुद प्लेसमेंट टीम का हिस्सा रहे हैं, का कहना है कि बीते कुछ वर्षों में, उन्होंने यह देखा है कि ई-कॉमर्स कंपनियों में छात्रों के हितों की क्षति हुई है। बीते साल छात्र स्टार्टअप्स के ग्लैमर्स की वजह से इसकी ओर आकर्षित हुए थे और कुछ स्टार्टअप्स कंपनियों ने हलका- फुलका रेस्पांस भी किया लेकिन अब बहुत सारे छात्र स्थायी नौकरी के लिए पारंपरिक कंपनियों की ओर रुख कर रहे हैं।
हालांकि, पारंपरिक कंपनियां स्टार्टअप्स की आक्रामकता के बावजूद ज्यादा नियुक्तियां कर सकती हैं। यह संख्या थोड़ी कम हो सकती है। उद्योगों के हाल के सकारात्मक दृष्टिकोण को देखते हुए कॉलेजों को पिछले वर्ष के मुकाबले इस बार प्लेसमेंट बढ़ने की उम्मीद है। दूसरी ओर, एमबीए छात्रों की लंबी लाइन लगी है, जो स्टार्टअप्स में नौकरियों की कमी सहित कई समस्याओं से जूझ रहे हैं। दूसरी ओर, कई कोर सेक्टर्स में मौके बढ़ रहे हैं।