Advertisement

बे‌हतर बनो तो दुनिया है खुली

शीर्ष बिजनेस स्कूलों की आउटलुक की सालाना रैंकिंग के साथ जानें कैसे बदल रहा ग्लोबल एमबीए, ललित कला और भाषाओं का संसार
वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए भारतीय छात्र कितने तैयार?

अगस्त में फाइनेंशियल टाइम्स ने ग्लोबल बिजनेस स्कूलों की अपनी रैंकिंग जारी की थी। शीर्ष 30 संस्थानों की ग्लोबल सूची में देश के शीर्ष संस्थान आइआइएम, अहमदाबाद का होना भारतीय नजरिए से उत्साहजनक है। इससे भी बेहतर बात यह है कि एशिया के शीर्ष पांच बिजनेस स्कूलों में से तीन भारत के हैं। लेकिन, शीर्ष पर चीन के संस्थान का होना और उससे पिछड़ जाना निराशाजनक रहा।

ग्लोबल सूची में अग्रणी भारतीय बिजनेस स्कूलों का होना काफी हद तक असंतुलित हो चुकी देश की व्यावसायिक शिक्षा की गुणवत्ता और दृष्टिकोण में सुधार की तस्दीक करता है। हालांकि शीर्ष 10-15 में से ज्यादातर ख्यातिप्राप्त संस्थान हैं, जबकि अधिकांश अब भी पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं। इनोवेशन अभी भी मुख्यधारा में नहीं आया है और इंडस्ट्री में मांग बनाए रखने की दिशा में प्रगति के लिए भी काफी कुछ किए जाने की जरूरत है। इसके अलावा, सबसे महत्वपूर्ण पहलू ‘उद्यमशीलता’ अब भी भारतीय एमबीए से गायब है। शीर्ष बी-स्कूलों के लिए यह दबाव चौतरफा है, हालांकि कुछ अपने पाठ्यक्रम में बदलाव कर रहे हैं और लीक से हटकर सोचना भी शुरू किया है।

शिक्षा की समग्र गुणवत्ता अब भी एक समस्या बनी हुई है। शीर्ष 20-25 बिजनेस स्कूल नवीन दृष्टिकोण रखते हैं और जरूरत के अनुसार अपने पाठ्यक्रम में बदलाव लाते हैं। लेकिन, ज्यादातर संस्थान अभी भी पुराने तौर-तरीकों पर चल रहे हैं। केस स्टडी आधारित पढ़ाई के कारण भी अग्रणी भारतीय स्कूल पिछड़ रहे हैं, जिनसे ग्लोबल बी स्कूल आगे निकल चुके हैं। अब केस स्टडी नहीं, नवाचार पर जोर है। आज ज्यादातर कॉरपोरेट की शिकायत है कि एमबीए और इंजीनियर इंडस्ट्री की जरूरतों के हिसाब से तैयार नहीं हैं और उन्हें काम के लायक बनाने के लिए कंपनियों को समय और पैसा दोनों खर्च करना पड़ रहा है। गुणवत्ता सुनिश्चित करने के मापदंड के बिना देश भर में बी-स्कूलों का बेतरतीब प्रसार इस समस्या को और बढ़ा रहा है। अभी भारत में व्यावसायिक शिक्षा के लिए असली चुनौती है: बड़ी संख्या में एमबीए स्नातकों को हर साल बाजार की जरूरतों के हिसाब से तैयार कर उन्हें रोजगार पाने लायक बनाना।

इन परिस्थितियों में भारत के शीर्ष बी-स्कूलों की आउटलुक-दृष्टि रैंकिंग प्रासंगिक हो जाती है। इस क्षेत्र में कॅरिअर बनाने वाले छात्रों और उनके माता-पिता के लिए यह मददगार सरीखा है। हालांकि, एक बार फिर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आइआइएम) नाम वाले संस्थानों का शीर्ष पर बने रहना रैंकिंग को लेकर अचंभित नहीं करता। लेकिन, अच्छी खबर यह है कि कई नए स्कूल सूची में जगह पाने में कामयाब रहे हैं। नए संस्थानों को रैंकिंग के दायरे में लाने के लिए पिछले साल की तुलना में इस बार हमने भी सहभागिता का दायरा बढ़ाया है।

पिछले कुछ वर्षों में एक अच्छी बात यह रही है कि कुछ बी-स्कूल ग्लोबल एमबीए पाठ्यक्रम पेश कर रहे हैं। इससे छात्रों को वैश्विक स्तर पर अपनी क्षमता प्रदर्शित करने में मदद मिलेगी। यही कारण है कि पहली बार हमने भी ग्लोबल पाठ्यक्रमों की पेशकश करने वाले बी-स्कूलों की एक सूची पेश की है।

हमारे आलेख उन मुद्दों पर विस्तृत नजरिया पेश करते हैं जो न केवल आज के उद्यमियों के लिए प्रासंगिक हैं, बल्कि उन छात्रों के लिए भी हैं जो व्यवसाय और उद्यमिता के क्षेत्र में कॅरिअर बनाना चाहते हैं। राज्य की ओर से कोचिंग की शुरुआत, इस व्यवस्था में सरकार की प्रासंगिकता को बताती है। इससे उन छात्रों को मदद मिलेगी जो आर्थिक कारणों से निजी कोचिंग संस्थानों में नहीं पढ़ सकते। नई पीढ़ी अपनी नई सोच और हुनर की बदौलत अपने पुश्तैनी कारोबार को किस तरह नई ऊंचाइयां प्रदान कर रही है इस पर भी एक रिपोर्ट में नजर डाली गई है। एक अन्य रिपोर्ट से पता चलता है कि अग्रणी बी-स्कूलों से एमबीए करने वाले समाज में बदलाव लाने के लिए किस तरह फूड ट्रेड के क्षेत्र में इनोवेशन कर रहे हैं।

पढ़ाई की सभी विधाओं के बीच ललित कला केंद्रीय भूमिका में आ रही है। बहुभाषी होना तेजी से सफलता का मुख्य आधार बन रहा है। भाषाओं की पढ़ाई के बढ़ते महत्व पर केंद्रित लेख बताता है कि यह न केवल इंडस्ट्री के हिसाब से छात्रों को तैयार करने, बल्कि वैश्विक चुनौतियों से निपटने में उन्हें सक्षम बनाने के लिए भी जरूरी है।

समय के साथ बाजार की मांग बढ़ती जाएगी और धीरे-धीरे पूरी दुनिया छात्रों की कर्मभूमि बन जाएगी। छात्र नई चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हों, इसके लिए बिजनेस स्कूलों को ज्यादा सक्रियता दिखानी होगी। उपलब्ध विकल्पों में बेहतर शिक्षा हासिल करने और अपने भविष्य के लिए सटीक फैसला करने में हम उनकी मदद करते रहेंगे। जैसा कि हम हमेशा कहते हैं (पड़ताल खुलकर करें), फैसला बुद्धिमानी से लें।

Advertisement
Advertisement
Advertisement