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आंगन से निकल छुआ आकाश

रजनी बेक्टर ने महज 300 रुपये के साथ शुरू किया था कारोबार
आइसक्रीम साम्राज्ञी: क्रेमिका कंपनी की संस्थापक रजनी बेक्टर लुधियाना स्थित अपने घर में

लुधियाना के सतलज क्लब के पाश्र्वकक्ष के पास एक लंबी महिला गुजरी। नाम है ‘मिसेज बेक्टर’ यह नाम पीली चटनी और सॉस की बोतलों पर चमकते हुए हमारे सामने आता है जो कि अनगिनत भारतीय कोठरियों में पाया जा सकता है। 500 साल पुराने इस शहर का हर व्यक्ति यह जानता है कि बेक्टर होना कोई आसान काम नहीं है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों की भारी भीड़ में, मिसेज बेक्टर और क्रेमिका एक मजबूत भारतीय चुनौती है। ऐसे व्यक्ति को ढूंढना थोड़ा मुश्किल है, जिसने मिसेज बेक्टर के क्रेमिका शृंखला के उत्पादों का सेवन न किया हो। कंपनी के वर्तमान मालिक ब्रांड के सटीक मूल्य के बारे में थोड़े रक्षात्मक हैं लेकिन विशेषज्ञों का अनुमान है कि अब यह कंपनी 3,000 करोड़ रुपये से ऊपर की है 1978 में श्रीमती बेक्टर ने 300 रुपये की हाथ से मथने वाली आइसक्रीम की मशीन से शुरुआत कर यहां तक की छलांग लगाई है। रजनी बेक्टर की घर की बनी आइसक्रीम पार्टी के मेनू में शामिल होने लगी। मित्रों ने उन्हें कैटरिंग का व्यवसाय आरंभ करने की सलाह दी।

75 वर्षीय रजनी बेक्टर कहती हैं,- ‘मैंने शौकिया तौर पर मेलों और उत्सवों के लिए, जो उन दिनों आम था, आइसक्रीम बनानी आरंभ की।’

एक बार रजनी ने दीवाली मेले में अपना आइसक्रीम का स्टाल लगाया, उन्हें जो जगह मिली वह क्वालिटी आइसक्रीम वेंड के पास ही मिली। वह कहती हैं- मैं बड़ा असहज महसूस कर रही थी, मैंने सोचा कि मैं एक प्रसिद्ध ब्रांड की क्या बराबरी कर सकती हूं लेकिन उनके स्टाल पर भीड़ जुटने लगी, जल्दी ही 70 लीटर आइसक्रीम बिक गई। इसके बाद वह लगातार आगे बढ़ती गईं।

तब उनके पति धर्मवीर बेक्टर फर्टीलाइजर का पारिवारिक व्यवसाय करते थे। उन्होंने रजनी को सलाह दी की इस व्यवसाय को बढ़ाए और आइसक्रीम बनाने की एक यूनिट लगाई जाए। 1980 में रजनी ने 20 हजार रुपये से घर के पीछे आंगन में यूनिट लगाई। धर्मवीर का पारिवारिक नाम बेक्टर है जो असल में ‘बख्तियार’ का अंग्रेजीकरण है। कराची में जन्मी रजनी का 17 साल की उम्र में विवाह हुआ और वह एक गृहिणी के रूप में परिवार में रच-बस गईं। धर्मवीर को अपनी पत्नी के व्यवसाय में संभावनाएं दिखीं, उन्होंने एक बेकिंग यूनिट खोलने और चलाने की सलाह दी। उन्होंने 50 लाख का लोन ले कर बेकिंग यूनिट स्थापित की। रजनी हंसते हुए कहती हैं- ‘हम इसके अलावा और कुछ सोच ही नहीं रहे थे। हम क्रीम के उत्पादों के आगे कुछ नहीं सोचते थे और धर्मवीर ने ‘क्रीम का’ को क्रेमिका शब्द के रूप में गढ़ दिया।’ 1995 में बेकरी यूनिट काम करने लगी। उसी दौरान मैकडोनाल्ड ने भारत में अपनी फास्ट फूड चेन लांच करने का निर्णय लिया। उसने भारत में बर्गर बन की शुरुआत कर दी- तब यह बड़ा मुश्किल काम था। कुछ लोगों ने उनसे लुधियाना की क्रेमिका बेकिंग यूनिट का उल्लेख किया। धर्मवीर कहते हैं- ‘यह आसान नहीं था। एक वर्ष के परीक्षण के दौरान हमने जो नमूने उन्हें दिए वह खारिज कर दिए गए। तब हम लोगों ने अमेरिका से स्पेशल प्लांट मंगाया और तब इस कला में महारत हासिल कर पाए। अब हमारे प्लांट नोएडा, बेंगलूरु और मुंबई में हैं। क्रेमिका कंपनी का राजस्व सालाना 600 करोड़ रुपये का है। क्रेमिका फूड इंडस्ट्रीज, जो अब रजनी के बेटे अक्षय बेक्टर के स्वामित्व में है, की वार्षिक वृद्धि दर 35-40 प्रतिशत है। बेक्टर का कहना है कि उनके 40 प्रतिशत उत्पाद का निर्यात हो जाता है और घरेलू बाजार में उनकी उपस्थिति खास कर उत्तर भारत में है। वे अतिरिक्त पूंजी के सहारे दक्षिण भारत में भी विस्तार की योजना में हैं, हालांकि वहां के डिपार्टमेंटल स्टोर्स में उनकी मौजूदगी है।

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