उच्च शिक्षा खासकर, पोस्टग्रेजुएट पाठ्यक्रमों के लिए विदेश जाना बहुतेरे भारतीय छात्रों का सपना होता है और ज्यादातर इसे पसंदीदा कॅरिअर की दिशा में पहला कदम मानते हैं। कैंब्रिज इंटरनेशनल एक्जामिनेशंस (सीआइई) और इंटरनेशनल बैकलॉरिएट (आइबी) जैसे बोर्डों के साथ इंटरनेशनल स्कूलों की संख्या और विदेशी विश्वविद्यालयों में अंडरग्रेजुएट पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए आवेदनों की संख्या में इजाफा हुआ है। लेकिन, विदेश में पढ़ाई करनी है या नहीं, यह सवाल ‘क्या यह फैसला सही है’ इससे अधिक इस पर निर्भर है कि ‘आपके भविष्य के लिए क्या सही है।’ इसका कोई आसान या सटीक जवाब नहीं है, यह किसी के लक्ष्य, जरूरतों और संसाधनों पर निर्भर करता है।
आपको खुद से यह सवाल करना चाहिए कि विदेश में पढ़ाई के क्या फायदे हैं। हालांकि, व्यक्तिगत परिस्थितियों के हिसाब से अलग-अलग हो सकता है, लेकिन फैसला करने से पहले आपको कई सवालों के जवाब ढूंढ़ने होंगे। उनमें से कुछ हैंः
-क्या विदेश जाना चाहिए या क्यों जाना चाहिए?
-मुझे कहां जाना चाहिए?
-किस विश्वविद्यालय में मैं दाखिला ले सकता हूं?
अमूमन, विदेश में पढ़ाई का स्तर काफी ऊंचा है। इसका मतलब यह नहीं है कि वहां हफ्ते में ज्यादा कक्षाएं होती हैं या ज्यादा होमवर्क मिलता है। वास्तव में, कई मामलों में इसका उलटा होता है। लेकिन, भारत के मुकाबले विदेश में पढ़ाई ज्यादा स्वकेंद्रित होती है और वहां रिसर्च पर जोर दिया जाता है। फाइनल एक्जाम की बजाय साल भर अलग-अलग गतिविधियों के आधार पर फाइनल ग्रेड मिलता है। ब्रिटेन में छात्रों को रिसर्च करने और खुद से रिसर्च पेपर लिखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। नतीजतन, ब्रिटेन के कई विश्वविद्यालयों में मसलन, साउथएम्पटन में साइंस डिग्री से स्नातक छात्र पीएचडी आवेदन के योग्य माने जाते हैं।
एक और सवाल यह है कि कहां पढ़ें? ब्रिटेन की शिक्षा प्रणाली सख्त है। वहां डिग्री पाठ्यक्रम में दाखिला लेने पर या तो उसे पूरा करना होता है या फिर से अलग डिग्री पाठ्यक्रम की शुरुआत करनी होती है। इस मायने में अमेरिका और कनाडा दोनों जगह लचीलापन है। यहां अंडरग्रेजुएट स्टूडेंट्स को सेकेंड ईयर तक मुख्य विषय के बारे में बताने की जरूरत नहीं होती। यूजी डिग्री चार साल और पीजी दो साल की होती है। ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की प्रणाली ब्रिटेन जैसी ही है। हालांकि, यहां ज्यादा वैकल्पिक पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं। एशिया-पैसिफिक के ज्यादातर देशों में डिग्री पाठ्यक्रम की अवधि अमेरिका जैसी है, लेकिन सख्ती ब्रिटेन जैसी।
अब आप विकल्पों को और सीमित कर यह फैसला कर सकते हैं कि किस विश्वविद्यालय में दाखिला लेना चाहिए।
-स्पेशलाइज्ड और जनरल यूनिवर्सिटी
-कैंपस और नॉन कैंपस यूनिवर्सिटी
स्पेशलाइज्ड यूनिवर्सिटी ब्रिटेन के रॉयल एकेडमिक ऑफ ड्रामैटिक ऑर्ट्स से लेकर ललित कला महाविद्यालयों मसलन, अमेरिका में ऑबरलिन तक हो सकते हैं। ये संस्थान विशिष्ट शिक्षा पर जोर देते हैं और अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट हैं। कैंपस यूनिवर्सिटी अमूमन शहर के करीब होती हैं, उसका हिस्सा नहीं। नॉन-कैंपस यूनिवर्सिटी की इमारतें शहर के अलग-अलग हिस्सों में होती हैं। इससे संपर्क बनाने और पार्ट टाइम तथा फुल टाइम, दोनों तरह की नौकरी खोजने में मदद मिलती है। कई देश डिग्री के बाद नौकरी का विकल्प भी मुहैया कराते हैं। इस मामले में कनाडा सबसे ज्यादा उदार है।
जर्मनी जैसे देशों में ट्यूशन फीस कम होने के बावजूद वहां पढ़ाई महंगी हो सकती है। भोजन, किराए और हेल्थ इंश्योरेंस पर ही काफी खर्च आता है। यात्राओं पर होने वाला खर्च इससे अलग है। अंडरग्रेजुएट डिग्री पाठ्यक्रम की पढ़ाई का खर्च उसकी अवधि और साल में कोई छात्र कितनी बार घर आता है इससे भी बढ़ता है। इन खर्चों को ध्यान में रखते हुए आप भारतीय और विदेशी दोनों संस्थानों से स्टूडेंट लोन लेने की सोच सकते हैं। फीस को अधिक किफायती बनाने के लिए कई यूनिवर्सिटी स्कॉलरशिप देती हैं, जबकि अमेरिका में आइवी लीग जैसे कुछेक संस्थान अंडरग्रेजुएट छात्रों के लिए मदद मुहैया कराते हैं। ब्रिटेन के विश्वविद्यालय पोस्टग्रेजुएट छात्रों को पूरी फीस के बराबर स्कॉलरशिप देते हैं।
आखिर में पढ़ाई के लिए विदेश जाने वाली महिलाओं के लिए जरूरी बात! बिजनेस डिग्री की पढ़ाई करने वाली महिलाओं को विश्वविद्यालय स्कॉलरशिप देते हैं। यह शीर्ष बिजनेस स्कूल मसलन, लंदन बिजनेस स्कूल, कोलंबिया, ह्वार्टन और कॉर्नेल की पूरी फीस के बराबर होती है। विकल्पों की पड़ताल के बाद आमदनी और आवश्यकताओं पर गौर करते हुए अपने लिए सबसे बेहतर विकल्प को चुनें।