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खेल नहीं खिलाड़ियों के लिए प्रबंधन कला

कुशल मैनेजर पिछली सीट पर बैठकर चुपचाप अपना काम करता है
युवराज सिंह और उनके मैनेजर अनीश गौतम

विपरीत समय में, तनाव और खेल में खराब प्रदर्शन के बाद जब खिलाड़ी मैदान से लौटता है तो उनकी आलोचना होती है और भारतीय खेलों में कमी का रोना रोया जाता है लेकिन आम धारणा के बावजूद, इन खिलाड़ियों के एजेंट संकट के समय में इनके वित्तीय मामलों के साथ इनको भावनात्मक सहयोग देते हैं। और इस प्रक्रिया में, ये एजेंट या पर्सनल मैनेजर, इन खिलाड़ियों को वे सभी सुविधाएं मुहैया कराते हैं, जिसकी इन्हें आवश्यकता होती है। खासकर, जब वे लहरों के विपरीत तैर रहे होते हैं। ये मैनेजर गाढ़े समय में लोगों के बीच उनकी अच्छी छवि गढ़ने तथा उन्हें चमकते सितारे के रूप में पेश करते हैं।

कुछ शीर्ष एजेंटों ने यह स्वीकार किया कि बीते कुछ वर्षों में शीर्ष एथलीटों के लिए काम कर उन्हें बहुत कुछ सीखने का मौका मिला। उनका कहना है कि एथलीट जो होते हैं, वे अधिक भावुक होते हैं और उन्हें उचित देखभाल की जरूरत होती है। उनके लिए पैसा ही सब कुछ नहीं है, वे बहुत जल्द ही दुखी होते हैं। खिलाड़ियों के साथ बेहतर संबंध एजेंटों की प्राथमिकता में होता है। 

बहुत सारे एजेंट हैं जो खिलाड़ियों के पोर्टफोलियो का प्रबंधन करते हैं, उनमें से अधिकांश मैनेजमेंट के छात्र रहे होते हैं और उन्होंने कभी उच्च स्तरीय खेलों में भाग नहीं लिया होता है। पूर्व क्रिकेटर अरुण पांडेय और एशियन गेम्स में टेनिस के स्वर्ण पदक विजेता मुस्तफा गौस जैसे एजेंट खिलाड़ियों की मानसिकता बेहतर तरीके से समझते हैं। इनका खुद का खिलाड़ी रहना, इनके लिए अतिरिक्त लाभ है। लेकिन वह भी स्वीकार करते हैं कि अब भी बहुत कुछ सीख रहे हैं।

पूर्व क्रिकेटर और ऋति समूह के प्रबंध निदेशक और चेयरमैन अरुण पांडेय आउटलुक से बातचीत में कहते हैं, ‘मैं स्वयं एक क्रिकेटर रह चुका हूं। इसलिए मैं क्रिकेटरों की जरूरतों को अच्छी तरह जानता हूं। जब एक क्रिकेटर मैदान से पेवेलियन लौटता है तो वह थका हुआ होता है, उसे अपने खेल के बारे में सोचने का वक्त चाहिए होता है। खिलाड़ियों के प्रबंधन का काम बहुत ही संवेदनशील होता है। एमएस धौनी के साथ कई अन्य क्रिकेटरों का प्रबंधन कर रहे हैं अरुण।

रशीद खान

जेएसडब्ल्यू स्पोर्ट्स के सीईओ मुस्तफा गौस अपने खेल के कॅरिअर से संतुष्ट हैं और कई एथलीटों के लिए काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि मैं स्वयं एक एथलीट रहा हूं और एथलीट्स के लिए काम की शुरुआत करना दिलचस्प होता है। एथलीट्स जिन समस्याओं से दो-चार होते हैं, मैं उसे खत्म करने में सक्षम हूं। एथलीट्स की मानसिकता को समझना बहुत महत्वपूर्ण होता है।

दूसरी ओर विनोद नायडू हैं, जिन्होंने किसी खेल में भारत का प्रतिनिधित्व तो नहीं किया है लेकिन 16 वर्षों तक सचिन तेंदुलकर के मैनेजर के रूप में उनकी छाया बन कर रहे हैं। वर्ल्डटेल स्पोर्ट्स इंडिया में वायस प्रेसिडेंट (प्लेयर मैनेजमेंट) के रूप में उन्होंने सचिन तेंदुलकर के लिए काम किया। उसके बाद वर्ल्ड  स्पोर्ट्स ग्रुप के साथ भी वर्ष 2007 से 2015 तक वायस प्रेसीडेंट के रूप में काम किया। 

द दास ब्लाह ब्रदर्स के अनिर्वाण और इंद्रनील भी नायडू की तरह ही उसी नाव पर सवार हैं। इन्होंने पूर्व भारतीय टेनिस स्टार महेश भूपति के साथ काम किया और उन्होंने दशक भर पहले ग्लोबोस्पोर्ट को लांच किया। सीएए कॉन एंटरटेनमेंट एंड एसोसिएट्स कंपनी के संस्थापक और प्रबंध निदेशक अनिर्वाण कहते हैं, ‘एथलीट्स के साथ काम करते हुए मैंने पाया कि उनमें न तो प्रतिभा पर्याप्त है और न ही बुद्धिमत्ता। अगर व्यक्ति अनुशासित न हो और प्रतिदिन मेहनत न करे तो सफलता नहीं मिलती।’ ‘मैंने बहुत सारे बड़े एथलीट्स के साथ काम किया है, उन्हें विपरीत परिस्थितियों में और ज्यादा अनुशासित हो कर मेहनत करनी होती है और इसके लिए उन्हें प्रोत्साहित करना पड़ता है। और ऐसा सबके लिए आवश्यक है।’ यह दार्शनिक अंदाज वाला बयान सानिया मिर्जा जैसी एथलीट के साथ काम करने वाले इंद्रनील का है। खिलाड़ियों के साथ काम करने के दौरान ईमानदारी और पारदर्शिता काफी महत्वपूर्ण होती है।   

सिग्नेचर्स स्पोर्ट एंड एंटरटेनमेंट के निदेशक रशीद खान ने लेग स्पिनर अमित मिश्रा, इकबाल अब्दुल्लाह, दक्षिण अफ्रीका के इमरान ताहिर और वेस्ट इंडीज के कैरोन पोलार्ड के लिए काम किया है। उनका कहना है कि क्रिकेट बहुत ही अनिश्चितता भरा खेल है। विराट कोहली या धौनी जैसे बड़े खिलाड़ी भी जब एक-दो मैचों में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाते तो उन्हें आलोचनाएं झेलनी पड़ती हैं। तब उनका गुस्सा आप (एजेंट) पर निकलता है। उस समय आपको (एजेंट) काफी धैर्य रखना होता है, जब खिलाड़ी अपने प्रतिकूल समय में होता है।

खिलाड़ियों के एजेंट या प्रबंधक के रूप में काम करने के इच्छुक छात्रों को तेंदुलकर और नायडू के बीच के संबंधों और उनके बीच 16 वर्षों तक की साझेदारी से सीख लेनी चाहिए। ऐसा आपसी विश्वास, ईमानदारी और पारदर्शिता की वजह से ही संभव हो पाता है। मैनेजर हमेशा ही पिछली सीट पर बैठा होता है और उसके द्वारा गढ़ा गया नायक स्टेज पर प्रदर्शन करता है और यही एक कुशल मैनेजर की योग्यता होती है। 

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