स्वच्छता को एक अभियान के तौर पर, एक आंदोलन के तौर पर मैं सर्वोत्तम मानती हूं। गांधी भी स्वच्छता और साफ-सफाई पर जोर देते थे। लेकिन, इसका लक्ष्य होना चाहिए ‘हिंसा-विहीन मानस और प्रदूषण रहित पर्यावरण’। गंदगी फैलाना भी बहुत बड़ी हिंसा है। मानस की जो हिंसात्मक प्रवृत्ति पर्यावरण को प्रदूषित करती है, वही आतंक भी पैदा करती है। जहां मानस की स्वच्छता होगी वहां आतंक नहीं होगा। इसलिए, ‘हिंसा-विहीन मानस और प्रदूषण रहित पर्यावरण’ के बिना स्वच्छता का अभियान मुकम्मल ही नहीं हो सकता।
यदि बापू की कसौटी पर चीजों को तौलना है तो उसे अपने सत्य के आधार पर परखना होगा। उनकी 150वीं जयंती पर जो सरकारी आयोजन हो रहे हैं उन्हें भी मैं इसी नजर से देखती हूं। इनको लेकर राजनीतिक दृष्टिकोण की बात नहीं करना चाहती। राजनीतिक लोग अपना फायदा-नुकसान देखेंगे ही। मैं ‘लोक’ की बात करना चाहती हूं। अपनी इच्छा से राजनीतिक पार्टियों को सत्ता में लाने और बाहर करने के बाद एक नागरिक के तौर पर हम अपने घर में नहीं बैठ सकते। गांधी नागरिक थे और उन्होंने जीवन भर स्वयंसेवक की तरह काम किया।
समस्या यह है कि नागरिक समझ ही नहीं पा रहा कि वह लोकतंत्र में सर्वप्रथम शक्ति है। यदि नागरिक के तौर पर समाज अपनी शक्ति को नहीं समझेगा तो देश चलाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। आखिर जो हिंसा हो रही है, अपराध हो रहे हैं, वह नागरिक ही तो कर रहे हैं। घूस नागरिक ही दे रहा है और नागरिक ही ले रहा है। देश में बहुत कुछ जो गलत हो रहा है वह हम नागरिकों की गैर- जिम्मेदारी को दर्शाता है। बहुत अन्याय होने के बावजूद यदि देश चल रहा है तो उसके पीछे कहीं न कहीं उन व्यक्तियों और उन संस्थाओं का हाथ है जो गांधी का नाम लिए बिना उनके कामों को आगे बढ़ा रहे हैं। ऐसे व्यक्ति और संस्थान कई बार अनजान ही रहते हैं और उनके बारे में कभी कुछ लिखा नहीं जाता है। किंतु हमें और समाज को इनका आभारी रहना होगा।
आज का सबसे बड़ा रोग ‘भय का वातावरण’ है। किसी को किसी पर विश्वास नहीं है। समाज इतना हिंसक हो चुका है कि हम पशुओं के साथ सही सुलूक नहीं करते। उनके लिए हमारे मन में करुणा नहीं है। यह हिंसक मानस का प्रतीक है। नागरिक के तौर पर समाज की असफलता है। इससे लड़ने के लिए गांधी की निर्भीकता चाहिए। निडर तो आतंकी भी होते हैं, लेकिन उनकी निर्भीकता डर पैदा करती है। आतंकी की निडरता से मैं भयभीत हो जाती हूं, किंतु गांधी की निर्भीकता से हम मित्रता और बंधुत्व के भाव से जुड़ जाते हैं। बच्चों और युवाओं में गांधी की निर्भीकता लानी होगी। यह अहिंसक मानस और स्वच्छ पर्यावरण से ही संभव है। यह काम जनता के सहयोग के बिना मात्र कानून बनाकर सरकार नहीं कर सकती। यह हरेक नागरिक के प्रयास से होगा। राजनीतिक दलों का महत्व कम और नागरिक का दायित्व-बोध अधिक होने से ही होगा।
शौचालय और आस-पास की स्वच्छता जितनी महत्वपूर्ण है, उतना ही आवश्यक है सही और शिक्षित मानस। इसके लिए जरूरी है कि विकास का लक्ष्य सही शिक्षा की ओर हो। आज विकास जिस गति से आगे बढ़ रहा है, वह हमारे जीवन को हर क्षण सुविधाजनक बना रहा है। लेकिन, हम उसके गुलाम भी बन रहे। जबकि होना यह चाहिए कि तकनीक हमारी गुलाम बने। हमें शिक्षा और साक्षरता के अंतर को भी समझना होगा। हम साक्षर होते हुए भी अशिक्षित हो सकते हैं और निरक्षर होते हुए भी शिक्षित हो सकते हैं। आज बेटी की शिक्षा पर बहुत जोर दिया जा रहा है। ऐसा होना ही चाहिए। लेकिन, हमने बेटों को कितना सीमित और उनकी सोच को संकुचित कर दिया है। मेरी समझ में महिला, समाज और देश के हित में लड़कों की सही शिक्षा बहुत आवश्यक है। यदि हम लड़कों के सामने दया, क्षमा, करुणा और दायित्व के उदाहरण पेश कर पाएं तो हमारी कई समस्याओं का हल निकल आएगा। अहिंसक मानस ही हमें समाज के अंतिम जन तक पहुंचाएगा।
आज जो समाज के सामने चुनौतियां हैं उनका हल ‘स्वयं की खोज’ से ही निकलेगा। मैंने अपनी चौदह वर्ष की आयु तक साथ रहकर गांधी को करीब से जाना। ये गांधी के जीवन के अंतिम चौदह वर्ष थे। मैं उन्हीं चौदह वर्ष के अनुभव के आधार पर उन्हें समझने की कोशिश करती हूं। यह अनुभव मुझे अपने सत्य की खोज के लिए प्रेरित करता है। इसके बिना हम गांधी को समझ ही नहीं पाएंगे। उस हिरण की तरह जंगल में विचरण करते रह जाएंगे जो सुगंध की तलाश में पूरे जंगल में भटकता रहता है, लेकिन महक उसके भीतर छिपी होती है।
स्वयं की खोज और एक नागरिक के तौर पर अपने कर्तव्य तथा ताकत की समझ हमें समाज के अंतिम जन तक लेकर जाएगी। अभी देश में एक अहिंसक क्रांति की आवश्यकता है। शोषण-विहीन समाज के गठन के लिए हमारी चेतना का पुनरुत्थान जरूरी है। हमें सर्वोदय क्रांति चाहिए। हिंसा- विहीन मानस और प्रदूषण रहित पर्यावरण सर्वोदय क्रांति में निहित है। गांधी, जयप्रकाश और विनोबा जैसे व्यक्ति सर्वोदय चिंतन के अभिन्न अंग हैं। अब हम नागरिकों को सर्वोदय चिंतन और क्रांति के लिए प्रथम ठोस कदम उठाने होंगे।
(लेखिका महात्मा गांधी की पौत्री हैं। लेख अजीत झा से बातचीत पर आधारित है)