पिछले दो वर्षों में, स्टार्टअप को लेकर अच्छा-खासा हाइप दिखा। देश में उद्यमिता का परिदृश्य बदल जाने की उम्मीदों पर बात होने लगी। इससे बी-स्कूलों के ग्रेजुएट्स में स्टार्टअप्स के पीछे भागने की होड़ बढ़ी, जो अच्छे भविष्य और मोटी तनख्वाह की ओर आकर्षित होने लगे। ऐसे में, स्टार्टअप्स बी-स्कूलों से नियुक्तियों में अग्रणी होने लगीं, कैंपस से क्रीम चुनने लगीं। लेकिन इस साल, चीजों में बड़ा बदलाव आया है। तेजी से उभरते इस सेक्टर में अचानक गिरावट आई। बी-स्कूल ग्रेजुएट्स के लिए स्टार्टअप्स अब आकर्षक नहीं रहे। इसके दो कारण हैं। पहला, स्टार्टअप्स के फेल्योर रेट तेजी से बढ़े। उनमें से कई ने धूल चाटनी शुरू की, ले-ऑक्रस की चर्चा आम होने लगी। दूसरा, अधिकतर स्टार्टअप्स ने अपने प्लेसमेंट कमिटमेंट्स का पालन नहीं किया और या तो उन्होंने ऑफर लेटर वापस ले लिया या फिर कर्मचारियों को ज्वाइन कराने में देर करने लगे। हाल में सभी आईआईटी ने इसी कारण कुल 31 कंपनियों को प्लेसमेंट में प्रतिबंधित कर दिया है। इनमें अधिकांश स्टार्टअप कंपनियां हैं।
स्टार्टअप को लेकर अब भी गतिविधियां दिख रही हैं, लेकिन जिस रफ्तार से वे कैंपसों से एमबीए छात्रों को चुन रही थीं, उनमें कमी आई है। छात्रों की भी उस तरफ से रुचि घट गई है। पारंपरिक कारोबार करने वाली कंपनियां बी-स्कूलों से जमकर नियुक्तियां कर रही हैं। हालांकि, वे उस रफ्तार की बराबरी नहीं कर पा रही हैं, जिस रफ्तार से पिछले साल तक स्टार्टअप कंपनियां नियुक्ति कर रही थीं। इसकी वजह यह है कि पारंपरिक कंपनियां छात्रों को नौकरी में स्थायित्व और अच्छी बढ़ोतरी की गारंटी दे रही हैं।
इस परिदृश्य में आउटलुक के द्वारा भारत के 100 सर्वश्रेष्ठ बिजनेस स्कूलों की रैंकिंग (हमारे रिसर्च पार्टनर दृष्टि स्ट्रैटजिक रिसर्च सर्विसेज के साथ मिलकर) विद्यार्थियों की मदद के लिहाज से महत्वपूर्ण हो उठती है। विद्यार्थी न सिर्फ कॉलेजों के बारे में जानकारी पा सकते हैं बल्कि उन्हें कॅरिअर के बारे में भी दिशा मिलेगी। पिछले दो साल की तरह, आउटलुक रैंकिंग के टॉप 15 हलका सा चौंका रहे हैं। कुछ तो पिछले साल से नीचे खिसके हैं। मध्य स्तर पर मंथन दिख रहा है, निचले पायदान वाले कॉलेजों में बड़ा अंतर दिख रहा है। 30 नए कॉलेजों ने अपने पारा-मीटर्स में सुधार करते हुए अपनी जगह बेहतर की है। कई कॉलेजों के पठन-पाठन में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, फैकल्टी और विद्यार्थियों द्वारा शोध का स्तर सुधरा है। सूची में जगह पाने वाले कई नयों के स्कोर और सूची में स्थान बेहतर करने वालों के स्कोर से यही लगता है।
ओवरऑल स्कोर में तो पिछले साल की तुलना में बढ़ोतरी हुई है लेकिन इस साल खास उम्मीद नहीं दिखी है। टॉप मोस्ट और लोअर मोस्ट के स्तर में पिछले साल की तुलना में गिरावट आई है। लेकिन कॉलेजों में भागीदारी के लिए उत्साह बढ़ा है। दो साल पहले हमारे सर्वे में हिस्सा लेने वाले बी- स्कूलों में अच्छा उत्साह दिखा था और हमने 75 की सूची बढ़ाकर 100 कर दी थी। इस साल, भागीदारी में और बढ़ोतरी हुई है। हमने और कॉलेजों को ओपन असेसमेंट के लिए शामिल होने की खातिर उत्साहित किया है।
स्टार्टअप सेक्टर की समस्याओं के मद्देनजर आउटलुक ने खस्ताहाल होते स्टार्टअप्स और आज के बी-स्कूलों की परेशानियों पर रिपोर्ट तैयार की है। कुछ ऐसे ब्यूरोक्रेट्स को लेकर विशेष सामग्री है, जिनके पास बेशक एमबीए की डिग्री नहीं है, लेकिन उन्होंने प्रबंधन के क्षेत्र में अपने काम से कमाल किया है।
तमाम रुकावटों के बावजूद, स्टार्टअप की कहानी का समापन नहीं होना है। कई मान रहे हैं कि हालात सुधरेंगे। कई बी-स्कूलों के ग्रेजुएट्स इस बात से सहमत होंगे और उम्मीद करेंगे कि नियुक्ति की स्थितियां बेहतर होंगी। आउटलुक की रैंकिंग और इस सेक्टर के बारे में छपी रिपोर्ट्स से उन्हें फैसला करने में आसानी होगी। ऐसे में, हमेशा की तरह हम उनसे यही कहेंगे- सोच-समझकर चुनें।