अभी जो मौजूदा संकट सीबीआइ पर आया है, इसकी शुरूआत पिछले साल हुई थी। उस समय अनिल सिन्हा डायरेक्टर पद पर थे और वह रिटायर होने वाले थे। उनके रिटायरमेंट के समय स्पेशल डायरेक्टर आर.के.दत्ता नंबर 2 पर थे और आर.के.स्थाना नंबर 3 पर थे। आर.के.दत्ता उस वक्त प्रमोशन के दरवाजे पर खड़े थे, हम सभी समझ रहे थे कि आर.के.दत्ता ही सिन्हा जी के रिटायर होने के बाद डायरेक्टर बनेंगे। दत्ता जी एक ईमानदार और बहुत काबिल अधिकारी थे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, उन्हें प्रमोशन के ठीक दो दिन पहले स्पेशल सेक्रेटरी होम बना दिया गया। ऐसे में आज जो क्राइसिस सीबीआइ में हैं उसका बीज इसी ट्रांसफर से पड़ा था। जो कि आज इतनी भारी पड़ गई है कि सीबीआइ अपने सबसे कठिन दौर से गुजर रही है। उसकी साख पर ही सवाल खड़े हो गए हैं। ऐसी स्थिति में सीबीआइ पर जो भरोसा पहले से ही लोगों का कम हो रहा था वह अब टूटता नजर आ रहा है।
वापस दत्ता पर आते हैं, उन्हें जब स्पेशल सेक्रेटरी होम बनाया गया, तो उन्हें ऐसी पोस्ट पर भेजा गया, जो वास्तव में कहीं थी ही नहीं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि ऐसे काबिल अधिकारी को वहां क्यों भेजा गया, जिसका आज तक जवाब नहीं मिल पाया है। उस समय गुजरात कैडर के अधिकारी आर.के.अस्थाना को सीबीआइ में एडिशनल डायरेक्टर बना दिया गया। यही से विवाद शुरू होता है। इस बीच अनिल सिन्हा के रिटायर होने के बाद आलोक वर्मा को डायरेक्टर बनाया गया। जिनकी नियुक्ति पर चयन कमेटी के सदस्य और कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने विरोध किया था। खड़गे के विरोध के बावजूद कमेटी के दूसरे सदस्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन मुख्य न्यायधीश ने वर्मा का समर्थन किया इसलिए वह डायरेक्टर बनाए गए। इन्हीं दो नियुक्तियों से विवाद की नींव पड़ गई थी। संदेह तो लोगों को होने लगा था कि वर्मा जैसे अधिकारी की नियुक्ति कर अस्थाना के लिए रास्ता साफ किया जा रहा है। अस्थाना के जरिए सीबीआइ संचालन करने का एक तरह से षडयंत्र रचा गया था। मौजूदा समय में सीबीआइ कैसे चलाई जा रही है यह उसका उदाहरण है। एक उदाहरण मैं लाल बहादुर शास्त्री के दौर का देता हूं। उनके कार्यकाल में कांग्रेस पार्टी के प्रमुख नेताओं बीजू पटनायक, प्रताप सिंह कैरो, टी.टी.कृष्णमचारी के खिलाफ मामले सामने आए। उन्होंने तुरंत सभी लोगों से इस्तीफा ले लिया था। जबकि यह सारे लोग उन्हीं की पार्टी के थे। मौजूदा दौर में आप ऐसा उदाहरण नहीं देख सकते हैं।
वापस आलोक वर्मा के डायरेक्टर बनने के दौर में आते हैं। सीबीआइ में नियुक्ति के कुछ महीनों तक तो आलोक वर्मा ज्यादा सक्रिय नहीं थे। लेकिन जैसे-जैसे वह ब्यूरो का कामकाज समझते गए, उन्होंने अपने पॉवर के हिसाब से एक्शन लेना शुरू कर दिया। उन्होंने अस्थाना के फैसलों पर विरोध करना शुरू किया। उनका तर्क था कि जब मैं सीबीआइ का सबसे बड़ा अधिकारी हूं तो अस्थाना कैसे फैसला ले सकते हैं। इस बीच अस्थाना को वर्मा के विरोध के बावजूद स्पेशल डायरेक्टर बनाया गया। उस वक्त जो परिस्थितियां खड़ी हुई उसमें वर्मा कहते थे कि मैं बॉस हूं लेकिन अस्थाना यह समझते थे कि मैं पावरफुल हूं और मेरे पास अधिकार ज्यादा है। इन सब चीजों की सरकार को जानकारी थी लेकिन उसने विवाद को बढ़ने दिया। जिससे आज ऐसी स्थिति हो गई है। इससे भी ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि सीबीआइ ने अपने ही स्पेशल डायरेक्टर के खिलाफ एफआइआर दर्ज कर दिया। साथ ही एफआइआर में जो बातें लिखी हैं अगर वह सही है तो मैं यह कह सकता हूं कि फिर भगवान ही बचाए। अगर बाते सही नहीं है तो फिर क्यों एफआइआर की गई। दोनों परिस्थितियां गंभीर हैं।
अगर आज लोकपाल होता तो शायद ऐसी परिस्थितियां नहीं आती। ऐसा इसलिए है कि सीवीसी, सीबीआइ एक तरह से समानांतर संगठन हैं। लेकिन लोकपाल के रहने पर वह सरकार के दखल से पूरी तरह अलग होता। कुल मिलाकर मैं यह कह सकता हूं कि अगर इस तरह सिस्टम के साथ खिलवाड़ किया जाएगा तो ऐसा ही होगा। इसके लिए सरकार ही जवाबदेह है।
अब इस समस्या का इलाज क्या है। इसके लिए सीवीसी एक्ट को समझना होगा। अभी एक्ट में ऐसी कई खामियां है जिसकी वजह से कन्फ्यूजन पैदा होता है। जैसे कुछ बातों के लिए सीबीआइ को सीवीसी के प्रति जवाबदेह कर दिया गया है। जबकि कुछ बातों के लिए सीबीआइ को सरकार के प्रति जवाबदेह कर दिया गया है। ऐसे में यह डिवाइड एंड रुल की स्थिति है। जिसे देखते हुए सीवीसी एक्ट में बदलाव करना चाहिए। लेकिन इस समस्या को हल करने के लिए सबसे पहले जरूरी है कि आपकी मंशा ठीक हो।
अब गेंद सरकार के पाले में है, उसके हाथ में है कि वह सीबीआइ को कहां ले जाना चाहती है। अगर हम लाल बहादुर शास्त्री के समय की सीबीआइ चाहते हैं, तो हमें वैसे उदाहरण पेश करने होंगे। अगर हम आज के दौर की सीबीआइ चाहते हैं तो कुछ भी भला होने वाला नहीं है,फिर तो भगवान ही बचाए।
(लेखक सीबीआइ में ज्वाइंट डायरेक्टर रह चुके हैं, लेख प्रशांत श्रीवास्तव से बातचीत के आधार पर है)