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सरकारी रैंकिंग पर सवाल

प्रोफेशनल कॉलेजों की पहली ‘आधिकारिक’ रैंकिंग खराब प्लानिंग और उसके बुरे क्रियान्वयन का शिकार हो गई
मानव संसाधन विकासा मंत्री स्मृति ईरानी एनआईआरएफ, 2016 रैंकिंग जारी करते हुए

भारत में हर वर्ष करीब 15 लाख छात्र इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा में शामिल होते हैं। इन छात्रों के लिए कॉलेजों की रैंकिंग बेहद महत्वपूर्ण होती है क्योंकि इनसे उन्हें अपनी जानकारी आधारित पसंद बनाने में मदद मिलती है। एक दशक से अधिक समय से आउटलुक प्रोफेशनल कॉलेजों की रैंकिंग जारी करता है जिन्हें बेहद उच्च गुणवत्ता का माना जाता है। इन रैंकिंग के महत्व को देखते हुए सभी लोगों ने मोदी सरकार के उस फैसले का स्वागत किया जिसमें सरकार ने इंजीनियरिंग कॉलेजों की रैंकिंग जारी करने की घोषणा की थी। आखिरकार इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट या ऐसे अन्य क्षेत्रों के संस्थानों की बेहतर रैंकिंग जारी होने से सभी का फायदा ही है। मगर कॉलेजों की एक ‘आधिकारिक’ समग्र रैंकिंग सामने लाने का केंद्र सरकार का प्रयास जिसके तहत केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने राष्ट्रीय इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) प्रस्तुत किया है, बेहद निराशाजनक है। शिक्षा और अकादमिक जगत से जुड़े तकरीबन हर पक्ष ने इसपर सवाल उठाए हैं और इसकी आलोचना की है। एनआईआरएफ द्वारा किए गए सभी रैंकिंग में असंगति है। यह हालत तब है जबकि निजी संस्थान जो खुद कॉलेजों की रैंकिंग करते हैं मसलन इंडिया टुडे ग्रुप, हिंदुस्तान टाइक्वस, कॅरिअर्स 360 और आउटलुक, के मुकाबले सरकार कॉलेजों से डाटा हासिल करने की दृष्टि से ज्यादा बेहतर स्थिति में है। एनआईआरएफ खराब प्लानिंग और बुरे क्रियान्वयन का एक बड़ा उदाहरण है। यही कहा जा सकता है कि इसका परिणाम अतार्किक और सरकारी संस्थाओं के पक्ष में झुका हुआ है। इस रैंकिंग में कई बेहतरीन सरकारी और निजी संस्थान जगह नहीं बना पाए।

इंजीनियरिंग से शुरू करते हैं। सरकारी रैंकिंग में शुरू के पांच स्थानों पर पुराने आईआईटी हैं जिनसे कोई शिकायत नहीं है मगर बाद में बेहद प्रतिष्ठित आईआईटी बीएचयू, बनारस से ऊपर बिलकुल नए आईआईटी रोपड़, हैदराबाद और पटना को जगह दी गई है जबकि आईआईटी बीएचयू को कहीं ऊपर होना चाहिए था। यही नहीं, रैंकिंग में नए-पुराने सारे आईआईटी को अनिवार्य रूप से शीर्ष 25 में जगह मिल गई है जबकि दूसरी रैंकिंग में ऐसा नहीं होता।

ज्यादा आश्चर्यजनक यह है कि कई नए आईआईटी को कहीं ज्यादा प्रतिष्ठित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एनआईटी) से भी ऊपर रैंकिंग दी गई है। सिर्फ तीन एनआईटी त्रिचि(रैंक12) राउरकेला (19) और सूरतकल (22) ही शीर्ष 25 में जगह बना सके हैं। भले ही इन तीनों को शीर्ष 25 में जगह मिली हो मगर इनकी रैंकिंग ने कई सवालों को जन्म दिया है क्योंकि ये तीनों संस्थान आउटलुक समेत सभी रैंकिंग में ज्यादा ऊंची रैंकिंग हासिल करते रहे हैं। पिछले वर्ष की आउटलुक रैंकिंग में एनआईटी सूरतकल नौवें पायदान पर था। देखा जाए तो सरकारी रैंकिंग में कोई भी एनआईटी शीर्ष 10 में शामिल नहीं है। निजी कॉलेजों की बात करें तो सरकारी रैंकिंग में बिट्स पिलानी का इसमें शामिल नहीं होना सबसे बड़ी चूक है जिसे शीर्ष 25 में जगह नहीं मिली है। निजी कॉलेजों में सबसे शीर्ष रैंकिंग वीआईटी, वेल्लोर (रैंक 13) को दी गई है जबकि अन्य संस्थाओं की रैंकिंग में तो वीआईटी, वेल्लोर को जगह भी नहीं मिल पाती।

ऐसी ही असंगति एनआईआरएफ की बिजनेस स्कूलों की रैंकिंग में भी देखने को मिलती है। जहां शीर्ष चार स्थानों पर पुराने आईआईएम काबिज हैं वहीं अपेक्षाकृत नए आईआईएम, उदयपुर को पांचवें स्थान पर रखा गया है और उसे पुराने और प्रतिष्ठित आईआईएम, कोझीकोड से ऊपर रखा गया है। यही नहीं, आईआईएम, इंदौर जो हर पैमाने पर आईआईएम, कोझीकोड के समकक्ष ही है, उसे आईआईएम, उदयपुर और आईएमआई, दिल्ली से नीचे 10वें स्थान से संतोष करना पड़ा है जबकि इन दोनों की अपनी वर्तमान रैंकिंग के हकदार नहीं हैं। इसके साथ ही एस.पी. जैन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, मुंबई को 16वीं रैंकिंग दी गई है, जबकि त्यागराजार स्कूल ऑफ मैनेजमेंट मदुरै, जो एस.पी. जैन के मुकाबले कहीं नहीं ठहरता, को 15वीं रैंकिंग दी गई है। इंजीनियरिंग कॉलेजों की रैंकिंग की ही तर्ज पर बिजनेस स्कूलों की रैंकिंग में भी मुख्य जोर सभी आईआईएम संस्थानों को शीर्ष 25 में शामिल करने पर है जिसमें बिलकुल नए आईआईएम भी शामिल हैं। दूसरी ओर दूसरी अन्य सभी रैंकिंग में शामिल होने वाले 10-15 बेहतरीन बिजनेस स्कूलों को सरकारी रैंकिंग में जगह ही नहीं मिल पाई है। इस सूची से बाहर होने वालों में आईएमटी, गाजियाबाद, एफएमएस, दिल्ली, एनएमआईएमएस मुंबई, सिंबायोसिस पुणे, जमनालाल बजाज मुंबई, एक्सआईएम भुवनेश्वर और आईआरएमए आणंद प्रमुख हैं।

इन इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट संस्थानों का इस सूची से बाहर होना सिर्फ इसलिए अस्वीकार्य नहीं है कि सरकार के पास निजी सर्वे संस्थानों से बेहतर रिसोर्स और शक्ति है। एचआरडी मंत्रालय कमोबेश उसी तरीके से सर्वे कर रही है जो तरीका आउटलुक समेत दूसरे संस्थान अपनाते हैं। इसे देखते हुए रैंकिंग में इतना अंतर तार्किक नहीं है। अगर खुलकर कहें तो नतीजों में इतना अंतर तभी हो सकता है जबकि सरकार की ओर से यह निर्देश हों कि कुछ संस्थानों को बेहतर दिखाना है। इससे यह सवाल उठता है कि सरकार किस तरह डाटा जमा करती है और नतीजों में किस तरह तब्दीली करती है।

हालांकि कई लोगों को उम्मीद है कि एनआईआरएफ रैंकिंग से कॉलेजों को अपना प्रदर्शन सुधारने में मदद मिलेगी। बी.जे. मेडिकल कॉलेज पुणे के उप डीन डॉ. ए.एन. कोवले कहते हैं, ‘यदि एक कॉलेज को अच्छी रैंकिंग मिलती है तो दूसरे उससे प्रेरित होकर बेहतर करेंगे। इससे कॉलेजों के बीच प्रतिस्पर्धा की भावना आएगी और जब सरकार कॉलेजों के प्रदर्शन की समीक्षा करेगी तो उन कॉलेजों को मदद मिल पाएगी जिन्हें इसकी जरूरत है। एनआईआरएफ की रैंकिंग में इस वर्ष मेडिकल कॉलेजों को नहीं शामिल किया है मगर अगले वर्ष उन्हें भी शामिल किया जा सकता है। दिलचस्प तथ्य यह है कि एनआईआरएफ के गठन से पहले सरकार ने कुछ अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग संस्थाओं से संपर्क किया था ताकि वे अपनी भारत आधारित रैंकिंग व्यवस्था बनाकर यहां के शैक्षिक संस्थाओं की श्रेणी बनाएं। सरकार की मंशा थी कि इसी बहाने भारतीय संस्थान अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग प्लेटफॉर्म पर आ जाएंगे। मगर इन विदेशी संस्थाओं ने भारतीय कॉलेजों की रैंकिंग से इनकार कर दिया और तब सरकार ने एनआईआरएफ का गठन किया। भारतीय विद्यापीठ कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, पुणे के प्राचार्य ए.आर. भालेराव के अनुसार, ‘सरकार ने पहले टाइक्वस हायर एजुकेशन (टीएचई) और क्यूएस रैंकिंग्स से संपर्क किया था जो कि अपनी प्रतिष्ठित वैश्विक कॉलेज रैंकिंग के लिए जाने जाते हैं और उनसे अनुरोध किया था कि अपनी रैंकिंग में भारत सापेक्ष पारामीटर भी शामिल कर लें मगर उन्होंने मना कर दिया। इसलिए सरकार ने एनआईआरएफ की शुरुआत की जो कि भारतीय कॉलेजों की समीक्षा करने का एक अच्छा कदम है। कई लोगों को लगता है कि एनआईआरएफ रैंकिंग से सरकार को यह तय करने में मदद मिल सकती है कि प्रदर्शन के आधार पर किस कॉलेज को वित्तीय मदद की जरूरत है। आईआईटी के एक वरिष्ठ प्राध्यापक के अुनसार इससे सरकार को सटीक कदम उठाने में मदद मिलेगी। नाम नहीं छापने की शर्त पर उन्होंने कहा, ‘बड़ी संख्या में ऐसे कॉलेज हैं जो भारी-भरकम सरकारी मदद के बावजूद चार्ट में नीचे हैं। वे अपनी फैकल्टी या अन्य सुविधाओं को बढ़ाने पर कम ध्यान देते हैं। अब ऐसे कॉलेज सामने आ जाएंगे। एक बार आपने उनकी वित्तीय मदद को उनके प्रदर्शन से जोड़ दिया तो उन्हें सुधार करने के लिए मजबूर होना ही पड़ेगा।’ हालांकि यहां और भी कई लोग हैं जो मानते हैं कि एनआईआरएफ रैंकिंग को दुरुस्त करने और उसे कॉलेजों के तुलनात्मक प्रदर्शन के आधार पर बनाने और तार्किक रूप देने के लिए बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।

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