राजधानी दिल्ली के लुटियंस जोन में सत्ता केंद्र कूटनीतिक और रक्षा तैयारियों के लिहाज से बेहद सक्रिय है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी कोर टीम पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक के बाद के हालात पर पल-पल निगाह रखे हुए है। भारत के डिप्लोमेटिक मिशन बेहद सक्रिय हैं। नतीजा भी सामने आने लगा है। अमेरिका, रूस, संयुक्त राष्ट्र संघ के बाद अब यूरोपीय यूनियन के देशों ने भी सर्जिकल स्ट्राइक की कार्रवाई को लेकर भारत के पक्ष को उचित ठहराया है। इस बीच, पाकिस्तान की गतिविधियों को देखते हुए भारतीय सेना के तीनों अंगों और खुफिया एजेंसियों को ‘हाई अलर्ट’ पर रखा गया है। पश्चिमी सीमा पर वायुसेना के सुखोई स्क्वाड्रन की तैनाती बढ़ाई जा रही है। साथ ही, देश की प्रमुख खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनॉलिसिस विंग (रॉ) में कुछ डेस्क को पुनर्गठित करने की कवायद चल रही है।
पश्चिमी सीमा पर अतिरिक्त 36 सुखोई तैनात किए गए हैं। उत्तर प्रदेश के बरेली से सुखोई के दो स्क्वाड्रन को लुधियाना के हलवाड़ा एयर बेस पर तैनात किया गया है। यहां चीन से सटी पूर्वी सीमा पर निगरानी के लिए सुखोई के स्क्वाड्रन रखे गए थे। राजस्थान के जोधपुर में भी सुखोई की अतिरिक्त तैनाती की गई है। उधर, पाकिस्तान की तरफ दो सप्ताह से कराची, लाहौर, क्वेटा और पेशावर में पाकिस्तानी वायुसेना की गतिविधियां दिख रही हैं। अमेरिकी एफ-16 और चीनी जेएफ-97 के बेड़े सतर्क किए गए हैं। भारतीय वायुसेना के एक अधिकारी के अनुसार, हमारे सुखोई हवा से हवा में और हवा से जमीन पर मार कर सकते हैं। पाकिस्तानी बेड़े के विमानों में ऐसी सुविधा नहीं।
उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, जहां तक खुफिया तैयारियों का सवाल है, रॉ के कुछ डेस्क के पुनर्गठन की निगरानी खुद प्रधानमंत्री कर रहे हैं। रॉ के पाकिस्तान डेस्क की जिम्मेदारी संयुक्त सचिव स्तर के एक अधिकारी के पास है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल ने सुझाया है कि पाकिस्तान के बलूचिस्तान, पंजाब प्रदेश, पेशावर और पश्चिमी फ्रंटीयर के लिए अलग-अलग डेस्क बनाए जाएं। विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान को मिलाकर एक डेस्क है, जिसकी जिम्मेदारी संयुक्त सचिव स्तर के एक आईएफएस अधिकारी पर है। दरअसल, सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में तैयार कराई गई सुब्रह्मण्यम कमेटी की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते से निकाला है। इस रिपोर्ट के आईने में रॉ की कार्यशैली को लेकर प्रधानमंत्री ने खुद पूछताछ की है और एनएसए अजित डोवाल से सुझाव मांगे हैं।
पाकिस्तानी फौज के शिविर थे आतंकियों के लॉन्च पैड
उड़ी सेक्टर में सेना के शिविर पर आतंकी हमले के बाद जिस तरह से सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया गया, उसकी तारीफ खूब हो रही है। पूर्वी राज्यों से सटे सीमा पार के इलाकों, खासकर म्यांमार और बांग्लादेश में भारतीय सेना के स्पेशल दस्ते ने कई बार सर्जिकल ऑपरेशन किए। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) के पार सर्जिकल ऑपरेशन में वे अनुभव काम आए। सूत्रों के अनुसार, सर्जिकल ऑपरेशन को अंजाम देने वाले जिस दस्ते को स्पेशल फोर्स कहा जा रहा है, उसके कमांडो के लिए भारतीय सेना में एक तय नाम है, लेकिन इस फोर्स के निर्दिष्ट नाम को रणनीतिक कारणों से कभी जाहिर नहीं किया गया। इस फोर्स के सदस्य पैरा-कमांडो हैं। भारतीय सेना के कमांडो ने एलओसी के पार 2008, 2011 और 2013 में भी कार्रवाई की है।
सूत्रों के अनुसार, मात्र 150 कमांडो के विशेष दस्ते ने एलओसी पार कर पाकिस्तान के सात ठिकाने उड़ा दिए, जहां आतंकी आराम कर रहे थे और भारत में घुसने की ताक में थे। पांच सौ मीटर से दो किलोमीटर भीतर घुसकर दो सौ किलोमीटर के क्षेत्र में इन कमांडो ने कार्रवाई की। जिन लॉन्च पैड को तहस-नहस किया गया, वे दरअसल पाकिस्तानी सेना के विभिन्न ब्रिगेड के कैम्प ऑफिस थे, जहां आतंकी आराम कर रहे थे। आतंकियों के प्रशिक्षण शिविर तो इन लॉन्च पैड कैंप से कई किलोमीटर भीतर की ओर थे। प्रशिक्षण शिविरों के आतंकियों को पहले इन दफ्तरों में लाया जाता है। वे वहां 24 घंटे ठहरते हैं, फिर उन्हें पाकिस्तानी सेना भारतीय सीमा में प्रवेश करा देती है।
अमूमन पांच-छह के समूहों में आतंकियों को भारत की ओर भेजा जाता है। भारतीय सेना के रिटायर्ड कमांडो कर्नल सौमित्र राय के अनुसार, ऐसा करते समय पाकिस्तानी फौज गोलीबारी करती है, जिससे भारतीय चौकियों का ध्यान घुसपैठियों की ओर न जाए। इस बार बड़ी संख्या में आतंकियों को घुसपैठ कराने की योजना थी। इसलिए सात लॉन्च पैड्स में इन्हें जमा किया गया था। एक-एक शिविर में 30 आतंकी जुटे थे। सुरक्षा एजेंसियों को यह जानकारी समय रहते मिल गई थी। कार्रवाई के पहले सैनिकों की संख्या, सर्च लाइट और दूरबीन की पोजीशन जैसे तथ्य जुटाए गए।
कर्नल राय के अनुसार, पैरा-कमांडो दस्ते को हेलीकॉप्टर से एलओसी के पार कभी नहीं ड्रॉप किया जाता। उन्हें नजदीकी किसी जगह ड्रॉप किया गया होगा और फिर वे पैदल एलओसी पार कर गए होंगे। तीन चरणों में इस तरह की कार्रवाई की जाती है- इनफिल्ट्रेशन, एक्जिक्यूशन और एक्सफिल्ट्रेशन। इनफिल्ट्रेशन यानी घुसपैठ करने में समय लगता है। कमांडो 8-10 किलोमीटर भीतर घुसे थे और पहाड़ियों एवं जंगलों के बीच बनाए गए शिविरों पर सामने से हमले की स्थिति से बचते हुए पीठ की तरफ से हमला बोला था। सर्जिकल ऑपरेशन का यह अहम तरीका होता है। एक्सफिल्ट्रेशन यानी वहां से निकलते समय नियंत्रण रेखा की ओर कमांडो सीधे चले आए। लौटने में उन्हें समय नहीं लगा।
भारत-पाक कूटनीतिक रस्साकसी
हाल में हुई गतिविधियों ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि भारत निकट भविष्य में पाकिस्तान के खिलाफ अपने कूटनीतिक आक्रमण को तेज करने वाला है। पाकिस्तान को लेकर लगातार तीखे सार्वजनिक बयानों के साथ कूटनीतिक स्तर पर उसे अलग-थलग करने की कोशिश और कथित सीमा पार हमले इसी रणनीति का हिस्सा हैं। ऐसा लगता है कि पाकिस्तान के प्रति सरकार का रुख समझौते से आक्रामकता में बदल रहा है।
अगस्त में स्वतंत्रता दिवस पर और एक सर्वदलीय बैठक में मोदी की टिप्पणियां भारत की पाक नीति में बदलाव की शुरुआत थी। उनके भाषण में पाक अधिकृत कश्मीर और बलूचिस्तान में पाकिस्तान के मानवाधिकार उल्लंघनों की आलोचना की गई। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत अब तक पाकिस्तान की आंतरिक समस्याओं के बारे में बोलने से बचता रहा है।
संयुक्त राष्ट्र में भारतीय प्रतिनिधि ऐनम गंभीर ने यूएनजीए में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के भारत और कश्मीर संबंधी रुख पर आपत्ति जताई। अपने यूएनजीए भाषण के दौरान विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने मोदी और गंभीर द्वारा उठाए गए मुद्दों को और बल दिया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र से अपील की कि वह उन देशों की कलई खोले, जहां घोषित आतंकवादी खुलेआम घूमते हैं और ‘नफरत फैलाने वाले जहरीले भाषण’ देते हुए छूट जाते हैं। इसके बाद यूएनजीए में ऐनम गंभीर ने पाकिस्तान की स्थायी प्रतिनिधि मलीहा लोधी को जवाब के अधिकार के तहत एक और भाषण दिया।
इसके साथ ही, इस्लामाबाद में होने वाले सार्क सम्मेलन का बहिष्कार करने के लिए उसके सदस्यों पर जबर्दस्त कूटनीतिक दबाव डाला गया। भारत द्वारा सार्क सम्मेलन के बहिष्कार का दूरगामी असर पड़ा और दूसरे सदस्यों ने भी अपने हाथ खींच लिए। भूटान ने क्षेत्र में ‘आतंकवाद बढ़ने’ को मुख्य वजह बताया, जबकि बांग्लादेश ने ‘एक देश द्वारा बांग्लादेश के आंतरिक मामलों’ में बढ़ते हस्तक्षेप को जिम्मेदार ठहराया। अफगानिस्तान ने एक पड़ोसी द्वारा ‘आतंकवाद थोपने’ का जिक्र किया। अंत में सम्मेलन की अध्यक्षता करने वाले नेपाल ने पाकिस्तान की आलोचना करते हुए सम्मेलन रद्द कर दिया।
कूटनीतिक हमले को जमीनी कार्रवाई से मजबूत किया गया। पाक अधिकृत कश्मीर में हालिया ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ ने पाकिस्तान के इस विश्वास को खत्म कर दिया कि भारत उनके इलाके में आतंकवादी ठिकानों पर हमला नहीं कर सकता।
दुर्भाग्यवश, लंबे समय तक बातचीत न करने से भी पाकिस्तानी आतंकी हमलों को बढ़ावा मिलता है। हालांकि, सरकार साफ तौर पर यह समझने में नाकाम रही है कि इसका संबंध काफी हद तक सैन्य प्रमुख के रूप में जनरल राहिल शरीफ के
एक्सटेंशन से हो सकता है। दुर्भाग्यवश, सरकार ने बांटो और शासन करो की रणनीति-जिस तरह वाजपेयी सरकार ने कारगिल के दौरान टेलीफोन इंटरसेप्शन से किया था-पर चलने की बजाय पाकिस्तानी घरेलू मत को और मजबूत ही किया है। इससे यह भी पता चलता है कि पाकिस्तानी दृष्टिकोण से संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर पर कोई भी चर्चा ‘चाहे वह नकारात्मक हो’ उनके लिए जीत है।
सरल शर्मा (लेखक आईपीसीएस में शोधकर्ता हैं)