मध्य प्रदेश के बुधनी विधानसभा क्षेत्र से खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मुकाबिल हैं। नसरुल्लागंज इसी क्षेत्र में आता है, जहां सुबह-सुबह धूप सेंकते मिल गए राजेश काचले, अशोक विश्वकर्मा, रईस खान और राजेंद्र पवार। इन लोगों ने बताया कि शिवराज अच्छे मुख्यमंत्री हैं, लेकिन कुछ स्थानीय नेताओं से वे बेहद खफा दिखे। राजेंद्र पवार ने बताया कि यहां नारा चल रहा है- शर्मा, भाटी और कलाल, भाजपा के तीन दलाल। तीनों भाजपा के जिला स्तरीय पदाधिकारी हैं। भाजपा के स्थानीय नेताओं और पदाधिकारियों को लेकर कुछ ऐसी ही नाराजगी राज्य के अन्य हिस्सों में भी दिखाई पड़ती है। कुछ क्षेत्रों में मंत्रियों की निष्क्रियता और व्यवहार को भी लेकर गिले-शिकवे हैं। उज्जैन उत्तर में पारस जैन और बागली में दीपक जोशी से लोग इसी कारण से नाराज हैं। इसी तरह के विरोध से ग्वालियर में उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया जूझ रहे हैं।
लोगों की नाराजगी के चलते भाजपा ने इंदौर-3 से विधायक रहीं ऊषा ठाकुर को महू भेज दिया है। बड़ा सवाल यह है कि क्या यह नाराजगी 28 नवंबर को वोट में तब्दील हो पाई? इसका जवाब तो 11 दिसंबर को ही मिलेगा, जब 230 सदस्यीय मध्य प्रदेश विधानसभा के नतीजे आएंगे। लेकिन, इतना तो साफ लग रहा है कि इस बार भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है। इनके अलावा सपा, बसपा, आप जैसे अन्य दूसरे दल भी मैदान में हैं लेकिन, इनका प्रभाव सीमित है। सपाक्स जैसे संगठन तो अब चर्चा से बाहर हो चुके हैं। उत्तर प्रदेश की सीमा से सटी कुछ सीटों पर बसपा का प्रभाव जरूर दिखता है।
ग्वालियर के वरिष्ठ कांग्रेस नेता ज्ञानेंद्र शर्मा ने बताया कि उनकी पार्टी के नारे ‘वक्त है बदलाव का’ की गूंज हर जगह सुनाई पड़ी है। पार्टी ने भले इन चुनावों में किसी चेहरे को प्रोजेक्ट नहीं किया है, लेकिन प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ और चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया की जोड़ी ने पूरे प्रदेश में ताबड़तोड़ सभाएं कर मुकाबले को कांटे का कर दिया है। विंध्य में पार्टी के प्रचार की कमान विपक्ष के नेता अजय सिंह उर्फ राहुल भैया ने संभाल रखी है। वे खुद चुरहट से चुनाव लड़ रहे हैं। पर्दे के पीछे से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी लगे हैं। चुनाव से पहले नर्मदा यात्रा के दौरान वे राज्य के सौ से अधिक विधानसभा क्षेत्रों से गुजरे थे। कांग्रेस ने सरकार बनने के भीतर 10 दिनों में किसानों का कर्ज माफ करने का वादा किया है। साथ-साथ कर्मचारियों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और पुलिस कर्मचारियों को भी सपने दिखाए हैं। इन सबसे उसके पक्ष में माहौल बनता दिखा।
राज्य की राजनीति के जानकार रवि वागड़े का कहना है कि कांग्रेस का नारा जनता के दिमाग में बैठ गया है। भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार मृगेंद्र सिंह का भी मानना है कि इस बार बदलाव का वातावरण दिख रहा है। बागियों को साधने के साथ-साथ जिताऊ और वोटकटवा उम्मीदवारों को भी साथ जोड़ने में पार्टी कामयाब रही है।
आदिवासी वोटरों को लुभाने के लिए जयस नेता हीरालाल अलावा को कांग्रेस ने धार जिले के मनावर विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बना दिया। इस बार एससी, एसटी और ओबीसी के साथ ब्राह्मण और दूसरी ऊंची जातियों का झुकाव भी कांग्रेस की तरफ दिख रहा है। खासकर विंध्य और मध्य भारत में इन वर्गों के समर्थन से वह मजबूत दिखाई दे रही है। दूसरी ओर, पंद्रह साल से सत्ता पर काबिज भाजपा एंटी इंकंबेंसी फैक्टर से निपटने के लिए शिवराज के चेहरे और काम को आगे बढ़ा रही है। लेकिन, उनकी घेरेबंदी के लिए कांग्रेस ने इस बार बुधनी से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव को मैदान में उतारा है। यादव के मैदान में होने से बुधनी की लड़ाई बहुत दिलचस्प हो गई है। अरुण यादव ने आउटलुक को बताया, “मेरे पिता सुभाष यादव ने किसानों के लिए और सहकारिता के क्षेत्र में जो काम किया है उसे पूरे राज्य की जनता जानती है।” बाहरी होने के आरोपों को लेकर उनका कहना है, “जब सुषमा स्वराज विदिशा से चुनाव लड़ सकती हैं तो मैं बुधनी से क्यों नहीं लड़ सकता। मैं कैसे बाहरी हो गया। मेरा क्षेत्र तो बुधनी से लगा हुआ है।”
नर्मदा नदी के तट से घिरा बुधनी रेत ढोने वाले डंपरों के कारण सबसे ज्यादा चर्चा में रहता है। हाइवे पर रेस्तरां चलाने वाले हरगोविंद साहू ने बताया कि डंपरों के चलते आए दिन सड़क हादसे होते रहते हैं। सड़कें भी जर्जर हो रही हैं। हालांकि शिवराज की जीत तय मानी जा रही है, लेकिन कहा जा रहा है पिछली बार की तरह लीड नहीं मिलेगी। नसरुल्लागंज के रईस खान ने बताया शिवराज की लीड इस बार दस हजार के भीतर ही रहेगी। 2013 में वे 84,805 वोटों से जीते थे। पिछले दिनों उनकी पत्नी साधना सिंह और पुत्र कार्तिकेय को कुछ जगहों पर लोगों के विरोध का सामना भी करना पड़ा था। भाजपा के नेता राजेश लखेरा की मानें तो मुख्यमंत्री की पत्नी और बेटे का विरोध कांग्रेसियों की चाल थी।
टिकट बंटवारे के बाद इस बार जिस तरह का असंतोष उभरा है उसकी कल्पना भी भाजपा ने नहीं की थी। दमोह और पथरिया की दो सीटों से पूर्व मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया निर्दलीय मैदान में हैं। राज्य के वित्त मंत्री जयंत मलैया से उनका छत्तीस का आंकड़ा है। 71 साल के मलैया दमोह सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा नेता मानते है कि कुसमरिया के मैदान में रहने से पार्टी की मुश्किलें बढ़ी हैं। कहा जा रहा है कि वे दमोह की हटा सीट को भी प्रभावित कर रहे हैं। भाजपा से वर्षों से जुड़े रहे सरताज सिंह, रामकृष्ण कुसमरिया, केएल अग्रवाल, ग्वालियर की महापौर समीक्षा गुप्ता, बैरसिया के पूर्व विधायक ब्रह्मानंद रत्नाकर और श्योपुर में पूर्व विधायक बाबूलाल मेवरा, धीरज पटेरिया समेत कई नेता इस बार बागी हो चुके हैं। कुछ कांग्रेस तो कुछ सपा और बसपा से भी टिकट लेकर चुनाव लड़ रहे हैं। इसके मुकाबले कांग्रेस के एकमात्र चर्चित बागी सत्यव्रत चतुर्वेदी ही हैं। सोनिया गांधी के करीबी रहे चतुर्वेदी के बेटे नितिन सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। बेटे का साथ देने पर कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया है।
भाजपा महासचिव और प्रदेश प्रभारी विनय सहस्रबुद्धे ने आउटलुक को बताया कि पार्टी उम्मीदवारों को बागी ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे। इंदौर में सबसे बड़ा सवाल यह है कि ताई, भाई और मामा में किसका दम दिखेगा। ताई यानी लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, भाई यानी भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और मामा यानी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान। इंदौर जिले में तीनों के ही प्रत्याशी मैदान में हैं। कहा जा रहा है कि कैलाश विजयवर्गीय अपने कोटे से यहां तीन सीट मांग रहे थे, लेकिन वे बेटे को ही टिकट दिला पाए। उनके बेटे आकाश विजयवर्गीय इंदौर-3 से मैदान में हैं। लेकिन कहा जा रहा है कि वे महू या इंदौर-2 से चुनाव लड़ना चाहते थे, क्योंकि ये दोनों ही सीटें भाजपा के लिए सुरक्षित मानी जाती हैं। आकाश ने बताया कि इंदौर-3 से उन्हें सर्वे के आधार पर उम्मीदवार बनाया गया है। इंदौर के निवासी विनोद श्रीवास्तव की मानें तो इस बार इस इलाके में समीकरण बदलेगा। अंदरूनी कलह के ही कारण जब शिवराज प्रचार के लिए इंदौर गए तो आकाश के इलाके में जाने का कार्यक्रम ही नहीं बनाया।
बदलाव के संकेत उज्जैन में भी दिखते हैं। उज्जैन के अशोक महावार और संजय कुमार झा का कहना है कि जिले में कांग्रेस और भाजपा के बीच बराबरी का मुकाबला है। स्थानीय लोग मंत्री पारस जैन से नाराज दिखे। भाजपा ने उज्जैन जिले में कांग्रेस को कमजोर करने के लिए पूर्व सांसद प्रेमचंद गुड्डू को तोड़ उनके बेटे अजीत बोरासी को घटिया सीट से प्रत्याशी बनाया है।
राज्य के सत्ता समीकरण में मालवा क्षेत्र की अहम भूमिका होती है। मालवा को भाजपा का गढ़ माना जाता है। दिवंगत कुशाभाऊ ठाकरे, सुंदरलाल पटवा, वीरेंद्र कुमार सकलेचा और विक्रम वर्मा जैसे पार्टी नेता मालवा की पैदाइश हैं। माना जाता है कि मालवा जीतने वाली पार्टी ही राज्य की सत्ता पर काबिज होती है। 2013 में इस क्षेत्र की 66 में से 57 सीटें भाजपा को मिली थीं। लेकिन, इस बार मालवा भाजपा के हाथ से फिसलता दिख रहा है। मंदसौर में किसानों पर गोलीबारी की घटना को लेकर भी भाजपा के प्रति गुस्सा दिखाई पड़ता है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी मंदसौर में कई सभाएं कर चुके हैं। इस गढ़ को बचाने के लिए भाजपा भी मंदसौर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा करवा चुकी है। लेकिन स्थानीय नागरिक विनोद ने बताया, “जब मोदी प्रधानमंत्री नहीं बने थे तब यहां हुई उनकी सभा में डेढ़ लाख से ज्यादा लोग जुटे थे। लेकिन 24 नवंबर की सभा में बमुश्किल 15 हजार लोग ही जुटे।”
इसके उलट निमाड़ इलाके में भाजपा की स्थिति अच्छी बताई जा रही है, जबकि महाकौशल में दोनों पार्टियों के बीच सीधी टक्कर है। महाकौशल कमलनाथ का गढ़ है और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह भी इसी इलाके से आते हैं। बुंदेलखंड में भी पिछले चुनावों के मुकाबले इस बार समीकरण बदले-बदले से नजर आ रहे हैं।
हालांकि कांग्रेस के तमाम आरोपों के बावजूद शिवराज की लोकप्रियता अब भी दिखती है। दूसरी ओर, कांग्रेस के पास एक चेहरा नहीं होने से जनता में कुछ कंफ्यूजन है, लेकिन लुभावनी घोषणाओं का उसे फायदा होता दिख रहा है। ऐसे में साफ है कि इस बार भी सत्ता पर वही पार्टी काबिज होगी जो मालवा फतह करने में कामयाब रहेगी!
गुरु-चेले में लड़ाईः होशंगाबाद में कांग्रेस के सरताज सिंह का मुकाबला भाजपा के डॉ. सीताशरण शर्मा से है। पूर्व मंत्री सिंह टिकट कटने पर भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए थे। वर्तमान विधानसभा के अध्यक्ष डॉ. शर्मा को राजनीति में लेकर वे ही आए थे, इसलिए मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है।
...तो दो-तिहाई बहुमतः चार बार राज्यसभा सांसद रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता औऱ पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री सुरेश पचौरी भोजपुर से मैदान में हैं। वे आज तक लोकसभा और विधानसभा का कोई चुनाव नहीं जीत पाए हैं। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि पचौरी की किस्मत बदली तो कांग्रेस को दो-तिहाई बहुमत मिल जाएगा। पचौरी का मुकाबला पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के बेटे सुरेंद्र पटवा से है।
मंडियों में धान न आने के मायनेः कांग्रेस के कर्जमाफी के वादे के बाद से किसानों ने मंडियों में धान बेचना बंद कर दिया है। सूत्रों के अनुसार मध्य प्रदेश में पिछले साल 26 नवंबर तक 71 हजार मीट्रिक टन धान की खरीद हुई थी। इस साल 11 हजार टन की ही खरीद हुई है। छत्तीसगढ़ में भी किसानों ने कर्जमाफी और 2,500 रुपये प्रति क्विंटल खरीद मूल्य होने की उम्मीद में मंडियों में धान बेचना बंद कर रखा है, जबकि यहां एक नवंबर से ही समर्थन मूल्य पर धान खरीद शुरू हो चुकी है। मंडियों में धान के न आने को कांग्रेस के पक्ष में एक संकेत माना जा रहा है।