राजस्थान में सत्ता पाने का कांग्रेस का सपना साकार हुआ, तो इस जीत की गर्मजोशी समर्थकों और कार्यकर्ताओं में भी दिखी। लेकिन, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पता होगा कि इस बार उनकी ताजपोशी में कितने फूल और कितने कांटे हैं। लोकसभा चुनाव सिर पर हैं और सामने भाजपा के रूप में एक मजबूत विपक्ष है। इसी कड़ी में कांग्रेस ने बैठकों के लंबे दौर के बाद 23 मंत्रियों को तो शपथ दिलवा दी, लेकिन इसमें क्षेत्रीय असंतुलन साफ दिखता है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की बार-बार की गई मुनादी का कोई असर नजर नहीं आया। 23 मंत्रियों की सूची में सिर्फ एक महिला विधायक को जगह दी गई है।
हालांकि, इन 23 मंत्रियों को कैबिनेट में शामिल कर गहलोत ने लोकसभा चुनाव को साधने की पूरी कोशिश की है। दरअसल, प्रदेश में लोकसभा की 25 सीटें हैं और गहलोत कैबिनेट में 18 लोकसभा क्षेत्र को प्रतिनिधित्व दिया गया है। जिन सात लोकसभा क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व नहीं मिल सका, उनमें से तीन में कांग्रेस का कोई विधायक जीतकर नहीं आया और बाकी में भी कांग्रेस के चंद विधायक ही हैं।
राज्य में नई बनी कांग्रेस सरकार को न केवल राजनैतिक मोर्चे पर विपक्ष से लोहा लेना होगा, बल्कि आर्थिक-सामाजिक क्षेत्र में भी गहरी चुनौतियों से पार पाना होगा। कांग्रेस नेतृत्व को मंत्रिमंडल में संतुलन और सामंजस्य स्थापित करने के लिए काफी मशक्क्त करनी पड़ी। इसके बावजूद पार्टी के कई दिग्गज नेता कैबिनेट में जगह नहीं बना सके। इससे कुछ विधायकों के समर्थकों ने नाराजगी भी जाहिर की है। प्रदेश के सीमावर्ती जिले बाड़मेर में विधायक मेवाराम जैन और हेमाराम चौधरी के समर्थकों ने अपने नेताओं को मंत्री न बनाने पर गुस्से का इजहार किया। भरतपुर जिले में कामा सीट से जीत कर आईं जाहिदा खान के समर्थक तो विरोध जताने के लिए सड़क पर उतर आए। जाहिदा खान पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। वे मेव समुदाय का प्रतिनिधित्व करती हैं।
नए बने मंत्रियों में 13 ने कैबिनट और 10 ने राज्य मंत्री के रूप में शपथ ली है। इनमें 18 पहली बार मंत्री बने हैं। लेकिन कांग्रेस ने पहली बार जीत कर आए 25 विधायकों में से किसी को भी मंत्री नहीं बनाया है। दौसा के सिकराय से जीत कर आईं ममता भूपेश एकमात्र महिला हैं, जिन्हें मंत्री बनाया गया है। यह राहुल गांधी के वादे के उलट है। गांधी ने अपनी चुनाव सभाओं में कई बार महिलाओं को सत्ता और संगठन में पर्याप्त हिस्सेदारी देने का ऐलान किया था। कांग्रेस ने राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के टिकट पर जीत कर आए सुभाष गर्ग को मंत्रिमंडल में जगह दी है। कांग्रेस ने आरएलडी से चुनाव पूर्व गठबंधन किया था। गर्ग को मंत्री बनाकर यह संदेश देने का प्रयास किया गया है कि कांग्रेस गठबंधन के प्रति गंभीर है। वैसे, गर्ग को मुख्यमंत्री गहलोत का करीबी माना जाता है। जैसलमेर के पोकरण से निर्वाचित सालेह मोहम्मद सरकार में मुस्लिम चेहरा होंगे। जानकारों का कहना है कि पोकरण में बड़ी प्रतिष्ठा की लड़ाई थी, क्योंकि भाजपा ने मुस्लिम फकीर परिवार से ताल्लुक रखने वाले सालेह मोहम्मद के मुकाबले एक मठ के महंत प्रतापपुरी को मैदान में उतारा था। उनके पक्ष में प्रचार करने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ खुद आए थे।
इस कैबिनेट में 13 जिलों से किसी को भी मंत्री नहीं बनाया गया है। इनमें से कुछ जिलों में कांग्रेस का एक भी विधायक चुनाव नहीं जीत सका था। जयपुर और भरतपुर जिलों से तीन-तीन मंत्री शामिल किए गए हैं। कैबिनेट मंत्री रघु शर्मा कहते हैं कि सबको मंत्री नहीं बनाया जा सकता, लेकिन जो मंत्री नहीं बन पाए, पार्टी उनका भी ध्यान रखेगी। पार्टी सूत्रों के अनुसार, अभी कैबिनेट में पांच पद खाली छोड़े गए हैं, ताकि अच्छा काम करने वालों को समायोजित किया जा सके। जानकार कहते हैं कि पार्टी की नजर कुछ विधायकों पर है, जिन्हें जरूरत पड़ने पर लोकसभा चुनावों में उतारा जा सकता है। पूर्व केंद्रीय मंत्री सी.पी. जोशी अपनी पारंपरिक सीट नाथद्वारा से जीत कर आए हैं। माना जा रहा है कि वे लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। यही कयास पूर्व मंत्री भरत सिंह के बारे में लगाए जा रहे हैं। साफ छवि और बेहतर कार्य प्रदर्शन के बावजूद उन्हें मंत्री नहीं बनाए जाने से उनके हिमायती मायूस हुए हैं।
कांग्रेस सरकार में मंत्रियों के नाम सामने आने के बाद जानकार यह हिसाब लगा रहे हैं कि इनमें कौन गहलोत का समर्थक हैं और किसकी वफादारी उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के साथ है। पायलट के समर्थकों को भी ठीक जगह मिली है, लेकिन मुख्यमंत्री गहलोत का पलड़ा भारी है। पार्टी ने संकेत दिया है कि इस मंत्रिमंडल को लोकसभा चुनाव की तैयारियों को ध्यान में रखकर आकार दिया गया है। इसीलिए पार्टी ने सोशल इंजीनियरिंग की कोशिश की है, क्योंकि इसमें जाट समुदाय को सबसे ज्यादा चार मंत्री पद मिले हैं। इतनी ही हिस्सेदारी अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल बिश्नोई, यादव, गुर्जर जैसी जातियों को दी गई है। ठीक इसी तरह अनुसूचित जाति और जनजाति के सात विधायकों को मंत्री पद से नवाजा गया है। इस कैबिनेट में शामिल मास्टर भंवर लाल और प्रमोद जैन भाया को पिछली कांग्रेस सरकार में तब मुख्यमंत्री ने हटा दिया था। अब उनकी वापसी पर सवाल पूछे जा रहे हैं।
कांग्रेस को यकीन है कि मतदाताओं में विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा चुनावों में भी भाजपा विरोधी रुझान जारी रहेगा। लेकिन विधानसभा चुनावों में पहले टिकटों को लेकर पार्टी की आंतरिक गुटबाजी सड़कों पर आ गई और दिल्ली को दखल देना पड़ा। इसके बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर विवाद इतना बढ़ा कि सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी ने हस्तक्षेप किया। इससे पार्टी की छवि खराब हुई है। मगर यह काफी नहीं था। मंत्रिमंडल गठन में भी दिल्ली में बैठकों के लंबे दौर चले और सहमति बनाने में तीन दिन लग गए। ऐसे ही कई मंत्रियों के विभागों का निर्धारण करने में दिल्ली की मदद लेनी पड़ी। इन सब घटनाओं से लोगों के बीच पार्टी की छवि पर असर पड़ा है। कांग्रेस ने सत्ता में आते ही किसानों का कर्ज माफ करने का ऐलान कर दिया। मुख्यमंत्री गहलोत के अनुसार, इस पर 18 हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे। लेकिन जानकार कहते हैं, यह राशि बढ़ सकती है। भाजपा की इस मुद्दे पर गहरी नजर है। भाजपा नेता और पूर्व मंत्री राजेंद्र राठौड़ कहते हैं, “कांग्रेस सरकार की कर्जमाफी का ऐलान एक छलावा है। यह आदेश स्पष्ट नहीं है।” आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष रामपाल जाट ने भी कर्जमाफी पर सवाल उठाए हैं। वहीं, आर्थिक विशेषज्ञ कहते हैं कि राज्य की वित्तीय हालत खस्ता है। बजट अध्ययन शोध केंद्र के निसार अहमद ने आउटलुक को बताया कि वर्ष 2018-19 के बजट में पहले लिए गए कर्ज पर हर साल 21 हजार करोड़ रुपये ब्याज दिया जाना है। अब नए कर्ज के लिए गुंजाइश कम है। अगर सरकार और ऋण नहीं लेगी तो कैसे इस पैसे की व्यवस्था करेगी। वे कहते हैं कि कोई भी राज्य अपने सकल घरेलू उत्पाद का तीन फीसदी तक ही कर्ज ले सकता है। पर कांग्रेस प्रवक्ता अर्चना शर्मा कहती हैं कि कांग्रेस को अपने वादे को लागू करना आता है।
सरकार को बेरोजगारों के लिए भत्ते का भी इंतजाम करना होगा। पार्टी ने घोषणापत्र में बेरोजगारों को 3,500 रुपये मासिक भत्ता देने का वादा किया है। आंकड़े बताते हैं कि राजस्थान में 10 लाख पंजीकृत बेरोजगार हैं। इसके लिए अच्छी खासी रकम चाहिए। मगर मुख्यमंत्री कहते हैं कि हमने अपना घोषणापत्र नौकरशाही को सौंपने का निर्णय लिया है, ताकि वह सरकारी दस्तावेज के रूप में वादे पूरा करने के काम आ सके। कांग्रेस सरकार के लिए बंद पड़ी सरकारी भर्तियों को खोलना और अमलीजामा पहनाना भी बड़ी चुनौती है, क्योंकि भाजपा सरकार के दौरान 40 हजार से अधिक भर्तियां किसी-न-किसी वजह से रुक गई थीं।