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महानदी के पानी पर भड़की विवाद की लपटें

महानदी के पानी के बंटवारे को लेकर राजनीतिक नफे-नुकसान में उलझे ओडिशा और छत्तीसगढ़ इस बात को भूल गए हैं कि 57 फीसदी मीठे पानी को समुद्र के पानी में मिलने से कैसे रोका जाए
ओडिशा एवं छत्तीसगढ़ के बीच समाधान के लिए उमा की मध्यस्‍थता

कावेरी को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच पानी के बंटवारे पर छिड़े विवादों की लपटों के बीच महानदी का पानी ओडिशा और छत्तीसगढ़ में आग लगाने वाला है। राजनीतिक नफे-नुकसान के चलते ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक इसे भावनात्मक मुद्दा बनाने में लगे हैं। इन राजनीतिक चिंगारियों के बीच यह सच कहीं खोकर रह गया है कि दोनों राज्य अपनी भरपूर कोशिशों के बावजूद 57 फीसदी मीठे पानी को समंदर के खारे पानी में मिलने से नहीं रोक पा रहे हैं। लेकिन नवीन पटनायक को इस बात पर कड़ा ऐतराज है कि छत्तीसगढ़ सरकार महानदी और उसकी सहायक नदियों पर बांध बनाकर ओडिशा के हितों पर कुठाराघात कर रही है।

छत्तीसगढ़ से निकली महानदी का क्षेत्र धान के कटोरे के 55 फीसदी के क्षेत्रफल और 88 फीसदी आबादी से होकर गुजरती है। 1958 में बाढ़ नियंत्रण के मकसद से ओडिशा में बने हीराकुंड बांध का 87 फीसदी जलग्रहण क्षेत्र छत्तीसगढ़ में और मात्र 13 फीसदी ओडिशा में है। छत्तीसगढ़ के 36 गांव हीराकुंड के जलभराव क्षेत्र में डूबे हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ अपने राज्य की इस जीवन रेखा से मिलने वाले पानी का मात्र 13 फीसदी इस्तेमाल कर पा रहा है और ओडिशा भी केवल 30 प्रतिशत का इस्तेमाल कर पाता है। हीराकुंड बांध की जलभराव क्षमता 5 हजार 818 मिलियन क्यूबिक मीटर है। बांध में जमा गाद के कारण पानी का भराव 4 हजार 823 एमसीएम ही रह गया है। हीराकुंड बांध में औद्योगिक उपयोग के लिए पानी का कोई प्रावधान नहीं था। लेकिन 2015 तक 769 एमसीएम जल वह उद्योगों को दे रहा है। इसके विपरीत छत्तीसगढ़ में 655 एमसीएम पानी उद्योगों को मिल पाता है। ओडिशा ने हीराकुंड बांध से सिंचाई के लिए 2580 एमसीएम पानी का प्रावधान किया था तो 270 मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए पानी रिजर्व था। लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार को सूचित किए बगैर वह 3 हजार 283 एमसीएम पानी सिंचाई के लिए उपयोग कर रहा है और 348 मेगावाट बिजली उत्पादन कर रहा है।

छत्तीसगढ़ के जल संसाधन मंत्री ब्रजमोहन अग्रवाल कहते हैं कि ओडिशा सरकार ने छत्तीसगढ़ को भरोसे में लिए बगैर हीराकुंड बांध के डिजाइन में तब्दीली कर दी है और वह उलटा चोर कोतवाल को डांटे की तर्ज पर छत्तीसगढ़ को आंखे दिखा रहा है। अग्रवाल कहते हैं कि हमारी सरकार ने जो बैराज बनाए हैं उनसे मात्र 274 एमसीएम पानी ही हम रोक पा रहे हैं। यदि ओडिशा सरकार को अपने राज्य के हित की चिंता है तो वह बांध की गाद को हटाकर 995 एमसीएम पानी बचा सकती है। अग्रवाल कहते हैं कि छत्तीसगढ़ सरकार जो 6 बैराज बना रही है वो इतने छोटे हैं कि उनके लिए केंद्रीय जल आयोग की इजाजत की भी जरूरत नहीं पड़ी। इन सभी की सिंचाई की क्षमता 2000 हेक्टेयर से कम है। यानी यह सब लघु सिंचाई परियोजनाएं हैं। जबकि केलो और अरपा भैसा झार के जो बड़े बांध बन रहे हैं उनको केंद्रीय जल आयोग की अनुमति नहीं दी गई है। अग्रवाल कहते हैं कि महानदी पर बने छत्तीसगढ़ के बांधों में भी गाद जमाव के कारण 345 एमसीएम पानी की कमी हुई है।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह को तो इस पूरे मामले में राजनीति की गंध आ रही है। सिंह कहते हैं कि ओडिशा में बीजू जनता दल सरकार के खिसकते जनाधार के चलते नवीन पटनायक अपनी जनता का ध्यान बंटाने और उनकी भावनाओं का दोहन करने के लिए ऐसे मुद्दे छेड़ रहे हैं। रमन सिंह कहते हैं कि अभी तक हमने 2000 हेक्टेयर से कम क्षमता वाली 4 योजनाएं ही तैयार की हैं। पहली महानदी और तांदुला प्रोजेक्ट तो अभी भी सर्वे की स्थिति में है और इसकी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट ओडिशा सरकार को हमने दी है। इसके विपरीत ओडिशा सरकार ने न तो हदुआ मध्यम सिंचाई परियोजना के बारे में हमें भरोसे में लिया और न तो हीराकुंड की सासन सिंचाई परियोजना के नवीनीकरण की जानकारी दी। यही नहीं ओडिशा से निकलने वाली इंद्रावती नदी के बड़े बांध को लेकर भी छत्तीसगढ़ के हितों का ख्याल नहीं रखा। गौरतलब है कि गोदावरी और महानदी बेसिन को लेकर गोदावरी वाटर डिस्प्यूट ट्रिब्यूनल के फैसले के मुताबिक ओडिशा को अपने राज्य से निकलकर छत्तीसगढ़ की ओर बह कर जाने वाली इंद्रावती नदी के 45 टीएमसी पानी को छत्तीसगढ़ के लिए सुरक्षित रखना है और 91 टीएमसी का इस्तेमाल अपने लिए करना है। सूखे की स्थिति में दोनों राज्य उपलब्ध जल को आनुपातिक रूप से बांट सकते हैं। लेकिन वह कम पानी देता है। 2011 में उसमें 45 की जगह 40 टीएमसी पानी लिया और यह बताने की जहमत भी नहीं उठाई की उसने गोदावरी बेसिन से महानदी में कितना पानी डायवर्ट किया है। यही नहीं हीराकुंड के कमांड एरिया में उपलब्ध 700 एमसीएम पानी में से वह 4.25 एमसीएम पानी ही दे रहा है वो भी एक फीसदी से भी कम है।

ओडिशा पर पलटवार करते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने इंद्रावती नदी पर बनने वाले सिंचाई प्रोजेक्ट को लेकर हमले बोले हैं। रमन सिंह कहते हैं कि केंद्रीय जल आयोग द्वारा 10 अपै्रल 2001 को स्वीकृत हदुआ प्रोजेक्ट की जानकारी छत्तीसगढ़ को आज तक नहीं दी गई। इसके अतिरिक्त 4 बड़ी परियोजना सलकी बैराज, डेल्टा स्टेज-1 और स्टेज-2, अपर इंद्रावती हतिबैराज के साथ ही 16 अन्य मध्यम परियोजनाओं को भी छत्तीसगढ़ से छुपाया गया है। लोअर इंद्रा और लोअर सुकतेल के साथ ही 4 निर्माणधीन मध्यम परियोजना की जानकारी भी नहीं दी जा रही है। छत्तीसगढ़ सरकार की यह भी दलील है कि ओडिशा ने 28 अपै्रल 1983 को अविभाजित मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और ओडिशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री जानकी वल्लभ पटनायक की बैठक में हुए फैसले का पालन आज तक नहीं किया। तब दोनों मुख्यमंत्रियों ने एक संयुक्त नियंत्रण बोर्ड बनाने का निर्णय लिया था। यह दोनों राज्यों के बीच पानी के मसलों को सुलझाता लेकिन छत्तीसगढ़ की सहमति के बावजूद ओडिशा इसमें रुचि नहीं दिखा रहा है। छत्तीसगढ़ सरकार का कहना है कि हमने जो भी बैराज बनाए हैं उनमें पानी को डायर्वट नहीं किया है। सिंचाई और औद्योगिक उपयोग में आने के बावजूद सिंचाई का 10 फीसदी और उद्योग का 20 फीसदी पानी पुन: नदी को प्राप्त होता है। इससे गैर मानसून सीजन में पानी का बहाव बना रहता है।

महानदी के पानी को लेकर ओडिशा में सियासी बवाल खड़े करने की तैयारी है। तो छत्तीसगढ़ में भी इसके लिए भाजपा ही नहीं कांग्रेस भी नवीन पटनायक के साथ दो-दो हाथ करने को तैयार है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता चरणदास महंत का कहना है कि छत्तीसगढ़ राज्य के हितों की कांग्रेस भी अनदेखी नहीं होने देगी।

बहरहाल दोनों राज्यों के बीच चल रहे विवाद को लेकर केंद्रीय जलसंसाधन मंत्री उमा भारती ने डॉ. रमन सिंह, मनमोहन अग्रवाल और पटनायक के साथ बैठक करके मुद्दे को सुलझाने की कोशिश की है। भारत सरकार भी यह मानती है कि छत्तीसगढ़ सरकार वर्तमान में केवल 9 हजार 286 एमसीएम पानी का उपयोग कर रही है और ओडिशा को 31 हजार 432 एमसीएम पानी पहुंच रहा है। यह वह जल राशि है जिससे हीराकुंड बांध को 6 बार भरा जा सकता है। 2040 तक छत्तीसगढ़ इस नदी के 30 हजार 990 एमसीएम पानी का इस्तेमाल करेगी तब भी 9 हजार 700 एमसीएम पानी हीराकुंड बांध में जाएगा जिससे उसे दो बार भरा जा सकता है। छत्तीसगढ़ के जलग्रहण क्षेत्र से ओडिशा पहुंचने वाले पानी की मात्रा जांचने के लिए गैज स्टेशन छत्तीसगढ़ की सरहद पर लगेगा। सीडब्ल्यूसी ने भी इस प्रस्ताव को मान लिया है। उमा भारती ने दोनों राज्यों का संयुक्त कंट्रोल रूम बनाने का मशवरा दिया है जिससे कि विवादों का समाधान हो सके।

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