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फिरेंगे फुटबॉल के दिन!

अभी ब्रिक्स अंडर-17 और अगले वर्ष फीफा अंडर-17 विश्वकप की मेजबानी अच्छी बात है, लेकिन भारतीय फुटबॉल को अच्छे दिनों के लिए लंबा सफर तय करना होगा
ब्रिक्स अंडर-17 ट्राफी का अनावरण करते नरेंद्र मोदी

हर चार साल में टीवी पर रोनाल्डो, मेसी, नेमार, जिदान, रोमारियो, बैजियो जैसों की कलाकारी देखते हुए मन में कहीं यह सवाल तो आता है कि आखिर हम कब इस स्तर तक पहुंचेंगे। ऐसा क्या है, जो भारतीय फुटबॉल इतना पीछे है? दुनिया का सबसे लोकप्रिय खेल... दुनिया का सबसे आसान खेल... कहते ही हैं कि एक बॉल ले लो, 22 खिलाड़ी खेल सकते हैं। इससे आसान क्या हो सकता है। फिर भी हम इस खेल के आस-पास क्या, दूर-दूर तक कहीं नहीं हैं। हमारे बुजुर्ग बताते हैं या किताबों में पढ़ने को मिलता है कि कैसे पचास और साठ के दशक में हम फुटबॉल में अच्छे हुआ करते थे। तो अब ऐसा कब होगा?

इस समय देश में क्रिकेट का सीजन चल रहा है। या यूं कहें कि अब तो साल भर चलता ही रहता है। लेकिन टेस्ट सीरीज की चमक के बीच भी फुटबॉल और कबड्डी सरीखे खेल हैं जो लोगों का ध्यान खींच रहे हैं। अहमदाबाद में कबड्डी विश्वकप की धूम है तो गोवा में ब्रिक्स अंडर-17 फुटबॉल टूर्नामेंट का रोमांच। और उधर, मडगांव (गोवा) में दो अक्टूबर को एशियाई फुटबॉल परिसंघ अंडर-16 चैंपियनशिप संपन्न हुई ही है। इतना ही नहीं भारत अगले वर्ष फीफा अंडर-17 विश्वकप की मेजबानी भी करेगा। फुटबॉल की पेशेवर लीग इंडियन सुपर लीग का रोमांच भी जोर पकड़ रहा है। एक साथ फुटबॉल के इतने टूर्नामेंट का आयोजन। क्या फुटबॉल के पुराने दिन लौट आये हैं?

यकीनन नहीं। लेकिन यह जरूर है कि सरकार ने फुटबॉल को उसका खोया हुआ रुतबा वापस दिलाने के लिए कमर जरूर कस ली है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कुछ महीने पहले मन की बात में फुटबॉल को फिर से जन-जन का खेल बनाने का आह्वान किया था। गौरवशाली अतीत को याद करते हुए प्रधानमंत्री ने इस बात पर दुख व्यक्त किया था कि फीफा रैंकिंग में भारत इतने निचले स्थान पर आ गया है कि उनकी बोलने की हिम्मत नहीं हो रही है। पर, अंडर-17 विश्वकप की मेजबानी को एक अवसर मानते हुए उन्होंने देश के नौजवानों से सवाल किया, हम सिर्फ मेजबान बन कर के अपनी जिम्मेवारी पूरी करेंगे? इस पूरे वर्ष फुटबॉल का माहौल बना दें। स्कूलों में, कॉलेजों में, हिन्दुस्तान के हर कोने पर हमारे नौजवान, हमारे स्कूलों के बालक पसीने से तर-बतर हों। चारों तरफ फुटबॉल खेला जा रहा हो। ये अगर करेंगे तो फिर तो मेजबानी का मजा आएगा और इसीलिए हम सब की कोशिश होनी चाहिए कि हम फुटबॉल को गांव-गांव, गली-गली कैसे पहुंचाएं?

फुटबॉल को जन-जन तक पहुंचाने के लिए प्रयास तेज हो गये हैं। अगले वर्ष होने वाले फीफा अंडर-17 विश्वकप को सफल बनाने के लिए केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से फुटबॉल को बढ़ावा देने और लोकप्रिय बनाने के लिए आवश्यक कदम उठाने और सुविधाएं मुहैया कराने का आग्रह किया है। खेल मंत्रालय ने देशभर में फुटबॉल को लोकप्रिय बनाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय फुटबॉल महासंघ, अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ, केंद्रीय विद्यालय संगठन, सुब्रत मुखर्जी स्पोर्ट्स एजुकेशन सोसाइटी और अन्य संगठनों से विचार-विमर्श किया है। 

अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) ने ज्यादा से ज्यादा बच्चे फुटबॉल खेलें इसके लिए 1.1 करोड़ बच्चों (मिशन 11 मिलियन) को फुटबॉल से जोड़ने की महत्वाकांक्षी योजना बनाई है। कोशिश देश भर में फुटबॉल के लिए माहौल बनाना है। वैसे फुटबॉल महासंघ पिछले कुछ वर्ष से एक ग्रासरूट और प्रतिभा खोज कार्यक्रम भी चला रहा है। मिजोरम, मणिपुर, मेघालय और महाराष्ट्र सरीखे राज्यों में इस कार्यक्रम को अच्छी प्रतिक्रिया मिली है, लेकिन जानकारों का आकलन है कि ग्रासरूट प्रोग्राम के नतीजे दो-चार साल में नहीं आते, अच्छे परिणाम के लिए लंबी योजना और रणनीति बनानी पड़ती है। 

दरअसल भारतीय फुटबॉल आज उस जगह पहुंच गया है जहां से उसे अपने गौरवशाली अतीत तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत और लंबा सफर तय करना होगा। गौरतलब है कि 1950 से लेकर 1960 के दशक के प्रारंभ तक एशिया में भारतीय फुटबॉल का अच्छा नाम था। वर्ष 1951 और 1962 में भारत ने एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक भी जीता था। वर्ष 1956 में मेलबर्न ओलंपिक में भारत ने चौथा स्थान हासिल किया था। लेकिन वक्त के साथ भारतीय फुटबॉल का स्तर गिरता गया। रैंकिंग में आज भारत 148वें स्थान पर है। वर्ष 1996 में भारत की रैंकिंग 94वीं थी। हालांकि मार्च 2015 में भारतीय टीम 173वें स्थान तक खिसक गई थी। पर, अब फुटबॉल को लेकर कुछ गंभीर प्रयास दिखने शुरू हुए हैं। अगले साल होने वाले फीफा अंडर 17 विश्वकप की मेजबानी से देश में फुटबॉल के पक्ष में माहौल बनाने में मदद मिलेगी। विश्वकप के बहाने देश में विश्वस्तरीय सुविधाएं और इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने का मौका मिलेगा।

अन्तर्राष्ट्रीय फुटबॉल महासंघ (फीफा) भी चाहता है कि फुटबॉल का सोया शेर फिर जाग उठे। दरअसल फीफा को फुटबॉल का भविष्य भारतीय उपमहाद्वीप में दिखता है। एक आकलन के मुताबिक भारत में आठ करोड़ लोग टेलीविजन पर खेल देखते हैं और इसमें फुटबॉल प्रेमी भी कम नहीं हैं। यह अलग बात है कि वे वर्ल्ड कप और इंग्लिश प्रीमियर लीग से लेकर स्पेनिश लीग में खेलने वाले खिलाड़ियों में अपना नायक तलाशने को विवश रहते हैं। कहने का तात्पर्य यह कि देश में फुटबॉल प्रेमियों की कमी नहीं है। भारत में फुटबॉल का बड़ा बाजार विकसित हो सकता है। ठीक क्रिकेट की तरह।

पिछले दिनों फीफा अध्यक्ष जियानी इनफेनटिनो भारत आये थे। अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ के प्रयासों से वे संतुष्ट दिखे। उन्होंने भी माना कि भारत में फुटबॉल के प्रति जूनून है, खेल का विकास हो रहा है, लेकिन साथ ही एआईएफएफ को ताकीद भी की है कि वह यह सुनिश्चित करे कि खेल का विकास स्थिरता के साथ हो। जियानी इनफेनटिनो कहते हैं, ‘एआईएफएफ जिस मिशन इलेवन मिलियन पर काम कर रही है वह बेजोड़ है। आने वाले वर्षों में इसके नतीजे दिखेंगे।’

इंडियन सुपर लीग के आयोजन से भी देश में फुटबॉल के दिन फिरने की उम्मीद जगी है। इंडियन सुपर लीग का तीसरा संस्करण शुरू हो चुका है। सिर्फ दो आयोजनों में ही इस लीग ने अपनी अच्छी-खासी पहचान बना ली है। फुटबॉल को देश का शीर्ष खेल बनाने और भारतीय फुटबॉल का स्तर सुधारने के लिए रिलायंस इंडस्ट्रीज और आईएमजी ने इस पेशेवर लीग की शुरुआत की। आठ टीमों की इस लीग का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि देश के खिलाड़ियों को अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों के साथ खेलने का मौका मिल रहा है। भारत की राष्ट्रीय फुटबॉल टीम के कोच स्टीफन कोंस्टेनटाइन कहते हैं, ‘अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों की मौजूदगी से भारतीय युवा खिलाड़ियों को काफी कुछ सीखने को मिलता है। कई विदेशी खिलाड़ी और कोच विश्व स्तर तक खेल चुके हैं। उनके अनुभव से भारतीय फुटबॉल को काफी फायदा होगा।’

लीग में खेल रही एटलेटिको डि कोलकाता के मालिकों में एक पूर्व क्रिकेटर सौरव गांगुली लीग के बारे में कहते हैं, ‘समय के साथ सभी टीमें बेहतर हुई हैं, खेल का स्तर बढ़ रहा है और इसीलिए प्रतिस्पर्धा भी बढ़ी है।’ पिछले वर्ष उन्होंने कहा था कि देश में फुटबॉल का स्तर बेहतर करने के लिए एआईएफएफ को बड़ी भूमिका निभानी होगी।

एआईएफएफ प्रतिभा खोज कार्यक्रम से लेकर क्षेत्रीय और उच्च स्तर पर अकादमियां स्थापित करने का काम कर रहा है। प्रबंधन और तकनीकी सहयोग के लिए उसने जर्मन और फ्रेंच फुटबॉल संघ से करार किया है। ‘मिशन इलेवन मिलियन’ बेशक अच्छी पहल है लेकिन बड़ी संख्या में ट्रेनर और अनुभवी कोचों की व्यवस्था करना उसके लिए चुनौती होगी। भारतीय खेल प्राधिकरण और सरकार का उसे पूरा सहयोग मिल रहा है। जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि अंडर-17 विश्व कप एक मौका है। देखना यह है कि फुटबॉल के कर्णधार इसका कितना फायदा उठा पाते हैं। अभी जो भी हो रहा है, इसे शुरुआत की तरह ही देखना चाहिए। लेकिन कम से कम एक ऐसी शुरुआत तो हुई। 

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