जब मैदानों पर हवा में पसीने की बूंदे खुनक भरी हवा सुखाने लगती है, जब सुबह-शाम हल्के गर्म कपड़ों में लिपटे लोग लिहाफ को आखिरी तेज क्वार की धूप में गरमा रहे होते हैं, तब पहाड़ों पर अलग तरह की हलचल शुरू हो जाती है। वहां बर्फ पड़ेगी या नहीं के बजाय बर्फ कितनी पड़ेगी पर शर्त बदी जाती है। गंगोत्री का बर्फीला पानी जमने लगता है, यमुनोत्री मंदिर के सामने की दुकानें सिमटने लगती हैं, बद्रीनाथ में भक्तों की कतारें सिमट जाती हैं और केदारनाथ में बढ़ती ठिठुरन के बीच कपाट बंद होने के मुहुर्त की बाट जोही जाती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि ईश्वर की ‘विंटर वेकेशन्स’ शुरू हो गई हैं। ईश्वर का मतलब तो यही है न जो हर परिस्थिति में आपके साथ रहे, भक्तों को सर्दी में कष्ट न हो इसलिए ईश्वर अपने धामों से चलकर थोड़ा नीचे उतर आते हैं। यही होते हैं, सर्दियों में ईश्वर के चार धाम। जब बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री में बर्फ गिरती है, सर्द हवाएं नाक को लाल कर देती हैं, तब गर्मी के मौसम में कपाट खुलने तक यमुना मंदिर खरसाली गांव, गंगा मंदिर मुखबा गांव, ऊखीमठ में ओंकारेश्वर मंदिर केदारनाथ का ठिकाना और जोशीमठ का नरसिंह मंदिर बद्रीविशाल का घर होता है। सर्दियों के इन घरों में ईश्वर विराजते हैं और अपने भक्तों के लिए वहीं उपलब्ध होते हैं।
इन चारों गद्दी स्थल को देखने का भी अपना अलग आकर्षण है। सर्दियों में जब पहाड़ बर्फ से सफेद हो जाते हैं, झरने जम कर हिमधाराओं में बदल जाते हैं, तब सांझ के वक्त इन गद्दी स्थलों पर होने वाली आरती, हल्की गहमागहमी एक अलग आध्यात्मिक अहसास कराती है। इस मौसम में निरभ्र आकाश से चांद भी इन गद्दी स्थलों के दर्शन के लिए थोड़ा नीचे आ जाता है। न बारिश की बूंदे होती हैं न भीड़ की धकमपेल। बस ईश्वर और आप। आध्यात्म, भक्ति और सत्संग की डोर इन जगहों से आपको जोड़ लेती है।
खरसाली
कुशीमठ मां यमुना का सर्दियों का घर: यमुनोत्री चार धाम यात्रा का शुरुआती विंदु है। ठंड के दौरान मां यमुना खरसाली उतर आती हैं। इसे कुशीमठ भी कहते हैं। यहीं दीपावली पूजन के बाद से पूरी सर्दियों भर मां यमुना रहती हैं। जानकी चट्टी से यहां तक पहुंचने का मार्ग बहुत सुगम है।
जब यहां जा ही रहे हैं तो
भगवान शनि देव का मंदिर भी देखें। यह शनि का बहुत पुराना मंदिर है। शनि देव मां यमुना के भाई हैं। इस मंदिर की वास्तुकला बहुत सुंदर है। लकड़ी के नक्काशीदार खंबे उड़द दाल के मसाले से चिपके बड़े-बड़े पत्थर पर्यटकों को खींचते हैं।
हर्षिल: घाटी के खूबसूरत गांवों में से एक है। इसे जरूर देखें। पास ही गंगनानी के गरम पानी के सोते में नहा कर अपनी थकान मिटा लें।
ऊखीमठ
ओंकारेश्वर मंदिर भगवान केदारनाथ का सर्दियों का घर: रुद्रप्रयाग जिले में ऊखीमठ 1311 मीटर की ऊंचाई पर है और रुद्रप्रयाग से इसकी दूरी 41 किलोमीटर है। सर्दियों के दिनों में उत्सव डोली भगवान केदारनाथ मंदिर से चल कर ऊखीमठ लाई जाती है। इसके बाद भगवान केदारनाथ की पूजा-अर्चना यहीं होती है। जब भगवान अक्षय तृतीया के बाद किसी शुभ मुहूर्त में फिर से अपने धाम लौट जाते हैं तब भी यहां साल भर भोले भंडारी की पूजा होती रहती है।
यहां तक आ ही रहे हैं तो
ऊखीमठ अपने आप में बहुत सुंदर जगह है। यहां आकर आपको एक अलग तरह की शांति की अनुभूति होगी। पास ही गुप्तकाशी है। वहां तक जाएं तो चोपता जरूर देखें। यह भारत का स्विट्जरलैंड है। दूर तक प्राकृतिक लैंड स्केपिंग, हरे-हरे बड़े घास के मैदान, दूर तक नीला आकाश और बीच में बादल के तैरते टुकड़े खुशी की साल भर की खुराक है। यहां से पास ही त्रियुगीनारायण का मंदिर है। कहा जाता है कि यह वही मंदिर है जहां, शिव-पार्वती की शादी हुई थी। बहुत छोटा-सा मंदिर जिसमें आज भी अखंड जोत जल रही है। मान्यता है कि इसी हवन कुंड के इर्द-गिर्द जटाधारी शिव और पार्वती ने फेरे लिए थे।
मुखबा
मुखीमठ गंगा का सर्दियों का घर: मुखबा में मुखीमठ मंदिर सर्दियों में मां गंगा का ठिकाना है। धराली नदी के रिज पर बसा गांव गंगोत्री से गंगा के आने का बेसब्री से इंतजार करता है। संगमरमर से बना मुखीमठ मंदिर गंगा की श्वेत-धवल आभा को परिलक्षित करता है।
जब यहां जा ही रहे हैं तो
उत्तरकाशी, विश्वनाथ मंदिर के दर्शन जरूर करें। यहां भक्ति की शक्ति खुद महसूस होगी।
जोशीमठ
नरसिंह मंदिर बद्रीनारायण का सर्दियों का घर: बद्रीविशाल गगनभेदी जयकारे के साथ पालकी में सवार हो कर नरसिंह मंदिर में पधारते हैं। चटक रंगों वाला यह मंदिर बद्रीविशाल मंदिर का छोटा रूप ही लगता है। माना जाता है कि भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार वाली इस मूर्ति को शंकराचार्य ने स्थापित किया था। यहां मीलों तक फैले औषधीय जंगल भी हैं।
यहां तक आ ही रहे हैं तो
पांडुकेश्वर मंदिर को भी जरूर देखें। उद्धव जी की मूर्ति है जिसे योगध्यान बद्री कहा जाता है। औली, तपोवन, भविष्य और आदि बद्री अपनी ट्रिप में जरूर शामिल करें।
ऐसे करें सफर
कैसे पहुंचें: हरिद्वार देवभूमि का प्रवेश द्वार है। यहां से आप सर्दियों में भी चारधाम यात्रा के लिए आसानी से पहुंच सकते हैं।
हवाई जहाज: देहरादून का जॉली ग्रांट हवाई अड्डा, हरिद्वार से 35 किलोमीटर की दूरी पर है। देहरादून से हेलीकॉप्टर सर्विस भी है।
ट्रेन: सभी बड़े शहरों से हरिद्वार ट्रेन के जरिए जुड़ा हुआ है।
सडक़: हरिद्वार को राष्ट्रीय राजमार्ग 45 दूसरे शहरों से जोड़ता है।