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रोमांच से भरपूर हैं बिहार के पर्यटनस्थल

ऐतिहासिक और आध्यात्मिक स्थलों के लिए विख्यात बिहार में ऐसे पर्यटनस्थल भी हैं जहां आप प्रकृति की गोद में विचरण कर सकते हैं
बराबर की गुफा

रोजमर्रा के तनाव व अवसाद भरे जीवन से कुछ पलों को चुराकर यदि आप सुकून व आनंद के पल गुजारने की सोच रहे हैं तो बिहार में ‘विहार’ करने का प्रोग्राम बना सकते हैं। यहां के कुछ पर्यटनस्थल राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को अपनी ओर बरबस आकर्षित करते हैं। इनमें बोधगया, राजगीर, पावापुरी, केसरिया, वैशाली जहां बौद्ध व जैन धर्मावलंबियों के लिए तीर्थस्थल हैं, वहीं पटना साहिब का तख्त श्री हरमंदिर साहिब सिखों के लिए गौरवशाली स्थल है। नवादा का ककोलत जलप्रपात, बराबर की गुफाएं, मंदार पर्वत की ओर देशी-विदेशी पर्यटक खिंचे चले आते हैं।

पर्यटकों के लिए नवादा का ककोलत जलप्रपात काफी रोमांच भरा है। ककोलत झरना भारत के कुछ बेहतरीन झरनों में से एक है। यह स्थान हरियाली से घिरा हुआ है। पहाड़ी से होकर बहते हुए 160 फीट की ऊंचाई से गिरता पानी रोमांच से भर देता है। इस झरने के आसपास का एक किलोमीटर का क्षेत्र हमेशा शीतलता प्रदान करता है। यहां पहुंचने के लिए वायुमार्ग पटना व रेलवे स्टेशन नवादा है। सड़क मार्ग सभी दिशाओं में है। रोमांच से भरपूर बराबर की गुफाएं हैं जो जहानाबाद जिले में गया से 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। भारत में चट्टानों को काटकर बनायी गयी ये सबसे पुरानी गुफाएं हैं जिनका संबंध मौर्यकाल से है। कुछ में अशोक के शिलालेख देखे जा सकते हैं। ये गुफाएं बराबर और नागार्जुनी की जुड़वां पहाड़ियों में स्थित हैं। बराबर में ज्यादातर गुफाएं दो कक्षों की बनी हैं जिन्हें पूरी तरह से ग्रेनाइट को तराशकर बनाया गया है। बराबर की गुफा जाने के लिए वायुमार्ग गया व रेलवे स्टेशन जहानाबाद और सड़क मार्ग सभी दिशाओं से है।

राजगीर में वैभव पहाड़ी के तल पर स्थित ब्रह्मकुंड के रूप में प्रसिद्ध गरम पानी का झरना है। वसंत के मौसम में गर्मपानी की सप्तधारा, सात नदियों से आती है। ऐसी मान्यता है कि इसमें स्नान करने से चर्मरोगों से छुटकारा मिलता है क्योंकि इसमें औषधीय गुण मौजूद हैं। इसके अलावा राजगीर व उसके आसपास कई और भी मनोरम स्थल हैं। जरासंध का अखाड़ा, अजात शत्रु का किला भी दर्शनीय है। राजगीर की पहाड़ी पर शांति शिवालय के नाम से प्रसिद्ध 400 मीटर का स्तूप है जो सफेद संगमरमर पत्थर से बना है। यहां रोप-वे से जाना काफी रोमांचक लगता है। वैशाली का अशोक स्तंभ भी पर्यटकों में उत्साह भरता है। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपना कर बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को एक खंभे पर उत्कीर्ण करवाकर भगवान बुद्ध के प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित की। इस स्तंभ की ऊंचाई 18.3 मीटर है। स्तंभ के शीर्ष पर एक विशाल चित्र बना हुआ है जो पर्यटकों में रोमांच भरता है। इसके साथ ही वैशाली में रामचुरा, वैशाली संग्रहालय, अवशेष स्तूप व कोरोनेशन टैंक भी देखना दर्शनीय है। राजगीर व वैशाली पहुंचने के लिए सबसे नजदीक वायुमार्ग पटना व रेलवे स्टेशन राजगीर व वैशाली है। सडक़ मार्ग से सभी दिशाओं से यहां पहुंचा जा सकता है।

बिहार के वाल्मीकि नगर राष्ट्रीय उद्यान और भीम बांध के जंगलों में मोर की अच्छी आबादी है। यदि आप राष्ट्रीय पक्षी मोर को देखने का शौक रखते हैं तो यहां के पश्चिम चंपारण के माधोपुर गांव में चले आइए जहां गांव के घरों के छप्पर, वृक्षों व खेतों में मोर के झुंड विचरण करते मिल जाएंगे। लगभग 60 वर्षों से यह गांव देश के राष्ट्रीय पक्षी मोर के संरक्षण का गवाह बना हुआ है। यहां पहुंचने के लिए एयरपोर्ट पटना, रेलवे स्टेशन पं. चंपारण है व सड़क मार्ग सभी दिशाओं से जोड़ता है।

जिन पर्यटकों की ऐतिहासिक धरोहर व शोध में दिलचस्पी है, वे नालंदा विवि के अलावा भागलपुर के विक्रमशिला आ सकते हैं। प्राचीन काल में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ज्ञान का प्रकाशपुंज बिखेरने वाली विक्रमशिला महा विहार की ख्याति नालंदा व तक्षशिला जैसे महा विहारों के समकक्ष थी। इसकी स्थापना 8वीं सदी में पालवंश के शासक धर्मपाल ने की थी। भागलपुर में ही जो पर्यटक गंगा नदी की सैर के साथ डॉल्फिन के करतबों का आनंद लेना चाहते हैं तो सुल्तानगंज से कहलगांव के विक्रमशिला गांगेय डॉल्फिन अभ्यारण्य विहार आ सकते हैं। डॉल्फिन को स्थानीय भाषा में सोस कहा जाता है। यहीं से कुछ किलोमीटर की दूरी पर मंदार पर्वत है जो धार्मिक व पर्यटन की दृष्टि से काफी मनोरम है। यहां तीन धर्मग्रंथों की संगम-स्थली है। मान्यता है कि देवासुर संग्राम के बाद समुद्र मंथन के समय मथनी के रूप में इस पर्वत का इस्तेमाल किया गया था। साथ ही पर्वत के शिखर पर जैन धर्म के 12वें तीर्थंकर भगवान वासूपूज्य की निर्वाण- स्थली है। देश के कोने-कोने से वर्ष भर जैन मतावलंबी व सैलानी यहां आते रहते हैं। गांगेय डॉल्फिन अभ्यायरण्य व मंदार पर्वत आने के लिए वायुमार्ग से पटना व रेलवे स्टेशन भागलपुर तथा सड़क मार्ग सभी दिशाओं से हैं। बौद्ध धर्मावलंबी व ऐतिहासिक स्थलों में दिलचस्पी रखने वाले सैलानियों के लिए केसरिया भी काफी महत्व रखता है। चंपारण से 25 कि.मी. दूर साहेबगंज चकिया मार्ग पर लाल छपरा चौक के पास स्थित यह पुरातात्विक व प्राचीन ऐतिहासिक स्थलों में एक है। यहां वृहत बौद्धकालीन स्तूप है जिसे केसरिया स्तूप के नाम से जाना जाता है। जो गंडक नदी के किनारे बसा हुआ है। सम्राट अशोक ने यहां एक स्तूप का निर्माण करवाया था। इसे विश्व का सबसे बड़ा स्तूप माना जाता है।

यहां गांधी पुस्तकालय भी है, जिसमें गांधी जी से संबंधित अनेक पुस्तकें हैं। वर्ष 1917 में गांधी जी नील की खेती के विरोध में सत्याग्रह करने के लिए चंपारण आए थे। यहां वायुमार्ग से पटना व रेलमार्ग से चकिया व मोतिहारी द्वारा पहुंचा जा सकता है। इसके साथ ही बिहार की राजधानी पटना में तख्त श्री हरमंदिर साहिब रमणीय स्थल है, जिसे सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविन्द सिंह की याद में 1780-1839 में महाराजा रणजीत सिंह ने बनवाया था। इस गुरुद्वारे में गुरु गोविन्द सिंह जी की कई निजी वस्तुएं रखी हुई हैं। यह गुरुद्वारा वास्तुकला में भी बेहतरीन है। इसके सौम्य सफेद गुंबद, घुमावदार सीढ़ियां सैलानियों का मनमोह लेती हैं। मान्यता है कि आनंदपुर साहिब जाने के क्रम में गुरुजी ने अपने प्रारंभिक वर्ष यहां बिताए थे। इस पवित्र स्थल का दौरा गुरु नानक देव व नौवें गुरु श्री तेगबहादुर जी भी कर चुके हैं। गुरुगोविन्द सिंह की तलवार, लोहे की तीर, चकरी व कंधा आज भी यहां सुरक्षित है।

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