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प्रकृति से इतिहास तक की जीवंत झांकी

यूपी में कदम-कदम पर पर्यटन स्थल बिखरे पड़े हैं, इनमें से कुछ को अभी पर्यटकों का इंतजार है
कपिलवस्तु

दुनिया के सात अजूबों में एक ताजमहल का घर उत्तर प्रदेश पूरे विश्व के सैलानियों को अपनी ओर आकृष्ट करता है। अपना पहला संदेश बुद्ध ने सारनाथ में दिया तो वहीं मोक्ष प्राप्ति से लेकर दुनिया के सबसे पुराने जीवंत शहर वाराणसी को देखने की ललक दुनिया के कोने-कोने से पर्यटकों को खींचकर वाराणसी ले आती है।

मथुरा-वृन्दावन: यमुना के 25 घाटों के इस छोटे शहर में न जाने कितने ऐसे सैलानी हैं जो आए और आकर यहीं बस गए। राम, कृष्ण, काशी विश्वनाथ के अलावा बुद्ध की धरती को देखने और महसूस करने तो तमाम पर्यटक आते ही हैं साथ ही उत्तर प्रदेश के कई ऐसे गंतव्य पर्यटकों को आकर्षित कर रहे हैं जो अभी तक प्रचारित व प्रसारित नहीं थे। ऐसी ही एक जगह है कपिलवस्तु। बुद्ध की यह जन्मस्थली और शाक्यों की राजधानी आधुनिक उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर से लगभग 27 किलोमीटर दूर स्थित है। 8वीं शताब्दी ईसा पूर्व के अवशेषों से साक्षात्कार करने यहां पूरी दुनिया के लोग खिंचे चले आते हैं। यह बौद्ध पर्यटन सर्किट का महत्वपूर्ण स्थल है और इसलिए राज्य सरकार इसके विकास के लिए पूरा प्रयास कर रही है।

इसी प्रकार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मेरठ से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर सरधना ईसाई धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण गंतव्य माना जाता है मगर पर्यटकों की भीड़भाड़ से दूर है। ‘बेसिलिका ऑफ आवर लेडी ऑफ ग्रेसेस’ सरधना में रोमन कैथोलिक समुदाय का बेहद प्रसिद्ध चर्च है। खास बात यह है कि वर्जिन मेरी को समर्पित इस चर्च का निर्माण बेगम समरू नामक महिला शासक ने करवाया था। उसने वाल्टर रेनहार्ट सोंबर नामक एक यूरोपीय से शादी की थी। बेगम समरू 1781 ईस्वी में रोमन कैथोलिक धर्म में दीक्षित हो गई थी और उसका नया नाम जोन्ना नोबिल्स रखा गया था। उसने सरधना के इलाके पर 18वीं शताब्दी के अंत और 19वीं शताब्दी के आरंभ में शासन किया था। उसे भारत का एकमात्र कैथोलिक शासक माना जाता है। वैसे माना जाता है कि मेरठ में ही महाभारत काल में कौरवों की राजधानी थी। इतनी समृद्ध विरासत होने के बावजूद सरधना को जैसी प्रसिद्धि मिलनी चाहिए थी वैसी नहीं मिल पाई।

उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में विंध्य पर्वत क्षेत्र में बना विशाल कालिंजर का किला, अपने अंदर सैकड़ों साल का पूरा इतिहास समेटे हुए खड़ा है। आधुनिक बांदा जिले के इस किले पर चंदेल शासकों के अलावा राजपूतों और रीवा के सोलंकी समेत कई राजघरानों का कब्जा रहा है। मध्य कालीन भारत में मुगल बादशाह अकबर ने इस किले को फतह किया था और अपने नौ रत्नों में एक ‘बीरबल’ को भेंट कर दिया था। बाद में पन्ना के छत्रसाल और हरदेव से ब्रिटिश हुकूमत ने 1812 में इसे अपने आधिपत्य में ले लिया था। इस किले का आकर्षण भी पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है। इस किले में स्थित कोटितीर्थ में स्थानीय श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है।

सरधना और कालिंजर के अलावा सोनभद्र में स्थित सलखान फॉसिल पार्क, लगभग 25 हेक्टेयर में फैला हुआ है। खास बात यह है कि यह फॉसिल पार्क अमेरिका के येलो स्टोन नेशनल पार्क से भी काफी पुराना है। इतना ही नहीं यह पार्क येलो स्टोन से तीन गुना बड़ा है। इस क्षेत्र में सर्कुलर स्टोनी फॉरमेशन पर शैवाल के जीवाष्म पाए जाते हैं। भूवैज्ञानिकों के अनुसार यहां पेड़ों के जीवाष्म लगभग 14000 लाख साल पुराने हैं और प्रोटेरोजाइक काल के हैं। इस दुर्लभ पार्क को देखने के लिए ख्यातिलब्ध विदेशी वैज्ञानिक आते रहते हैं। इस जगह को भी पूरी तरह विकसित कर आम पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनाया जा सकता है।

उत्तर प्रदेश में अनछुए या अल्पज्ञात पर्यटन स्थलों की सूची बेहद लंबी है। रामायण के रचयिता वाल्मीकि का आश्रम कानपुर के पास बिठूर में और महाभारत के महान लेखक व्यास का नैमिशारण्य आश्रम सीतापुर के नीमसार मिसरिख में रहा है। बहुतों को याद नहीं होगा कि तीर्थंकर महावीर का जन्म भले ही बिहार में हुआ हो, उनकी असली कर्मस्थली पावापुरी तथा श्रावस्ती रही, जहां उन्होंने लगातार 24 वर्षों तक रहकर जैन धर्म की शिक्षा-दीक्षा दी। प्रदेश के झांसी, रामपुर, पावा, पांचाल, सिद्धार्थनगर, जायस आदि में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं।

 

सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने में जुटी है: सहगल

उत्तर प्रदेश के पर्यटन विभाग के सचिव नवनीत सहगल बताते हैं कि भारत का हृदय क्षेत्र कहा जाने वाले उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत बेहद समृद्ध है। प्रकृति से लेकर इतिहास तक से रूबरू होने के लिए प्रदेश पर्यटकों को भ्रमण का भरपूर मौका मुहैया कराता है। यहां सिर्फ प्रकृति की सुंदरता ही नहीं बल्कि इंसानों द्वारा निर्मित कुछ चुनिंदा भव्य इमारतें भी लोगों को अपनी ओर आकृष्ट करती हैं और ये इमारतें पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने कहा कि सरकार प्रदेश में पर्यटन की अपार संभावनाओं के प्रति सजग है और इसके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने में जुटी है। आगरा से लखनऊ एक्सप्रेस-वे पूरा होने को है और इसके बाद लखनऊ से वाराणसी को एक्सप्रेस-वे के जरिए जोड़ा जाएगा। इससे तीनों ऐतिहासिक शहर एक दूसरे से जुड़ जाएंगे। इतना ही नहीं इस तीव्र गति सड़क मार्ग के आस-पास पड़ने वाले पर्यटन स्थल भी इसके जरिए विकसित किए जा सकेंगे। सरकार इसके अलावा ताजगंज प्रोजेक्ट, मुगल म्यूजियम, गोमती रिवरफ्रंट, इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम, हुसैनाबाद हेरिटेज जोन आदि के जरिए पर्यटन को बढ़ावा देने में जुटी है। राज्य ने उत्तर प्रदेश पर्यटन नीति 2016 भी पेश की है।

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