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झरनों ने बनाया रमणीय

जंगलों के बीच जलप्रपात बने पर्यटकों का आकर्षण
झारखंड के पर्यटन स्‍थल

झारखंड को जंगलों का प्रदेश कहा जाता है और इन्हीं जंगलों के जरिए राज्य सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने में जुटी हुई है। हाल के दिनों में सरकार ने पर्यटन स्थलों पर बेहतर सुविधाएं मुहैया कराने की दिशा में कई कदम भी उठाए हैं। राज्य में केवल एक नागरिक हवाई अड्डा रांची में है, लेकिन पर्यटन स्थलों तक जाने के लिए सड़क परिवहन की बेहतर व्यवस्था है। झारखंड में कई जल प्रपात और वन्य प्राणी अभ्यारण्य तो पूरी दुनिया में चर्चित हैं।

 

सदनी जलप्रपात

रांची के पश्चिमी क्षेत्र यानी गुमला जिला में शंख नदी पर सदनी जलप्रपात है। इसकी धारा 61 मीटर यानी करीब 200 फीट की ऊंचाई से गिरती है।

 

घघरी

झारखंड की रानी के नाम से प्रसिद्ध नेतरहाट से सात किलोमीटर उत्तर में घघरी नदी पर यह जलप्रपात है। यह करीब 42 मीटर (140 फीट) की ऊंचाई से गिरता है। इन जलप्रपात के अलावा झारखंड में कई गर्म जल के झरने भी हैं। संथाल परगना और उत्तरी छोटा नागपुर प्रमंडलों में करीब सात गर्म जल के झरने हैं। हजारीबाग जिले में जीटी रोड पर बड़ाहथा से दो किलोमीटर की दूरी पर घाघी नामक झरना है। यह सर्वाधिक गर्म जल का झरना माना जाता है। यहां का पानी करीब 87 डिग्री से. गर्म होता है। धनबाद में दामोदर नदी से सात किलोमीटर दूर तेतुलिया में गर्म जल का झरना है।

 

सम्मेत शिखरजी

गिरिडीह जिला स्थित पारसनाथ पर्वत झारखंड राज्य की अमूल्य सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक धरोहर है। यह झारखंड का सबसे ऊंचा और सबसे बड़ा पहाड़ है। इसकी ऊंचाई करीब 4500 फीट है। पूरा पहाड़ जंगल से घिरा हुआ है। यहां की प्राकृतिक छटा अद्भुत है। कई ऐसी जड़ी-बूटियों के लिए भी यह पहाड़ प्रसिद्ध है, जो लुप्तप्राय हैं। यह पहाड़ जैन धर्मावलंबियों के लिए पवित्र तीर्थ स्थल है। इस पहाड़ पर जैन धर्म के कुल 24 में से 20 तीर्थंकरों को निर्वाण प्राप्त हुआ था। 23वें तीर्थंकर श्री पाश्र्वनाथ के नाम पर ही पहाड़ का नाम पारसनाथ पड़ा। पहाड़ के शिखर पर बीसों तीर्थंकरों के चरणचिह्न अंकित हैं। इस शिखर को सम्मेत शिखरजी कहा जाता है। सम्मेत शिखर तक की पूरी चढ़ाई नौ किलोमीटर की है। पहाड़ी के नीचे की बस्ती है- मधुबन। यहां बड़ी-बड़ी जैन धर्मशालाएं हैं, जहां ठहरने की नि:शुल्क व्यवस्था है।

मलूटी

दुमका जिले का यह गांव मंदिरों का गांव के रूप में विख्यात है। पश्चिम बंगाल की सीमा पर स्थित दुमका जिला का प्राचीन मलूटी गांव द्वारका नदी के तट पर बसा है। दुमका से करीब 55 किलोमीटर दूर। रामपुर हाट इस गांव का निकटतम रेलवे स्टेशन है। यहां तक दुमका-रामपुर सड़क पर सूरी चुआ नामक स्थान पर बस से उतर कर उत्तर की ओर पांच किलोमीटर की दूरी तय कर पहुंचा जा सकता है। यहां 74 मंदिर जीर्णावस्था में थे। उनमें से 42 मंदिरों के संरक्षण का कार्य पूरा हो चुका है।

 

नेतरहाट

समुद्रतल से करीब 3700 फीट की ऊंचाई पर स्थित नेतरहाट शहर का मौसम साल भर समशीतोष्ण रहता है। वर्षा के मौसम में यहां सिर्फ पानी की बौछारें नहीं बल्कि बादलों के बीच से गुजरता है शहर। यहां का सूर्योदय और सूर्यास्त विशेष आकर्षण का केंद्र है। पर्यटकों के लिए यहां बने टूरिस्ट बंगला और पलामू बंगला से यह नजारा देखा जा सकता है। मुख्य शहर से करीब 10 किलोमीटर दूर मैगनोलिया प्वाइंट है। यह सूर्यास्त के दृश्य को देखने के लिए सबसे उपयुक्त जगह है। नेतरहाट का समूचा क्षेत्र घने जंगलों, ऊंची-नीची पहाड़ियों और नदियों-झरनों से घिरा हुआ है।

 

मैकलुस्कीगंज

रांची से 60 किलोमीटर दक्षिण और खलारी से छह किलोमीटर दक्षिण पूर्ण में है- मैकलुस्कीगंज। यह अपने आप में एंग्लो इंडियन आबादी के इतिहास की जीवन्त गाथा है। यहां जो एक बार आता है, वह यहां सदा के लिए बसने का सपना लेकर आता है। पलामू जिले में डाल्टनगंज से सिर्फ 20 किलोमीटर की दूरी पर बेतला राष्ट्रीय उद्यान है। यह बाघों के लिए सुरक्षित बाग भी है। यह 970 वर्ग किलोमीटर में फैला है। यहां गिनती के हिसाब से 62 बाघ होने के प्रमाण हैं। बाघ के अलावा हाथी, चीता, हिरण, अजगर, भेड़िया और जंगली कुत्ते भी यहां पर हैं।

इसके अलावा भी झारखंड में कई पर्यटन स्थल हैं जो कि आम जनता की निगाहों से दूर हैं लेकिन ये स्थल आने वाले दिनों में रोमांचकारी साबित होंगे। झारखंड सरकार लगातार ऐसे स्थलों का विकास करने में जुटी है।

क्योंकि अब पर्यटक भी पुराने की जगह नए स्थलों पर जाना ज्यादा पसंद करते हैं। इसलिए सरकार का प्रयास है कि नए स्थलों को भी पर्यटन के लिए उपयुक्त बनाया जाए।

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