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असीरगढ़ को सैलानियों की दरकार

असीरगढ़ का किला ऐतिहासिक होने के साथ रहस्यमय भी है
असीरगढ़ का किला

कुदरती सौंदर्य, धार्मिक महत्व के स्थलों और ऐतिहासिक धरोहरों से भरपूर मध्यप्रदेश में अभी भी ऐसे कई स्थान हैं जो पर्यटन सुविधाओं से वंचित हैं। यहां सैलानी किसी तरह पहुंच तो जाते हैं लेकिन वहां उनके रुकने-ठहरने और खाने-पीने के माकूल इंतजाम नहीं हैं। इसमें कोई शक नहीं कि बीते 13 सालों के दौरान भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने प्रदेश के पर्यटन स्थलों पर कई सुविधाएं विकसित की हैं। सतपुड़ा पर्वतमाला पर स्थित पचमढ़ी और तामिया से लेकर महाकाल की नगरी उज्जैन और ओंकारेश्वर जैसे ज्योर्तिलिंगों पर पर्यटन विकास निगम ने शानदार सुविधाएं विकसित की हैं। कान्हा, बांधवगढ़ और पेंच जैसे नेशनल पार्क के आसपास सैलानियों के लिए सुविधाओं की कोई कमी नहीं है। तो इंदिरा सागर बांध, कैरवा बांध, चंबल बांध के आसपास सुविधाएं विकसित की गई हैं। बावजूद इसके प्रदेश के कई ऐसे पर्यटन स्थल हैं जो बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं। मुगल काल में दक्षिणी दरवाजे के रूप में मशहूर बुरहानपुर में स्थित असीरगढ़ का किला इसका जीता जागता नमूना है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित इस किले के इर्दगिर्द कोई पयर्टन सुविधा नहीं है। इस किले को अहीर राजवंश के राजा आसा अहीर ने बनवाया था। सुरक्षा की दृष्टि से अभेद्य माने जाने वाले इस किले पर अकबर ने कब्जा किया था। जब वह दक्षिण भारत में अपने विस्तार की कोशिश कर रहा था तब उसने असीरगढ़ में ही अपना आधार शिविर बनाया था। नर्मदा और ताप्ती नदी की घाटियों के बीच स्थित इस किले में बने महल को मुगल शैली में बनाया गया था। इसमें भारतीय निर्माण शैली के साथ फारसी, इस्लामी और तुर्की शैली की झलक भी मिलती है। इस किले को लेकर अश्वत्थामा की किंवदंतियां भी जुड़ी हैं। ऐसी मान्यता है कि द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण द्वारा शापित अश्वत्थामा आज भी यहां भटकता है। वह इस किले में स्थित मंदिर में अभी भी हर दिन पूजा करने आता है। लेकिन ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व के इस किले की ओर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया है। पर्यटन निगम ने एक होटल बनाया है लेकिन सड़क मार्ग ठीक न होने से वहां कोई नहीं फटकता। किला परिसर में स्थित मस्जिद में कुछ लोग नमाज अदा करने भर जाते हैं।

बुरहानपुर शहर में स्थित खूनी भंडारा भी देखने लायक जगह है। इसे कुंडी भंडारा भी कहा जाता है। लेकिन इसका संबंध खून से नहीं बल्कि शुद्ध पानी से है। मिनरल वॉटर से भी ज्यादा शुद्ध। सतपुड़ा पहाड़ियों से रिस कर सुरंगों में जमा पानी 103 कुंओं या कुंडियों के जरिए बुरहानपुर शहर में सप्लाई होता है। अकबर शासन काल में 1612 में इस भूमि जल भंडारण को खोजा गया तब अकबर के सूबेदार अब्दुल रहीम खानखाना ने पानी की सप्लाई इस स्रोत से की थी। पूरे विश्व में इस तरह की भूमिगत जल वितरण प्रणाली बुरहानपुर के अलावा ईरान में है। बुरहानपुर शहर के 40 हजार से ज्यादा लोगों को इससे पानी की आपूर्ति की जाती है। इस खूनी भंडारा को विश्व धरोहर में शामिल करने के लिए 2007 में यूनेस्को की टीम पहुंची थी लेकिन पहुंच मार्ग के अभाव और छोटी-मोटी खामियों के चलते यह न हो सका। जब प्रवीण गर्ग यहां के कलेक्टर थे तब उन्होंने इस ऐतिहासिक धरोहर को सहेजने के प्रयास किए थे। अब नगर निगम इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का प्रयास कर रहा है। लेकिन सरकार का इसकी ओर ध्यान नहीं है। यदि सरकार चाहे तो महेश्वर, ओंकारेश्वर और नर्मदा बांध पर बने हनुवंतिया टापू के साथ खूनी भंडारा और असीरगढ़ किले को जोडक़र टूरिस्ट सर्किट में शामिल करा सकती है। इसी तरह बुरहानपुर में वह आहूखाना भी उपेक्षित है, जहां मुमताज का शव रखा गया था। मध्यप्रदेश में धार्मिक पर्यटन के लिहाज से उज्जैन, महेश्वर और ओंकारेश्वर काफी विकसित है। देवास में पहाड़ी पर चामुंडा देवी और सतना के पास मैहर में शारदा माता का मंदिर अति विकसित है। लेकिन सागर के पास जंगल में स्थित रानगिर में हरसिद्धी माई के मंदिर के आसपास पर्यटन सुविधाओं का भारी अभाव है। इलाके के विधायक और मंत्री गोपाल भार्गव के प्रयासों से राष्ट्रीय राजमार्ग 26 से सटकर इस मंदिर तक जाने के लिए सड़क तो बन गई है लेकिन वहां ठहरने का कोई इंतजाम नहीं है। भोपाल-सागर मार्ग पर बीना नदी पर स्थित राहतगढ़ वॉटर फाल के हाल भी बेहाल हैं। सागर और दमोह में स्थित वन्य अभयारण्यों में भी पर्यटन सुविधाओं का बेहद अभाव रहा है। जबलपुर, मंडला रोड पर स्थित रानी दुर्गावती की समाधि स्थल को भी विकसित करने के प्रयास नहीं हुए हैं। 

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