ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका दुनिया की पांच उभरती अर्थव्यवस्थाओं का समूह) और बिम्सटेक (बहुक्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बांग्लादेश, भारत, म्यांमार, श्रीलंका और थाइलैंड आदि देशों का समूह) की जो बैठक गोवा में हुई उसका सकारात्मक पक्ष भारत के लिए यह है कि आतंकवाद जैसे मुद्दे पर रूस से बात हो सकी। भले ही इस मुद्दे पर चीन ने कुछ नहीं कहा लेकिन इसका आशय यह नहीं है कि वह आतंकवाद को बढ़ावा देगा। भारत ने जो कूटनीतिक रवैया अपनाया हुआ है उसका सकारात्मक पक्ष यह है कि पड़ोसी देश भारत के साथ खड़े हैं। चीन का जो रुख है उस रुख को समझते हुए भारत को भी कदम उठाना होगा, लेकिन अभी तक ऐसा कोई तथ्य सामने नहीं आया है जिसको लेकर भारत को आक्रामक रुख अपनाना पड़े। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भारत को कई देशों का समर्थन मिला। पाकिस्तान को सार्क सम्मेलन तक रद्द करना पड़ा। सार्क देशों में पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गया। लेकिन बह्मपुत्र नदी के पानी को लेकर जो विवाद हुआ उससे भारत को ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है। क्योंकि इस मुद्दे को इस तरह से पेश किया गया कि भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक किया तो चीन ने भारत का पानी रोक दिया। ऐसा बिल्कुल नहीं है। चीन पहले से ही बांध बना रहा है और वह पानी रोकता रहा है। इस घटना को सर्जिकल स्ट्राइल से जोड़कर देखना गलत है। चीन के सामान का बहिष्कार करो जैसा मुद्दा भी भारत के लोगों को नहीं उछालना चाहिए। क्योंकि अभी इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे मसले पर हमें चीन की जरूरत है और वह सहयोग भी कर रहा है। हां, अगर वह सहयोग नहीं करे तब हमें विचार करना होगा कि आगे की क्या रणनीति है। आज अगर चीन पाकिस्तान के साथ खड़ा है तो इससे हमें घबराने की जरूरत नहीं है। अमेरिका भी कई बार पाकिस्तान के साथ खड़ा हो जाता है। तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह पाकिस्तान का साथ दे रहा है। लेकिन रूस ने पुराने संबंधों का ख्याल रखा और हमारे साथ खड़ा है तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है। चर्चाएं तो इस तरह की हैं कि चीन पर्दे के पीछे काम कर रहा है तो भारत इस बात को अच्छी तरह से समझता है। कब, कहां और क्या करना है यही तो असल रणनीति होती है। भारत के लिए आतंकवाद एक बड़ी समस्या है। लेकिन चीन भी नहीं चाहेगा कि आतंकवाद को बढ़ावा मिले। ऐसे में चीन की चुप्पी को भी सकारात्मक ही लेना चाहिए। हां, अगर चीन कुछ बोलता है तो उसका विश्लेषण करना होगा कि आखिर मंशा क्या है। लेकिन चीन को भी व्यापार करना है और भारत को भी अपना आर्थिक ढांचा मजबूत करना है। ऐसे में दोनों ही देशों को एक-दूसरे की जरूरत है। बिम्सटेक हमारे लिए अच्छा मंच है और भारत को इस मंच का फायदा उठाना चाहिए। इस सम्मेलन का सबसे सकारात्मक पक्ष यह रहा है कि भारत अपने मुद्दे पर तटस्थ रहा और आगे इसका लाभ मिलेगा। संयुक्त राष्ट्र संघ में अजहर मसूद को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करने के लिए भारत जो प्रस्ताव चाहता है उस पर 15 देशों की कमेटी फैसला करती है। लेकिन चीन के रुख का भारत को इंतजार करना होगा। चीन भारत को एनएसजी की सदस्यता मिलने में भी रोड़े अटका रहा है। वह पाकिस्तान के खिलाफ भी कुछ नहीं बोलना चाहता। लेकिन चीन की हर चाल पर नजर रखते हुए भारत को कूटनीतिक रवैया अपनाते हुए अपना पक्ष मजबूती से रखना होगा।
(लेखक भारत के पूर्व विदेश सचिव हैं)
(कुमार पंकज से बातचीत पर आधारित)