छब्बीस वर्षीय बैना बेहरा खुशकिस्मत हैं कि मौत की लपटों को मात देकर जिंदा निकल आये। गत 17 अक्तूबर को भुवनेश्वर के एसयूएम अस्पताल में वे उस समय मौजूद थे जब वहां भयानक आग लगी। वे डायलिसिस कराने गये थे। कक्ष में डॉक्टर उनकी डायलिसिस कर रहा था। बेहरा को अचानक खतरे का अहसास हुआ। डॉक्टर को उन्होंने डायलिसिस रोकने के लिए कहा। इधर-उधर देखा। खतरे को भांपा। समझदारी दिखाई। मदद के लिए पुकारने या इंतजार करने की बजाय, कक्ष का शीशा तोड़ा देखा और पाइप के सहारे सुरक्षित नीचे आ गए। लेकिन डायलिसिस और सघन चिकित्सा कक्ष (आईसीयू) में भर्ती अन्य मरीज इस हालत में नहीं थे कि खतरा भांप पाते। अफरा-तफरी और मदद के लिए चीख-पुकार तो मची लेकिन मदद नहीं आई। सभी बेहरा की तरह खुद जान बचाने का प्रयास भी नहीं कर सकते थे क्योंकि ज्यादातर मरीज जीवन रक्षक प्रणाली पर थे। इस भयावह हादसे में ज्यादातर की मौत धुएं के कारण दम घुटने से हुई। स्वस्थ जीवन की कामना के साथ अस्पताल आए 21 लोग वापस घर नहीं लौट पाए, जबकि 106 लोगों की हालत और बिगड़ गई। जिन लोगों की हालत ज्यादा बिगड़ गई है, उन्हें भुवनेश्वर के अन्य अस्पतालों और कुछ को कटक के अस्पतालों में भर्ती कराना पड़ा है।
अस्पताल के खिलाफ लापरवाही के आरोप में चिकित्सा शिक्षा और प्रशिक्षण निदेशालय के संयुक्त निदेशक उमाकांत सत्पथी और अग्निश्मन अधिकारी बी बी दास ने हादसे के बाद अलग-अलग प्राथमिकियां दर्ज कराईं। प्रशासन ने अस्पताल अधीक्षक समेत चार लोगों को गिरफ्तार भी कर लिया है।
जैसा कि तमाम हादसों के बाद होता है, इस मामले में भी जांच और रिपोर्ट की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। अग्निश्मन विभाग के महानिदेशक विनय बेहरा ने अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी है। बताया जाता है कि रिपोर्ट में कहा गया है कि अस्पताल के अधिकारियों ने आग संबंधी सुरक्षा नियमों का पालन नहीं किया। वर्ष 2013 में इस संबंध में दिशा-निर्देश जारी किये गये थे। हालांकि अस्पताल प्रशासन का दावा है कि सुरक्षा मापदंडों की तीन हफ्ते पहले जांच की गई थी और विद्युत उपकरणों में कोई खामी नजर नहीं आई थी। तो सवाल उठता है कि फिर आग लगने की वजह क्या है?
प्रारंभिक रिपोर्टों में बताया गया कि अस्पताल के पहले तल पर स्थित डायलिसिस वार्ड में इलेक्ट्रिक शॉर्ट सर्किट हुआ जिसकी वजह से आग लगी और बाद में आईसीयू तक फैल गई। पर, जो खबरें छन-छन कर बाहर आ रही हैं उसके मुताबिक आग न तो अचानक लगी और न फैली। खबरों के मुताबिक डायलिसिस कक्ष के बाहर बिजली के एक स्विच में रह-रहकर स्पार्किंग हो रही थी। सूत्रों के मुताबिक रखरखाव विभाग को लगातार सूचना दी गई, लेकिन एक घंटे तक कोई नहीं आया। अंतत: उन्होंने एक
इलेक्ट्रिशियन को भेजा। पर, वह स्विच को ठीक करने में नाकाम रहा। इस समय तक धुआं फैलना शुरू हो गया था। डायलिसिस कक्ष के निकट मेडिसिन स्टोर में केमिकल से जैसे ही आग का संपर्क हुआ, लपटें निकलने लगीं। जल्द ही लपटों ने अगली मंजिल को अपने आगोश में ले लिया और आग नियंत्रण से बाहर हो गई। डायलिसिस यूनिट और आईसीयू आग से घिर गया। चारों तरफ अफरा-तफरी मच गई, जिसे जहां से रास्ता मिला वहीं से जान बचा कर भागा। आईसीयू यूनिट के हालात ज्यादा विकट थे क्योंकि इस कक्ष का एक ही दरवाजा था। घना धुआं भर चुका था। कुछ लोगों ने आईसीयू के दरवाजे का शीशा तोड़ा तो कुछ लोगों को बचाया जा सका।
अस्पताल में आग लगने की यह पहली घटना नहीं है। पांच वर्ष पहले 2011 में कोलकाता के एएमआरआई अस्पताल में भी आग लगने से 85 मरीजों समेत 89 लोगों की जान चली गई थी। सिर्फ अस्पताल ही क्यों कहीं भी आग लगती है तो अकसर शॉर्ट सर्किट या कोई और वजह बता दी जाती है। साफ है हादसों से हमने कोई सबक नहीं लिया है। एक छोटी चिंगारी ही भीषण आग में बदलती है। लेकिन हम चिंगारी को छोटा समझकर नजरंदाज करते हैं और उसकी कीमत निर्दोष लोगों को अपनी जान गंवाकर चुकानी पड़ती है।