भारतीय क्रिकेट के सितारों ने तो न्यू्जीलैंड को परास्त कर टेस्ट क्रिकेट में टीम को नंबर वन की पायदान पर बिठा दिया है, लेकिन बीसीसीआई प्रशासकों की नींद उड़ी हुई है। उन्हें डर है कि पता नहीं किस पल उनके पर कतर दिए जाएं। बीसीसीआई के लंबरदार जस्टिस लोढ़ा के ‘हथौड़े’ से बचने के लिए पूरी तरह हाथ-पांव मार रहे हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने लोढ़ा पैनल की सिफारिशों पर फैसला सुरक्षित रखा है और बीसीसीआई को जवाब दाखिल करने के लिए और समय भी दे दिया है मगर बीसीसीआई को जमकर फटकार भी लगाई है। अदालत ने कहा है कि बीसीसीआई ही बताए कि लोढ़ा कमेटी की सिफारिशें कब तक लागू होंगी। अदालत के ऐसे तीखे तेवरों के बाद बीसीसीआई के ऊंट का पहाड़ के नीचे आना तय है।
लोढ़ा सिफारिशों को लागू करने के मसले पर बीसीसीआई गोल-मोल जवाब दे रही है। सिफारिश लागू करने के लिए बहुमत नहीं होने का हवाला दिया जा रहा है। राज्य क्रिकेट संघों को राजी करने की बात कही जा रही है। बीसीसीआई अधिकारी कोई नया रास्ता निकालने की जुगत में हैं पर राह मिलना मुश्किल है। कुछ समय पहले तक क्रिकेट के 20 साल पीछे चले जाने की बात कहने वाले बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर भी अब कहने लगे हैं कि हम सभी राज्यों से इस बारे में पूछेंगे कि वो सिफारिशें मानने के लिए तैयार हैं या नहीं। सिफारिशों को लागू करने के लिए तीन-चौथाई बहुमत की जरूरत है। बिना इसके हम ऐसा नहीं कर सकते हैं। अनुराग ने यह भी कहा है कि सुप्रीम कोर्ट से सिफारिश लागू करने के लिए और वक्त मांगा गया है।
लोढ़ा समिति की सिफारिश लागू करने की बाध्यता के बाद सबसे पहले शरद पवार ने मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन का अध्यक्ष पद छोड़ने की बात कही थी। दिल्ली जिला एवं क्रिकेट एसोसिएशन ने प्रॉक्सी मतदान को बंद करने का आश्वासन दिया था। लगने लगा था कि बदलाव हो जाएगा, लेकिन इसी बीच राज्य क्रिकेट एसोसिएशनों ने सिफारिशें लागू करने में अड़ंगा डाल दिया। सिर्फ विदर्भ, त्रिपुरा और राजस्थान क्रिकेट संघ ही सिफारिश पर राजी हुए। ठाकुर ने भी आईसीसी चेयरमैन शशांक मनोहर को लपेटे में लेते हुए मामले को गोल-मोल करने की कोशिश की है।
अनुमान है कि 70 से 75 फीसदी सिफारिशें लागू भी हो जाएं, तो भी एक राज्य-एक वोट और एक व्यक्ति -एक पद के नियम को बीसीसीआई कैसे लागू करेगी यह देखना होगा।
एक राज्य-एक वोट और एक व्यक्ति-एक पद के नियमों से क्रिकेट के वर्तमान पदाधिकारियों के हित सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं। बीसीसीआई में अभी महाराष्ट्र और गुजरात में चार और तीन क्रिकेट संघ हैं। सभी बीसीसीआई के पूर्ण सदस्य हैं। एक राज्य-एक मत का सिद्धांत लागू होगा तो महाराष्ट्र से चार एसोसिएशन, क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया, महाराष्ट्र, मुंबई व विदर्भ में से किसी एक का वोट ही मान्य होगा। इसी तरह गुजरात में तीन एसोसिएशनों गुजरात, सौराष्ट्र व बड़ौदा में किसी एक के पास वोटिंग अधिकार रहेगा। आंध्र प्रदेश व हैदराबाद की दो टीमें भी इससे प्रभावित होंगी। इससे सबसे बड़ा अंतर यह आएगा कि बीसीसीआई में लॉबिंग का समीकरण बदल जाएगा। देश में इस समय रणजी ट्राफी में 27 एसोसिएशनों की टीमें हिस्सा लेती हैं। ये 27 टीमें 20 राज्यों से आती हैं, जबकि देश में कुल 31 राज्य हैं। यानी 11 राज्यों का बीसीसीआई में प्रतिनिधित्व ही नहीं है। आरोप है कि बीसीसीआई में अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए इसके वर्तमान आकाओं ने इन 11 राज्यों की एसोसिएशनों को मान्यता नहीं दी है। जाहिर है, इन राज्यों से क्रिकेट की प्रतिभाएं सामने नहीं आ पा रही हैं।
बिहार क्रिकेट संघ पिछले 15 साल से मान्यता पाने के लिए जूझ रहा है। बिहार 1935 से बीसीसीआई का अंग रहा लेकिन वर्ष 2000 में राज्य के विभाजन के बाद बीसीसीआई ने झारखंड की एसोसिएशन को मान्यता दी और बिहार को बाहर का दरवाजा दिखा दिया। पुडुचेरी क्रिकेट संघ 14 साल से मान्यता पाने के लिए जूझ रहा है। उत्तराखंड, सिक्किम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नगालैंड व मणिपुर के क्रिकेट संघों की भी यही स्थिति है। राजस्थान क्रिकेट संघ के चुनाव में ललित मोदी के अध्यक्ष बनने के बाद से उसकी मान्यता रद्द है। जिन राज्यों से राजस्व कम मिलने की उम्मीद हो उसकी टीम को रणजी की मान्यता से दूर रखना तथा एसोसिएशन भी नहीं बनाना बीसीसीआई की मनमानी ही कही जा सकती है।
बीसीसीआई में सभी पदाधिकारियों के कुछ अहम राज्य इकाइयों से किसी न किसी रूप में हित जुड़े हैं। अब इस पर खतरा मंडरा रहा है। लोढ़ा समिति के अनुसार बीसीसीआई का कोई पदाधिकारी राज्य इकाई से संबद्ध नहीं रह सकता। यानी एक व्यक्ति-एक पद। ये सिफारिशें जब लागू होंगी तो बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर और सचिव अजय शिर्के को भी अपने राज्य क्रिकेट संघों हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र में अपने पद छोड़ने होंगे।
बीसीसीआई ने पिछले पांच वर्षों में 2200 करोड़ रुपये राज्यों के क्रिकेट एसोसिएशनों को दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसका हिसाब मांगा है। एक राज्य को साल में 30-35 करोड़ रुपये क्रिकेट विकास के नाम पर बोर्ड देता है। इसमें क्या पारदर्शिता है और क्या जवाबदेही है सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पूछा है। एक व्यक्ति और एक पद तथा एक राज्य और एक वोट की सिफारिशें बीसीसीआई की इसी मनमानी पर अंकुश लगाएंगी। सिफारिशें लागू होने के बाद बीसीसीआई की लॉबिंग और वोट का समीकरण बिगड़ जाएगा।
बीसीसीआई हर साल राज्य इकाई को अनुदान देता है पर उसका हिसाब-किताब नहीं मांगता। वोट की राजनीति की वजह से ऐसा होता है। राज्य इकाई के पदाधिकारी बोर्ड से मिले इस पैसे का अनुचित उपयोग कर लेते हैं। इसे यूं भी समझ सकते हैं कि बोर्ड के पदाधिकारी पहले तो राज्य इकाई को अनुदान देते हैं। चूंकि इसके खर्च का हिसाब-किताब नहीं मांगा जाता इसलिए इसमें से एक हिस्सा बोर्ड के पदाधिकारियों को पिछले दरवाजे से दे दिया जाता है। पैसों के ऐसे अनुचित लेन-देन पर समिति का कहना है कि इस तरह अनुदान का दुरुपयोग करने वाली राज्य इकाइयों की मदद रोक दी जानी चाहिए।
टीवी पर विज्ञापन दिखाने को लेकर बीसीसीआई समिति की सिफारिश का पूरी तरह विरोध कर रही है। वह इसे मानने के लिए बिलकुल तैयार नहीं कि मैच के दौरान केवल इंटरवल में विज्ञापन दिखाया जाए। बोर्ड का कहना है कि प्रसारण अधिकारों के जरिए उसे राजस्व का एक बड़ा हिस्सा मिलता है, जो क्रिकेट के विकास पर खर्च किया जाता है। अगर विज्ञापन दिखाना बंद हो गया तो इससे राजस्व की कमी होगी। इस तरह भारतीय क्रिकेट का विकास प्रभावित होगा। हालांकि सिफारिशें लागू कराने के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाने वाले पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी तथा भाजपा के निलंबित सांसद कीर्ति आजाद का कहना है कि बीसीसीआई गलत कह रही है। उनका सवाल है कि विज्ञापन स्लॉट बेचता कौन है? बोर्ड अपने हिसाब से स्लॉट बेचता है। लोकप्रियता के आधार पर बोर्ड जो स्लॉट निर्धारित करेगा, उस स्लॉट पर बिक्री होगी। इससे बीसीसीआई को कोई घाटा नहीं होगा। आईपीएल को तो इस सिफारिश से बाहर रखा गया है, बोर्ड चाहे तो आईपीएल के प्रसारण अपने हिसाब से बेचकर राजस्व पा सकता है। आजाद के अनुसार पदाधिकारी बोर्ड को सोसाइटी बताते हैं और उसको मनमाने ढंग से चला रहे हैं। बीसीसीआई सोसाइटी होने का हवाला देकर सिफारिशों को लागू करने से बच नहीं सकता। बीसीसीआई ने तो हमेशा किसी भी सरकारी नियम को मानने से साफ इनकार किया है।
लोढ़ा समिति के अनुसार किसी राज्य इकाई का पदाधिकारी अगर बीसीसीआई की जनरल बॉडी में चुना जाता है तो उसे राज्य इकाई का पद छोड़ना होगा। आजाद का कहना है कि अनुराग ठाकुर पिछले सोलह साल से हिमाचल प्रदेश क्रिकेट संघ के अध्यक्ष हैं। संयुक्त सचिव अमिताभ चौधरी 2002 से झारखंड क्रिकेट संघ के कर्ताधर्ता हैं। कोषाध्यक्ष अनिरुद्ध चौधरी हरियाणा क्रिकेट संघ में सचिव का पद भी संभाले हुए हैं। इन सभी को राज्यों में अपना पद छोड़ना होगा। आजाद कहते हैं कि हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन में हुए 142 करोड़ के घोटाले पर एसीबी की जांच चल रही है। गोवा में 3 करोड़ की गड़बड़ी पर कार्रवाई हुई है। इसी तरह दिल्ली एसोसिएशन में 300 करोड़ का घोटाला हुआ है। सिफारिशें लागू होने के साथ इन सभी घोटालों में दोषियों को सजा भी होनी चाहिए। तभी पारदर्शिता आएगी।
एक व्यक्ति-एक पद के नियम से ये बड़े नाम होंगे प्रभावित
अनुराग ठाकुर:- बीसीसीआई प्रेसीडेंट, हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के प्रेसीडेंट
सौरव गांगुली:- बीसीसीआई टेक्निकल कमेटी के चेयरमैन, प्रेसीडेंट क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल
अजय शिर्के:- बीसीसीआई सचिव, महाराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन के प्रेसीडेंट
अनिरुद्ध चौधरी:- बीसीसीआई कोषाध्यक्ष, सचिव हरियाणा क्रिकेट एसोसिएशन
अमिताभ चौधरी:- संयुक्त सचिव बीसीसीआई, प्रेसीडेंट झारखंड क्रिकेट एसोसिएशन
राजीव शुक्ला:- आईपीएल चेयरमैन, प्रेसीडेंट उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन