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मिशन मधुमेह की तैयारी में आयुर्वेद

मगर आयुष मंत्रालय के बजट में पांच वर्षों से बढ़ोतरी नहीं होना इस लक्ष्य में खड़ी कर सकता है मुश्किलें
वर्ल्ड आयुर्वेद कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

भारत की पारंपरिक चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद को लेकर हाल के दिनों में लोगों में आकर्षण बढ़ा है। ऐसी बीमारियां जिनमें ऐलोपैथी चिकित्सा भी हार मान लेती है उनके इलाज के लिए धीरे-धीरे लोग अब आयुर्वेद की ओर मुड़ने लगे हैं। हालत यह है कि विदेशों से लोग बड़ी संख्या में आयुर्वेदिक चिकित्सा के लिए भारत आने लगे हैं मगर देश में अब भी इसे वैकल्पिक चिकित्सापद्धति ही माना जाता है। भारत जैसे देश में जो आयुर्वेद का जनक है यह स्थिति निश्चित रूप से दुखद ही कही जा सकती है। ऐसे में मोदी सरकार ने साल में एक दिन आयुर्वेद दिवस मनाने का फैसला किया है और इसके लिए धन्वंतरि जयंती का दिन चुना गया है। इस वर्ष यह दिन 28 अक्टूबर को मनाया जाएगा। दीपावली से दो दिन पहले यानी धनतेरस को ही धन्वंतरि जयंती मनाई जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान देवताओं के वैद्य धन्वंतरि आयुर्वेद का ज्ञान लेकर प्रकट हुए थे। इसलिए धन्वंतरि जयंती के दिन आयुर्वेद के सभी वैद्य भगवान धन्वंतरि की पूजा करते हैं।

इसे देखते हुए अब भारत सरकार ने भी इस दिन को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने की घोषणा कर दी है। भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के सचिव अजीत शरण ने आउटलुक से बातचीत में कहा कि केंद्र सरकार भारतीय चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा देने के लिए पूरा प्रयास कर रही है और इसी के तहत यह पहल की जा रही है। उन्होंने कहा कि सरकार इस दिन को महज रस्मी तौर पर नहीं मनाना चाहती इसलिए पूरे देश में इस मौके पर बड़े कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे और इसमें आयुर्वेद से जुड़े सभी लोगों के शिरकत करने की अपेक्षा सरकार कर रही है। आयुष सचिव के अनुसार देश के 350 से अधिक आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेजों, प्राथमिक, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों समेत जिला आयुर्वेद अस्पतालों एवं फार्मास्यूटिकल कंपनियों तथा अन्य महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों पर इस दिन सेमिनार, गोष्ठियां, प्रदर्शनी तथा अन्य कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इनमें सबसे बड़ा कार्यक्रम देश की राजधानी दिल्ली में होगा जहां देश और दुनिया के बड़े आयुर्वेद विशेषज्ञों के अलावा दूसरे क्षेत्रों से जुड़े लोग भी शिरकत करेंगे। आयुष मंत्री श्रीपद नाईक इस कार्यक्रम में शिरकत करेंगे। अजीत शरण बताते हैं कि इन कार्यक्रमों की थीम ‘मधुमेह के नियंत्रण और बचाव के लिए आयुर्वेद’ रखा गया है। उन्होंने कहा कि इस वर्ष योग दिवस के दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मधुमेह के खिलाफ देश को आगाह करते हुए इससे बचाव और नियंत्रण के लिए प्रयास करने का आह्वान किया था। इसी को ध्यान में रखते हुए आयुष मंत्रालय ने राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस की थीम मधुमेह को ही रखने का फैसला किया। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य यही है कि मधुमेह पर प्रभावी नियंत्रण के लिए योग और आयुर्वेद की भूमिका सबके सामने आए और आयुर्वेद के विशेषज्ञ लोगों को यह जानकारी दें कि भारतीय चिकित्सा पद्धति और योग मिलकर इस घातक बीमारी से पार पा सकते हैं। इसे रस्मी कार्यक्रम बनाने से बचाने के लिए यह भी तय किया गया है कि आयुर्वेद के तहत पूरे साल भर देश में ‘मिशन मधुमेह’ चलाया जाएगा।

गौरतलब है कि मधुमेह यानी डायबिटीज पूरी दुनिया में तेजी से फैलने वाली बीमारी बन गई है और भारत में भी करीब 5 करोड़ लोग इससे पीड़ित हैं। मधुमेह रोगियों की इतनी बड़ी संख्या के कारण भारत को मधुमेह राजधानी भी कहा जाता है। मधुमेह के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस बीमारी का आधुनिक चिकित्सा पद्धति यानी एलोपैथी में कोई इलाज नहीं है। एलोपैथी दवाओं से इसपर नियंत्रण किया जा सकता है मगर पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता।

अखिल भारतीय आयुर्वेद सम्मेलन के अध्यक्ष और दिल्ली के जाने-माने वैद्य देवेन्द्र त्रिगुणा कहते हैं कि मिशन मधुमेह के तहत हम पूरे देश में इस बीमारी को लेकर एक नव जागरण-सा शुरू करने की तैयारी कर रहे हैं। हमें यह समझना होगा कि यह जीवन शैली से जुड़ी बीमारी है और इसे काबू करने के लिए जीवनशैली में ही बदलाव लाने होंगे। इसके लिए दो तरफा तरीका अपनाने की तैयारी है। अगले पूरे एक वर्ष तक एक ओर हम जिले के स्तर तक आम लोगों को मधुमेह के बारे में जागरूक करेंगे तो दूसरी ओर देश भर के वैद्यों को भी यह जानकारी दी जाएगी कि इस बीमारी से निपटने के लिए उन्हें क्या-क्या दवाएं इस्तेमाल करनी है और किस तरह करनी है। अभी हालत यह है कि आयुर्वेदिक चिकित्सकों को ही इस बारे में पूरी जानकारी नहीं है। इस मिशन के तहत जगह-जगह कैंप लगाकर पैंपलेट, प्रचार सामग्री अन्य तरीकों से अभियान चलाया जाएगा।

हालांकि वैद्य त्रिगुणा कहते हैं कि इस मिशन में हम तो पूरे जी-जान से जुटने वाले हैं मगर सरकार को यह समझना होगा कि पिछले पांच वर्षों से आयुष मंत्रालय के बजट में एक पैसे की भी बढ़ोतरी नहीं होने से भारतीय चिकित्सा पद्धतियों का विकास संभव ही नहीं है। एक ओर देश के स्वास्थ्य मंत्रालय का बजट 30 हजार करोड़ रुपये और दूसरी ओर आयुष का बजट सिर्फ 1000 करोड़ रुपये। इससे आयुर्वेद का भला कैसे होगा? उन्होंने कहा कि हमारी मांग है कि कम से कम स्वास्थ्य मंत्रालय के बजट का 20 फीसदी तो आयुष को मिलना ही चाहिए और उसमें भी बड़ा हिस्सा आयुर्वेद पर खर्च होना चाहिए तब हम स्थिति बदलने की सोच सकते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार पिछले कई साल से दिल्ली में आयुर्वेद का एम्स बना रही है जो अगले कुछ महीनों में पूरी तरह चालू होगा मगर देश में ऐसे कम से कम चार-पांच और एम्स खोले जाने की जरूरत है। वैद्य त्रिगुणा कहते हैं कि आयुर्वेदिक कॉलेजों की स्थिति भी खराब है और सरकार को चाहिए कि सरकारी कॉलेजों की हालत सुधारे। इन कॉलेजों में दाखिले के लिए भी अलग से पूरे देश में एक समान प्रवेश परीक्षा हो ताकि ऐसे छात्र ही उसमें आएं जो आयुर्वेद सच में पढ़ना चाहते हैं। अभी तो यह हालत है कि पहले बच्चे एमबीबीएस के लिए प्रयास करते हैं, उसके बाद डेंटल के लिए और अंत में जब कहीं जगह नहीं मिलती तो आयुर्वेद में आते हैं। उन्होंने यह मांग भी की कि इसकी पढ़ाई संस्कृत में होनी चाहिए क्योंकि इसके तमाम ग्रंथ संस्कृत में ही हैं।

वैसे तमाम शिकायतों के बावजूद आयुर्वेद तेजी से बढ़ रहा है इसमें कोई शक नहीं है। दिल्ली के मूलचंद अस्पताल के आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉक्टर श्री विशाल त्रिपाठी बताते हैं कि उनके पास गंभीर रोगों के भी मरीज देश तो छोड़िए विदेशों से भी आ रहे हैं। फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया से कई मरीज नियमित रूप से आयुर्वेदिक उपचार के लिए उनके पास आते हैं। इनके अलावा अमेरिका, ब्रिटेन आदि से भी मरीज आयुर्वेदिक उपचार के लिए आते हैं।

इस बात की पुष्टि दक्षिण भारत में ईशा रिजुवेनेशन सेंटर में जुटने वाली विदेशियों की भीड़ से भी होती है। दक्षिण भारत के आध्यात्मिक संत सद्गुरु जग्गी वासुदेव के नेतृत्व वाले ईशा फाउंडेशन द्वारा संचालित इस केंद्र में कई देशों के लोग अपनी समस्याएं लेकर आते हैं। इस सेंटर की खासियत यह है कि यहां आयुर्वेद और योग को मिलाकर शरीर के कायाकल्प के तरीके तैयार किए गए हैं जिससे कई प्रकार की गंभीर समस्याओं से ग्रस्त लोग भी पूरी तरह ठीक होकर यहां से जाते हैं।

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