दिवाली में अभी कुछ दिन शेष हैं, लेकिन बाजार में चहल-पहल चरम पर है। टीवी, मोबाइल से लेकर रेफ्रीजरेटर, वाशिंग मशीन तक और बाइक से लेकर कार तक की कीमतों की तुलना के बाद खरीदारों के आर्डर आने शुरू हो चुके हैं। ग्राहकों के मूड को भांप कारोबारियों के चेहरे भी खिल उठे हैं। माना जा रहा है कि उद्योग जगत और कारोबारियों के लिए इस बार दिवाली खास रहेगी। हाल ही में आए एसोचैम के सर्वे की मानें तो इस बार उपभोक्ता दिवाली के मौके पर 40 फीसदी ज्यादा खर्च करने का मन बनाए हुए हैं।
हालांकि कन्फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल आंकड़ों में बात नहीं करते, लेकिन वह भी मानते हैं कि इस बार का त्योहारी मौसम कारोबार के लिहाज से काफी बेहतर रहेगा। वह कहते हैं, ‘ग्राहक इस बार अच्छी खरीदारी के मूड में दिखाई दे रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों से भी अच्छी मांग आ रही है।’
बाजार के जानकारों का मानना है कि कारोबार के लिहाज से इस बार का त्योहारी मौसम पिछले तीन-चार वर्षों में सबसे बेहतर रहेगा। दरअसल इस आशावाद की वजह है नवरात्रि, दुर्गा पूजा और पिछले महीने गणेश चतुर्थी के मौके पर बाजार में उपभोक्ताओं का उमड़ना। देश के अलग-अलग हिस्सों में पिछले एक-डेढ़ माह में बिक्री के जो आंकड़े आए हैं, उससे यह धारणा बलवती हो गई है कि उत्तर भारत में दिवाली के मौके पर उपभोक्ता इस बार खरीद करने से हिचकेंगे नहीं। प्रवीण खंडेलवाल कहते हैं, ‘देखने में यही आया है कि पूरे देश में उपभोक्ताओं का रुझान एक जैसा रहता है।’
ऑनलाइन सामान बेचने वाली कंपनी फ्लिपकार्ट ने महीने के शुरू में एक दिन में 1400 करोड़ रुपये की बिक्री का नया रिकार्ड बनाया। स्नैपडील और अमेजन सरीखी अन्य ऑनलाइन कंपनियों की भी अच्छी-खासी बिक्री रही। माना जा रहा है कि वर्ष 2015 की तुलना में इस बार ऑनलाइन बिक्री में पचास फीसदी तक की बढ़ोतरी देखी जा सकती है। जानकारों के मुताबिक इस त्योहारी मौसम में ऑनलाइन बिक्री 12 हजार करोड़ रुपये के आंकड़ें को छू सकती है।
सिर्फ ऑनलाइन बिक्री के ही नए रिकार्ड बन रहे हों, ऐसा नहीं है। कारों की बिक्री में भी नए रिकार्ड बन रहे हैं। सितंबर महीने में कारों की बिक्री चार वर्ष की ऊंचाई पर रही। अक्तूबर के पहले पखवाड़े में नवरात्रि के दौरान देश के अलग-अलग हिस्सों से कारों की अच्छी-खासी बिक्री की खबरें आती रहीं। दुपहिया वाहनों की बिक्री में भी जबरदस्त बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। बढ़ती बिक्री को देख वाहन विनिर्माताओं के संगठन सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्यूफैक्चरर्स (सियाम) का आकलन है कि इस वित्त वर्ष में यात्री वाहनों का आंकड़ा 30 लाख के पार जाने की उम्मीद है। ऐसी स्थिति में भारत यात्री वाहन बनाने वाले देशों में चौथे स्थान पर आ सकता है। अभी 30 लाख के आंकड़े के साथ जर्मनी चौथे स्थान पर है। चीन, अमेरिका और जापान पहले तीन स्थानों पर हैं।
वाहनों की बिक्री में उछाल की मोटी वजह अच्छा मानसून, मुद्रास्फीति और ब्याज दरों में कमी मानी जा रही है। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने से भी बिक्री को बल मिला है। ग्रामीण इलाकों में यूं तो छोटी कारों की मांग ज्यादा है लेकिन बड़ी कारों की मांग भी आ रही है। डीलर अपने स्तर पर कुछ गिफ्ट भी दे रहे हैं। सियाम के उपमहानिदेशक सुगातो सेन कहते हैं अर्थव्यस्था में मजबूती का असर ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में दिखाई दे रहा है।
वाहन डीलरों के मुताबिक कार और दोपहिया वाहनों की बिक्री में उछाल का असर दिवाली पर भी दिखाई देगा क्योंकि लोगों ने कई दिन पहले से गाड़ियां बुक करानी शुरू करा दी हैं। अर्धशहरी और ग्रामीण इलाकों में स्कूटर और मोटरसाइकिल की बिक्री नए आंकड़े छू सकती है।
त्योहारी मौसम में कुछ ऐसे की उम्मीद टिकाऊ वस्तुएं (कंज्युमर ड्युरेबल्स) और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बनाने वाली कंपनियां भी कर रही हैं। एलजी, पैनासॉनिक, सैमसंग, सोनी, वीडियोकॉन, गोदरेज एपलायंसेज सरीखी कंपनियां बिक्री में 25-30 फीसदी के उछाल की उम्मीद कर रही हैं। टिकाऊ वस्तुएं बनाने वाली कंपनियों के लिए त्योहारी मौसम कितना अहम है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी वर्ष भर की बिक्री की लगभग एक तिहाई बिक्री इसी मौसम में होती है। ग्राहकों को लुभाने के लिए इस इंडस्ट्री की तमाम कंपनियों ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है। नए उत्पादों की लांचिंग, मार्केटिंग और एडवर्टाइजिंग तो अपनी जगह है, ग्राहकों को अपनी ओर खींचने के लिए कंपनियां गिफ्ट, कैशबैक, डिस्काउंट, आसान ईएमआई और एक्सचेंज ऑफर सरीखी स्कीम के साथ मैदान में हैं। एसोचैम के एक सर्वे के मुताबिक ग्रामीण और अर्धशहरी इलाकों में कंज्युमर ड्युरेबल्स की मांग बढ़ रही है। अच्छे मॉनसून, बेहतर फसल और ब्याज दरों में शुरू हुए कटौती के दौर को देखते हुए कंपनियां बिक्री में 25 से 35 फीसदी की बढ़ोतरी की उम्मीद कर रही हैं। जानकारों के मुताबिक इस बार भी मोबाइल्स और टीवी की बिक्री शीर्ष पर रहने की उम्मीद है। एसोचैम के सर्वे के मुताबिक उपभोक्ता मोबाइल पर इस बार 15 से 35 हजार रुपये खर्च करने का मन बना चुके हैं। उपभोक्ताओं के बीच किये गये इसी सर्वे के मुताबिक मध्यम और उच्च मध्यम आय वर्ग वाले, इस त्योहारी मौसम में 10 हजार रुपये से 25 हजार रुपये तक खर्च करने की योजना बना रहे हैं और ज्यादातर की लिस्ट में मोबाइल, एलईडी टीवी व लैपटॉप सरीखे इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स हैं।
दिवाली पर नए कपड़े और ज्वैलरी का कारोबार भी जगमग रहने के संकेत हैं। जानकारों का मानना है कि नए डिजाइन के लेकिन सस्ते कपड़ों का जलवा इस बार भी बरकरार रहेगा। हां, यह अलग बात है कि महानगरों में इस बार खरीदारी ऑनलाइन ज्यादा हो। रही बात सोने-चांदी की तो उपभोक्ता परंपरागत दुकानों का रुख करते नजर आएंगे। वैसे भी सोना संकट का साथी माना जाता है। फिर इस साल तो सोना शेयरों से दोगुना रिटर्न देने में कामयाब रहा है। सोने ने पिछले दस माह में लगभग 18-20 फीसदी का रिटर्न दिया है। वैसे भी सोने-चांदी के कारोबारियों का मौसम तो दिवाली से शुरू होता है। दिवाली के चंद दिन बाद ही ब्याह-शादियों का मौसम शुरू हो जाएगा। युवाओं की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अगले कुछ महीनों में शादी के बंधन में बंधेगा। ज्वैलर्स की साल भर की बिक्री की 50 फीसदी से ज्यादा इसी मौसम (त्योहार और शादी-ब्याह) में होती है।
ऑनलाइन कंपनियों की दिन-दूनी, रात-चौगुनी बिक्री के आंकड़ों के बीच सभी क्षेत्रों की कमाई होगी, ऐसा नहीं है। रियल एस्टेट की हालत पर कोई फर्क पड़ता नहीं दिख रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में दुकानदारी के परंपरागत तरीके का ही बोलबाला रहेगा लेकिन महानगरों में छोटे दुकानदारों के लिए पहले जैसी बात नहीं दिखती। नई दिल्ली के रोहिणी में एक शो रूम के मालिक के.सी. गुप्ता कहते हैं, ‘बाजार सजे हुए हैं, लोगों का आना-जाना भी चल रहा है, लेकिन असली ग्राहक गायब हैं।’
चीनी सामान बेचने वाले छोटे और बड़े दुकानदारों को इस बार झटका लग सकता है। आयातकों ने सामान तो आयात कर लिया लेकिन खुदरा व्यापारी ज्यादा सामान नहीं उठा रहे हैं। कैट के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल कहते हैं, ‘संकेत है कि पिछले वर्ष की तुलना में इस बार खुदरा व्यापारियों ने 30 फीसदी कम चीनी सामान उठाया है।’
पिछले दो वर्षों की तुलना में कारोबार बेशक अच्छे रहने के संकेत हैं, लेकिन बिक्री में कितना उछाल आया यह ऑनलाइन सेल्स के आंकड़ों से आंकना ठीक नहीं होगा। ऑनलाइन सेल्स आज भी कुल खुदरा कारोबार का छोटा-सा हिस्सा मात्र है।