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‘उत्तर’ के फैसले से बनेगा नया राष्ट्रपति

राष्ट्रपति चुनाव के लिए यूपी के नतीजे अहम होने वाले हैं, भाजपा की पसंद को रोकने के लिए विपक्ष कोई सर्वमान्य नाम सामने ला सकता है
राष्ट्रपति पद के लिए शरद यादव सभी पार्टियों को मंजूर हो सकते हैं

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव इस बार संपूर्ण भारत के लिए निर्णायक राजनीतिक दशा तय करने वाला है। समाजवादी पार्टी, भाजपा, बसपा, कांगे्रस के सत्ता एवं प्रतिपक्ष में पहुंचने से अधिक महत्वपूर्ण उ.प्र. में बहुमत वाले विधायकों के बल पर 2017 में नए राष्ट्रपति का चुनाव निर्भर होगा। यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी या उसकी विरोधी पार्टियों के प्रस्तावित महागठबंधन के प्रमुख नेता पिछले सप्ताहों के दौरान बंद कमरों में रणनीति पर मंत्रणा में लगे हुए हैं। सामान्यत: लोग संसद और विधानसभाओं के चुनाव एवं परिणामों पर अधिक ध्यान देते हैं। लेकिन अपने राष्ट्रपति के कुछ चुनाव कांटेदार और ऐतिहासिक रहे हैं। एक चुनाव में तो कांग्रेस पार्टी ही विभाजित हो गई और इंदिरा गांधी के समर्थन से खड़े उम्मीदवार वी.वी. गिरि ने आधिकारिक कांगे्रस प्रत्याशी नीलम संजीव रेड्डी को ही पराजित कर दिया। पिछले 2012 के राष्ट्रपति चुनाव में भी अंतिम क्षणों में मुलायम सिंह यादव और ममता बनर्जी के निर्णय से प्रणव मुखर्जी का राष्ट्रपति बन पाना संभव हुआ। अब 2017 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी फिलहाल अपने बल पर पसंदीदा उम्मीदवार को विजयी नहीं बना सकती है। इसी तरह समाजवादी, जनता दल (यू), कांगे्रस तथा कम्युनिस्ट पार्टियों तथा अन्य क्षेत्रीय दलों को यदि गैर भाजपा उम्मीदवार को सफल बनाने का प्रयास करना है, तो एकजुट होकर उत्तर प्रदेश और पंजाब में अधिकाधिक सीटें जिताने की कोशिश करनी होगी। भाजपा एवं उसके विरुद्ध बन रहे गठबंधन को असल में 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद कोई स्पष्ट बहुमत न होने पर सरकार गठन के न्यौते के लिए राष्ट्रपति भवन में कोई ‘अपना’ अनुकूल नेता होना आवश्यक लग रहा है। मतलब, उ.प्र. और पंजाब से बनने वाले विजय पथ से भारत का राजनीतिक भविष्य जुड़ा है।
राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया में अभी कुछ महीने हैं। वहीं भाजपा में राष्ट्रपति पद के लिए संभावित नामों की संख्या अच्छी खासी है। यों बहुत कुछ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इच्छा और भावी रणनीति पर निर्भर होगा, लेकिन भाजपा को राष्ट्रपति के लिए निर्धारित 10 लाख 98 हजार वोट में से 5 लाख 49 हजार से कुछ अधिक का इंतजाम करना होगा। उसे वर्तमान गठबंधन सरकार में शामिल सहयोगी दलों के अलावा भी अन्य दलों का सहयोग लेना होगा। इसके अलावा पिछले कुछ चुनावों की तरह सत्तारूढ़ गठबंधन और प्रतिपक्ष के बीच स्वीकार्य उम्मीदवार पर भी तूफानी प्रयास करने होंगे।
राष्ट्रपति चुनाव में अनुकूल नेता की आवश्यकता इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि सीमित अधिकारों के बावजूद सत्तारूढ़ प्रधानमंत्री की सरकार के बड़े निर्णयों एवं विधेयकों को लंबी अवधि तक रोके रखने, असहमति व्यक्त करने एवं दो बार वापस करने तक के अधिकार राष्ट्रपति के पास होते हैं। जहां तक मतभिन्नता की बात है, डॉ. राजेंद्र प्रसाद-जहवाहरलाल नेहरू के कुछ वैचारिक मतभेद रहे लेकिन व्यक्तिगत संबंध बहुत अच्छे थे। सबसे दिलचस्प मतभेद नीलम संजीव रेड्डी के कार्यकाल में रहे। रेड्डी के पांच वर्ष के सत्ताकाल में मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह और इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री रहीं। रेड्डी को मोरारजी भाई और चौधरीजी ने ही सर्वानुमति से राष्ट्रपति बनवाया था, लेकिन कई मुद्दों पर उनसे टकराव रहा और इंदिरा गांधी से तो पुराना राजनीतिक बैर था। इसलिए मतभेद, टकराव होते रहे। इसी तरह इंदिरा गांधी की कृपा से सर्वोच्च पद पाने वाले ज्ञानी जैल सिंह 1984 के बाद विद्रोही मूड में आए और राजीव गांधी से एक बार तो इतना नाराज हो गए थे कि भारी बहुमत के बावजूद राजीव गांधी को प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त करने के लिए मंत्रणा करने लगे। मतलब, स्पष्ट बहुमत न होने पर किसी भी नेता को केंद्र में सरकार बनाने का निमंत्रण देने या प्रधानमंत्री अथवा उसके किसी मंत्री को बर्खास्त करने का बेहद धारदार संवैधानिक अधिकार राष्ट्रपति के पास रहता है। 1996 से 2004 के बीच के.आर. नारायणन एवं. डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के सामने ऐसे अवसर आए, जब कांगे्रस या गैर कांगे्रस गठबंधन के नेताओं को बहुमत साबित करने के अवसर देने के फैसले करने पड़े। अटल बिहारी वाजपेयी, इंद्र कुमार गुजराल, देवेगौड़ा के प्रधानमंत्री बनने के निर्णय राष्ट्रपति को करने पड़े। उसी अवधि में सोनिया गांधी या मुलायम सिंह यादव के प्रधानमंत्री बनने की बात अंतिम क्षणों तक चली, लेकिन संभव नहीं हुआ।
इस पृष्ठभूमि में 2017 में गैर भाजपा गठबंधन को अपने पसंदीदा उम्मीदवार के लिए अधिक शक्ति लगानी होगी। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और पंजाब के वोट बेहद निर्णायक माने जा रहे हैं। इस महागठबंधन के प्रारंभिक दौर में सर्वाधिक वजनदार नाम जे.पी. आंदोलन से उपजे अनुभवी नेता शरद यादव का सामने आ रहा है। शरद यादव 1974 में जेल से जबलपुर में कांगे्रस के विरुद्ध चुनाव लड़कर विजयी हुए थे और तबसे प्रतिपक्ष की राजनीति में अहम भूमिका निभाते रहे हैं। जनता पार्टी, लोकदल, जनता दल, संयुक्त मोर्चा, जनता दल (यू) के विभिन्न प्रदेशों के नेताओं के साथ 1977 से 2004 तक भारतीय जनसंघ-भाजपा के साथ भी उनके संबंध रहे। बिहार में जद (यू) भाजपा गठबंधन के दौर में भी उनकी भूमिका अहम थी। मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, अजीत सिंह, देवेगौड़ा ही नहीं कम्युनिस्ट पार्टियों, कांगे्रस के कई नेताओं के साथ उनके पुराने राजनीतिक या व्यक्तिगत संबंध हैं। यही नहीं, अब भी नाजुक अवसरों पर भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं के तार उनसे जुड़ते रहते हैं। समाजवादी उदार विचारों के साथ बेदाग छवि के कारण शरद यादव प्रतिपक्ष के उम्मीदवार बन सकते हैं। लेकिन इस उम्मीदवारी के लिए भी उत्तर प्रदेश में गैर भाजपा दलों को अधिकाधिक सीटों पर सफल होना जरूरी होगा। जाहिर है, अवध के मैदान और गंगा किनारे की राजनीतिक लहरों पर ही भावी राष्ट्रपति की नैया आगे बढ़ सकेगी।
वोट की चाबी अम्मा, दीदी और नवीन के पास
वर्तमान एनडीए के पास राष्ट्रपति चुनाव में 483728 वोट हैं। कांग्रेस, वाम तथा समाजवादी धड़े के दलों एवं कांग्रेस के अन्य सहयोगियों के पास 411438 वोट और तृणमूल, अन्नाद्रमुक, बीजद, टीआरएस और वाईएसआर कांग्रेस के पास 203716 वोट हैं। राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए 549442 वोट चाहिए। भाजपा और उसके सहयोगियों को अपने दम पर राष्ट्रपति निर्वाचित करवाने के लिए अभी की स्थिति में 65714 वोटों की कमी है।
जुलाई, 2017 में राष्ट्रपति चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में चुनाव होने हैं। उत्तर प्रदेश में 83824 वोट, उत्तराखंड में 4480 वोट, पंजाब में 13572 वोट, गोवा में 800 वोट और मणिपुर में 1080 वोट यानी कुल 103756 वोट दांव पर हैं। इनमें से अभी भाजपा और सहयोगियों के पास हैं 20632 वोट जबकि गैर भाजपा दलों, जिनमें कांग्रेस, सपा, बसपा तथा कांग्रेस के अन्य सहयोगी शामिल हैं उनके पास हैं 83124 वोट। भाजपा यदि उत्तर प्रदेश में अपने दम पर बहुमत के आंकड़े यानी 203 सीटें हासिल कर लेती है तो उसे 32448 अतिरिक्त वोट मिल जाएंगे। अगर वह सौ के करीब सीटें जीतती है तो उसे करीब 11 हजार वोटों फायदा होगा। पंजाब से जैसी खबरें हैं उसके अनुसार वहां एनडीए को करीब इतने ही वोटों का नुकसान हो सकता है। राष्ट्रपति चुनाव में तृणमूल, बीजद, अन्नाद्रमुक, टीआरएस और वाईएसआर कांग्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। हालांकि भाजपा अन्नाद्रमुक, बीजद या तृणमूल में से किसी दो को अपने साथ जोड़ पाए तो अपने मन मुताबिक राष्ट्रपति बनवा सकती है। दूसरी ओर गैर भाजपा मोर्चे को अपना राष्ट्रपति बनवाने के लिए इन तीनों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश करनी होगी।

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