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सुनहरे दिनों की आहट

पाकिस्तान को हराने से हमें संतोष मिलता है पर सुनहरे दिन लाने के लिए नीदरलैंड, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया जैसी शक्तिशाली टीमों को हराना होगा
पाकिस्तान को मात देने के बाद भारतीय खिलाड़ियों का जोश

देश में क्रिकेट के रोमांच के बीच भी हॉकी का सफर जारी है। लोग उसे भूल न जाएं लिहाजा हॉकी समय-समय पर अपनी पुरानी चमक बिखेरती रहती है। बीते सप्ताह एशियन चैंपियंस ट्रॉफी में खिताबी जीत ने फिर उम्मीद बंधा दी है। रियो ओलंपिक को छोड़ दिया जाए तो पिछले एक साल में हॉकी के रणबांकुरों ने बेहतर प्रदर्शन कर सुनहरे दौर की आस जगा दी है। पाकिस्तान पर हुई विजय एक संकेत है कि पुरजोर कोशिश की जाए तो पुराना दौर लौट सकता है। तेज तर्रार नीदरलैंड, आक्रामक ऑस्ट्रेलिया और लयबद्ध जर्मनी को भी मात दी जा सकती है। भारत के सामने यह तीन टीमें एक मजबूत चुनौती हैं। इन्हें परास्त करना भविष्य के लिए एक लक्ष्य हो सकता है। पाकिस्तान को तो अब हम आसानी से पटकनी दे देते हैं। उड़ी हमले के बाद सैनिकों की मौत से आहत हॉकी टीम के कप्तान श्रीजेश ने पाकिस्तान को हराने की कसम खाई थी। श्रीजेश ने पाक को हराकर अपना वादा पूरा किया तथा देश को दीपावली का तोहफा दिया। बॉर्डर पर सैनिकों के बलिदान को याद करते हुए उन्होंने कहा था, ‘हम एशियन चैंपियंस ट्रॉफी में पाकिस्तान को हराने में जी जान लगा देंगे। भारतीय हॉकी टीम पाकिस्तान से मैच हारकर अपने सैनिकों को निराश नहीं होने देगी।’
भारतीय टीम ने ऐसा किया भी। टूर्नामेंट में उसने पाकिस्तान को दो बार हराया। राउंड रोबिन चरण में भारत ने पाकिस्तान पर 3-2 से जीत दर्ज करने के बाद फाइनल में भी उसे 3-2 से हराया। वैसे पूरे टूर्नामेंट में भारत का प्रदर्शन काबिले तारीफ रहा। भारत ने अपने पहले मैच में जापान को 10-2 से हराया। पूरे मैच में भारत का प्रदर्शन शानदार रहा। ड्रैग फ्लीकर रुपिंदर पाल सिंह ने 10 में से छह गोल किए। रुपिंदर ने कहा भी, ‘मेरे लिए यह स्वप्निल प्रदर्शन रहा। अहम गोल करके बहुत अच्छा महसूस होता है।’ रुपिंदर ने वर्ष 2010 में सुल्तान अजलान शाह कप प्रतियोगिता में पदार्पण किया था। इस टूर्नामेंट ने बता दिया कि अब वे कितने परिपक्व हो चुके हैं। वैसे इस प्रतियोगिता में राउंड रोबिन चरण में दक्षिण कोरिया के खिलाफ बराबरी का मैच छोड़ दिया जाए तो शेष सभी में भारत का दबदबा रहा। चीन को 9-0 से हराया, मलेशिया को 2-1 से हराया, कोरिया को बराबरी के बाद पेनाल्टी शूट आउट में 5-4 से मात दी।
फाइनल मुकाबले में चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को 3-2 से हराकर खिताब जीतना भविष्य के लिए एक बड़ा संबल है। फाइनल में भी रुपिंदर का प्रदर्शन शानदार रहा। उन्होंने 18 वें मिनट में पेनाल्टी कॉर्नर पर गोल कर भारत को बढ़त दिलाई। यूसुफ ने 23 वें मिनट में गोल कर बढ़त 2-0 कर दी। पाकिस्तान ने 26 वें और 38 वें मिनट में गोल कर स्कोर बराबर कर दिया लेकिन 51वें मिनट में निकिन थिम्मैया ने गोल कर भारत की जीत निश्चित कर दी। वर्ष 2011 में शुरू हुए इस टूर्नामेंट का पहला खिताब भी भारत ने जीता था और तब भी हारने वाली टीम पाकिस्तान ही थी।
छठी वरीयता प्राप्त भारतीय हॉकी टीम में कुछ प्रमुख खिलाड़ी नहीं थे, इसलिए भी टीम की जीत मायने रखती है। फाइनल में गोलकीपर पीआर श्रीजेश मांसपेशियों में खिंचाव की वजह से मैदान पर नहीं उतर पाये। उनकी गैरमौजूदगी में आकाश चिकते ने अपनी भूमिका बखूबी निभाई।
वैसे पिछले एक-डेढ़ साल में भारतीय टीम के प्रदर्शन पर नजर डाली जाए तो भारत का प्रदर्शन अच्छा रहा है। पिछले साल वर्ल्ड हॉकी लीग में भारतीय टीम तीसरे स्थान पर रही थी। इसी वर्ष अजलान शाह कप में भारतीय टीम दूसरे स्थान पर रही थी। चैपियंस ट्राफी में दिग्गज टीमों के बीच भारत ने रजत पदक जीता। हां, रियो ओलंपिक में जरूर भारतीय टीम उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाई। डच कोच रोलैंट ओल्टमंस ने जब से भारतीय टीम की कमान संभाली है, टीम का एक तरह से कायापलट हो गया है। खिलाड़यिों को रोटेट करने का उनका फार्मूला रंग ला रहा है। अब उनकी निगाह प्रमुख वैश्विक टूर्नामेंट जीतने पर है। ओल्टमंस ने पूरी टीम को एक सूत्र में बांध दिया है। अगला विश्वकप 2018 में हमारी धरती पर ही खेला जाएगा। उम्मीद है ओल्टमंस यहां और कड़ी चुनौती पेश करेंगे।
वैसे भी हॉकी में व्यक्तिगत खेल की जगह सहयोग तथा सद्भावना जरूरी है। अकेला खिलाड़ी कुछ नहीं कर सकता। कुछ खिलाड़ी ड्रिबलिंग से सामान्य दर्शकों को मुग्ध कर देते हैं किन्तु यह अच्छा खेल नहीं है। आवश्यकता पड़ने पर यह एक बेहतर कला है पर हमेशा यह उचित नहीं है। स्थिति के अनुसार पासिंग-ड्रिबलिंग का बेहतर तालमेल ही विपक्षी टीम का रक्षा कवच भेदता है। भारतीय खिलाड़ी ड्रिबलिंग में कुशल रहे हैं। मेजर ध्यानचंद का गेंद पर सदैव नियंत्रण रहता था और वे पास देने में भी कुशल थे। आक्रामक शुरुआत के साथ गोल के मौके बनाने की कला में माहिर होने के अलावा विरोधी टीम की गलती से मिले मौके को भुनाने की क्षमता हॉकी में चैंपियन बनाती है। रक्षापंक्ति का खूबसूरत बचाव, सटीक पासिंग कॉबिनेशन विरोधी टीम पर दबाव बढ़ाता है। इसके अलावा बेहतर तालमेल के साथ दूसरी टीम के क्षेत्र में प्रभावी रहने से सर्वश्रेष्ठ टीमों की चुनौती ध्वस्त हो जाती है। पाकिस्तान को हराने के बाद हमारा कारवां यहीं नहीं रुकना चाहिए। नीदरलैंड, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी को हराने के लिए अभी हमारे खिलाड़ियों को और मेहतन करनी होगी। अभी भी हमारे खिलाड़ी मजबूत टीमों के खिलाफ अच्छे मूव नहीं बना पाते। भारत में हॉकी को अंग्रेजों ने शुरू किया था। लेकिन हम भारतीय इस खेल में दक्ष हो गए और हमने अंतरराष्ट्रीय मैचों में कई यादगार जीत हासिल की है। हॉकी एक समय में हमारे देश भारत की धाक थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। ध्यानचंद के युग में लौटने के लिए हमें पुरजोर कोशिश करनी होगी। पाकिस्तान पर विजय हमारे लिए प्रेरणा तो हो सकती है पर लक्ष्य विश्व विजय का होना चाहिए।

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