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कैशलेस अर्थव्यवस्था की चुनौतियां

बाजार में नगदी में अचानक आई कमी से वे क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हो गए हैं जो नगदी अर्थव्यवस्था पर ही आधारित थे
दिल्ली के चावड़ी बाजार में भीड़ घट गई है

भा रत में 1000 और 500 की नोटबंदी के फैसले ने देश की कुल नगदी के 86 फीसदी को रद्दी कर दिया। वित्त मंत्री अरुण जेटली के अनुसार कालेधन और कर चोरी पर नकेल कसने के अलावा देश की अर्थव्यवस्था को नगदविहीन (कैशलेस) अर्थव्यवस्था बनाने की ओर यह एक बड़ा कदम है। डिजिटल लेनदेन हर लिहाज से सुरक्षित है। इसके जरिए सरकार कर चोरी और भ्रष्टाचार पर कड़ी नजर रख सकती है लेकिन भारत जैसे विकासशील और ग्रामीण परिवेश वाले देश के लिए यह चुनौतीपूर्ण है। देश में ग्रामीण अर्थव्यवस्था पूरी तरह सेनगदी पर आधारित है। इसके अलावा गारमेंट, ट्रांसपोर्ट, लघु उद्योग, छोटे कारोबारी और बुजुर्ग लोगों की तादाद जोड़ दी जाए तो बड़ा वर्ग ऐसा है जो अभी नगदविहीन अर्थव्यवस्था के लिए तैयार नहीं है। जानकारों का कहना है कि इस समय बाजार में नगदी में आई कमी से देश की अर्थव्यवस्था डांवाडोल हो गई है। इससे वे क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं जो नगदी अर्थव्यवस्था पर आधारित थे। देश की जीडीपी में इस क्षेत्र का 45 फीसदी  योगदान है। एक्‍सपोर्ट बिजनेस कंसलटेंट वासिक नदीम खान का कहना है कि कैशलेस व्यवस्था मेट्रो शहरों में कामयाब हो सकती है लेकिन हाथरस, दादरी, बुलंदशहर, रेवाड़ी, मेवात आदि जैसे कस्बों में नहीं चल सकेगी। वर्ष 2008 में जब विश्व अर्थव्यवस्था की चूलें हिल गई थीं तो भारत को ग्रामीण अर्थव्यवस्था से खासा सहारा मिला क्‍योंकि वह नगदी पर आधारित थी। नदीम खान के अनुसार अगले दस वर्ष तक तो नगदविहीन अर्थव्यवस्था नहीं हो सकती है। उसकी एक वजह हर जगह कंप्यूटर का न पहुंचना, अशिक्षा, हर हाथ में स्मार्टफोन का न होना, हर जगह इंटरनेट का न होना भी है। खान के अनुसार भारत में हर महीने एक करोड़ 26 लाख मोबाइल बिकते हैं। इनमें 60 फीसदी 800-1500 रुपये वाले होते हैं जिनमें इंटरनेट सुविधा नहीं होती। नगदविहीन अर्थव्यवस्था जाहिर तौर पर स्मार्टफोन के जरिए ही चलेगी। इसके अलावा प्रति व्यक्ति आय पर गौर करें तो इंटरनेट चार्ज, डाटा कार्ड हर भारतीय वहन नहीं कर सकता।

पश्चिमी  देश तो काफी पहले से डिजिटल लेनदेन कर रहे हैं। दूसरे मुल्क भी इसकी तैयारी कर रहे हैं। दक्षिण कोरिया ने 2020 तक देश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से नगदविहीन करने का लक्ष्य रखा है। स्वीडन में 89 फीसदी, ब्रिटेन में 89 फीसदी, कनाडा में 90 फीसदी, फ्रांस में 92 फीसदी और बेल्जियम में 93 फीसदी कारोबार, लेन-देन डिजिटल आधारित है लेकिन भारत में 85 फीसदी से भी ज्यादा कारोबार नगद पर होता है। भारत में नगदविहीन अर्थव्यवस्था इसलिए भी चुनौतिपूर्ण है क्‍योंकि यहां की रीढ़ की हड्डी यानी कृषि अर्थव्यवस्था पूरी तरह से नगद पर टिकी है। कृषि अर्थशास्त्री प्रोफेसर सुच्चा सिंह गिल बताते हैं कि देश का 60-65 फीसदी हिस्सा ग्रामीण है। कई किसान दसवीं भी पास नहीं हैं। हम नई तकनीक की बात कर रहे हैं, पहले अशिक्षा तो खत्म करें। गिल के अनुसार राजनीतिक पार्टियों को चंदा कारोबारी देते हैं और यह नियम कारोबारियों के लिए ही बनाए जा रहे हैं ताकि वे कर चोरी न कर सकें लेकिन राजनीतिक पार्टियां और कारोबारी मिलकर इसका रास्ता निकाल लेंगे और मार पड़ेगी मध्यम और निम्‍नमध्य वर्ग पर।

गिल के अनुसार दस वर्ष पहले पंजाब की अनाज मंडियों को ई-कॉमर्स से जोड़ा गया था लेकिन आज तक यह शुरू नहीं हो सका। वह बताते हैं कि किसान अपनी फसल मंडी में देता है, फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एफसीआई) आढ़तियों के जरिए किसानों को नगद भुगतान करता है। इसके अलावा किसान खेत मजदूर, खाद, बीज, डीजल, पानी, दवाई सब जगह नगद लेनदेन करता है लेकिन सरकार ने कोई रास्ता ही नहीं छोड़ा, इसलिए इस समय सबसे ज्यादा दिक्‍कत में किसान है।

पंजाब में धान की खेती का 20,000 करोड़ रुपये का कारोबार है। इस समय पंजाब के किसान मंडियों में धान के नगद भुगतान के इंतजार में बैठे हैं लेकिन नहीं किया जा रहा। यह भुगतान तुरंत इसलिए भी जरूरी है कि दिसंबर के पहले सप्ताह तक किसान को गेंहू की बुआई करनी है। अगर गेंहू की बुआई में देरी होती है तो पैदावार कम होगी। कम पैदावार के मायने हैं कि कर्ज तले दबे किसान पर एक और मार। मुज्जफरनगर के किसान नेता अशोक बालियान बताते हैं कि कोऑपरेटिव सोसाइटी और गन्ना सोसाइटी किसानों को नगद ही देती हैं। अभी किसान को गेंहूं बोने के लिए कर्ज चाहिए लेकिन जब तक वह पुराना कर्ज नहीं उतारेगा तब तक उसे नया कर्ज नहीं मिलेगा। आदिवासी इलाकों की बात करें तो वहां दूसरी दिक्‍कतें हैं। डेयरी विशेषज्ञ और अमूल इंडिया के उत्तर भारत के पूर्व अध्यक्ष और

क्‍वालिटी के चेयरमैन डॉ. आरएस खन्ना का कहना है कि हम चाहते हैं कि हम दूध बेचने वालों का पैसा सीधा उनके अकाउंट में डाल दें। हमने इसके लिए व्यवस्था भी बना ली है लेकिन किसान ही तैयार नहीं है। उसे अपने गांव के बड़े बुजुर्ग से नगद पैसे लेने की ही आदत है।

आदिवासियों के बीच मोबाइल तकनीक को लेकर काम कर रहे और मध्य प्रदेश के आदिवासी जिले अनूपपुर के जमूड़ी गांव में ग्रामीण पत्रकारिता उद्यमिता स्कूल चला रहे  शुभ्रांशु चौधरी कहते हैं कि नगदविहीन अर्थव्यवस्था कोई नई बात नहीं है, दूसरे देशों में हो ही रही है लेकिन हमारे देश के आदिवासी इलाकों में सिग्नल नहीं पहुंचता, ब्रॉड बैंड नहीं है, इसलिए वहां इसका आना नामुमकिन तो नहीं है लेकिन अभी बहुत समय लगेगा। नगदविहीन अर्थव्यवस्था के लिए देश की बड़ी आबादी के पास अभी भी क्रेडिट, डेबिट कार्ड नहीं है। जैसे हांगकांग में एक ऑक्‍टोपस नाम से कार्ड (ई-वॉलेट) है। अमीर-गरीब लेनदेन के लिए सभी इसका प्रयोग करते हैं। यह सभी जगह मान्य भी है लेकिन भारत में ऐसा कोई कार्ड नहीं है। पेटीएम है लेकिन तमाम चीजें पेटीएम से जुड़ी नहीं हैं। आने वाले कुछ वर्षों में हो सकता है कि इसका प्रयोग ऑक्‍टोपस की तरह होने लगे लेकिन हाल-फिलहाल में तो ऐसा नहीं है। 

नगदविहीन अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा रोड़ा है डेटा प्राइवेसी और साइबर सुरक्षा कानून का न होना। देश के जानेमाने साइबर सुरक्षा कानून विशेषज्ञ एडवोकेट पवन दुग्गल बताते हैं कि नगदविहीन अर्थव्यवस्था बनाने का विचार सही दिशा में सही कदम है लेकिन बिना तैयारी के।  इसके लिए ज्यादा जरूरी है कानूनी कदम, जिसकी बात नहीं हो रही है। इसके बिना नगदविहीन अर्थव्यवस्था की बात करना मजाक है। बेशक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने भारत की सबसे बड़ी डिजिटल ट्रांजेक्‍शन फर्म पेटीएम, मॉबिकविक और

ऑक्‍सीजन जैसे ई-वॉलेट को मान्यता दे दी है लेकिन इनके जरिए लेन-देन समझौते के तहत होता है जबकि यह कानून के तहत होना चाहिए। पवन दुग्गल के अनुसार सूचना प्रौद्योगिकी कानून -2000 में साइबर सुरक्षा कानून नहीं है। वर्ष 2008 में इसमें  संशोधन के बाद फौरी तौर पर साइबर सुरक्षा को शामिल कर लिया गया जिसका उद्देश्य ई-कॉमर्स को बढ़ावा देना था। वर्ष 2000 के बाद 2016 की जमीनी हकीकत बहुत अलग है। आज कड़े साइबर सुरक्षा कानून की जरूरत है। आज जबकि बैंक नेटवर्क पर हैं, डिजिटल नेटवर्किंग हो रही है, तो हाल ही में 32 लाख एटीम हैक होना यह चेताता है कि साइबर सुरक्षा के नाम पर अलग कानून हो। ज्यादातर बैंक एटीएम अभी भी 15 वर्ष पुराना विंडोज एक्‍सपी का प्रयोग कर रहे हैं जो सुरक्षा के लिहाज से कमजोर है। पवन दुग्गल के अनुसार नगदविहीन अर्थव्यवस्था के लिए मोबाइल इंटरनेट लेन-देन को कानूनी दायरे में लाना होगा ताकि जनता का ऑनलाइन लेन देन में विश्वास बढ़े, इससे संबंधित झगड़ों का फैसला जल्द हो। बहुत दफा ऐसा होता है कि ग्राहक के पैसे निकल गए लेकिन भुगतान नहीं हुआ, ऐसे में ग्राहक को बैंक भी भुगतान नहीं करता है। दुग्गल के अनुसार उनके पास इस प्रकार के सप्ताह में तीन-चार मामले आते हैं। जहां तक आम आदमी की बात करें तो मुंबई के कारोबारी मो. अनीस फारुखी  का कहना है कि सरकार के इस कदम के बाद बेशक उन्होंने अपने पुराने ग्राहकों से चेक के जरिए लेन-देन शुरू कर दिया है लेकिन नए ग्राहकों से नहीं। उनका कहना है कि जिन्हें नगद में लेन-देन की आदत है वे नई तकनीक से वाकिफ भी हो जाएं तब भी उसमें उनका विश्वास नहीं है। जैसे कि आज घर बैठे रेलवे टिकट बुक हो जाता है लेकिन कुछ लोगों  को रेलवे की खिडक़ी या ब्रोकर से ही टिकट लेने की आदत है। 

विश्व बैंक के अनुसार 2011 से 2014 तक बैंक अकाउंट पेनिट्रेशन 35 फीसदी से बढक़र 53 फीसदी हो गया था। इसकी वजह अगस्त 2014 में लागू जनधन योजना है। योजना के तहत 97 फीसदी खाते पद्ब्रिलक बैंक में खोले गए लेकिन,2 फीसदी खाते शून्य हैं। विश्व बैंक की रिपोर्टानुसार खाताधारकों में से केवल 39 फीसदी लोगों के पास डेबिट कार्ड या एटीएम है। भारत में दूसरे देशों के मुकाबले बैंक अकाउंट पेनिट्रेशन काफी कम है और बैंक अकांउट के जरिए लेन-देन उससे भी कम, महज 15 फीसदी जबकि ब्राजील और चीन में यह 40 फीसदी है।

बावजूद इसके देश अब डिजिटल मीडियम में बदलने की तैयारी कर रहा है। सरकार के हालिया कदम के बाद छोटे कारोबारियों में प्वाइंट ऑफ सेल (पीओएस) टर्मिनल्स की मांग डबल हो गई है। पांच सौ और 1,000 रुपये के पुराने नोटों पर प्रतिबंध के बाद देश की तीन सबसे बड़ी टेलिकॉम कंपनियों- भारती एयरटेल, वोडाफोन इंडिया और आइडिया सेलुलर के लिए छह महीने में मोबाइल वॉलेट ट्रांजेक्‍शंस में 40-50 फीसदी की बढ़ोतरी होने का अनुमान है।

 

ग्रामीण अर्थव्यवस्था कैश आधारित है। किसान बहुत दिक्‍कत में है। उसे गेंहू की बुआई के लिए कर्ज नहीं मिल रहा।

अशोक बालियान

किसान नेता

विश्व अर्थव्यवस्था की जब चूलें हिल गई थीं तो भारत को ग्रामीण अर्थव्यवस्था से सहारा मिला क्‍योंकि वह नगदी पर टिकी थी।

वासिक नदीम खान

एक्‍सपोर्ट बिजनेस कंसलटेंट

तेजी से हो रहा

नगदविहीन लेन-देन

 पेटीएम एक मोबाइल ई-कॉमर्स कंपनी है। यह अपनी मोबाइल एप, वेबसाइट के जरिए उपभोक्ताओं को बाजार प्रदान करती है।

 इसे ई-वॉलेट या ऑनलाइन बटुआ भी कहा जाता है, जिसमें डेबिट/ क्रेडिट-कार्ड के जरिए रुपये डाले जाते  हैं।

 इसके जरिए डीटीएच रिचार्ज, मोबाइल रिचार्ज या किसी को पैसे भेजने, विभिन्न ब्रांडों एवं सेवाएं जैसे उबर, मेक माय ट्रिप, बुक माय शो और छोटी-मोटी खरीदारी का भुगतान आसानी से किया जा सकता है।

 बीते दिनों पेटीएम में,00 फीसदी की वृद्धि हुई और इसमें 1000 फीसदी पैसा जमा किया गया।

 200 फीसदी की ट्रांजेक्‍शन  वृद्धि

 300 फीसदी एप डाउनलोड वृद्धि

 साइबर सुरक्षा कानून बनाए बिना कैशलेस अर्थव्यवस्था की बात करना मजाक है। यह बिना तैयारी के उठाया गया सही कदम है। 

पवन दुग्गल

साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ

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