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बिन नगदी सब सून

खरीफ की शानदार फसल के बावजूद किसानों की जेब है खाली। नगदी के अभाव में लेन-देन तो रुका ही, बुआई भी पिछडऩे की आशंका
नोटबंदी का असर किसानों पर सबसे अधिक

नो टबंदी से महानगरों में अफरातफरी का माहौल है, लेकिन ग्रामीण भारत भी इससे अछूता नहीं है। किसानों की जेबें खाली हैं। फसलों की बुआई में विलंब हो रहा है। मंडियों में खरीफ की फसल से भरी ट्रालियां खड़ी हैं, लेकिन नगदी के अभाव में लेन-देन रुक गया है। बाजार सूने पड़े हैं और शादी-ब्‍याह में रौनक भी घट गई है। मध्य प्रदेश में अच्छी बारिश से खरीफ की शानदार

फसल हुई है, लेकिन फिलहाल स्थिति यह है कि किसानों के पास बुआई के लिए पैसे नहीं है। मंडियों में कारोबार ठप है। प्रदेश की 257 मंडियों में 8 नवंबर से पहले यहां रोजाना 12 लाख टन अनाज का कारोबार हो रहा था, वह 2 लाख टन तक सिमट गया है। किसानों को पैसा देने के लिए न तो मंडी समितियों के पास पैसा है और न व्यापारियों के पास। मंडी समितियों ने अपने पुराने नोट बैंकों में जमा कर दिए हैं, लेकिन बैंकों से उन्हें पैसा नहीं मिल पा रहा है। हालत तो यह है कि मंडियों में अनाज की तुलाई के पैसे भी किसान के पास नहीं हैं। प्रदेश की 82 मंडियों में खरीफ की फसलों, धान, सोयाबीन, उड़द और मूंग दाल से भरी ट्रॉलियां खड़ी हैं। प्रदेश के मंडी आयुक्‍त राकेश श्रीवास्तव ने किसानों को उनकी फसल के एवज में बैंकों में ड्राक्रट, चेक और आरटीजीएस के विकल्प सुझाए हैं। लेकिन खाली जेब छोटे किसानों को यह मंजूर नहीं है। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों को 15 दिसंबर तक मंडी गोदामों में नि:शुल्क अनाज रखने का विकल्प दिया है। लेकिन 15 दिसंबर तक भी हालात सुधरने के आसार नहीं दिख रहे। तब तक किसानों की रबी की बोवनी का काम पिछडऩे की आशंका पैदा हो गई है। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सहकारी समितियों को 1000-500 के नोट लेने और क्रेडिट देने जैसी सुविधा को लेकर केंद्र सरकार से बात करने का दिलासा दिया है। लेकिन हालात यह हैं कि समितियों की तो छोडि़ए सहकारी बैंकों के पास भी पैसा नहीं है। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंडी बोर्ड को निर्देश दिए हैं कि वह व्यापारियों को चेक बुक मुहैया करा दें, जिससे किसानों को भुगतान आरटीजीएस से कर दें। लेकिन भोपाल ग्रामीण कांग्रेस के अध्यक्ष किसान नेता अवनीश भार्गव कहते हैं, 'इसके लिए न तो व्यापारी तैयार हैं न किसान। ऐसे हालात में भोपाल की सभी मंडियां बंद पड़ी हैं। अच्छे दिन के लिए भाजपा को वोट देने वाले प्रदेश के लोगों को यह कतई उम्‍मीद नहीं थी कि उन्हें यह दिन देखने पड़ेंगे।’

हरियाणा में मुख्‍य सचिव डीएस ढेसी ने किसानों को सरकारी बीज केंद्रों पर 500 और 1000 के नोट देकर गेहूं के बीज खरीदने का भरोसा दिया था, जो खोखला साबित हो रहा है। तावड़ू के सरकारी बीज केंद्र के विक्रेता पवन सैनी के पुराने नोट लेने से इनकार करने पर किसानों ने नूंह के जिला उपायुक्त से शिकायत की है। ऐसी शिकायतें अन्य जगहों से भी आ रही हैं।

नोटबंदी से हरियाणा के ग्रामीण अंचलों में इसलिए भी स्थिति खराब है कि यह मौसम दलहन की खेती और शादी ब्‍याह का है, जो अचानक आई मुसीबत से बुरी तरह प्रभावित हुआ है। रोहतक के समचाना गांव में एक व्यक्ति के दो बेटियों की सगाई, धनाभाव के चलते बड़ी मुश्किल से हो पाई। जबकि इसी शहर के काले तेल के कारोबारी 52 वर्षीय मनोज इतने भाग्यशाली नहीं रहे। बेटी की शादी के लिए बैंक्‍वेट हॉल, हलवाई आदि को देने के लिए पैसे का जुगाड़ नहीं कर पाने के कारण उनकी हृदयाघात से मौत हो गई। केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले से एक मंत्री का निजी स्टाफ चंडीगढ़ सचिवालय में एक दिन इतना तैश में आ गया कि सब के सामने ही अनाप-शनाप बोलना शुरू कर दिया। उसका आरोप है कि 'शादी के सीजन को देखते हुए कई लोगों ने अपने घरों में आवश्यक कार्यों को निपटाने के लिए मोटी रकम इक_ी कर रखी थी, बड़े नोट चलन में बंद होने से वह अब मिट्टी हो गई। शादी-ब्‍याह वाले घरों में संगीत की जगह सन्नाटा पसरा हुआ है। विवाह की रस्में और मेहमानों की आवभगत बस किसी तरह निभाई मात्र जा रही हैं।

नोटबंदी का ही असर है कि ग्रामीण क्षेत्रों से बाजारों में ताजी सब्जियां नहीं आ रही हैं। भिवानी सहित हरियाणा के कई जिलों में पिछले कई दिनों से कृषि जिन्स की बोलियां नहीं लगी हैं। व्यापारियों का सारा समय बैंकों के चक्‍कर काटने में बीत रहा है। सब्‍जी मंडी व्यापारी विनोद कुमार का कहना है, 'उन्होंने स्थिति सामान्य होने तक किसानों को सब्‍जी आदि मंडी न लाने की हिदायत दी है।’ उधर, किसान इस उधेड़बुन में हैं कि अपनी तैयार नगदी फसल कहां खपाएं? सब्जियां बाजारों में बिकेंगी नहीं तो खेतों में ही सड़ कर बर्बाद हो जाएंगी। ऐसे में उनके लिए दलहन की खेती की खातिर बीज, खाद, मजदूरी के पैसे का इंतजाम करना भारी पड़ जाएगा। इन परेशानियों की वजह से किसान इतने तनाव में हैं कि बैंकों से पैसे मिलने में देरी होने पर मारपीट पर उतारू हो जाते हैं। पिनगवां कस्बे में बैंक पर पथराव की घटना हो चुकी है। सोनीपत के गन्नौर कस्बे में भी गुस्साए किसानों ने पंजाब नेशनल बैंक में तोड़-फोड़ की थी। एसयूसीआई, कम्‍युनिस्ट पार्टी के प्रदेश महासचिव प्रभाष घोष कहते हैं, 'फसली सीजन में इस तरह के फैसले से किसान अपनी उपज बेचने और खाद-बीज का इंतजाम नहीं कर पाने से तनावग्रस्त रहने लगे हैं।’

रांची (झारखंड) के कांटाटोली इलाके में रहनेवाले एसके घोष का पूरा परिवार परेशान है। उनकी बेटी की शादी है और आठ नवंबर की दोपहर उन्होंने बैंक से 60 हजार रुपए निकाले थे, ताकि जेवर, बैंड, कैटरर आदि को अग्रिम का भुगतान किया जा सके। शाम को अचानक इन नोटों पर पाबंदी लग गई। अब उन्हें चिंता सता रही है कि बेटी की शादी कैसे होगी। इसी तरह लोहरदगा के कुटमू गांव के झगड़ू मुंडा को तीन दिन से दवा नहीं मिल रही है। उसकी समस्या यह है कि उसके पास केवल पांच सौ के नोट हैं। रिम्‍स में भर्ती उसकी पत्नी को मिलनेवाले खाने से किसी तरह अपना पेट तो वह भर लेता है, लेकिन दवा के लिए इधर-उधर भटक रहा है। रांची में रिक्‍शा चलानेवाले सोहन महतो की कमाई तो लगभग बंद हो गई है क्‍योंकि नगदी के अभाव में लोग अपना सफर पैदल तय कर रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के गांव-देहात में शहरों के मुकाबले नोट बदलवाने को लेकर मारामारी कम है। देहात क्षेत्र में जहां बैंक नहीं हैं वहां आसपास डाकघर अवश्य हैं अत: किसान नोट बदलवाने वहीं पहुंच रहे हैं । बैंकों में रुपया जमा करवाने वालों की संख्‍या नोट बदलवाने वालों के मुकाबले बेहद कम है। डाकघरों और निकटवर्ती कस्बों के बैंकों में पहुंच रहे किसान हजार के मुकाबले पांच सौ का पुराना नोट अधिक लिए हुए हैं।

जाट आरक्षण संघर्ष समिति के राष्ट्रीय महासचिव और किसान सतपाल चौधरी कहते हैं, 'नोटबंदी से वे किसान बेहद परेशान हैं जिनके घरों में ब्‍याह शादी है अथवा घर का कोई सदस्य अस्पताल में भर्ती है।  जिन किसानों के बच्चे अब शहरों में रहते हैं, उन्हें भी परेशानी हो रही है।’

किसान चैनल के पूर्व सलाहकार और भाजपा के किसान मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नरेश सिरोही दावा करते हैं, 'किसानों को बीज से लेकर खाद तक अपनी साख के अनुरूप बाजार और समितियों से उधार मिल जाता है अत: नोटबंदी से आगामी रबी की फसल पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।’ बकौल उनके किसान सरकार के इस फैसले से खुश हैं।

बिहार में नोटबंदी की वजह से किसान मजदूर, छोटे व्यापारी, असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले परेशानियों का सामना कर रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में आज भी बहुतों के बैंक में खाते नहीं है। वित्तीय समावेश के नाम पर धन-जन योजना के तहत लोगों के बैंक में खाते अवश्य खोले गये, लेकिन बहुत से खातों में कोई लेन-देन नहीं हुआ है। बिहटा के किसान बिन्देश्वरी, भगवान, सत्यानंद प्रसाद की दिक्‍कत यह है कि उनके पास ज्यादातर पाँच सौ के नोट हैं। उन्हें फिलहाल खाद और बीज चाहिए, लेकिन दुकानदार पांच सौ के नोट नहीं ले रहा। सीमांचल के किसान चन्द्रकिशोर व सुपौल के सुदामा सिंह अपने खेत में आलू लगाना चाहते हैं लेकिन नोटबंदी की वजह से बीज नहीं मिल पा रहा है। वह कहते हैं, 'हम लोग कुछ दिन पहले ही बाढ़ से नुकसान झेल चुके हैं। खेती से ही हम लोगों की वर्ष भर की जीविका चलती है। अभी बोयेंगे नहीं तो काटेंगे क्‍या? जिस दिन से घोषणा हुई है हम लोग परिवार सहित बैंकों का चक्‍कर लगा रहे हैं। बैंकों में भी फार्म भराकर हम लोगों को यहां से वहां दौड़ाया जा रहा है। कहीं बैंकों में रुपया नहीं है तो कहीं काउंटर पर आते-आते समय समाप्त हो जाता है। वैसे केंद्र सरकार का यह कदम देश की तरक्‍की के लिए सही है, लेकिन अचानक फैसला आने से हम जैसे किसान परेशानी में हैं।

कई ग्रामीण इलाकों में पोस्ट ऑफिस और बैंक नहीं रहने से नोटबंदी का खासा असर छोटे व्यापारियों और कृषकों को हलकान कर रहा है। जाहिर है कि दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले किसानों-गरीबों व छोटे व्यापारियों को नोट बदलने में काफी दिक्‍कतों का सामना करना पड़ रहा है। इससे किसानों की खेती व व्यापारियों के व्यवसाय पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। एक तरफ वे यह जानकर खुश भी हो रहे हैं कि अब देश का विकास होगा, भ्रष्टाचार खत्म होगा। वहीं दूसरी तरफ उन्हें अपनी रोजमर्रा की जरूरतों की चिन्ता खाए जा रही है।

भोपाल से राजेश सिरोठिया, गाजियाबाद से रवि अरोड़ा, गुडग़ांव से मलिक असगर हाशमी, रांची से महेंद्र कुमार और पटना से के. रॉय

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