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ट्रंप से भारतीयों को नई उम्‍मीद

अमेरिका में राष्ट्रपति पद पर डोनाल्ड ट्रंप की जीत में भारतवंशियों ने भी निभाई भूमिका, अब ट्रंप के नए दांव पर है सबकी नजर
डोनाल्ड ट्रंप

अमेरिकी राष्ट्रपति के पिछले तेरह चुनाव जो मैंने देखें हैं उसमें पहली बार आरोप-प्रत्यारोप खुलकर लगे हैं। ऐसा कभी नहीं रहा कि राष्ट्रपति पद के उम्‍मीदवार ने इस तरह की भाषा का प्रयोग किया है जिस तरह का प्रयोग इस बार हुआ है। डोनाल्ड ट्रंप और हिलेरी क्लिंटन खुलकर एक दूसरे के खिलाफ बोले। क्‍योंकि हिलेरी को लगता था कि जनमानस उनके पक्ष में है वहीं ट्रंप को अपनी बेबाकी पर पूरा भरोसा था। इसलिए चुनाव पूर्व जो बातें सामने आ रही थीं कि हिलेरी क्लिंटन का पलड़ा भारी रहेगा वह केवल इसलिए था कि लोगों को ट्रंप के ऊपर भरोसा नहीं हो पा रहा था। लेकिन जो परिणाम आए वे चौंकाने वाले रहे। इससे पहले के चुनावों में साफ तौर पर दिखने लगता था कि कौन चुनाव जीत रहा है और होता भी यही था। इस बार हिलेरी चुनाव जीत रही थी लेकिन जीते ट्रंप। ट्रंप की जीत के पीछे जो प्रमुख कारण रहा था वो था उनके प्रचार की शैली और नए मुद्दों को हवा देना। जबकि हिलेरी के मुद्दे साफ तौर पर जनता के सामने थे। ट्रंप ने लोगों को भरोसा दिलाना शुरू किया कि वे अगर चुनाव जीतते हैं तो उनकी जीत के अलग मायने होंगे, अलग मुद्दे होंगे। वहीं हिलेरी आलोचना के बीच घिरी रहीं। वे नए मुद्दे जनता को नहीं दे पाईं। दूसरी बात, जो सर्वेक्षण सामने आ रहे थे वे हिलेरी के पक्ष में आ रहे थे। लोगों को ऐसा लगने लगा कि हिलेरी जीत रही हैं। हुआ भी वही पापुलर वोट हिलेरी को ज्यादा मिले। इसलिए मतगणना के अंतिम क्षण तक लोग कयास लगाते रहे कि हिलेरी चुनाव जीत रही हैं। लेकिन परिणाम अलग रहा।

ट्रंप की जीत के पीछे जो सबसे बड़ी बात उभरकर सामने आई उसमें प्रचार की उनकी रणनीति रही। भारतीय मूल का वोट हासिल करने के लिए ट्रंप ने भारतीय मूल के लोगों के बीच लोकप्रिय टीवी चैनलों पर जमकर विज्ञापन दिया। त्यौहारों में जाकर भारतीयों से मिले और अपने मुद्दों को साफ किया कि किसी बात को लेकर डरने की जरूरत नहीं है। भारत के साथ संबंधों की बात की, आतंकवाद जैसे मुद्दे पर खुलकर बोले। इससे भारतीय मूल का मतदाता प्रभावित भी हुआ। राष्ट्रवाद ट्रंप का प्रमुख मुद्दा था। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भी मुद्दा राष्ट्रवाद रहा। ट्रंप ने ठीक उसी शैली में प्रचार करना शुरू किया जिस शैली में नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा चुनाव में किया। ट्रंप की प्रचार टीम भी चाय पर चर्चा से लेकर कई तरह के आयोजन करने में जुटी रही। जबकि हिलेरी को इस बात का भरोसा था कि उनके साथ वर्तमान राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ ही मतदाता भी उनके पक्ष में हैं। लेकिन जनता के जेहन में भी यह बात उभरकर आने लगी कि हो न हो ट्रंप जरूर कुछ न कुछ नया करेंगे। परंपरागत चुनाव से हटकर यह चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गया कि ट्रंप ने अपने प्रचार के लिए पैसों का बंदोबस्त खुद किया। किसी से चंदा नहीं लिया। जबकि हिलेरी को सहयोगियों ने चंदा जुटाकर दिया।

ट्रंप ने जो परिवर्तन का मुद्दा उठाया उसी मुद्दे ने उन्हें जीत की दहलीज पर लाकर खड़ा किया। जहां तक भारत के साथ संबंध की बात है तो मोदी और ट्रंप में बहुत सी बातें समान हैं। भारत में मोदी विकास की बात करते हैं तो अमेरिका में ट्रंप भी विकास की बात करते हैं। मंदी से निपटने के लिए उनके पास योजनाएं हैं, रोजगार देने के लिए संसाधन बढ़ाने की बात कह रहे हैं। क्‍योंकि ट्रंप खुद एक व्यापारी हैं और उन्हें इस बात का पता है कि व्यापार कैसे बढ़ाया जाता है। ट्रंप राजनीतिज्ञों की तरह बात नहीं करते हैं। जबकि उनके मुकाबले हिलेरी राजनीतिज्ञ की तरह बात करती हैं। अमेरिका का जो ग्रामीण इलाका है वह भी ट्रंप की जीत का बड़ा कारण बना। क्‍योंकि इन इलाकों के लोगों के बीच एक उम्‍मीद जगी कि अब उनका विकास हो जाएगा। दूसरी बात ट्रंप का जो मुद्दा था कि जो लोग अमेरिका में गैरकानूनी तरीके से रह रहे हैं उन्हें बाहर किया जाएगा। यह मुद्दा भी आम अमेरिकी की समझ में आ गया।

ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद जो विरोध शुरू हुआ है वह विरोध अल्पसंख्‍यक समुदाय के बीच है। अल्पसंख्‍यक डरे हुए हैं, गैर कानूनी रूप से रह रहे लोग डरे हैं। हिलेरी की नीतियों का समर्थन करने वाले लोग डरे हुए हैं। आम जनता के बीच यह भी एक शिकायत हो रही है कि हिलेरी को ज्यादा वोट मिले लेकिन चुनाव जीते ट्रंप। दरअसल यहां का चुनाव ही ऐसा है कि लोकप्रियता नहीं बल्कि संवैधानिक प्रणाली से चुनाव जीता जाता है। जिसमें ट्रंप सफल हुए। क्‍योंकि यहां हर राज्य को बराबर का दर्जा मिला हुआ है। छोटे राज्यों में इस बात का भरोसा जगा कि अगर ट्रंप चुनाव जीतते हैं तो उनका भी विकास होगा। इसलिए इस चुनाव में कई तरह के मुद्दे सामने आए जो ट्रंप की जीत का कारण बने। अभी ट्रंप को राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने को तीस जनवरी 2017 तक का समय है। इसमें अब ट्रंप क्‍या नया कार्ड खेलते हैं किसको अपने साथ रखते हैं किसको दूर करते हैं यह देखने वाली बात होगी। लेकिन मुझे विश्वास है कि भारतीयों को ट्रंप की टीम में जिम्‍मेवारी मिलेगी। वह जिम्‍मेवारी बड़ी भले न हो लेकिन ट्रंप कुछ ऐसा करेंगे कि भारतीय मूल के लोगों का भरोसा और जगेगा।

(लेखक वाशिंगटन में वॉयस ऑफ अमेरिका की हिंदी सेवा के प्रधान संपादक रहे हैं)

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