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ट्रंप युग से बेचैन अमेरिकी

डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव का गणित तो साध लिया लेकिन आंतरिक और वैश्विक मंच पर समीकरण बैठाना होगा चुनौती
अमेरिका में ट्रंप के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी है

अ मेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनावी इतिहास में ऐसा उलटफेर शायद पहली बार हुआ है कि चुनाव से कई दिन पहले ही जिसे रेस में हारा हुआ मान लिया गया था, वही आखिर में विजेता साबित हुआ। मतगणना से पहले डोनाल्ड ट्रंप के बारे में शायद ही किसी ने सोचा हो कि वे अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। लेकिन तमाम उम्‍मीदों को धता बताते हुए डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी प्रतिद्वंद्वी हिलेरी क्लिंटन को अच्छे-खासे अंतर से पराजित किया। मीडिया और सर्वेक्षणों से लेकर चुनाव के अमेरिकी पंडितों तक सभी ने कई दिन पहले ही ट्रंप की जीत की संभावना का द्वार बंद कर दिया था, लेकिन ट्रंप डटे रहे। व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप और कड़वाहट से भरे प्रचार के बीच जीत के ट्रंप के दावों को भले ही उनका बड़बोलापन समझा गया, लेकिन अंतत: यही साबित हुआ कि मतदाता क्‍या चाहते हैं, उनसे बेहतर कोई और नहीं जानता।

हालांकि हिलेरी क्लिंटन ने अपनी हार के लिए एफबीआई को जिम्‍मेदार ठहराया है। हिलेरी का आकलन है कि उनके ईमेल खाते की दोबारा जांच के फैसले ने उनकी जीत की संभावना को खत्म कर दिया। क्‍या ईमेल जांच का मुद्दा ट्रंप की जीत का कारण बना? चुनाव में सिर्फ एक चीज हार-जीत की वजह नहीं हो सकती। पूरे चुनाव प्रचार में नकारात्मक छवि तो डोनाल्ड ट्रंप की रही। अल्पसंख्‍यकों और महिलाओं के बारे में उनकी अभद्र टिप्पणियों की खूब आलोचना हुई। डोनाल्ड ट्रंप ऌपहले कभी किसी सार्वजनिक पद पर नहीं रहे, इस नाते भी लंबे समय से राजनीति में सक्रिय हिलेरी क्लिंटन और उनके साथियों ने डोनाल्ड ट्रंप को न सिर्फ नौसिखिया माना बल्कि उन्हें वैसा ही पेश करने की कोशिश भी की। हिलेरी क्लिंटन और बराक ओबामा ने बार-बार इस बात पर जोर दिया कि पिछले आठ वर्षों में अमेरिका ने जो तरक्‍की की है उसे ट्रंप खत्म कर देंगे। वहीं ट्रंप ने आतंकवाद के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया। आउटसोर्सिंग और अप्रवासियों की वजह से कम और खत्म होती नौकरियों को मुद्दा बनाकर वह लोगों में 'राष्ट्रवाद’ का भाव पैदा करने में कामयाब रहे। आतंकवाद, अवैध रूप से अप्रवासियों की बढ़ती संख्‍या और घटती नौकरियों की वजह से लोगों में इतनी अकुलाहट है कि बराक ओबामा की यह बात भी अनसुनी रह गई कि नौ वर्ष में बेरोजगारी का आंकड़ा सबसे कम रहा है। दरअसल आउटसोर्सिंग के अलावा तकनीक नौकरियां घटा रही हैं। मैन्युफैख्‍रिंग सेक्‍टर में मौके कम हो रहे हैं। आदमी की जगह रोबोट ने ले ली है। मजदूरों की जरूरत दिन पर दिन घटती जा रही है। ऐसे लोगों की समस्याओं को ट्रंप ने न सिर्फ समझा बल्कि उन्हें जोर-शोर से उठाया भी। सेवानिवृत्त लोगों की अपेक्षाओं को भी उन्होंने स्वर दिया। चुनाव विश्लेषकों के मुताबिक यही वजह है कि मतदान की तारीख आते-आते महिलाओं, अश्वेतों और अल्पसंख्‍यकों के बारे में की गई ट्रंप की टिप्पणियां भी 'महान अमेरिका’ के नारे की ओट में छिप गईं। सिर्फ महिलाएं ही नहीं उन्होंने जब-तब दूसरे समुदायों पर भी टिप्पणी की। मीडिया को भी उन्होंने नहीं बख्‍शा। चुनाव के कुछ दिन पूर्व तो उन्होंने यहां तक कह दिया कि अगर वे नहीं जीते तो चुनाव परिणाम स्वीकार नहीं करेंगे। कुछ मौकों पर उन्होंने अपनी गलती स्वीकार भी की। चुनाव नतीजा आने के बाद रिपद्ब्रिलकन रणनीतिकार फोर्ड ओ कॉनल ने डोनाल्ड ट्रंप के बारे में कहा, 'वह गलतियों से भरे हुए उम्‍मीदवार थे लेकिन उनके संदेश में गलतियां नहीं थीं। उनके विरोधी यह समझ नहीं पाए।’

डोनाल्ड ट्रंप ने नौकरियों को मुद्दा बनाकर कामकाजी मध्यमवर्ग और मजदूरों से लेकर किसानों तक को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों पर उन्होंने ज्यादा ध्यान केंद्रित किया। अपने प्रचार अभियान में उन्होंने उन लोगों की समस्याओं को उठाया जो ज्यादा पढ़-लिख नहीं पाए या जिनके पास कोई डिग्री नहीं थी। ऐसे लोगों ने चाहे वो महिला हो या पुरुष बड़ी संख्‍या में ट्रंप में भरोसा जताया। ग्रामीण इलाकों और छोटे नगरों में भी ट्रंप का बोलबाला रहा। हालांकि युवाओं में हिलेरी क्लिंटन ने बाजी मारी लेकिन अधेड़ और बुजुर्गों में ट्रंप का सिक्‍का चला। अधिकांश महिलाओं ने इस बार भी डेमोक्रेट प्रत्याशी के पक्ष में मतदान किया लेकिन पुरुष रिपद्ब्रिलकन के पक्ष में रहे। अश्वेत, एशियाई औऱ हिस्पानी मतदाताओं का बुहमत हिलेरी के पक्ष में रहा लेकिन श्वेत लोगों का बड़ा हिस्सा ट्रंप के खेमे में नजर आया। यह सही है कि ट्रंप को हर तबके से कुछ न कुछ समर्थन अवश्य मिला, लेकिन उनकी कुछ टिप्पणियों ने कुछ समुदायों और तबकों में अंदेशा पैदा कर दिया है। नतीजा आने के बाद से ही कुछ शहरों में ट्रंप के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं। अप्रवासयिों, अल्पसंख्‍यकों और अश्वेतों में यह डर है कि अब उनका क्‍या होगा।

हालांकि जीतने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने अपने भाषण में दरारों को पाटने और एक साथ मिलकर काम करने की बात कही है। उन्होंने हिलेरी क्लिंटन और बराक ओबामा की जिस मुक्‍तभाव से प्रशंसा की है और सभी अमेरिकियों का राष्ट्रपति बनने का संकल्प लिया है, वह सकारात्मक संकेत है। किन्तु प्रचार के दौरान किये गये कुछ वादों को वे चुनावी जुमले तक सीमित नहीं रखेंगे। इसमें कोई शक नहीं कि वे वीजा नियम कड़े करेंगे। अवैध प्रवासियों के बारे में उन्होंने स्पष्ट कह भी दिया है पद संभालते ही 30 लाख लोगों को वे देश से बाहर का रास्ता दिखा देंगे। डोनाल्ड ट्रंप का मानना है कि बढ़ रहे अपराधों की वजह वे लोग हैं जो बिना किसी वैध कागजात के अमेरिका में रह रहे हैं। ट्रंप ने मैञ्चिसको बॉर्डर पर दीवार के निर्माण की बात भी दोहराई है।

ट्रंप के इन इरादों को देखकर अप्रवासी बेहद डरे हुए हैं। कुछ जगहों पर अल्पसंख्‍यकों पर हमले की घटनाएं भी हुई हैं। ट्रंप के विरोध में देश में जगह-जगह प्रदर्शन हो रहे हैं। हालांकि ट्रंप ने प्रदर्शनकारियों और अल्पसंख्‍यकों को भयभीत न होने के लिए कहा, लेकिन प्रदर्शन रुक नहीं रहे। दरअसल, अल्पसंख्‍यकों, अश्वेतों और अप्रवासियों के कानों में ट्रंप के वही शब्‍द गूंज रहे हैं जो उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान कहे थे। ट्रंप की पहली परीक्षा तो यही है कि वे किस तरह और कितनी जल्दी इन समुदायों में विश्वास बहाली करते हैं। चूंकि ट्रंप बड़े वादों के साथ सत्ता में आए हैं, इसलिए उनके सामने चुनौतियां भी बड़ी होंगी। घरेलू और विश्वमंच पर उन्हें एक साथ जूझना होगा। टैक्‍स दरों में कमी, नई नौकरियों का सृजन और अपराध पर अंकुश के वादे पर वे कितने खरे उतरते हैं, यह देखना होगा। 

ट्रंप बराक ओबामा की विदेश नीति की आलोचना करते रहे हैं। राष्ट्रपति बनने के बाद ईरानी परमाणु समझौते और पेरिस जलवायु समझौते पर उनके रुख पर सभी की नजरें रहेंगी। हालांकि ओबामा ने चेताया है कि किसी भी समझौते तक पहुंचने में वक्‍त और मेहनत लगती है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और ट्रंप की 'नजदीकी’ से क्‍या दोनों देशों के संबंध भी सुधरेंगे? विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका-भारत के संबंध और प्रगाढ़ हो सकते हैं। वैसे भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वह कई अवसरों पर प्रशंसा कर चुके हैं। आतंकवाद से लड़ाई में भारत को ट्रंप का साथ मिल सकता है। हालांकि आउटसोर्सिंग पर ट्रंप अपने विचारों पर दृढ़ रहते हैं तो भारतीय कंपनियों के लिए परेशानी हो सकती है।

 

इन भारतवंशियों पर टिकीं निगाहें

डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के लिए प्रचार के दौरान कई बार यह कहा कि यदि वह जीते तो भारत के साथ अमेरिका के रिश्ते सबसे अच्छे होंगे। ट्रंप का तो पता नहीं मगर अमेरिकी जनता ने अपना प्रतिनिधि चुनते समय भारतीयों को गले लगाने में कोई कोताही नहीं की। तभी तो अमेरिकी कांग्रेस के लिए तीन और अमेरिकी सीनेट के लिए एक भारतीय को चुनकर उन्होंने इतिहास रच दिया। वैसे हालिया चर्चाएं यह भी हैं कि लुइसियाना के पूर्व रिपद्ब्रिलकन गवर्नर और अमेरिकी भारतवंशियों में सबसे प्रसिद्ध बॉबी जिंदल ट्रंप की सरकार में मंत्री बन सकते हैं। हालांकि खुद ट्रंप ने अभी इसका खुलासा नहीं किया है।

जिंदल को छोड़ दें तो जिन चार भारतवंशियों ने अमेरिकी चुनाव में झंडे गाड़े हैं वो सबके सब डेमोक्रेट हैं और उनमें भी कैलिफोर्निया की अटार्नी जनरल कमला हैरिस प्रमुख हैं। अमेरिकी सीनेट में पहुंचने वाली वह पहली भारतीय अमेरिकी और सिर्फ छठी अश्वेत हैं। पिछले दो दशक में अमेरिकी सीनेट में पहुंचने वाली वह पहली अश्वेत महिला हैं। उनकी उपलद्ब्रिध और जनता के बीच उनकी पकड़, उनकी समझ, उनके विचारों को देखकर अभी से यह कहा जाने लगा है कि वह भविष्य में अमेरिका की राष्ट्रपति बन सकती हैं। पहली महिला राष्ट्रपति बनने का जो कारनामा हिलेरी क्लिंटन नहीं कर पाईं उसे कमला हैरिस अंजाम दे सकती हैं।

कमला हैरिस के अलावा प्रमिला जयपाल ने वॉशिंगटन में जीत के साथ रिकॉर्ड बनाया है। वे हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की पहली भारतीय-अमेरिकन महिला सदस्य बनी हैं। एक और भारतीय-अमेरिकी डेमोक्रेट राजा कृष्णमूर्ति ने एल्महर्स्ट से पूर्व मेयर और रिपद्ब्रिलकन पार्टी के पीटर डिसियान्नी को शिकस्त देकर इलिनोइस से अमेरिकी कांग्रेस का चुनाव जीता। इसके अलावा कैलिफोर्निया के 17वें जिले से रोहित 'रो’ खन्ना दूसरी बार अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के लिए चुने गए।

ब्‍यूरो

 

सोशल मीडिया ने दिलाई ट्रंप को जीत

अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में जो सबसे महत्वपूर्ण बात उभरकर सामने आई वो है मीडिया का प्रचार। डोनाल्ड ट्रंप की टीम ने प्रचार के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया वहीं हिलेरी क्लिंटन ने अपना ध्यान मीडिया पर केंद्रित किया। हिलेरी की प्रचार टीम से जुड़े लोगों को इस बात का भरोसा था कि अमेरिकी मीडिया क्लिंटन की जीत में सहायक होगा। जबकि ट्रंप की टीम ने सोशल मीडिया पर इसलिए फोकस किया कि युवा मतदाताओं का झुकाव ट्रंप की ओर हो सके। क्‍योंकि युवा ट्रंप की आक्रामक भाषण शैली से ज्यादा प्रभावित थे। इसलिए युवाओं के बीच ट्रंप को लेकर माहौल बना। दूसरी जो प्रमुख बात रही कि ट्रंप ने उन इलाकों पर ज्यादा फोकस किया जहां हिलेरी का प्रभाव कम था। हिलेरी शहरी इलाकों तो ट्रंप ने ग्रामीण इलाकों की नब्‍ज को पकड़ा। ट्रंप की जीत में एशियाई खासकर भारतीय लोगों का प्रमुख योगदान रहा। पहले ऐसा लग रहा था कि भारतीय मूल के लोग हिलेरी के साथ जाएंगे। लेकिन जब ट्रंप ने भारतीयों के बीच जाना शुरू किया, उनके साथ बैठकें कीं, मंदिरों का दौरा किया, उत्सवों में जाने लगे तो भारतीयों को लगा कि ट्रंप गैरराजनीतिक व्यक्ति हैं अगर उन्हें वोट किया जाए तो कुछ न कुछ अलग करेंगे। गैर अमेरिकी आबादी में भारतीय 3.2 फीसदी यानी तीसरे नंबर पर हैं। भारतीय उस समय और उत्साहित हो जाते थे जब ट्रंप पाकिस्तान के खिलाफ बोलते थे। दूसरी बात यह भी थी कि जो गैर अमेरिकी मूल के लोग थे वे भी ट्रंप की कार्यशैली से प्रभावित थे। क्‍योंकि हिलेरी के मुद्दे लोगों को समझ में आ चुके थे। इसलिए गैर अमेरिकी मूल के लोग भी ट्रंप के कामकाज को देखना चाहते थे। ट्रंप की जीत में अफ्रीकी मूल के लोगों का भी योगदान रहा। जब ओबामा राष्ट्रपति बने थे उस समय अफ्रीकी मूल के लोगों ने जमकर वोटिंग किया। ओबामा हिलेरी के साथ थे लेकिन पिछले राष्ट्रपति के चुनाव में हिलेरी की टिप्पणी से अफ्रीकी मूल के लोग आहत हुए थे। इसलिए उन्होंने करीब पंद्रह फीसदी कम मतदान किया। जिसका असर हुआ कि ट्रंप को बढ़त मिल गई। दूसरी ओर हिलेरी की बातों को लोगों ने गंभीरता से नहीं लिया। क्‍योंकि उनके भाषण में मुद्दे साफ तौर पर उभरकर नहीं आ पाते थे। मतदाताओं का झुकाव इसलिए ट्रंप की ओर बढ़ा क्‍योंकि वे खुलकर बोलते थे और अपनी बात मतदाताओं के बीच रखने में सफल भी हुए।

(लेखक डोनाल्ड ट्रंप के लिए प्रचार करने वाली कंपनी कैंब्रिज एनेलिटिका से जुड़े हैं)

 

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