ए नडीए सरकार के कामकाज को लेकर उठते सवालों के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कृषि सिंचाई योजना पर गुपचुप ही सही ऐसा काम हो रहा है जिससे अगले तीन सालों में देश में सिंचाई का रकबा 80 लाख हेक्टेयर बढ़ जाएगा। पिछले 40-50 सालों से अटकी पड़ी 15 राज्यों की 113 सिंचाई योजनाओं में से 15 तो मार्च 17 तक पूरी हो जाएंगी। बाकी 99 परियोजनाओं को मार्च 18 और मार्च 20 तक पूरा करने का टारगेट रखा गया है।,7 हजार करोड़ की योजनाओं पर काम कैसे हो रहा है, यह सरकारी ढर्रे से हटकर कामकाज की बड़ी मिसाल बनने वाला है।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के इस काम को अंजाम देने के लिए केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमाभारती ने छत्तीसगढ़ के तेजतर्रार सिंचाई मंत्री ब्रजमोहन अग्रवाल की अध्यक्षता में 8 सदस्यीय टॉस्क फोर्स गठित किया था। इसमें महाराष्ट्र और तेलंगाना के जल संसाधन मंत्री द्वय गिरीश दत्तात्रेय तथा टी हरीशराव के साथ ही आंध्र, असम, जम्मू-कश्मीर एवं राजस्थान के प्रमुख सचिवों को सदस्य और केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के कमिश्नर को सचिव के रूप में नियुक्त किया है। 6 महीने में इस टॉस्क फोर्स ने लगातार बैठक करके 40 से 50 साल की अवधि से अधूरी पड़ी 247 योजनाओं में से 113 योजना छांटी थी, जिन्हें चरणबद्ध तरीके से मार्च 20 तक पूरा किया जाना था। टॉस्क फोर्स का काम सिर्फ सिफारिशों तक सीमित नहीं रहा। उसने नीति आयोग और वित्तीय विभाग से इसके लिए मंजूरी कराने के बाद नाबार्ड से,7 हजार करोड़ के कर्ज की सहमति भी प्राप्त कराई। केंद्र सरकार की केबिनेट की मुहर लगते ही काम भी शुरू हो गया है। इनमें पहले दौर में 15 राज्यों की 63 परियोजनाओं को शामिल किया गया है। जबकि दूसरे चरण में 51 को रखा गया था। इनमें छत्तीसगढ़ की,, मध्यप्रदेश की 22 परियोजनाएं शामिल की गई हैं। इनमें से तेलंगाना की 6, छत्तीसगढ़, ओडिशा की 3-3 परियोजनाएं आंध्र, असम, केरल और पंजाब की 2-2 परियोजनाएं अगले साल मार्च तक पूरी हो जाएंगी। इनके अलावा बिहार, गोवा, झारखंड, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, कर्नाटक और राजस्थान की एक-एक परियोजनाएं पूरी होने वाली हैं। टॉस्क फोर्स के अध्यक्ष ब्रजमोहन अग्रवाल कहते हैं कि हमने 247 योजनाओं में से उन योजनाओं को तवज्जो दी जो देश के उन जिलों में स्थित हैं, जहां अक्सर सूखा पड़ता है। जो पहाड़ी क्षेत्रों के कारण सिंचाई से वंचित हैं। जहां निम्न भू-जल स्तर के कारण किसानों के पास सिंचाई का कोई विकल्प नहीं है। अग्रवाल ने कहा कि यह तमाम ऐसी योजनाएं थीं जिनकी लागत लंबे समय से अधूरी रहने के कारण नए भूमि अधिग्रहण कानून के चलते काफी बढ़ गई थी। भू-अर्जन की लागत बढऩे के कारण कोई इन पर हाथ नहीं डाल रहा था। इसलिए इनके लिए नाबार्ड से,7 हजार करोड़ के फंड के साथ ही मनरेगा के नियमों में भी बदलाव की सिफारिश की गई। अब इस काम में मनरेगा के तहत सामग्री घटक में 60 फीसदी और मजदूरी के लिए 40 प्रतिशत का प्रावधान किया गया है। केंद्र की सहायता की पहली किश्त अपै्रल के पहले पखवाड़े में जारी कर दी गई और दूसरी किश्त का भुगतान पहले दौर में मिले रुपए के 50 फीसदी खर्च होने पर राज्यों को किया जाएगा। अग्रवाल कहते हैं कि इन सिफारिशों को मानकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कृषि क्षेत्र में विकास के नए आयाम गढऩे के रास्ते खोल दिए हैं।
छत्तीसगढ की, सिंचाई योजनाएं पूरी होने पर 2 लाख हेक्टेयर सिंचाई रकबा बढ़ जाएगा। छत्तीसगढ की जिन परियोजनाओं को इनमें शामिल किया गया था उनमें मनीयारी टैंक, कैलो प्रोजेक्ट, खरौंद, हसदेव बांगो, शिवनाथ डायवर्जन, जोग डायवर्जन तथा महानदी सिंचाई परियोजना शामिल थीं। इनमें से कैलो खरौंद और मनीयारी तालाब की योजना जल्द ही पूरी हो जाएगी। मध्यप्रदेश की जिन 22 परियोजनाओं को शामिल किया गया है उनमें बाण सागर द्वितीय इकाई, माही, बरियारपुर, बाईतट नहर, महान, पैंच डिवीजन एक, सगड़, सिंहपुर, संजय सागर, इंद्रा सागर, नहर की पांच चरण, सिंध, द्वितीय चरण के साथ ही औंकारेश्वर की नहरों के चार चरण और बर्गी की दो नहरों के साथ ही माहौर की मीडियम प्रोजेक्ट को शामिल किया गया है।
छत्तीसगढ़ के अलावा जो परियोजनाएं प्रधानमंत्री सिंचाई योजना के तहत साल भर के भीतर पूरी होने वाली हैं उनमें तेलंगाना की भीमा एलआईएस, एसआरएसपी की फल्डफलु कैनाल और द्वितीय चरण राली वागो, श्री कोमभरम भीम परियोजनाएं शामिल हैं।