67 वर्ष पहले देश आजाद हुआ होगा मगर जब मैंने राजनीति शुरू की यानी 90 में तो उस समय जिस क्षेत्र में मैं मोटर साइकिल से घूमा करता था कभी कल्पना भी नहीं की थी कि उस क्षेत्र छपरा में मुझे भारी सुरक्षा में रहना पड़ेगा क्योंकि बीच में उन लोगों ने कहा कि एक ऐसा अच्छा टार्गेट मिल रहा है जिसके घर का नक्शा बन गया है और उसे उड़ाने की तैयारी है। जब उनका कमांडर पकड़ा गया तो पता चला कि नक्शे में मेरा घर था जो कि गांव का साधारण सा घर था। कभी हम लोगों ने वहां इस बात की कल्पना नहीं की थी जबकि आज तो कदम-कदम पर वैसे लोगों से मुलाकात की आशंका बढ़ती जा रही है। आप सब लोगों ने आज तक अपने-अपने तरीके से विश्लेषण किया होगा, नक्सलवाद के कारणों का विश्लेषण किया गया होगा लेकिन जबसे बड़े ध्यान से मुझे जिम्मेवारी दी गई है कौशल विकास की। देश के प्रधानमंत्री ने पहली बार इस मंत्रालय का गठन किया और दरअसल भारत सरकार में कोई स्टार्ट अप मिनिस्ट्री है तो वह उस मंत्रालय का नाम कौशल विकास मंत्रालय है। प्रधानमंत्री जी बार-बार कहते हैं कि यह विषय उनके सबसे निकट का है, लेकिन आखिर इस मंत्रालय को बनाने की जरूरत क्यों पड़ी और आखिर नक्सलवाद के विषय पर जब चर्चा हुई तो इसका संदर्भ कैसे स्थापित हुआ? मैं एक बहुत कटु बात कहना चाहूंगा कि जिसे विश्लेषकों ने कभी इसका स्वीकार करना या चर्चा में लाना जरूरी नहीं समझा। मैं आज जहां खड़ा हूं या जिस काम को देख रहा हूं वहां इस बात को मैं बार-बार दोहराता हूं कि इस देश में अंग्रेजों के जाने से पहले, अंग्रेज जब थे तो एक शासक वर्ग बनाने के लिए लोगों को शिक्षित किया। अंग्रेजों के जाने के बाद भी भारत में शासक वर्ग की जरूरत थी और लोग पढ़ाई पढक़र के और 67 वर्षों में एक सबसे बड़ा जो हम लोगों ने केंद्रित किया क्योंकि आज भी इस पूरे जितने सब बड़े-बड़े हम लोग बैठे हैं वे सभी शिक्षित हैं। और समाज में शिक्षा को हम लोगों ने जो स्थान दिया वो सबसे ऊपर था और 67 वर्षों में शिक्षा का स्किल के प्रति एक खास पक्षपात था और पक्षपात हम लोग इसलिए कहेंगे क्योंकि भारत में हम लोग देखते हैं कि प्रोफेसर और इकॉनमिक्स है, प्रोफेसर ऑफ बॉटनी है, प्रोफेसर ऑफ मैथमेटिक्स है मगर भारत में हम लोगों ने कभी भी प्रोफेसर ऑफ प्लंबिंग नहीं सुना, प्रोफेसर ऑफ कारपेंटरी नहीं सुना। शिक्षा विशेषज्ञों ने कहा कि स्किलिंग वगैरह तो पारंपरिक रूप से सीखने के लिए छोड़ दो। और फिर किसी का ज्ञान जगा और उसने कहा कि शिक्षा विभाग का नाम बदलकर उसका नाम मानव संसाधन कर दिया गया। मुझे लगता है कि जब यह नाम आया होगा तो निश्चित रूप से स्किल डेवलपमेंट की बात आई होगी कि उसे मानव संसाधन के रूप में डेवलप करना है। फिर भी उस नाम को उसमें डालने के बाद भी 67 वर्ष के उसकी चर्चा नहीं। जब देश आजाद हुआ तो उस समय जो लोग पारंपरिक रूप से हजारों वर्षों से स्किल का काम करते थे उनके संरक्षण के लिए हमने संविधान में आरक्षण डाल दिया और कहा कि हमने अपना दायित्व निभाया। ये बड़ा कटु है लेकिन अगर आप निकलकर देखेंगे तो आज आप जिन क्षेत्रों की चर्चा कर रहे हैं वहां हम लोगों ने शिक्षा को पहुंचा कर जीवनस्तर उठाने का प्रयास किया। परिणाम हुआ कि उत्तर प्रदेश में 100 की क्लास फोर की वेकेंसी के लिए 1000 पीएचडी वाले आवेदन डाल रहे हैं। 18 लाख इंजीनियरिंग सीट में से आज 8 लाख खाली हैं क्योंकि इंजीनियरों की आवश्यकता ही नहीं है और यहां से जो इंजीनियर बाहर आ रहे हैं उन्हें 10 से 15 हजार की नौकरी मिल रही है।
बिहार में मेरा संसदीय कार्यालय है, दो महीने कोई पैरवी नहीं आती है। पूछने पर पता चलता है कि बिहार में मैट्रिक की परीक्षा चल रही है और चाचा, मामा, फूफा सब बच्चों को परीक्षा दिलाने में जुटे होते हैं। सब कुछ शिक्षा से जुड़ा है। मैट्रिक, इंटर या बीए होना दामाद बनने या बहू बनने के लिए जरूरी है। भारत की पूरी शिक्षा व्यवस्था इसी दिशा में चलती है। परिणाम है कि कभी-कभी बिहार में हम लोग मजाक में दूसरों को बताते हैं कि परीक्षा दिलाने के लिए घर वाले तिमंजिले तक चढ़ जाते हैं बाहर से पर्ची पहुंचाने के लिए। ऐसी तस्वीरें आप लोगों ने भी देखी होंगी। क्योंकि स्किल नहीं डिग्री जरूरी हो गई है। आज हम जिस गलियारे की बात कर रहे हैं वहां ये समस्या क्यों पैदा हुई है? गांवों में कोई व्यक्ति क्या चाहता है, उसे 8-10 हजार का काम मिल जाए, अपनी जमीन से थोड़ी उपज हो जाए। हम लोगों उन्हें 5 से 10 हजार की नौकरी के लायक बनाने के काबिल भी नहीं समझा। इस गलियारे में जब लोगों को ऐसा नहीं मिला तो ये समस्या खड़ी हुई। आज हम इस गलियारे में विकास की बात कर रहे हैं। मैं इसके दावों में नहीं जाऊंगा। हमने जब कौशल विकास मंत्रालय बनाया तो सबसे जटिल स्थिति थी इसे परिभाषित करने की। हमने सबसे पहले कौशल विकास की एक स्पष्टï परिभाषा तैयार की।
मैं आपको एक उदाहरण देता हूं। अभी मैं मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ गया था। वहां एक और जिला है उमरिया। इन जिलों की करीब 120 किलोमीटर की यात्रा के दौरान मुझे कई बच्चे सडक़ के किनारे दिखे। सामान्य बच्चे थे जिनमें आदिवासी समाज के बच्चे भी शामिल थे। अगर हम इन्हें प्रशिक्षित कर पाएं, जैसे कि अभी उबर टैक्सी सर्विस को एक लाख ड्राइवरों की जरूरत है। समाज के इस तबके को अगर हम दस या बारह वर्ष की अनिवार्य शिक्षा के साथ-साथ 10 या 12 सप्ताह का कौशल प्रशिक्षण भी दे देते तो हम उबर की मांग पूरी कर सकते थे। अगर हमने पहले से ऐसा सोचा होता तो आज जिस विषय पर चर्चा कर रहे हैं उसकी शायद जरूरत नहीं पड़ती। इसी प्रकार दक्षिण के राज्यों में हमें सिलाई मशीन चलाने वाली करीब डेढ़ लाख प्रशिक्षित लड़कियों की जरूरत है जिन्हें हम 10 से 15 हजार रुपये तक हर महीने दे सकते हैं मगर ऐसी प्रशिक्षित लड़कियां उपलब्ध नहीं हैं। हम इसे बदलने का प्रयास कर रहे हैं। मैं आपको उदाहरण दे सकता हूं। हमने गांवों में छोटी बच्चियों को ब्यूटिशियन का एक महीने का कोर्स करवा दिया। कोर्स खत्म होने पर उन्हें 20 हजार रुपये की किट दे दी जाती है। वह लडक़ी जब अपने घर जाती है तो सबसे पहले अपनी मां या भाभी को सजाती-संवारती है, उनसे 100-50 रुपये लेती है, फिर अपनी सहेलियों को सजाती-संवारती है। इस तरह गांव में अपने घर में रहते हुए वो महीने में 10 हजार तक कमा लेती है। शादी के सीजन में यह कमाई और बढ़ जाती है। लेकिन पूरी स्कूली शिक्षा में इसकी व्यवस्था कहीं नहीं है। इस देश में स्किल डेवलपमेंट का यह हाल है कि आईटीटाई के 128 ट्रेड में 18 लाख सीटें हैं। इनमें से 11 लाख सीटें सिर्फ 2 ट्रेड इलेञ्चिट्रशियन और फीटर में है। ऐसे में देश में अब तक कैसा स्किल डेवेलप हो रहा था आप खुद समझ सकते हैं। हमने शिक्षा पर ध्यान दिया मगर रोजगार पर नहीं। एक और उदाहरण देखें। झारखंड में टाटा मोटर्स की
फैक्ट्री है जहां टाटा के ट्रक बनते हैं। मगर बिहार और झारखंड में पिछले 22 वर्ष से हैवी व्हिकल ड्राइवर का एक भी लाइसेंस नहीं जारी हुआ है। हमारे यहां प्रशिक्षण की यह व्यवस्था। हमने अब कौशल विकास की ओर ध्यान देना शुरू किया है मगर निश्चित रूप से इसमें बहुत समय लगेगा। लाल गलियारे में विकास के लिए हमने इस गलियारे में राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करना शुरू कर दिया है क्योंकि निश्चित रूप से विकास की राह कौशल प्रशिक्षण से ही निकलेगी।
(आउटलुक संवाद में दिए गए संबोधन का संपादित अंश)