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मानवाधिकार पर एकपक्षीय बात क्‍यों

दिल्ली की राजनीति अंग्रेजी समाचार पत्र तय करते हैं, लेकिन देश की राजनीति हिंदी और स्थानीय भाषाओं के समाचार पत्र और पत्रिकाएं तय करती हैं। आजादी के 70 साल हो गए हैं और अब आम आदमी जानता है कि वह अपने वोट की ताकत से किसी भी सरकार को बदल सकता है।
रविशंकर प्रसाद

जनता जानती है कि पांच साल इस सरकार को सहन कर लेते हैं फिर हटा देंगे। जब हम लाल गलियारे में विकास की बात करते हैं तो हमारे लिए सबसे बड़ा सवाल होता है कि जो लोग लाल गलियारे में लाल सलाम कर रहे हैं, वे जम्‍हूरियत में कितना विश्वास करते हैं। क्‍योंकि वहां तो यही संदेश है, 'माओ के अनुसार बदलाव बंदूक से आता है।’ छत्तीसगढ़ प्रभारी होने के नाते मैंने वहां बहुत दौरे किए। तब मैंने अपील की थी, आप नेपाल के माओवादियों की तरह आइए, चुनाव लडि़ए, हमें हरा दीजिए। क्‍योंकि अगर जम्‍हूरियत में विश्वास नहीं करते हैं तो आपके विकास की सोच का पैमाना दूसरा होगा। विकास से स्कूल आएगा, अस्पताल आएगा। मैं दो साल देश का संचार मंत्री भी रहा हूं। तब हमने गृह मंत्रालय के साथ मिलकर माओवादी इलाके में थाने के बगल में मोबाइल टॉवर लगवा दिए और उनकी सुरक्षा के लिए पुख्‍ता इंतजाम किया। उन इलाकों में फोन चलने लगे और लोग दुनिया से जुड़ गए। यह समय सूचना और तकनीक का है। हमने आईटी विभाग में एक आंदोलन शुरू किया है, कॉमन सर्विस सेंटर। जिस वक्‍त हम सरकार में आए थे इन सर्विस सेंटरों की संख्‍या 70 या 75 हजार थी अब उनकी संख्‍या बढ़ा कर दो से ढाई लाख कर रहे हैं। ये सर्विस सेंटर छोटे शहरों में, गांवों में आधार कार्ड बनाते हैं, पासपोर्ट बनाते हैं, बैंकिंग सर्विस देते हैं, रेलवे का टिकट देते हैं। उबर के साथ उनका करार करा दिया है। इन कॉमन सर्विस सेंटरों के जरिए ड्राइवर पुलिस वेरिफिकेशन और लाइसेंस के साथ उबर में आवेदन कर सकते हैं। जल्द ही सेंटर बिजली के बिल का भुगतान भी लेंगे। यह भी देखना होगा कि इन इलाकों में माओवादियों की लोकप्रियता कैसी है। क्‍योंकि लोग विकास तो चाहते हैं डिजिटल इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया, मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया के माध्यम से। इनके माध्यम से जैसे ही अवसर मिलेंगे विकास होगा।

बैजंती देवी बोध गया से आगे 30 किलोमीटर दूर गांव में कॉमन सर्विस सेंटर चलाती हैं। अति पिछड़े परिवार की महिला हैं। उसने न सिर्फ खुद कंप्यूटर सीखा बल्कि अब दूसरे लोगों को डिजिटल साक्षर बनाती हैं। वह इलाका माओवादी इलाका है। जब मैंने उनसे पूछा कैसे काम करती हो तो वह बोली, 'भैयाजी लोग समझते हैं कि हम ठीक काम करते हैं।’ मैंने फिर पूछा, तुमको परेशानी होती है? उसने कहा, 'नहीं अब लोग इसकी उपयोगिता समझ रहे हैं। अब इतनी बच्चियों को काम सिखा दिया है कि हमारी सेना बन गई है।’ माओवादी इलाकों में जितना भी महत्वपूर्ण काम हो रहा है उसे बाहर आना चाहिए। अब देखिए पोस्ट ऑफिस हर जगह है। मैंने डाकियों से बात की तो उन्होंने कहा कि हमारा काम धीमा चल रहा है। अब सब काम मोबाइल और कंप्यूटर से हो जाता है। हमने डाकियों को ई-कॉमर्स से जोड़ दिया। अब वे लोग मोबाइल, कपड़े और दूसरे सामान डिलीवर कर रहे हैं। माओवादी इलाकों में भी इसकी चाहत है लेकिन वहां जब कोशिश होती है तो प्रतिकार होता है। क्‍योंकि उनको लगता है यदि ये चीजें लोगों तक पहुंच गईं तो फिर उनका हिंसा से विश्वास उठ जाएगा। इसलिए ऐसे क्षेत्रों में स्किल सेंटर खुलना चाहिए। यही स्किल सेंटर विकास को आगे बढ़ाएंगे।

माओवादी इलाकों में स्कूलों की क्‍या स्थिति है इस पर भी चर्चा होनी चाहिए। वहां स्कूल क्‍यों नहीं चलते, उनके चलने में क्‍या कठिनाई है। कई बार शिक्षक डर से नहीं जाते और कई बार स्कूल को बम से उड़ा दिया जाता है। यह बातें संवाद से ही सुलझेंगी। उनकी बात भी सुनी जाए और अपनी भी कही जाए। माओवादी जहां भी सक्रिय हैं वे सभी गरीब इलाके हैं। मतलब कहीं न कहीं उपेक्षा तो हुई है। लेकिन यह भी सच है कि लोग अपने प्रयासों से बदलाव ला रहे हैं। मैं बस इतना कहना चाहता हूं कि देश के आईटी मंत्री के रूप में मैं जिस देश को देख रहा हूं उससे अचंभित हूं। सभी देशवासियों में बदलाव की जबर्दस्त चाहत है। यह इसी से पता चलता है कि 125 करोड़ लोगों के बीच में 104 करोड़ मोबाइल फोन हैं। 107 करोड़ लोगों के आधार कार्ड हैं। 50 करोड़ के पास इंटरनेट है। आधार कार्ड को जोड़ कर जनधन खाते में जो काम हुआ वह अभूतपूर्व है। एक अंतिम बात जिस पर चर्चा होनी चाहिए, वह है मानवाधिकार। जब मानवाधिकार की चर्चा होगी तो हिंसा से पीडि़त लोगों की चर्चा होनी चाहिए कि नहीं? इस पर सोचने की जरूरत है। एक पुलिस वाला, शिक्षक या अफसर मारे जाते हैं, तब उनके मानवाधिकार के बारे में कौन बात करेगा। आखिर क्‍यों मानवाधिकार की पूरी बहस एकपक्षीय हो गई है। इस पर गौर करें।

(आउटलुक संवाद में दिए गए संबोधन का संपादित अंश)

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