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साथ चले सुरक्षा और विकास

न क्‍सलवाद की समस्या एक दिन में पैदा नहीं हुई। शुरुआत में इस समस्या के प्रति न तो गंभीरता दिखाई गई और न ही इसके समाधान के लिए काम हुआ। इसे विधि व्यवस्था की समस्या के साथ राज्य का विषय माना गया।
वीडी राम

चार दशक बाद इसे राष्ट्र की समस्या माना गया औïर विकास की बात होने लगी। 1967 में शुरू हुई यह समस्या देश के लिए बड़ी चुनौती है। हमारे प्रधानमंत्री ने भी इसे आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बताया है।  इससे निपटने में पूर्व में कोशिशें हुईं पर वे कामयाब नहीं हुईं। आज केंद्र और झारखंड की सरकार इससे निपटने के लिए सकारात्मक प्रयास कर रही है। यहां सुरक्षा के साथ विकास की ट्विन थ्योरी के साथ काम किया जा रहा है।

हमारे कौशल विकास मंत्री राजीव प्रताप रूडी ने स्किल डेवलपमेंट की बात कही है। ग्रामीणों में कौशल विकास का कार्यफ्म चला कर नक्‍सली गतिविधियों को रोका जा सकता है। क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के विकास के साथ यह भी जरूरी है कि यहां संचार की भी सुविधा हो। सडक़ों के साथ मोबाइल भी जरूरी है।  ऐसा होने पर वहां की जनता को लगेगा कि सरकार और प्रशासन उनके साथ है। प्रशासन उनके हितों की रक्षा करेगा। इसका नतीजा होगा कि वह नक्‍सली लोगों का विरोध करना शुरू करेंगे। संचार संपर्क होने से नक्‍सलियों की अफवाहों को भी ज्यादा हवा नहीं मिल सकेगी। सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद होगी तो विकास का फायदा वहां के लोगों को मिलेगा। मेरा मानना है कि विकास के साथ सुरक्षा बहुत जरूरी है। मेरा पुलिस में कार्य करने का अनुभव यह है कि नक्‍सलियों के जो इलाके खाली कराए गए वहां पर्याप्त विकास कार्य नहीं हुआ। अगर पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों के बीच बेहतर तालमेल होता तो इसके परिणाम बेहतर आते। खाली हुए नक्‍सली इलाकों में विकास कार्य की तस्वीर कुछ और होती।

नक्‍सल जैसे संवेदनशील इलाकों के लिए विकास की रुपरेखा पहले सेे तैयार हो, उसके बाद ही कार्य होने चाहिए। ऐसे इलाकों के लिए जन भागीदारी की बात हो। भागीदारी होने से उत्साह उत्पन्न होगा तो नक्‍सालियों के दुष्प्रचार अपने आप समाप्त हो जाएंगे। सुरक्षा में जन भागीदारी होगी तो वहां के लोगों का शासन के प्रति विश्वास स्थापित होगा। जनता पुलिस को अपना हितैषी मानेगी। अभी नक्‍सली दुष्प्रचार फैलाते हैं कि सरकार उनके जल, जंगल और जमीन पर कब्‍जा जमाना चाहती है। सरकार कंपनियों को यहां के जंगल और जमीन दे देगी। नक्‍सालियों के ऐसे दुष्प्रचार को गंभीरता से लेते हुए शासन को आदिवासी इलाकों में हो रहे भूूमि सौदों का सच जनता के सामने सार्वजनिक करना चाहिए। विकास की मांग के बीच अगर इलाकों में कंपनियों से मिलकर उद्योग उपफ्म स्थाापित करना पड़े तो सरकार को इसका पूरा विवरण वहां की जनता के सामने रखना चाहिए। नक्‍सली इलाकों में मीडिया को और अधिक आजाद करना होगा। इससे सही रिपोर्टिंग होगी तथा प्रशासन को क्षेत्र के बारे में सटीक और सही जानकारी मिल सकेगी। जिसका उपयोग विकास योजनाओं को तैयार करने में बहुत उपयोगी होगा। सरकार को

नक्‍सलियों की कथनी और करनी के अंतर को भी उजागर करना चाहिए। इससे भी इलाके का जनमानस नक्‍सलियों से अलग होगा। इन इलाकों में तैनात सुरक्षा जवानोंं को आधुनिक तकनीक से लैस करना चाहिए। सुरक्षा जवानों के प्रशिक्षण में मानवीय मूल्यों की संवेदना पर जोर होना चाहिए। ताकि वह नक्‍सल प्रभावित इलाकों के लोगों के साथ संवेदनशील व्ययवहार करें। दमनकारी कार्रवाई से जनता पर इसका गलत असर पड़ेगा। नक्‍सलियों की मांद में अधिक से अधिक पुलिस पिकेट की व्यवस्था करनी चाहिए।

 

फोटोः संजय रावत

लोकतांत्रिक तरीके से हो समस्या का हल

भीष्म नारायण सिंह

पूर्व राज्यपाल एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री

नक्‍सलवाद की समस्या का समाधान लोकतांत्रिक तरीके से होना चाहिए। कोई भी सरकार अपने लोगों पर गोली नहीं चलाना चाहती। जिस तरह से नेपाल के माञ्चिर्सस्ट बदल गए उसी तरह हमारे यहां के माञ्चिर्सस्टों को भी चाहिए कि वे समय रहते बदल जाएं। नक्‍लसवाद की समस्या का समाधान सभी चाहते हैं चाहे वे सरकार में शामिल हों, सरकार से बाहर बैठे हों या समाजसेवी संस्थाएं हों। लोकतंत्र में आप पद पर हैं या नहीं हैं पर आपकी बड़ी भूमिका है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी इसके उदाहरण हैं। उन्होंने बिना किसी पद पर रहे देश को आजादी दिलाई। बिहार में मुजफ्फरपुर से सात किलोमीटर दूर मुशहरी गांव में जब नकस्लवाद की समस्या खड़ी हुई तो वहां लोकनायक जयप्रकाश नारायण ढाई दिन तक रहे और हालात सामान्य हो गए।

लोकतंत्र में किसी भी समस्या के समाधान के लिए वहां राजनीतिज्ञों का पहुंचना जरूरी है। मैं जब असम का गवर्नर था तब मैंने गुवाहाटी विश्वविद्यालय के समारोह में जाने का फैसला लिया। इस वक्‍त राज्य की स्थिति बहुत ही अशांत थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी इससे बहुत चिंतित थीं। उनका मानना था कि किसी भी समस्या का हल राजनीतिक तरीके से खोजा जाना चाहिए। विश्वविद्यालय में छह साल से कोई चांसलर नहीं गया था। मेरे फैसले से राज्य के मुख्‍यमंत्री हितेश्वर सैकिया सकते में आ गए। प्रशासनिक अधिकारी भी चिंतित हो गए। पर मैं वहां गया। पीके महंथा उस समय वहां छात्र नेता थे। उन लोगों ने 45 मिनट तक मेरी बात सुनी। अधिकारियों के मना करने के बाद भी मैंने छात्रों के साथ चाय पी। ऐसा करने से विश्वास बढ़ता है। जब मुझे इस राज्य का राज्यपाल बनाया गया था तो मेरे घर वालों ने कहा था कि आप कहां जा रहे हैं। यहां जो लोग आंदोलन कर रहे हैं उनका किसी पर विश्वास नहीं है। लेकिन मैं वहां गया। लोगों से मिला, मुझे कुछ नहीं हुआ। आज भी आपके बीच हूं। हर राजनीतिज्ञ को ऐसे प्रयास करने चाहिए।

नक्‍सलवाद की समस्या का निदान गोली मार कर नहीं किया जा सकता। इसके लिए लोगों के दिल में परिवर्तन लाना होगा। आज स्थिति बदल रही है। झारखंड में सरकार स्थिति में काफी सुधार ला रही है। विकास काफी जरूरी है। हमारे प्रधानमंत्री भी कहते हैं सबका साथ-सबका विकास। हमें अंधकार के आगे जहां कोई रास्ता नहीं दिखाई देता वहां रोशनी की तलाश करनी चाहिए। राजनीतिज्ञों को पूर्व होने की जगह सक्रिय हो कर अपनी भूमिका निभानी चाहिए। पद में एक्‍स लग जाने से आपका दायरा बढ़ जाता है।

 

फोटोः संजय रावत

विकास से ही दूर होगी समस्या

मनीष शंकर शर्मा

मध्य प्रदेश के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी

विश्व में बहुत ज्यादा ऐसी समस्याएं नहीं हैं जो इतने लंबे समय से चल रही है। 1960 के दशक के अंतिम चरण से नक्‍सलवाद की समस्या शुरू हुई और आज भी हम इससे जूझ रहे हैं। फिलिस्तीन और मध्य पूर्व की समस्या है वो भी इतनी ही पुरानी है। लेकिन बहुत देशों इस तरह की समस्याओं के उदाहरण नहीं मिलेंगे। लेकिन हमें इस पहलू पर जरूर विचार करना होगा कि इस समस्या को कैसे दूर किया जा सकता है। आज इस तरह की समस्या के बढऩे के पीछे जो प्रमुख कारण हैं उनमें आय में असमानता है। भारत में आय में असमानता क्‍यों हैं इस पर कभी गंभीरता से विचार नहीं हुआ। विश्व के कई देशों ने इस समस्या को दूर किया या फिर कम किया लेकिन हम कई देशों के मुकाबले में पीछे रह गए।

नक्‍सलवाद एक प्रकार का आतंकवाद है और हम इन दोनों ही समस्याओं से जूझ रहे हैं। ग्लोबल टेरीरिज्म इंडेक्‍स के मुताबिक इस समस्या से जूझने वाले देशों में भारत छठे स्थान पर हैं। यमन, सोमालिया भी हमसे कम प्रभावित हैं। लाल गलियारे में जो शुरुआत है उन सबके पीछे भेदभाव की भावना बलवती रही है। इराक और सीरिया भेदभाव के कारण ही आज इस्लामिक एस्टेट की समस्या से जूझ रहे हैं। कुछ ऐसी ही समस्या हमारे यहां भी पनपी लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति के कारण इस समस्या में कमी आई। जिन सरकारों ने बेहतर काम किया है वहां इस समस्या का अंत होता नजर आ रहा है। लेकिन एक बड़ी बात इसमें है कि मीडिया का बहुत बड़ा उपयोग आतंकवाद और

नक्‍सलवाद में होता रहा है। सोशल मीडिया के आने के बाद इसका प्रभाव और बढ़ा है। इस्लामिक एस्टेट ने जब अपना प्रभाव फैलाना शुरू किया तो उसमें सबसे पहले मीडियाकर्मियों को बंधक बनाना शुरू किया ताकि पूरे विश्व की नजर उनके अभियान पर पड़े। उसका असर भी देखने को मिला कि इस्लामिक एस्टेट कम समय में पूरी दुनिया में चर्चा के केंद्र में आ गया। नक्‍सलवाद किन कारणों से पनपता है हमें उन पर ध्यान देना होगा। भूमि अधिग्रहण, जमीन से बेदखली, जीवन-यापन के बंद होते रास्ते, सामाजिक विषमताएं, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, आय में असमानता आदि प्रमुख हैं। अब इसमें बदलाव आ गया है। लेकिन जो महत्वपूर्ण बिंदु है उसमें सबसे प्रमुख यह है कि जो राज्य गरीबी से जूझ रहे हैं वहां इस प्रकार की समस्या ज्यादा है। लेकिन कुछ सालों में इस समस्या में कमी आई है। इसका प्रमुख कारण है कि हमारे अर्धसैनिक बल के जवानों के साथ-साथ सरकारों का इस समस्या से प्रभावित इलाकों पर विकास की ओर ध्यान देना है।

 

फोटोः संजय रावत

सडक़ें लिखेंगी विकास की कथा

डी.एम. अवस्थी

डीजी, नक्‍सल ऑपरेशंस, छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में 2003 में मुख्‍यमंत्री डा. रमन सिंह के नेतृत्व में नक्‍सलियों के खिलाफ शुरू की गई लड़ाई में सडक़ें विकास की नई कहानी लिखेंगी। दोरनापाल से जगरगुंडा के बीच 56 किलोमीटर और इंजरम से भेजी के बीच की 20 किलोमीटर की सडक़ें जब बन कर तैयार हो जाएंगी तो राज्य से नक्‍सलवाद खत्म हो जाएगा। इन सडक़ों का निर्माण पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन ने दिसंबर 2015 में शुरू किया। काम में विघ्न डालने के लिए नक्‍सलियों ने हजारों लैंड माइंस लगाए, कई हमले किए पर वे हमें लक्ष्य से नहीं डिगा पाए। ये वही इलाके हैं जहां पुलिस बल से लेकर राजनीतिज्ञों पर कई हमले किए गए। 2013 में हुई हमले में कांग्रेस के कई बड़े नेता मारे गए। बस्तर में

नक्‍सलियों ने 204 सडक़ों और पुलियों को ध्वस्त किया। 1201 मशीनरी को तोड़ डाला। इनमें बीआरओ की भी मशीनरी शामिल थी। रेलवे की 81 संपîिायों को ध्वस्त किया गया। यह नक्‍सलियों का विनाशवाद था।

एंजरम से भेजी तक की सडक़ अगले साल जनवरी या फरवरी में बन तक तैयार हो जाएगी। इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी या मुख्‍यमंत्री डा. रमन सिंह करेंगे। दोरनापाल-जरगुंडा सडक़ पर जल्द ही प्रारंभिक काम पूरा कर लिया जाएगा। यहां पर अप्रैल तक डीएम या अन्य अधिकारी वाहन से आ-जा सकेंगे। ये सडक़ें लाल गलियारे में विकास का रास्ता होंगी। सडक़ बनाने का काम पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन का नहीं है। पर जब यहां चार साल में कई बार टेंडर निकाले जाने के बाद भी कोई काम नहीं हुआ तो मुख्‍यमंत्री ने मुझसे इस सडक़ को बनाने के लिए कहा। यह चुनौती थी जिसे हमने स्वीकार किया। इससे पहले हमने नक्‍सलवाद से सर्वाधिक प्रभावित बस्तर जिले में 125 पक्‍के पुलिस स्टेशन बनाए। दोरनापाल के पुलिस स्टेशन का उद्घाटन गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने किया। इससे यह संदेश गया कि केद्र भी यहां के विकास के लिए गंभीर है। इससे पहले इस क्षेत्र के थाने घास-फूस के बने थे। यहां पुलिस के जवान न तो बैठ सकते थे न ही अधिकारी यहां कोई मीटिंग कर सकते थे। यहां से सशस्त्र नक्‍सलियों का सामना करना मुश्किल था। इस लिए मजबूत थाने बनाए गए जहां से माओवादियों का मुकाबला किया जा सके। 2011-12 में पीडब्‍ल्यूडी कुछ काम नहीं कर पा रहा था। ऐसे में हमारी भूमिका काफी बढ़ गई थी। पीडब्‍ल्यूडी के प्रिंसिपल सेक्रेटरी अमिताभ जैन कहते हैं कि पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन इज गेम चेंजर इन नक्‍सली एरिया। इसे हमने अपना बोध वाक्‍य बना लिया। आज नतीजा सबके सामने हैं।

नक्‍सलवाद से लड़ाई में मुख्‍यमंत्री डॉ. रमन सिंह को हमसे ज्यादा अनुभव है। उन्होंने समस्या के समाधान के लिए दिल से काम किया है। इन्हें

नक्‍सलियों से सबसे ज्यादा खतरा है फिर भी इन्होंने अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति को नहीं छोड़ा है। नक्‍सल समस्या के समाधान में मीडिया की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। जिस तरह का संवाद यहां हो रहा है इसी तरह का संवाद बस्तर या सुकमा में भी होना चाहिए।

 

फोटोः संजय रावत

हथियार के बूते नहीं पलट सकते राज्य को

विभूति नारायण राय

साहित्यकार एवं पूर्व आईपीएस

पूरी दुनिया में राज्य इतनी ताकतवर संस्था हो गया है कि हथियार के बल पर अब राज्य को नहीं पलट सकते। 1950 के बाद आप एक भी उदाहरण दीजिए जिसमें ताकत के बल पर किसी ने भी, चाहे वह पुराने माक्‍र्सवादी रहे हों, या जिनको हम आज माओवादी कहते हैं, राज्य की सत्ता या मशीनरी पर कब्‍जा किया हो। अभी ग्वाटेमाला का, एक लैटिन अमेरिका के देश का हवाला दिया गया, वो सबसे अच्छा उदाहरण है। साठ साल लडऩे के बाद अब उन्होंने समझौता किया। नेपाल ने 25-30 साल तक संघर्ष किया और उसके बाद समझौता किया तो अब आप राज्य को हथियार के बल पर नहीं पलट सकते। इस तरह के अतिवादी आंदोलन जो हथियार के बल पर सत्ता हथियाना चाहते हैं, उन सबमें पाएंगे कि धीरे-धीरे ये जो अंडरग्राउंड मूवमेंट हैं ये अंडरवल्र्ड मूवमेंट में परिवर्तित हो जाते हैं। आपने उल्फा का इतिहास पढ़ा होगा कि अनूप चेतिया वगैरह की अरबों रुपये की संपîिा बांग्लादेश के बैंकों में आ गई थी। ये 25-30, 40-50 साल के अंदर डीजेनरेट होंगे ही, खत्म होंगे ही। लेकिन उनका जो सबसे बड़ा योगदान है जिसे हमने स्वीकार नहीं किया मैं उसकी तरफ आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं। ऐसा नहीं था कि हमने रातों-रात सपने देखे कि हमको इन क्षेत्रों में सडक़ें, स्कूल, अस्पताल बनाने हैं, यहां नमक पहुंचाना है। ये तो एक रात दुस्वप्न से जागे तब हमें समझ में आया कि अगर हम इन्हें जानवर की तरह रखेंगे तो ये हथियार उठाएंगे। ये हथियार उठाएंगे तो हम अपने महलों में आराम से सो नहीं पाएंगे।

आप उनकी जमीनें छीन ले रहे हैं, आप उनको निकाल दे रहे हैं, ऐसे हालात हैं कि यूरेनियम जैसी खतरनाक चीजें आप निकाल रहे हैं। हिंदी में एक बहुत अच्छा उपन्यास आया है। जो ये बताता है कि कैसे हजारों-लाखों लोग कम उम्र में बूढ़े हो जा रहे हैं, उनको कैंसर हो जा रहा है और किसी के कान पर तब तक जूं नहीं रेंगती जब तक वो हथियार नहीं उठा लेते।

मुझसे पहले आए वक्‍ता ने ग्राफ से दिखाया कि कैसे असमानता बढ़ रही है। असमानता बढ़ेगी तो माओवाद आएगा, माओवाद नहीं तो कोई और वाद आएगा। हम लगातार ये समझाते रहे हैं अपनी जनता को कि इसमें चीन का हाथ है, इसमें माओ का हाथ है। ऐसा कुछ नहीं है। जब नक्‍सल आंदोलन शुरू हुआ था तो तीन बड़े

नक्‍सली नेता पेकिंग गए थे और माओ त्से तुंग से मिले। माओ ने उन्हें डांटकर भगा दिया। कहा, तुम्‍हारी लड़ाई है। मैं तुम्‍हें बैठकर गाइड नहीं करूंगा। आज भी इनको बाहर से किसी तरह का सपोर्ट नहीं मिल रहा है। ये तो असमानता की उपज है। जब ये बंदूक लेकर खड़े हो गए तो कहा कि अब इनसे निपटना है तो अस्पताल, सडक़, स्कूल बना दो। ये जो पूरी मानसिकता है, वही गलत है। हमको कहीं न कहीं इस पर विचार करना पड़ेगा कि ये जनता का अधिकार है। जिन पक्‍की सडक़ों से महिलाएं अस्पताल जा रही हैं, बच्चे आसानी से स्कूल जा रहे हैं, उन्हीं पक्‍की सडक़ों पर वो हत्यारे भी जाते हैं जो उनकी औरतों को उठा ले जाते हैं, जो उनकी बकरियां या मुर्गियां चुरा लेते हैं। आप एक बार ये घोषित कर दीजिए कि ये सडक़ें जो बन रही हैं इन पर कोई सिक्‍यूरिटी फोर्स का आदमी नहीं चलेगा। आप देखिए कोई उन सडक़ों को नहीं तोड़ेगा। दरअसल उनका अनुभव बहुत खराब है हमसे। हम हमेशा लूटते रहे। बस्तर की आप कल्पना कीजिए। आप महाश्वेता देवी का उपन्यास पढि़ए। आधा किलो नमक पर आदिवासी परिवार की सारी महिलाओं को बिछा लेते थे ठेकेदार। जब तक हम उन्हें ये नहीं समझाएंगे कि भैया ये विकास हम तुम्‍हारे लिए कर रहे हैं, ये विकास इसलिए कर रहे हैं कि तुम्‍हारे बच्चे स्कूल जा सकें, तुम्‍हारी महिलाएं आसानी से प्रसव करने के लिए अस्पताल जा सकें। जब तक ये नहीं समझाएंगे, तो कोई काउंटर नैरेटिव पैदा नहीं हो सकता।

भई, आप तो कह रहे हैं कि 67 से चल रहा है और 67 से अभी तक ये खत्म नहीं हुआ, ये बड़े शर्म की बात है। आप ये नहीं कह रहे कि 67 में जो गैर बराबरी थी अब तो उससे भी कई गुना बढ़ गई। माओवादियों की मैं पूरी निंदा करता हूं लेकिन उसके बाद भी मैं चाहता हूं कि उनको हम आतंकवादी न कहें, हम इस बात पर दुख न प्रकट करें कि अरे वे 67 से चले आ रहे हैं, हम उन्हें खत्म नहीं कर पाए, उनसे मुक्‍त नहीं हो पाए। इन मुद्दों को अगर आप समस्या और आतंकवाद से जोड़ते हैं तो ये हल नहीं होंगे।

(आउटलुक संवाद में दिए गए संबोधन का संपादित अंश)

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