इस दुनिया में मौत और टैक्स के सिवा कुछ भी निश्चित नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी जब 2014 की शुरुआत में सभी तरह के करों से मुक्ति की बात की थी तो लोगों ने इसे चुनावी हथकंडा ही समझा था। प्रधानमंत्री द्वारा 500 और 1000 के नोट अमान्य कर दिए जाने के बाद कई अन्य आर्थिक प्रक्रियाओं में सुधार होगा, अब ऐसी सूचनाओं को बल मिल रहा है। इन सभी सूचनाओं में इनकम टैक्स यानी आयकर पर सबसे ज्यादा बात हो रही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आनुषंगिक संगठन भारतीय मजदूर संघ के महासचिव विरजेश उपाध्याय व्यक्तिगत आयकर को खत्म कर देने की मांग के साथ वित्त मंत्री अरुण जेटली से पिछले दिनों मिले। माना जा रहा है कि नोटबंदी के बाद हालात सामान्य न होने से संघ चिंतित है और संघ के इशारे पर ही भारतीय मजदूर संघ ने लोगों के बीच व्यक्तिगत आयकर छूट की मांग को मरहम की तरह पेश किया है। विरजेश उपाध्याय ने कहा, 'प्रधानमंत्री का नोटबंदी का यह कदम बहुत साहसिक है। लेकिन अब इसके आगे भी काम होना चाहिए।’ विरजेश उपाध्याय ने वित्त मंत्री अरुण जेटली को पत्र लिखा है, जिसमें मांग की गई है कि व्यक्तिगत आयकर समाप्त करने के साथ पेंशन की न्यूनतम सीमा को 1000 रुपये से बढ़ाकर 5000 रुपये किया जाए। भारतीय मजदूर संघ ने कहा है कि वह अर्थक्रांति के समर्थन में है और नोटबंदी के ऐतिहासिक कदम के बाद व्यक्तिगत आयकर को खत्म कर देना चाहिए। भारतीय मजदूर संघ ने आगामी वित्त वर्ष 2017-18 के लिए वित्त मंत्री को मांगों की एक सूची भेजी है। इस सूची में सरकार से सामाजिक क्षेत्र मामलों का अलग विभाग बनाने की मांग भी है। सूची में कोठारी आयोग रिपोर्ट का संदर्भ देते हुए मांग की गई है कि बजट की छह प्रतिशत राशि स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च होनी चाहिए। मजदूर संघ ने संस्थानों और फैञ्चिट्रयों में काम के दिन पांच करने के बारे में भी लिखा है। वैसे इस सूची में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तिगत आयकर में छूट ही है जिसका समर्थन पहले बाबा रामदेव और भारतीय जनता पार्टी के नेता सुब्रह्मïण्यम स्वामी भी करते आ रहे हैं।
गौरतलब है कि आर्थिक विचार मंच अर्थक्रांति ने देश से कालाधन उन्मूलन और आयकर सहित 50 से अधिक तरह के टैक्स खत्म करने के लिए कई सुझाव दिए हैं। ऐसा भी नहीं है कि कोई देश शून्य आयकर वाला है ही नहीं। संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), ओमान, बहरीन, कतर और सऊदी अरब जैसे कई ऐसे खाड़ी देश हैं जहां आयकर की अवधारणा नहीं है। इसी तरह केमन द्वीप समूह, बहामास और ब्रूनेेई जैसे कुछ अन्य देश भी हैं जहां आयकर देने की जरूरत नहीं होती। यदि आप और गहराई से अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि एशिया में ब्रूनेई को छोडक़र आयकर मुक्त देशों की इस पूरी सूची में पश्चिमी एशियाई देशों या उष्णकटिबंधीय पर्यटन स्थलों का ही वर्चस्व है जो राजस्व अर्जन के लिए दो जरूरी कारकों पर निर्भर हैं। छह पश्चिम एशियाई देशों और ब्रूनेई में तेल और प्राकृतिक गैस के अपार भंडार से ही सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का एक बड़ा हिस्सा मिल जाता है जबकि बहामास, केमन द्वीप समूह और बरमूडा की अर्थव्यवस्था पर्यटन तथा अत्यंत खर्चीले रहन-सहन पर निर्भर है जिस वजह से अमीर पर्यटक इस देश में खिंचे चले आते हैं।
टैक्स से मुक्ति की राह
अर्थक्रांति ने एक नई कर प्रणाली का प्रस्ताव दिया है-बैंकों की लेनदेन पर टैक्स (यानी बीटीटी) जिससे सुनिश्चित होगा कि बैंकों के जरिए होने वाली हर लेनदेन से एक उचित अनुपात में कर कटौती की जाए। बैंकिंग लेनदेन पर लगने वाला लेवी (अधिभार) कर संग्रह विभागों के बजाय बैंकिंग चैनल के जरिए ही जुटाया जाए। इससे न तो राजस्व का नुकसान होगा और न ही कर चोरी या इससे बचने का कोई विकल्प रह जाएगा। इस प्रस्ताव में गणना कर बताया गया है कि मात्र दो प्रतिशत टैक्स लगाने से ही 40 लाख करोड़ रुपये खजाने में आ जाएंगे। ऐसा दावा करने वाले जाने-माने अर्थशास्त्री और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पद्ब्रिलक फाइनेंस एंड पॉलिसी के सहयोगी राजीव कुमार का मानना है कि प्रस्तावित नई कर प्रणाली से 14 लाख करोड़ रुपये जुटाए जा सकते हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ नकदी लेनदेन ही है और यही एक मुख्य वजह है कि हमारे पास एक व्यापक समानांतर अर्थव्यवस्था है और कभी-कभी यह हमारी मुख्य अर्थव्यवस्था भी बन जाती है। अर्थक्रांति के अनिल बोकिल बताते हैं कि बैंकिंग प्रणाली ही आधुनिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ हो सकती है और प्रत्येक भारतीय को बैंकिंग प्रणाली से जोडऩे के लिए हरसंभव कदम उठाया जाना चाहिए। मौजूदा वक्तकी मांग है कि कम से कम नकदी आधारित अर्थव्यवस्था को कम किया जाए, जिस तरह कुछ हद तक सरकार काम कर रही है।
परोक्ष करों पर अर्थक्रांति की दलील समझी जा सकती है जिसके लिए इसका यह कहना जायज लगता है कि अमीर और गरीब को एक ही तराजू पर तौला जाता है। इसका सुझाव है कि बीटीटी लागू होने से यह भेदभाव खत्म हो जाएगा और यह कराधान प्रणाली से संचालित होगा। खपत के अनुसार व्यक्तिगत खर्च की प्रत्यक्ष कराधान प्रणाली कराधान के इतिहास की सबसे पुरानी और सबसे कम आजमाई गई पद्धति है। यह पद्धति 17वीं शताब्दी से चली आ रही है।
कई सारे विशिष्ट अर्थशास्त्रियों की दलील है कि यह कराधान का 'आदर्श’ स्वरूप है। अंग्रेज दार्शनिक जॉन स्टुअर्ट मिल का मानना है कि आयकर का एकमात्र निरपवाद और मूल सिद्धांत है कि सभी तरह की बचत को कर मुक्त रखा जाए। चूंकि बचत कर अदायगी के बाद ही संभव होती है इसलिए इसके पैरवीकारों का दावा है कि इससे बचत को बढ़ावा मिलेगा और इस तरह निवेश को भी प्रोत्साहन मिलेगा। इस तरह की व्यवस्था हो जाने के बाद खर्च आधारित कराधान प्रणाली आयकर का विकल्प बन जाएगी।
कागजी तौर पर यह विचार बहुत अच्छा है
क्योंकि किसी व्यक्तिको अपनी खर्च क्षमता के मुताबिक ही टैक्स चुकाना पड़ेगा। लिहाजा, यदि कोई साल में एक करोड़ रुपये कमाता है लेकिन छह लाख रुपये ही खर्च करता है तो उसे एक करोड़ के बजाय छह करोड़ पर ही कर देना होगा। लेकिन यदि कोई साल में छह लाख रुपये कमाता है और बचत नहीं कर पूरी राशि खर्च कर देता है तो उसे भी एक करोड़ कमाने वाले जितना ही कर चुकाना पड़ेगा।
इसकी दलील है कि अधिकतम बचत से अधिक धन के निवेश को अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा मानना अत्यंत सैद्धांतिक विचार है और इसे अब तक साबित नहीं किया जा सका है। हां, खर्च पर टैक्स लागू होने से आप मौजूदा दौर की दोहरी कर विसंगति से जरूर मुक्त हो जाएंगे-जैसा कि अभी आपको अपनी आय पर भी टैक्स देना पड़ रहा है और साथ ही परोक्ष करों के रूप में उपभोग पर भी। पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा कहते हैं कि यदि हम पूरी तरह कर मुक्त व्यवस्था पर विचार करते हैं तो हम वैदिग युग में चले जाएंगे।
संकट से उबरने का उपाय
इंफोसिस के संस्थापक एन. आर. नारायणमूर्ति की सलाह है कि वर्तमान कर ढांचे में 10 प्रतिशत वृद्धि कर दें ताकि शिक्षा, स्वास्थ्य और अधोसंरचना निर्माण जैसी बुनियादी सुविधाओं पर अतिरिक्त निधि का इस्तेमाल किया जा सके। यह सुझाव टैक्स दायरे में अधिक से अधिक लोगों को लाने के मुकाबले अमीरों को ज्यादा गुस्सा दिलाने वाला है। सरकार टैक्स दायरे को कैसे बढ़ा सकती है, इस पर कभी उतनी चर्चा ही नहीं हुई, जितनी होनी चाहिए।
गरीब आयकर नहीं चुकाते, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सभी अमीर टैक्स चुकाते हैं। वे टैक्स चुकाते हैं लेकिन यह उनके लाभांश और पूंजी लाभ से अर्जित आय का ही बड़ा हिस्सा होता है, उनके वेतन का बहुत कम हिस्सा टैक्स में जाता है। अमीर टैक्स चुकाते हैं, इस मिथक को झुठलाने वाला प्रमाण इसी आंकड़े से मिल जाता है कि सालाना एक करोड़ रुपये से अधिक आय वाले सिर्फ 42,800 करदाताओं की ही पहचान हो पाई है। एक अन्य आंकड़ा है: व्यक्तियों द्वारा अर्जित कुल कर का 63 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ चार लाख लोगों से ही जुटाया गया जिनकी सालाना आय 20 लाख रुपये से ज्यादा थी। इसकी वजह यह है कि ये सभी वेतनभोगी हैं और इसलिए वे टैक्स अदायगी से बच नहीं सकते।
इस कार्यवाही का एक और महत्वपूर्ण पहलू है, उत्पाद कर और बिक्री कर में बदलाव लाना, जिसके लिए केंद्र को राज्यों से बात करनी पड़ेगी। प्रस्तावित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि इसे पूर्ववर्ती एक राष्ट्र-एक कर से एक राष्ट्र-चार कर स्लैब और अतिरिक्त सेस के तौर पर बदलाव के रूप में देखा गया है। सिन्हा कहते हैं कि सरकार को टैक्स के बिना उपार्जन के तरीके ढूंढऩे की जरूरत है, इसमें खर्च करने के लिए धन की आवश्यकता का कोई स्थान नहीं है।
आम आदमी पर कर का बड़ा बोझ आयकर चुकाने से पड़ता है जिसके लिए वह यह सोचे-समझे बिना यथासंभव इससे बच निकलने की कोशिश करता रहता है कि उसने परोक्ष रूप से कर अदायगी में कितना योगदान किया है। मसलन पिछले एक दशक के दौरान सेवा कर सरकार के लिए बड़ा वरदान बनकर उभरा है। शुरुआती दौर की 5 प्रतिशत सेवा कर दर के बजाय आज हम लगभग 15 प्रतिशत सेवा कर चुका रहे हैं जिसमें सेस (स्वच्छ भारत और कृषि कल्याण अधिभार) भी शामिल हो गया है। इस परिप्रेक्ष्य में आयकर बहुत हद तक मध्यवर्ग के वेतनभोगियों का ही कर होकर रह गया है, न कि अन्य किसी वर्ग का। हालांकि हमें इसमें पेशेवरों, अवैतनिक लोगों को भी शामिल करना चाहिए और इस दिशा में सरकार को भी काम करना चाहिए।
हमारे जीवन पर आयकर का व्यापक असर पड़ता है इसलिए हममें से कई लोग करचोरी या कम टैक्स अदायगी जैसे हथकंडों से इसमें धोखाधड़ी करने के प्रयास करते हैं। वेतनभोगियों को तो इससे बच निकलने की कोई गुंजाइश नहीं रहती है लेकिन नॉन-कॉर्पोरेट करदाताओं-पेशेवरों (डॉक्टरों, वकीलों आदि), कंपनियों (नॉन-कॉर्पोरेट), व्यक्तियों के संगठनों (एओपी) या व्यक्तियों के निकायों (बीओएल) के बारे में विचार करें, ये ऐसे वर्ग हैं जो पूरी तरह से टैक्स चोरी की क्षमता रखते हैं।
आयकर खत्म करने से बहुत सारे लोग और भारतीय कंपनियां भी खुश हो जाएंगी। यस बैंक के प्रबंध निदेशक और सीईओ राणा कपूर कहते हैं कि सरकार से हमारी उम्मीद बंधी हुई है कि जीएसटी के लागू होने के बाद वह कर ढांचे को उदार बनाने पर ध्यान देगी जिससे पारदर्शिता और प्रभावशीलता भी बढ़ेगी तथा अर्थव्यवस्था को व्यवस्थित करने की प्रक्रिया में भी संस्थागत उत्साह जगेगा, कॉर्पोरेट एवं व्यक्तिगत आयकर दरों में कमी आएगी। इस प्रकार यह दर उपभोक्ताओं की अपेक्षा से बहुत ज्यादा सुलभ हो जाएगी।
आयकर व्यवस्था खत्म करने का सबसे बड़ा फायदा करों के अनुपालन तथा प्रशासन में होगा। नियोक्ताओं को भी अधिक कर्मचारियों की नियुक्ति के झंझट से मुक्ति मिलेगी क्योंकि उन्हें बस टैक्स अदा करने की ही फिफ् रह जाएगी और कुछ मामलों में कर्मचारियों पर उनकी लागत कम हो जाएगी। नियमों के बंधन से मुक्ति का मतलब होगा कि सरकारी नियमों के पालन से भी मुक्ति मिल जाएगी। इससे यह स्थिति भी बन सकती है जहां बहुत सारे भारतीयों को नकदी संपन्न होने का अहसास तो होगा लेकिन वे सरकार से किसी तरह की सेवा की मांग नहीं कर पाएंगे क्योंकि इसके लिए वे कोई भुगतान नहीं कर रहे होंगे।
अगर यह दलील है कि पश्चिमी एशिया में यह व्यवस्था कैसे काम करती है तो आपको वहां की सरकार की कार्यप्रणाली समझनी होगी। इसके अलावा वहां के जिन देशों में आयकर देने का प्रावधान नहीं है, वहां का जीवन-यापन सस्ता नहीं है और स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसी सुविधाओं पर लोगों को अधिक खर्च करना पड़ता है। आयकर पूरी तरह से खत्म करने के बजाय अब शायद वक्त आ गया है कि सालाना 15 लाख रुपये से कम कमाने वालों को आयकर में छूट दे दी जाए और बीटीटी या उपभोग कर के दायरे में लाया जाए। इस तरीके से आप कुछ वर्षों में इस पहल को कसौटी पर भी परख सकते हैं और देख सकते हैं कि इससे अर्थव्यवस्था, करदाताओं और आबादी के बड़े तबके को कितना लाभ मिल रहा है।
आपको टैक्स क्यों चुकाना चाहिए?
भारत में एक प्रतिशत से भी कम आबादी आयकर देती है। वर्ष 2012-13 में कुल 2.87 करोड़ व्यक्तियों ने आयकर रिटर्न भरा जिनमें से 1.62 करोड़ व्यक्तियों ने कोई टैक्स नहीं चुकाया था, इस प्रकार कुल करदाताओं की संख्या महज 1.25 करोड़ रह गई थी जो उस साल की कुल आबादी का मात्र एक प्रतिशत हिस्सा ही थी। हालांकि यह संख्या थोड़ी बढ़ी है लेकिन किसी सार्थक नतीजे पर पहुंचने के लिए अभी लंबा सफर तय करना होगा। यदि आप इन आंकड़ों का गहन विश्लेषण करेंगे तो पाएंगे कि इन करदाताओं में से लगभग 90 प्रतिशत व्यक्ति निचले आयकर दायरे में आते हैं।
पिछले साल केंद्र सरकार को खर्च के लिए 17,83,172 करोड़ रुपये आवंटित हुए जो कि देखने से लगता है कि बहुत बड़ी रकम है और इससे हर किसी को बिजली, अच्छी सडक़ एवं सार्वजनिक सुविधाएं मुहैया हो जाएंगी। आयकर एवं कॉर्पोरेट कर-इंफोसिस, विप्रो, टाटा जैसी बड़ी कंपनियों से लेकर छोटी कंपनियों तक द्वारा जुटाया गया कुल आयकर और व्यक्तियों के वेतन, किराये से आय, पूंजी से लाभ तथा ब्याज से अर्जित आय पर कुल आयकर 7,97,995 करोड़ रुपये था।
शेष रकम ब्याज के भुगतान, सद्ब्रिसडी, डाकघरों तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उपफ्मों (पीएसयू) के नुकसान की भरपाई के लिए निर्धारित की गई। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि देश के विकास के लिए बहुत कम राशि खर्च होना खराब वित्तीय नीति का परिणाम है।
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ सांसद सुब्रह्मïण्यम स्वामी कहते हैं कि अमीरों के पास कम कर चुकाने, धोखा देने या पूरी तरह से बच निकलने के कई तरीके हैं। उनके मुताबिक, यह विसंगति ही भारत में कालेधन पैदा करने और इसके प्रवाहित होने का सबसे बड़ा कारण है। उनका कहना है कि आयकर खत्म कर दीजिए, देखिए कि बचत में कितनी वृद्धि होती है और इससे अर्थव्यवस्था भी सुधर जाएगी। चिंताजनक बात यह है कि कर संग्रह के बावजूद विकास की रफ्तार मंद है। इस तर्क के अनुसार यदि हम
टैक्स जुटाना बंद कर दें तो क्या होगा? क्या दिल्ली मेट्रो चल पाएगी? टैक्स नहीं लेने से क्या भारतीय रेल सिर्फ किराया लेने से चलती रहेगी? ये कुछ ऐसे तथ्य हैं, जिन पर किसी तरह के व्यापक बदलाव से पहले गंभीरतापूर्वक विचार करना जरूरी है।
हालांकि पिछले 5-6 साल के आंकड़े बताते हैं कि टैक्स संग्रह में वृद्धि हुई है लेकिन इसमें प्रत्यक्ष कर उगाही का ग्राफ नीचे गिरा है। व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट आयकर संग्रह बहुत ज्यादा उत्साहजनक नहीं है। मसलन, साल 2009-10 में जहां प्रत्यक्ष कर संग्रह 3.7 लाख करोड़ रुपये था वहीं साल 2015-16 में यह लगभग दोगुना यानी 7.4 लाख करोड़ रुपये हो गया। इस अवधि के दौरान कुल टैक्स में इसकी प्रतिशत हिस्सेदारी 10 प्रतिशत कम रही। अर्थव्यवस्था के संदर्भ में यह हिस्सेदारी देखी जाए तो साल 2007-08 का प्रत्यक्ष कर जीडीपी अनुपात 6.3 प्रतिशत से गिरकर साल 2015-16 में 5.47 प्रतिशत पर चला गया जो कि एक दशक में सबसे कम था।
आयकर खत्म कर दीजिए, देखिए कि आपकी बचत में कितनी वृद्धि होती है। चिंताजनक बात यह है कि कर संग्रह के बावजूद विकास की रफ्तार मंद है।
सुब्रह्मïण्यम स्वामी
वरिष्ठ भाजपा नेता
वर्तमान कर ढांचे में 10 प्रतिशत वृद्धि कर दें ताकि शिक्षा, स्वास्थ्य और अधोसंरचना निर्माण जैसी बुनियादी सुविधाओं पर अतिरिक्त निधि का इस्तेमाल किया जा सके।
एन.आर. नारायणमूर्ति
इंफोसिस के संस्थापक
हमारी उम्मीद बंधी हुई है कि जीएसटी के लागू होने के बाद सरकार कर ढांचे को उदार बनाने पर ध्यान देगी जिससे पारदर्शिता और प्रभावशीलता भी बढ़ेगी
राणा कपूर
यस बैंक के प्रबंध निदेशक और सीईओ
अगर 15 लाख तक आय पर खत्म हो जाए टैक्स
अभी की टैक्स स्लैब के अनुसार दो लाख रुपये तक की आय टैक्स छूट के दायरे में आती है। इसके बाद पांच लाख तक की आय पर 10 फीसदी, आठ लाख तक की आय पर 20 फीसदी और इससे ऊपर की आय पर 30 फीसदी कर लगता है। पांच लाख तक आय वाले यदि कोई टैक्स छूट क्लेम नहीं करते हैं तो उन्हें 50 हजार, आठ लाख वालों को 1 लाख 10 हजार रुपये और 15 लाख रुपये तक आय वालों को 3 लाख 20 हजार रुपये टैक्स चुकाना पड़ेगा। इसमें सरकार ने कुछ सेस भी लगा रखा है। अगर 15 लाख तक की आय पर इनकम टैक्स खत्म हो जाए तो लोगों की जेब में अच्छी-खासी रकम होगी जो अंतत: खर्च करने के लिए उपलब्ध होगी जिससे अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।