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कांग्रेस में मची है रार, कैसे बचेगी राज्यों में

राज्यों में कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति गरमाई, मामले आलाकमान के सामने, फैसले न होने से दुखी हैं नेता-कार्यकर्ता
सोनिया, राहुल और प्रियंका

कां ग्रेस आगामी 28 दिसंबर को 131वें वर्ष में प्रवेश कर जाएगी। आजादी की लड़ाई से लेकर 125 बरस तक देश के अधिकांश राज्यों में उसकी जड़ें मजबूत होती रहीं। लेकिन मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनाने के बाद कांग्रेस 29 में से मात्र 6 राज्यों में घिसटती सरकारें चला पा रही है। गढ़ कहे जाने वाले उत्तर या पश्चिम भारत के राज्यों में तो कांग्रेस कृशकायहालत में अस्तित्व के लिए सांसें गिन रही है। लोकसभा में नोटबंदी को लेकर भूचाल मचाने की चेतावनी देने वाले राहुल गांधी को कांग्रेस के उपाध्यक्ष से अध्यक्ष बनाने पर ही कोई फैसला नहीं हो पा रहा है। बार-बार राहुल गांधी को कमान सौंपने की चर्चा होती है, नेता मांग करते हैं, फिर भी कोई फैसला नहीं हो पा रहा है। जैसे ही राहुल लाओ की मांग तेज होती है, देश के कई हिस्सों में उनकी बहन प्रियंका गाधी को लाने के नारे भी तेज हो जाते हैं। पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह ने एक बार फिर दोहराया है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उपाध्यक्ष राहुल गांधी के साथ ही प्रियंका गांधी से चुनाव प्रचार का अनुरोध करेंगे। आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भी प्रियंका गांधी को प्रचार मैदान में उतारने की मांग हो रही है। वैसे जनवरी 2013 में कांग्रेस उपाध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी ही कांग्रेस के बड़े फैसले कर रहे हैं। उपाध्यक्ष बनने से पहले भी महासचिव के तौर उनकी भूमिका आलाकमान की रही थी। हाल ही में सोनिया गांधी की गैर मौजदूगी में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक की अध्यक्षता पहली बार राहुल गांधी ने की तो उन्हें पार्टी का अध्यक्ष बनाने की मांग फिर तेज हो गई। कार्यसमिति की बैठक में राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव किया है। उन्होंने कहा भी कि अब जिम्‍मेदारी लेने को तैयार हूं। फिलहाल पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, पंजाब और मणिपुर विधानसभा के चुनावों के कारण उन्हें पार्टी की कमान सौंपने का फैसला नहीं हो पाया है। अब अटकलें चुनाव बाद ही उनके अध्यक्ष बनने की हैं। पार्टी के संगठन चुनाव भी एक साल के लिए टाल दिए गए हैं। राहुल गांधी पिछले पांच साल से पार्टी की चुनावी कमान संभाल रहे हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा के पिछले चुनाव में उन्होंने जमकर प्रचार किया था। उत्तर प्रदेश में तो कांग्रेस सभी सीटों पर चुनाव लडऩे के बावजूद केवल 28 सीटें ही जीत पाई थी। तब से राहुल की अगुवाई में कांग्रेस 60 चुनाव हार चुकी है। जाहिर है कि पार्टी का एक बड़ा वर्ग उनकी जगह प्रियंका को राजनीति में लाने का तर्क दे रहा है। प्रियंका अभी तक अमेठी और रायबरेली में चुनाव प्रचार की कमान संभालती रही हैं। पार्टी के नेताओं में एक डर और है कि अगर राहुल गांधी पार्टी के अध्यक्ष बने तो कई नेताओं को घर बैठना पड़ेगा। कई का मानना है कि पद से नहीं, कार्यकर्ताओं और जनता में लोकप्रियता कायम करने से नेतृत्व की धाक बनती है। अध्यक्ष का पद तो गांधी, नेहरू, इंदिरा, राजीव के पास भी कभी था, कभी कोई अन्य पार्टी अध्यक्ष थे।

 

पांच साल में हारे ज्यादा-जीते कम

राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अगला लोकसभा चुनाव तो है साथ ही अगले ढाई साल में होने वाले विधानसभा चुनाव भी हैं। अगले साल 201। में सात राज्यों गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड विधानसभाओं के चुनाव होंगे। 2018 में कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा में चुनाव होंगे। 2019  में लोकसभा के चुनाव होंगे। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस 2। साल से बेहाल है। उत्तराखंड और मणिपुर में कांग्रेस की सरकार है। गोवा और पंजाब की सत्ता से भी कांग्रेस बाहर है। गुजरात में भी कांग्रेस लंबे समय से बाहर है। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के वीरभद्र सिंह मुख्‍यमंत्री है। अगले साल कांग्रेस के लिए उत्तराखंड, मणिपुर और हिमाचल प्रदेश में फिर से सरकार बनाने की चुनौती है। 2018 में कर्नाटक में सरकार बनाने के साथ ही राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को वापसी के लिए लडऩा होगा जहां भाजपा सत्ता के 15 वर्ष पूरे कर लेगी। मणिपुर और मिजोरम में भी कांग्रेस सरकार के सामने संकट है।

चुनावों से पहले राज्यों में जारी आपसी लड़ाई आलाकमान के लिए सिरदर्द साबित हो रहा है। राज्यों के नेताओं की आपसी लड़ाई राहुल गांधी के दखल देने के बावजूद सुलझ नहीं रही है। कुछ राज्यों में तो लड़ाई खूनी हो गई है। कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि अकेले राहुल पार्टी को नहीं संभाल सकते हैं। हाल-फिलहाल कुछ ऐसे फैसले हुए हैं, जिन्हें लेकर पार्टी के नेता और कार्यकर्ता खुश नहीं है। मसलन उत्तर प्रदेश में पार्टी की रणनीति बनाने का काम प्रशांत किशोर के जिम्‍मे करना। इसके विरोध में कई नेता इस्तीफा दे चुके हैं। दूसरा सवाल जो राहुल गांधी की काबिलियत को लेकर उठाया जा रहा है वह है लगातार चुनावों में हार। 2012 में उत्तर प्रदेश, पंजाब, गोवा और गुजरात में कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा तो 2013 में राजस्थान और दिल्ली की सत्ता से पार्टी बाहर हो गई। त्रिपुरा, नगालैंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस खस्ताहाल रही। राजस्थान में तो कांग्रेस की शर्मनाक हार हुई। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस केवल 44 सीटों तक सिमट गई। लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र और हरियाणा में कांग्रेस सरकार से बाहर हो गई। झारखंड और जम्‍मू-कश्मीर में गठबंधन में शामिल कांग्रेस अपने सहयोगियों के साथ सरकार बनाने में नाकाम रहे। 2015 में कांग्रेस का दिल्ली विधानसभा से पूरी तरह सफाया हो गया। 2016 में असम और केरल भी कांग्रेस के हाथ से गए। पश्चिम बंगाल में वामदलों संग दोस्ती करने के बावजूद कांग्रेस की सीटें कम हो गईं। तमिलनाडु में द्रमुक का साथ भी कांग्रेस को मजबूत नहीं कर पाया। 2012 में कांग्रेस ने उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और मणिपुर में सरकार बनाई थी। कर्नाटक में 2013 में भाजपा को सत्ता से बेदखल किया। मिजोरम और मणिपुर में भी सरकार बनाई। बिहार में नीतीश कुमार और लालू यादव के साथ गठबंधन करके कांग्रेस सरकार में जरूर शामिल हो गई, पर वहां भी अगले प्रधानमंत्री कौन को लेकर तकरार जारी है। 2016 में केवल पुड्डïुचेरी में चुनाव जीत पाई।

नोटबंदी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ हमला करने वाली कांग्रेस को चार लोकसभा और आठ विधानसभा के हालिया उपचुनावों में भी झटका लगा। भाजपा ने मध्य प्रदेश और असम में लोकसभा की सीट तो जीती ही साथ ही पश्चिम बंगाल में हार के बावजूद ज्यादा वोट बटोरे। त्रिपुरा में भी भाजपा ने पहली बार दूसरा स्थान हासिल किया। इसे उत्तर पूर्व में भाजपा के जनाधार में इजाफा माना जा रहा है। मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के स्थानीय निकायों के चुनावों में भी कांग्रेस कोई ताकत नहीं दिखा पाई।

 

अगले साल चुनौतियां ही चुनौतियां

अगले साल 201। में राहुल गांधी के लिए उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में दमखम दिखाना बहुत बड़ी चुनौती है। पार्टी की फजीहत हुई तो राहुल को कमान सौंपने के खिलाफ आवाज और बुलंद होगी। पार्टी ने उत्तर प्रदेश चुनाव में पूरी ताकत झोंक रखी है। दिल्ली की पूर्व मुख्‍यमंत्री शीला दीक्षित को मुख्‍यमंत्री के लिए चेहरा घोषित किया है तो सांसद राज बब्‍बर को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। अपने दम पर सरकार बनाने का दावा ठोक रही कांग्रेस समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन करने को आतुर है। मुलायम सिंह यादव और मायावती दोनों ने ही कांग्रेस को फिलहाल झटक दिया है। उत्तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव जरूर राहुल गांधी से हाथ मिलाने को तैयार हैं। वैसे कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में ज्यादातर चुनाव अकेले ही लड़े हैं। कांग्रेस ने 1985 में पूरे बहुमत के साथ उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई थी। उसके बाद हुए चुनावों में पार्टी लगातार सिमटती जा रही है। राम मंदिर आंदोलन की लहर के बीच हुए 1989 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 410 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 94 सीटें जीती। 1991 के चुनाव में पार्टी 46 सीटों तक पहुंच गई। 1996 में कांग्रेस ने राज्य में पहली बार बसपा से गठबंधन किया और 126 सीटों पर उम्‍मीदवार लड़ाए। सीटें केवल 33 मिलीं। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में चौधरी अजित सिंह की पार्टी रालोद के साथ मिलकर 355 सीटों पर चुनाव लड़ा और 28 सीटें ही जीत पाई।

राहुल गांधी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर गंभीर हैं। अपनी 26 दिन की खाट यात्रा के दौरान 48 जिले, 14 मंदिर, तीन मस्जिदें, छह दरगाहें, तीन गुरुद्वारे और एक चर्च में गए। खाट यात्रा के दौरान हिंदू विरोधी छवि को धोने की कोशिश की। केंद्र सरकार पर जमकर हमला बोला। अखिलेश सरकार पर सवाल उठाए और मायावती को भी घेरा। इसके बावजूद यात्रा से कांग्रेसियों के हौसले बुलंद नहीं हुए। सपा से गठबंधन के सवाल को लेकर कांग्रेसी बिदक रहे हैं। रणनीतिकार पीके के खिलाफ आवाज उठ रही है। 'पीके’ ने समाजवादी पार्टी, रालोद व जनता दल (यूनाइटेड) नेताओं से मुलाकात कर बिहार जैसा महागठबंधन बनाने की कोशिश की थी। मुलायम सिंह यादव के सख्‍त बयान के बाद उनकी हवा निकल गई। अब तो यही लग रहा है कि कांग्रेस के उत्तर प्रदेश जीतो मिशन में कोई दम ही नहीं रह गया। बचा-खुचा दम पार्टी के बाहर गए नेताओं ने निकाल दिया। 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस के नेता विधानसभा चुनाव में अकेले ही लडऩे की वकालत कर रहे हैं। पार्टी की दिक्‍कत यह है कि सभी 403 सीटों पर चुनाव लडऩे के लिए उम्‍मीदवार ही नहीं मिल रहे हैं। 

उत्तराखंड और पंजाब में कांग्रेस चुनावी सर्वेक्षणों से खुश तो हो रही है पर अंदरूनी राजनीति चुनावी लड़ाई पर असर डाल रही है। उत्तराखंड में मुख्‍यमंत्री हरीश रावत से नाराज होकर दस विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं। रावत की सरकार गिरी और फिर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बहाल हुई। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय पहले हरीश रावत की हां में हां मिलाते थे पर राज्यसभा चुनाव के बाद टिकट न मिलने पर तुनके हुए हैं। हरीश रावत के खिलाफ कांग्रेस के ही कुछ नेता आवाज बुलंद कर रहे हैं। भाजपा में मुख्‍यमंत्री का नाम तय न होने के कारण कांग्रेस उत्तराखंड में बढ़त बनाए हुए दिखाई दे रही है। हाल ही में हुए कांग्रेस के चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में कांग्रेस ।0 में से 33 सीटें आने के अनुमान से खुश है। हरीश रावत मेहनती भी हैं पर उनके बारे में यह कहा जा रहा है कि कोई काम नहीं हो रहे हैं। इसकी एक वजह यह मानी जा रही है कि रावत को देर से मुख्‍यमंत्री बनाया गया था, इस कारण राज्य में उतनी तेजी से काम नहीं हो पाए। प्रगतिशील लोकतांत्रिक मोर्चा (पीडीएफ) के साथ गठबंधन को लेकर स्थिति भी अभी तक साफ नहीं हो पाई। कांग्रेस अपने को मजबूत तो मान रही है पर पीडीएफ के उम्‍मीदवारों को कांग्रेस के चुनाव चिह्नï पर लड़ाएंगे या नहीं, यह तय नहीं हो पा रहा है।

पंजाब कांग्रेस में अमरिंदर सिंह मजबूत दिखाई दे रहे हैं। चुनौती बनी आम आदमी पार्टी के कई नेताओं को फोड़ कर कांग्रेस में शामिल किया गया है। अमरिंदर को ज्यादा ताकत मिलने से कुछ नेता नाराज भी हैं। प्रदेश प्रभारी आशा कुमारी की भूमिका तो बहुत ही सीमित कर दी गई है। अकाली दल के कुछ प्रमुख नेता भी कांग्रेस में शामिल हुए हैं। सबसे बड़ी सफलता नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी डॉ. नवजोत कौर को पार्टी में लाने की है। दूसरी तरफ भाजपा ने गायक हंसराज हंस को कांग्रेस से छीन लिया। दलित चेहरा होने के कारण हंसराज कुछ सीटों पर भाजपा को फायदा दे सकते हैं। चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों से खुश पंजाब कांग्रेस के नेताओं ने पानी के बंटवारे पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश मानने से इंकार कर दिया। इस मुद्दे पर दिल्ली के मुख्‍यमंत्री भी कुछ नहीं कह पा रहे हैं। अमरिंदर ने तो लोकसभा से इस्तीफा दे दिया था। यह सही है कि अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार के खिलाफ माहौल बना हुआ है।

उत्तर प्रदेश और पंजाब की तरह गोवा भी कांग्रेस के लिए चुनौती है। गोवा के प्रभारी दिग्विजय सिंह ने मान लिया है कि राज्य के कार्यकर्ताओं में जोश की कमी है। दिग्विजय सिंह ने गोवा के पणजी में पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा भी कि हतोत्साहित पार्टी चुनाव नहीं लड़ सकती। कोई हतोत्साहित सेना युद्ध नहीं लड़ सकती। यह हमारे लिए युद्ध है। भाजपा के साथ ही आप ने भी गोवा में चुनौती दे रखी है। दिल्ली में आप की सरकार बनवाने वाले नेता गोवा में भाजपा और आप की मिलीभगत बता रहे हैं।

अगले साल के आखिर में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होंगे। गुजरात में तो खैर कांग्रेस कोई दम ही नहीं दिखा पा रही है। गुजरात कांग्रेस में जमकर खींचतान भी चल रही है। पिछले दिनों दो सांसद जगदीश ठाकोर ओर कुंवर जी बावलिया ने अपनी सभी जिम्‍मेदारियों से इस्तीफा दे दिया था। वरिष्ठ कांग्रेस नेता शक्तित सिंह गोहिल ने भी अपनी जिम्‍मेदारियों से इस्तीफा दे दिया था। तीनों गुजरात कांग्रेस अध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी से नाराज बताए जा रहे हैं। एक ओर जहां पाटीदार और दलितों की नाराजगी के कारण भाजपा परेशान थी और कांग्रेस को इस बार जहां जीत कि उम्‍मीद जगी थी वहीं कांग्रेस के नेताओं की अंदरुनी लड़ाई से ज्यादा उम्‍मीद नहीं दिखाई दे रही है। कांग्रेस के नेता भाजपा का ग्राफ गिरने की बात तो कहते हैं पर कांग्रेस का कितना बढ़ा, कोई दावा नहीं करता। हालत यह है कि 49 नगर पालिका व 22 तहसील पंचायत में कांग्रेस दस माह बाद भी नेता विपक्ष का निर्णय नहीं कर पाई। नवंबर में हुए स्थानीय निकायों के उपचुनाव में भाजपा ने 126 में से 109 सीटों पर जीत हासिल की है। कांग्रेस को केवल 1। सीटें मिली हैं। पहले भाजपा के पास 64 सीटें थीं और कांग्रेस के पास 52 सीटें थीं। चुनाव नतीजे बता रहे हैं कि गुजरात में कांग्रेस का दम खत्म हो रहा है। कहा जा रहा है कि गुजरात में कांग्रेस ही कांग्रेस की बैरी है। राहुल गांधी बार-बार कह रहे हैं कि भाजपा की तरह झगड़े को भीतर ही निपटाओ पर कोई अमल ही नहीं कर रहा है। नेता विपक्ष शंकर सिंह वाघेला, प्रदेश अध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी व अन्य नेता जनता दरबार, जनाधिकार और जनाक्रोश कार्यफ्मों के जरिये भी कांग्रेसियों को एकजुट नहीं कर पा रहे हैं। फिलहाल पूरा झगड़ा निपटाने के लिए राहुल गांधी के फैसले का इंतजार किया जा रहा है। प्रभारी गुरुदास कामत भी अपनी रिपोर्ट राहुल को सौंप चुके हैं।

हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है इसलिए वहां भी अंदरूनी लड़ाई होना तो तय है। चुनावी तैयारियां तेज होते ही राज्य में सरकार व संगठन में तकरार शुरू हो गई है। मुख्‍यमंत्री वीरभद्र सिंह लंबे समय से प्रदेश कांग्रेस कमेटी के नेताओं के खिलाफ खुलकर बोल रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष सुखविंद्र सिंह ने कांग्रेस कमेटी में बिना आधार वाले नेताओं को भर दिया है। प्रदेश कार्यसमिति में सौ से ज्यादा सचिव बना दिए गए हैं। मुख्‍यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के बीच जारी जंग से विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की दिक्‍कतें बढऩी तय है। वीरभद्र सिंह के राजनीतिक महल को ध्वस्त करने के लिए मनमोहन सिंह की तरह राष्ट्रीय स्तर पर कागजी हवाई नेता आनंद शर्मा स्वयं हरसंभव हथौड़ा चलाते रहते हैं। बंद कमरों में भाजपा नेताओं को 'राजा’ की कमजोरियां गिनाते हैं। दूसरी तरफ केंद्रीय जांच ब्‍यूरो का शिंकजा लगातार वीरभद्र पर कसता जा रहा है।

2018 में कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा में चुनाव होंगे। कर्नाटक कांग्रेस में भी लंबे समय से लड़ाई चल रही है। छह महीने पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने ऑस्कर फर्नांडीज को कर्नाटक का संकट सुलझाने भेजा था। तब झगड़ा कम होने के बजाय बढ़ गया। मुख्‍यमंत्री सिद्धरमैया के खिलाफ बगावत की आवाज को पार्टी के नेताओं ने समर्थन दिया। मुख्‍यमंत्री सिद्धरमैया के खिलाफ मल्लिकार्जुन खडग़े, ऑस्कर फर्नांडीज, वीरप्पा मोइली भी खड़े हो गए। खडग़े के बेटे प्रियांक को मंत्री बना कर संतुष्ट करने की कोशिश हुई तो दूसरे वरिष्ठ नेता नाराज हो गए। कांग्रेस सही फैसले ही नहीं ले पा रही है। मंत्री की कुर्सी जाने से दिनेश गुंडू राव की नाराजगी को देखते हुए उन्हें कांग्रेस का कार्यवाहक अध्यक्ष बना दिया गया। सिद्धरमैया कर्नाटक की राजनीति में लोकप्रिय हैं और साथ ही निचले स्तर तक उनका आधार है। अपने खिलाफ बगावत होने पर उन्होंने कांग्रेस से जुदा होने की बात कह भी कह दी थी। भाजपा भी सिद्धरमैया को अपनी ओर लाने की कोशिश कर चुकी है। सिद्धरमैया के सख्‍त तेवरों के कारण राहुल गांधी ने नेतृत्व परिवर्तन करने से इंकार तो कर दिया था पर बाकी नेताओं की नाराजगी अगले साल होने वाले चुनाव पर असर डाल सकती है। इतना जरूर हुआ है कि खडग़े सिद्धरमैया के साथ खड़े हो गए हैं। दक्षिण भारत में अपना बड़ा गढ़ बचाने के लिए राहुल गांधी को ज्यादा मेहनत करनी होगी।

राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में इस इस समय भाजपा की सरकारें हैं। तीनों ही राज्य कांग्रेस के लिए महत्व रखते हैं। मध्य प्रदेश में 13 साल से कांग्रेस सत्ता से बाहर है। छत्तीसगढ़ में यही हाल है। राजस्थान में पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा की सरकार बनी है। तीनों राज्यों में कांग्रेस की अंदरूनी हालत एक जैसी है। तीनों राज्यों में कांग्रेस के बड़े नेताओं में अंदरूनी लड़ाई जारी है। मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया और सुरेश पचौरी जैसे दिग्गज एकजुट नहीं हो पा रहे हैं। शहडोल लोकसभा और नेपानगर विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस की हार के बाद प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव को हटाने की चर्चा तेज हो गई है। मध्य प्रदेश कांग्रेस की कमान एक बार फिर कमलनाथ को सौंपने की मांग तेज हुई है। दिग्विजय सिंह भी कमलनाथ की हिमायत में हैं ताकि केंद्र में अपना बिगुल बजाते रहें। मध्य प्रदेश में कांग्रेस गुटों में बंटी है। झाबुआ की तरह शहडोल में मिलकर चुनाव लड़ते तो शायद भाजपा को कड़ी टक्‍कर दे सकते थे। पहले झाबुआ-रतलाम लोकसभा सीट और उसके बाद नगरीय निकाय चुनावों में कांग्रेस ने अपनी हारने की आदत को बदलते हुए भाजपा को शिकस्त दी थी। आपसी लड़ाई के कारण ही दमखम वाले कमलनाथ को मध्य प्रदेश तक सीमित रखने की बात की जा रही है। कमलनाथ राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के लिए बेहतर काम कर सकते हैं। नेपानगर विधानसभा सीट के उप चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी को लेकर फिर सवाल उठे हैं। नेपानगर क्षेत्र के उप चुनाव की कमान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव के पास थी। कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे दिग्गज नेता नेपानगर उपचुनाव में पार्टी उम्‍मीदवार अंतर सिंह बर्डे के पक्ष में प्रचार के लिए ही नहीं पहुंचे। कांग्रेस महासचिव और प्रदेश प्रभारी मोहनप्रकाश ने चुनावी सभाओं को संबोधित किया।

शहडोल लोकसभा उपचुनाव के प्रचार के दौरान कांग्रेस के स्टार प्रचारक ज्योतिरादित्य सिंधिया के कारण भी खूब भद पिटी। एक आदिवासी के यहां सिंधिया ने रात बिताई, खाना बनाया और अपने हाथों से परोसकर मीडिया में सुर्खियां बटोरीं। कांग्रेसियों ने उस आदिवासी का पूरा घर उजाड़ दिया। शहडोल जिले के ग्राम बड़वाही में रहने वाले वीरभान आदिवासी के घर सिंधिया के आने से पहले कई नेता पहुंचे और बताया कि यहां महाराज आने वाले हैं। बड़े राजा के आने से भाग्य जग जाएगा। घर में टीवी, फ्रिज, टेबल कुर्सियों सहित सारा सामान जुटाया गया। घर के पीछे नया टॉयलेट बनाया गया। महाराज पधारे और आदिवासी की बेटी से कहा कि यह सारा सामान तुम्‍हारे लिए है। बाद में कांग्रेसी उस टॉयलेट तक को तोडक़र ले गए जो खासतौर पर महाराज के लिए बनाया गया था। तोडफ़ोड़ के दौरान वे पड़ोसी की दीवार भी तोड़ गए। हकीकत यह है कि खाना सिंधिया ने नहीं बनाया था। अब बेचारा वीरभान टूटे घर को देखकर अपनी किस्मत को रो रहा है। ऐसी ही किस्मत वहां कांग्रेस की है।

कांग्रेस से अलग होकर छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस का गठन करने वाले में पूर्व मुख्‍यमंत्री अजीत जोगी पार्टी के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। कहा जा रहा कि कांग्रेस के 1। विधायक उनके संपर्क में हैं। ये विधायक रात में जोगी से मिलते हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल, नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव के अलावा पूर्व मंत्री चरणदास महंत रमन सिंह सरकार के खिलाफ माहौल बना रहे हैं पर आपसी खींचतान के कारण ज्यादा असर नहीं हो रहा है।

राजस्थान कांग्रेस में भी गुटबाजी चरम पर है। तमाम कोशिशों के बावजूद राहुल गांधी लड़ाई रोकने में नाकाम साबित हो रहे हैं। राजस्थान में हर आंदोलन में एक ही मुद्दा रहता है, बड़ा नेता कौन। इस लड़ाई को हवा दी थी कि जयपुर कांग्रेस के जिलाध्यक्ष और कांग्रेस प्रवक्‍ता प्रताप सिंह खचरियावास ने। उनकी नजर में सचिन पायलट से बड़ा नेता कोई नहीं है। प्रताप के बयान से पूर्व मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत भडक़े हुए हैं। अब तक सोनिया गांधी का गुणगान करने वाले गहलोत अब राहुल गांधी को कांग्रेस का नंबर वन नेता मान चुके है। राहुल गांधी के गुणगान के बीच राजस्थान में प्रियंका गांधी की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से तुलना करते हुए पोस्टर लगाए थे। इन पोस्टरों में लिखा गया है कि 'तुझमें इंदिरा दिखती हैं।’ राहुल गांधी को कांग्रेस की कमान सौंपने की चर्चा के दौरान लगे पोस्टरों को लेकर भी विवाद तेज हो गया। कांग्रेस में हडक़ंप मचा तो जांच कराने की बात की गई है। इतना तो तय है कि राजस्थान में कांग्रेस की दो साल से जारी लड़ाई नहीं थमी तो राज मिलना आसान नहीं होगा।

हरियाणा कांग्रेस की कलह तो सरेआम उजागर हो गई है। सत्ता से बाहर होने के बाद प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर और पूर्व मुख्‍यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के समर्थकों में लाठियां चली। इसमें तंवर घायल हो गए। अब मामला आलाकमान के दरबार में है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अस्पताल में दाखिल तंवर से मिलने पहुंचे। पूर्व मुख्‍यमंत्री हुड्डा ने एक बार फिर ताकत दिखा दी है। युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पद पर हुड्डा के समर्थक पानीपत के सचिन कुंडू विजयी हुए। सचिन कुंडू ने पूर्व सिंचाई मंत्री कैप्टन अजय यादव के बेटे पूर्व अध्यक्ष चिरंजीव राव को करीब 10 हजार मतों के अंतर से पराजित किया है। हरियाणा युवक कांग्रेस के संगठनात्मक चुनावों में 16 जिलों और ।1 विधानसभा हलकों में अपनी पसंद के उम्‍मीदवार जिताने के बाद हुड्डा ने प्रदेश अध्यक्ष पद पर भी कब्‍जा जमा लिया। चिरंजीव राव को अपने पिता कैप्टन अजय के अलावा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष तंवर, कांग्रेस विधायक दल की नेता किरण चौधरी और कुलदीप बिश्नोई का खुला समर्थन हासिल था। चिरंजीव की हार से सीधे तौर पर तंवर-किरण-कैप्टन खेमे को हार मिली है। इतना तय है कि हरियाणा में जारी गुटबाजी भी थमने वाली नहीं है। चुनाव बेशक दूर हों पर दिल्ली के नजदीकी राज्य की लड़ाई से राहुल गांधी को सिरदर्द होता रहेगा।

झारखंड के प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत को हटाने के लिए कई विधायकों और नेताओं ने दिल्ली में डेरा डाला था। भगत की मनमानी के खिलाफ झारखंड के नेता लगातार आलाकमान से शिकायत कर रहे हैं। सुखदेव भगत ने लंबी चौड़ी प्रदेश समिति बनाकर अपने खास लोगों को पद बांट दिए। यह सब कांग्रेस के नेताओं से बिना सलाह किया गया। तरजीह न मिलने से नेता भडक़े हुए हैं। कांग्रेस के विधायक मनोज यादव, इजराइल अंसारी आदि नेताओं ने तो बाकायदा संवाददाता सम्‍मेलन करके विरोध जताया। प्रदेश प्रभारी बीके हरिप्रसाद से भी भगत की शिकायत की गई। हरिप्रसाद इस मामले में चुप ही रहे। हरिप्रसाद की चुप्पी के कारण कांग्रेस आलाकमान का दरवाजा खटखटाया। झारखंड में पहले से कमजोर कांग्रेस में दो गुट बनने से कोई प्रभावी आंदोलन हो पा रहा है। झारखंड में पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सफाया हो गया था। 2014 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ताकत बहुत कम हो गई। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी बीके हरिप्रसाद की मौजूदगी में ही सुखदेव भगत और मनोज यादव में जमकर विवाद हुआ। जमशेदपुर और रांची की बैठक के दौरान दोनों गुटों में खूनी संघर्ष होते-होते बचा। हालत यह है कि रघुवर सरकार के खिलाफ कोई लड़ाई छेडऩे में नाकाम झारखंड कांग्रेस के नेता आपस में ही लड़ रहे हैं। ओडिशा के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रसाद हरिचंदन को हटाने के लिए पार्टी नेताओं ने मोर्चा खोल रखा है। कांग्रेस विधायक दल के नेता नरसिंह मिश्र ने प्रदेश अध्यक्ष हरिचंदन के खिलाफ खुलेआम लड़ाई छेड़ रखी है। कहा जा रहा है कि ओडिशा विधानसभा में कांग्रेस के सभी 16 विधायक प्रदेश अध्यक्ष को हटाने के लिए लामबंद हो गए हैं। अगले लोकसभा चुनाव के साथ ही ओडिशा विधानसभा के चुनाव होंगे।

बिहार में भी प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी को लेकर नाराजगी है बढ़ रही है। कांग्रेस के कई विधायक उनके खिलाफ हैं। कांग्रेस नेताओं की नाराजगी है प्रदेश अध्यक्ष के साथ नीतीश सरकार में मंत्री बनना। राहुल गांधी से अपनी नजदीकी के कारण वे इस विरोध की परवाह नहीं कर रहे हैं। इसी कारण बार-बार राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे बड़ा चेहरा बताते रहते हैं। अशोक चौधरी बार-बार महागठबंधन से अलग होने की बात भी करते रहते हैं। उनका कहना है कि आलाकमान के निर्देश पर कांग्रेस ने बिहार में जदयू व राजद के साथ गठबंधन किया है। अगर आलाकमान का निर्देश होगा तो गठबंधन टूट सकता है। चौधरी के ऐसे बयानों से जदयू और राजद के नेता चिढ़े हुए हैं।

यह साफ है कि राज्यों में कांग्रेसी नेताओं की आपसी लड़ाई रोकने में आलाकमान सफल नहीं हो रहा है। प्रदेश अध्यक्षों की अपनों को पद देने की नीतियों को भी आलाकमान रोक नहीं पा रहा है। कांग्रेस के नेता यह भी मानते हैं कि होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर सख्‍त फैसले जरूरी हैं। नेताओं की मनमानी पर रोक लगाने की जरूरत भी बताई गई है। संगठन को दुरुस्त करने में देर की गई तो कांग्रेस 2019 क्‍या 2024 में केंद्र की सत्ता में आने का सपना न देखे।

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