विशाखापट्टनम में दूसरे टेस्ट में जीत के बाद कप्तान विराट कोहली मीडिया से बात कर रहे थे। वे इंग्लैंड पर हासिल जीत में अपने साथी खिलाडिय़ों के योगदान के बारे में बता रहे थे। जयंत यादव के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि कैसे जयंत ने उन्हें अपनी मनमाफिक फील्डिंग लगाने के लिए कहा। उन्होंने जयंत की सोच की जी भरकर प्रशंसा की। बेशक, इस घटना से जयंत के आत्मविश्वास का पता चलता है, लेकिन यह आत्मविश्वास आया कहां से? जयंत का यह पहला टेस्ट था। अमूमन नया खिलाड़ी अपने कप्तान और सीनियर खिलाडिय़ों के दिशा-निर्देशों की प्रतीक्षा करता है, लेकिन यहां तो गेंद फेंकने से पहले वह कप्तान को कहता है कि उसे किस तरह की फील्डिंग चाहिए। विराट कोहली चाहते तो जयंत के अनुरोध को एक नए खिलाड़ी का अति उत्साह मानकर खारिज भी कर सकते थे। पर, विराट ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने न सिर्फ गेंदबाज के मनमाफिक फील्डिंग लगाई बल्कि मैच के बाद इसका जिफ्करके श्रेय भी गेंदबाज को दिया।
अच्छे कप्तान की निशानी यही होती है। तारीफों के फूल आएं तो साथी खिलाडिय़ों की तरफ सरका दो और आलोचनाओं के तीर खुद झेल लो। पिछले दो वर्ष में विराट कोहली ने शायद ही अपने किसी साथी को कमतर कहा हो। इंग्लैंड के खिलाफ चल रही इस शृंखला में तेज गेंदबाजों के हिस्से में खास विकेट नहीं आए हैं, लेकिन जिफ्आने पर उन्हें मैच जिताने वाला कहने से नहीं चूकते। विराट ने जब से टेस्ट टीम की कमान संभाली है, मैदान और मैदान के बाहर टीम का कायाकल्प ही कर दिया है। नए से नया खिलाड़ी भी खुलकर अपनी बात कह सकता है। टीम में एकजुटता ऐसी है कि जेम्स एंडरसन टिप्पणी विराट कोहली पर करते हैं तो उसका जवाब रविचंद्रन अश्विन देते हैं - गेंद से, और जुबान से भी।
वस्तुत: विराट कोहली ने साथी खिलाडिय़ों में भी अपनी जैसी आक्रामकता भर दी है। मैदान पर अब टीम पहले से ज्यादा मुस्तैद दिखती है। ऐसी टीम जिसे जीत से कम कुछ मंजूर नहीं है। लगभग दो वर्ष पहले आस्ट्रेलिया में एडिलेड टेस्ट में महेन्द्र सिंह धोनी की गैर मौजूदगी में विराट को टीम का नेतृत्व करने का मौका मिला था। आस्ट्रेलिया ने जीत के लिए 364 रन का लक्ष्य दिया। विराट कोहली ने जीत के लिए कोशिश की। हालांकि लक्ष्य 48 रन दूर रह गया, लेकिन आने वाले दिनों में भारतीय टीम की दिशा क्या होगी, यह संकेत जरूर मिल गया।
महेन्द्र सिंह धोनी के शृंखला के बीच में ही टेस्ट क्रिकेट से संन्यास के बाद कमान विराट कोहली के पास आ गई। तब से लेकर अब तक विराट कोहली की कप्तानी में भारत ने पांच शृंखलाएं जीती हैं। श्रीलंका में तो शृंखला पहला मैच हारने के बाद जीती। दक्षिण अफ्रीका को घर में 3-0 से मात दी तो वेस्ट इंडीज को वेस्टइंडीज में 2-0 से हराया। न्यूजीलैंड को 3-0 से हराया तो मौजूदा शृंखला में इंग्लैंड पर 3-0 की बढ़त हासिल कर ली है।
वेस्टइंडीज और न्यूजीलैंड के खिलाफ मिली जीत को भले ही कुछ लोगों ने बड़ा न माना हो लेकिन इंग्लैंड पर मिली जीत को हर कोई बड़ा मान रहा है। कप्तानी और बल्लेबाजी दोनों ही क्षेत्रों में उन्हें महान खिलाडिय़ों में गिना जाने लगा है। अब तो सचिन या अन्य बल्लेबाजों से तुलना की बजाय उनकी खासियतों का विश्लेषण होने लगा है। सुनील गावस्कर सरीखे दिग्गज तो उन्हें ऐसे ग्रह का प्राणी मानते हैं जिसकी अभी खोज तक नहीं हुई है।
तकनीक के स्तर पर जो रूट से लेकर कई बल्लेबाजों को विराट कोहली के समान माना जा सकता है लेकिन उन्हें बेजोड़ बनाता है खेल के प्रति उनका रवैया। अन्य खिलाडिय़ों से विराट कोहली को जो चीज अलग करती है वह है उनका जूझारूपन, कभी न हार मानने का जज्बा और विजेता होने की जिद। बल्लेबाजी से लेकर फिटनेस तक, सभी उनकी जिद की नतीजा है। ऌपूर्व कोच डंकन फ्लैचर ने बातों ही बातों में एक बार कुछ यूं कह दिया कि क्रिकेट पेशेवर खेल है लेकिन खिलाड़ी उसे गैरपेशेवर ढंग से लेते हैं। आपके पास हुनर है तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप ट्रेनिंग न करें, अपनी दिनचर्या न तय करें।
विराट ने डंकन की बातों को इतनी संजीदगी से लिया कि कुछ ही समय में अपना वजन 10-12 किलो कम कर लिया। पहले विराट कभी भी कुछ भी खा लेते थे, लेकिन अब वे खानपान के मामले में कोई समझौता नहीं करते। कोई भी दिन ऐसा नहीं जाता जब वे जिम में डेढ़-दो घंटे पसीना न बहाते हों। विराट खुद स्वीकार करते हैं कि नियमित दिनचर्या ने उन्हें मानसिक रूप से ज्यादा मजबूत बनाने में मदद की। उनकी टांगों में ज्यादा ताकत और तेजी आ गई। मुंबई टेस्ट के दौरान सुनील गावस्कर ने टिप्पणी भी की, 'विकेटों के बीच विराट जिस तरह दौड़ते हैं उससे उनकी शारीरिक फिटनेस का पता चलता है। कोहली किसी भी तरह की कमजोरी बर्दाश्त नहीं करते। उन्होंने तेजी से रन बनाए और वह मानसिक रूप से हर पल मुस्तैद थे।’
सिर्फ बल्लेबाजी के दौरान ही नहीं, मैदान में हर पल वे मुस्तैद रहते हैं। फील्डिंग के दौरान वे गेंद पर बिजली की सी तेजी के साथ झपटते हैं। प्रतिद्वंद्वी टीम के बल्लेबाजों के खिलाफ रणनीति बनाने से लेकर साथियों की हौसलाअफजाई और गेंद की चमक बरकरार रखने तक सभी काम एक साथ करते हैं। कप्तान के रूप में कई मायनों में वे मंसूर अली खान पटौदी और सौरव गांगुली की याद दिलाते हैं। टीम में कौन खेलेगा और कौन नहीं, इस मामले में विराट ने कोई पक्षपात नहीं किया है। व्यक्तिगत पसंद की जगह कसौटी प्रदर्शन है और जो खरा उतरता है वही अंतिम ग्यारह में जगह बना पाता है। गौतम गंभीर घरेलू क्रिकेट में अच्छा प्रदर्शन करते हैं तो उनकी भी टीम में वापसी हो जाती है। टीम की जरूरत के हिसाब से वह एक साथ दो ऑफ स्पिनर आर. अश्विन और जयंत यादव को टीम में शामिल करने से भी नहीं हिचकते।
रविचंद्रन अश्विन के साथ तो उनकी ऐसी जोड़ी बन गई है कि एक निरंतर बल्लेबाजी का दायित्व उठा रहा है तो दूसरा गेंदबाजी का। यह अलग बात है कि विराट श्रेय साथी बल्लेबाजों को देते हैं। अश्विन कई मौकों पर अपनी बल्लेबाजी की काबिलियत दिखा चुके हैं, लेकिन उन्हें प्रमोट करने का जज्बा विराट ने ही दिखाया है।
रही बात खुद के प्रदर्शन की तो पिछले दो वर्षों में क्रिकेट के हर फॉर्मेट में विराट का बल्ला लगातार रन उगल रहा है। टेस्ट, वनडे और ट्वेंटी20 तीनों में विराट कोहली 50 से ज्यादा के औसत से रन बना रहे हैं। इस वर्ष टेस्ट मैचों में वह तीन दोहरे शतक जड़ चुके हैं और उनसे उम्मीद की जा रही है कि वे इंग्लैंड के खिलाफ आखिरी टेस्ट में दोहरा शतक जडक़र माइकल क्लार्क के रिकॉर्ड की बराबरी कर सकते हैं। आंकड़ेबाज तो इस बात का हिसाब लगा रहे हैं कि कितने वक्त और कितने मैचों में विराट कोहली बल्लेबाजी के सभी रिकॉर्ड अपने नाम कर सकते हैं। पर, इस सबसे बेपरवाह विराट का ध्यान टीम के प्रदर्शन पर है। वे कहते भी हैं, 'व्यक्तितगत रिकार्ड कोई मायने नहीं रखता।’ और यह बड़ी बात है।