चेन्नई में वरदा तूफान ने लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त कर रखा है, ऐसा ही एक तूफान राजनीतिक तट से टकराने को तैयार बैठा है। चेन्नई के अपोलो अस्पताल ने जब तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता के निधन की सूचना सार्वजनिक की तब सबसे पहले सभी के मन में सवाल उठा, 'अगला मुख्मंत्री कौन?’ दक्षिण भारतीय फिल्मों की तरह ही तमिलनाडु में राजनीति भी हमेशा से बहुत नाटकीय रूप में चलती है। यह किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है कि एक वीडियो पार्लर चलाने वाली महिला अपने पति की सहयोगी के साथ मिल कर एक प्रमुख पार्टी की सुप्रीमो से नजदीकी बढ़ाती है और स्थिति यहां तक ले आती है कि सत्तारूढ़ पार्टी की महासचिव होने की दौड़ में सिर्फ वह अकेली ही शामिल होती है। यह कहानी है, जयललिता की सबसे करीबी शशिकला की। शशिकला जब जयललिता के संपर्क में आई थीं तो एक वीडियो पार्लर चलाती थीं। यह 1989 की बात है, जब वह जयललिता के साथ रहने लगी थीं। धीरे-धीरे जयललिता के पोएस गार्डन (जहां वे हमेशा रहीं) वाले घर में माली, धोबी, खानसामा, ड्राइवर सभी लोग शशिकला के गांव मनारगुड़ी के भर्ती किए जाने लगे। पोएस गार्डन मनारगुड़ी में बदल गया और शशिकला ने खुद को चिन्न अम्मा यानी छोटी मां के रूप में स्थापित करना शुरू कर दिया। शशिकला ने जयललिता के साथ संपर्क बढ़ाने के लिए हर काम किया। वह उन शादियों में जाती थीं जहां जयललिता मौजूद रहती थीं। धीरे-धीरे यह दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि जयललिता ने सार्वजनिक रूप से कहा था, हम बहनें हैं बस खून का रिश्ता नहीं है। शशिकला का जयललिता से प्रेम इतना बढ़ा कि शशिकला के भांजे सुधाकरन को गोद ले लिया और धूमधाम से उसकी न सिर्फ शादी की बल्कि दोनों 'बहनों’ ने एक जैसे जेवर और साड़ी पहनी।
पांच दिसंबर 2016 को जब जयललिता ने आखिरी सांस ली तो बड़ा सवाल उठा, अब पार्टी की कमान कौन संभालेगा? दक्षिण की राजनीति पर नजर रखने वाले मानते हैं कि एआईएडीएमके (ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कळगम) में जयललिता जैसा करिश्माई व्यक्तितत्व किसी के पास नहीं है। उनके रहते कभी जरूरत महसूस नहीं हुई कि दूसरी पंक्तित का कोई नेता अपना कद बढ़ाता। अब यही निर्वात या कहें शून्य एआईएडीएमके के लिए परेशानी का सबब है। जिस राजनीति में नेता का स्तर ईश्वरतुल्य हो वहां किसी भी नए व्यक्तित को खुद को स्थापित करना आसान नहीं होगा। शशिकला के पास जयललिता की करीबी के अलावा कोई दूसरा पत्ता नहीं है, न ही जयललिता जैसा करिश्मा है। जयललिता राजनीति में आने से पहले फिल्मों में काम कर चुकी थीं। वह सुपर स्टार नहीं थीं लेकिन लोकप्रिय थीं। उनके साथ संघर्ष, पिता की कम उम्र में मृत्यु, मां का प्यार न मिलना और उनके मेंटर एमजी रामचंद्रन की मृत्यु के वक्त हुए दुव्र्यवहार की कहानियां साथ चलती थीं। लेकिन शशिकला के साथ ऐसी कोई पृष्ठभूमि नहीं है। बल्कि उनके बारे में कहानियां 'संदिग्ध’ होने के अतिरिक्त मसाले के साथ सुनाई जाती हैं। गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली शशिकला का बेरोजगार भाई धीवाहरन अब डॉ. धीवाहरन कहलाता है। शशिकला की राजनीतिक महत्वाकांक्षा आज की नहीं है। पार्टी पर एक बार उनकी पकड़ बनाने की कोशिश के चलते ही जयललिता से उनके रिश्ते खराब हो गए थे। सन 2012 में जयललिता ने उन्हें खटास के चलते घर से निकाल दिया था। उन पर जयललिता को 'धीमा जहर’ देकर मारने का आरोप था। बाद में जयललिता से उन्होंने माफी मांगी और उनके जीवन में एक बार फिर दाखिल हो गईं। अब वही शशिकला सत्तारूढ़ पार्टी की महासचिव बनना चाह रही हैं। जैसे जयललिता के स्वास्थ्य की स्थिति पर परदा था, बिलकुल वैसे ही शशिकला की स्थिति पर एक चुप्पी तारी है। जयललिता के निधन के बाद उनके सबसे विश्वसनीय और एक बार उनकी अनुपस्थिति में पहले भी मुख्यमंत्री पद संभाल चुके पन्नीरसेल्वम फिलहाल मुख्यमंत्री बने हैं। लेकिन साए की तरह जया के साथ रहने वाली शशिकला को लगता है कि एआईएडीएमके पार्टी उनकी बपौती है। यह बात शशिकला भूल रही हैं या समझ नहीं रही हैं कि पार्टी जाति, वोट और आपसी संबंधों के गणित पर चलती है। कुल 235 सीटों वाली तमिलनाडु विधानसभा में 135 विधायक एआईएडीएमके के हैं। एआईएडीएमके के पास दो बड़े वर्चस्व वाले जनाधार हैं-थेवर और गोंडर। थेवर जाति का प्रभाव दक्षिण तमिलनाडु की ओर है, जबकि गोंडर केरल से लगे पश्चिमी तमिलनाडु में ज्यादा हैंं। अभी बनाए गए मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम थेवर जाति के हैं और पार्टी की महासचिव बनने के लिए कोशिश कर रही शशिकला भी थेवर हैं। पार्टी के आधिपत्य के लिए उन्हें सभी विधायकों के साथ की दरकार है। लेकिन ऐसा हो पाएगा यह मुश्किल लगता है। शशिकला के पास न तो जयललिता के जैसा जादू है और न ही आम लोगों और पूरी पार्टी में मन से उनकी स्वीकार्यता है। जयललिता ने राजनीतिक कौशल से इन दोनों बड़ी जातियों के बीच गजब संतुलन बैठाया था। तमिलनाडु विधानसभा चुनाव के परिणाम जब आए तो 28 विधायक गोंडर जाति के थे और 20 थेवर। जयललिता ने 20 थेवर विधायकों में से 9 को मंत्री पद दिया। दरअसल, जयललिता की थाह पाना वाकई बहुत मुश्किल था। जयललिता ने चतुराई का परिचय देते हुए 3 सबसे अच्छे मंत्रालय- लोकनिर्माण विभाग, विद्युत और नगर निगम गोंडर जाति के विधायकों को दिए। इनमें से लोकनिर्माण मंत्री पलानीस्वामी मुख्यमंत्री की रेस में भी थे। शशिकला के लिए अभी सबसे ज्यादा परेशानी इसी 'कास्ट बैलेंस’ को साधने की है।
जो गलती एमजी रामचंद्रन की पत्नी जानकी ने की थी वही गलती शशिकला ने जयललिता की भतीजी दीपा कुमारी के साथ की है। जयललिता को रामचंद्रन की शवयात्रा में अपमानित होना पड़ा था और इसी बात ने उन्हें बहुत सहानुभूति दिलाई। तमिल मीडिया में दीपा कुमारी प्रसिद्ध हो गई हैं क्योंकि उन्हें न बीमार जयललिता से मिलने दिया गया, न उनके अंतिम संस्कार में शशिकला ने शामिल होने दिया। शशिकला का यही दुव्र्यवहार दीपा कुमारी को फायदा दे रहा है। व्यक्तित पूजा वाले दक्षिण के समाज में वहां के प्रसिद्ध अभिनेता थला अजीत की अनदेखी करना भी शशिकला को भारी पड़ेगा। तमिल में थला का अर्थ होता है, मसीहा। अजीत की जयललिता से काफी करीबी थी और जयललिता ने कहा था कि वह उनके उत्तराधिकारी हो सकते हैं। अजीत के अभी तक राजनीति में आने के संकेत नहीं हैं लेकिन इशारों में वह कह चुके हैं कि यदि जरूरत होगी तो वह राजनीति में जरूर आएंगे। दक्षिण में कमल खिलाने को आतुर भारतीय जनता पार्टी ने भी अपनी निगाहें वहां टिका दी हैं। अभी संसद में उपसभापति तंबीदुरई की भारतीय जनता पार्टी से काफी नजदीकी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने वहां पैठ बनानी शुरू की है। थेवर समुदाय हिंदुत्व के करीब है। द्रविड़ आंदोलन में भले ही इस समुदाय ने हिस्सा लिया हो लेकिन आज भी पी. मुथुरामलिंगम थेवर के नाम पर बड़े स्तर पर थेवर जयंती मनाई जाती है। उनकी मूर्ति बनती है, पूजा होती है। यह समुदाय डीएमके के विरोध में रहता है। शशिकला इस गणित को यदि नजरंदाज करती हैं तो भी भूल करेंगी।