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मथुरा कांड और कैराना का सच

सत्याग्रह के नाम पर रामवृक्ष यादव का साम्राज्य और भाजपा सांसद हुकुम सिंह की पलायन की रिपोर्ट पर मचा सियासी घमासान
जवाहर बाग कांड में रामवृक्ष यादव ने दे दिया भाजपा को बड़ा मौका

मथुरा के जवाहर बाग में सत्याग्रह के नाम पर हुए कांड को लेकर प्रदेश की सियासत गरमा गई है। भाजपा जहां प्रदेश सरकार के एक कद्दावर मंत्री को इस कांड के लिए जिम्मेवार ठहरा रही है तो प्रदेश सरकार इसे सियासी साजिश बता रही है। दूसरी ओर, कैराना में हिंदुओं के पलायन की खबर को लेकर भी सियासत गरम है। भाजपा जहां इसे मुद्दा बनाने में तुली है वहीं प्रदेश सरकार का कहना है कि पलायन जैसी कोई बात सामने नहीं आई है। दरअसल, दोनों ही मुद्दों को अगले साल प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। मथुरा के जवाहर बाग में पिछले दो साल से सत्याग्रह के नाम पर रामवृक्ष यादव अपने तीन हजार समर्थकों के साथ डेरा डाले हुए था। उसकी मांग भी अजीबो-गरीब थी लेकिन दो साल तक प्रदेश सरकार ने सत्याग्रह के नाम पर कब्जा किए गए पार्क को खाली कराने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। इस बीच रामवृक्ष नामक शख्स ने पूरे पार्क में कब्जा करके लोगों को मुफ्त आवास से लेकर तमाम तरह की सुविधाएं देने की बात की। इसलिए देश के विभिन्न जगहों के लोग रामवृक्ष के बहकावे में आकर पार्क में रहने लगे। रामवृक्ष लोगों पर अपनी सत्‍ता चलाने लगा और पार्क के अंदर किसी को भी आने-जाने की इजाजत नहीं देता। जवाहर बाग पर कब्जा करके रामवृक्ष ने एक तरह से उन लोगों को भी कैद कर रखा था जो लोग इसके बहकावे में आए। इस बीच पुलिस विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक प्रदेश सरकार को खुफिया जानकारी मिलती रही कि आखिर इतने बड़े पार्क में सत्याग्रह के नाम पर कौन सा आंदोलन चल रहा है। इसके लिए सपा सरकार के एक कद्दावर मंत्री का हाथ होने के कारण जिले के डीएम और एसएसपी कोई कदम नहीं उठा रहे थे। इस बीच पार्क को खाली कराने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई।

उच्च न्यायालय ने मामले को संज्ञान में लेते हुए जिले के अधिकारियों को निर्देश दिया कि पार्क को खाली कराया जाए। उच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी प्रशासन ने गंभीरता नहीं दिखाई। इस बीच पार्क को खाली कराने के उद्देश्य से प्रशासनिक विभाग ने रामवृक्ष यादव से बातचीत करने का प्रयास शुरू किया। रामवृक्ष ने पार्क खाली नहीं करने का मन बनाया और यह ठान लिया कि अगर प्रशासन जबर्दस्ती करेगा तो उसका मुकाबला करेंगे। इस बीच मथुरा के एसपी मुकुल द्विवेदी पुलिस टीम के साथ रामवृक्ष से बातचीत करने के लिए गए। लेकिन अचानक रामवृक्ष समर्थकों ने पुलिस टीम पर हमला बोल दिया। एसपी मुकुल द्विवेदी और फरह थाना के एसओ संतोष यादव शहीद हो गए। कई पुलिसकर्मी घायल भी हुए। पुलिस की जवाबी कार्रवाई में 26 सत्याग्रही मारे गए और 50 से अधिक घायल हुए। कुछ सत्याग्रहियों की जलने से मौत हुई। बड़ी संख्या में पार्क से पुलिस ने हथियार और अन्य सामग्री बरामद की जिसे देखकर पुलिस अधिकारियों के होश उड़ गए और यही सवाल खड़ा होने लगा कि रामवृक्ष ने इतने बड़े पैमाने पर हथियार गोला-बारूद जमा कर रखा है खुफिया विभाग को इस बात की भनक तक नहीं लगी। मामला साफ है कि रामवृक्ष इसकी आड़ में किसी बड़ी घटना को अंजाम देने का मन बना रहा था। रामवृक्ष के करीबी लोगों ने आउटलुक को बताया कि बाबा जयगुरुदेव के निधन के बाद उत्‍तराधिकारी को लेकर हुए झगड़े के कारण भक्तों के बीच तीन गुट बन गए। एक गुट पंकज यादव का है जो इस समय उत्‍तराधिकारी है तो दूसरा गुट उमाकांत तिवारी का है जो कि मध्य प्रदेश में आश्रम बनाकर रह रहे हैं। तीसरे गुट की कमान रामवृक्ष यादव के पास थी।

बाबा जय गुरुदेव के उत्‍तराधिकार को लेकर ही असली झगड़ा है। इस घटना ने कई सवाल खड़े किए लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या प्रदेश सरकार को इस बात की जानकारी थी कि रामवृक्ष यहां अपना साम्राज्य बना रहा है। अगर थी तो पहले कार्रवाई क्यों नहीं की। इसी का फायदा उठाकर रामवृक्ष अपनी मनमानी करता था। मूल रूप से उत्‍तर प्रदेश के गाजीपुर का रहने वाला रामवृक्ष शुरू से ही शातिर किस्म का व्‍यक्ति था लेकिन उसके शातिराना अंदाज की किसी को भनक तक नहीं लगी। वह बाबा जय गुरुदेव की पार्टी से लोकसभा और विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुका है। रामवृक्ष के करीबी लोगों के मुताबिक उसने कुछ हथियार बंद लोगों को अपने साथ किराए पर अपनी सुरक्षा के लिए रखा था, साथ ही, बड़ी गाडिय़ों में घूमता था। लेकिन अपने समर्थकों को किसी प्रकार की बात नहीं बताता था। अगर किसी समर्थक ने कुछ सवाल उठाया भी तो उसके साथ मारपीट कर चुप करा दिया जाता। मामले ने सियासी तूल तब पकड़ा जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने सपा सरकार के एक मंत्री का नाम ले लिया। उसके बाद सरकार बचाव की मुद्रा में आ गई।

प्रदेश सरकार के समाज कल्याण मंत्री रामगोविंद चौधरी आउटलुक से कहते हैं कि बिहार विधानसभा चुनाव हारने के बाद भाजपा बुरी तरह बौखला गई है ऐसे में भाजपा नेता सरकार को बदनाम करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि अगर सरकार का संरक्षण होता तो जगह खाली करवाने के लिए प्रशासन क्यों आगे आता। चौधरी कहते हैं कि इस कांड के लिए सरकार को दोषी ठहराना और प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री का हाथ होना पूरी तरह गलत है।

दूसरी ओर मुज्जफरनगर में हुए दंगे के बाद कैराना कस्बा एक बार फिर सुर्खियों में है। भाजपा सांसद हुकुम सिंह ने 346 लोगों की एक सूची जारी की कि मुस्लिमों के खौफ की वजह से हिंदू परिवार यहां से पलायन कर रहे हैं। लेकिन बाद में हुकुम सिंह अपने ही बयान से पलट गए। हुकुम सिंह का कहना है कि ऐसा नहीं है कि केवल हिंदू ही पलायन कर रहे हैं बल्कि मुस्लिम भी पलायन कर रहे हैं। सिंह कहते हैं कि वह नए सिरे से सूची तैयार कर रहे हैं और जल्द ही नई सूची जारी करेंगे। लेकिन पहली ही सूची के बाद फिर सियासत गरमाने लगी। यहां तक कि मानवाधिकार आयोग ने उत्‍तर प्रदेश सरकार से रिपोर्ट भी मांग ली। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने साफ तौर पर कहा कि विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही भाजपा माहौल बिगाडऩे में जुट गई। जबकि पीलीभीत की सांसद और केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी कहती हैं कि एक समय ऐसा आएगा जब हर कोई उत्‍तर प्रदेश से भाग जाएगा, लेकिन यूपी सरकार को कोई शर्म नहीं है।

मोदी सरकार के एक और केंद्रीय मंत्री और नोएडा से सांसद महेश शर्मा भी अखिलेश सरकार से इस्तीफा मांगते हैं। शर्मा कहते हैं कि दादरी के बाद कैराना की घटना बताती है कि प्रदेश सरकार का कानून व्यवस्था पर कोई नियंत्रण नहीं है। लेकिन आउटलुक संवाददाता ने जब कैराना के लोगों से हकीकत जाननी चाही तो मामला कुछ और निकल कर आया। स्थानीय लोग भाजपा सांसद के दावे को पूरी तरह गलत ठहराते हैं। जिन लोगों की सूची सौंपी गई है उसमें कुछ लोग जरूर कैराना में नहीं रहते लेकिन इसका कारण मुस्लिमों की प्रताडऩा नहीं है। इसके पीछे प्रमुख वजह रोजगार है। दिल्ली से महज सौ किलोमीटर की दूरी पर बसे इस कस्बे के लोग रोजगार की तलाश में पलायन कर गए। भाजपा का दावा जो भी हो लेकिन सपा, बसपा और कांग्रेस इस दावे से सहमत नहीं हैं। कानून-व्यवस्था का एक सवाल जरूर प्रदेश सरकार को लेकर बसपा और कांग्रेस के नेता उठाते हैं लेकिन पलायन की बात को सही नहीं ठहराते। कांग्रेस प्रवक्ता मीम अफजल कहते हैं कि इस पूरे प्रकरण की जांच होनी चाहिए। वहीं बसपा प्रमुख मायावती कहती हैं कि भाजपा दंगा भड़काना चाहती है और सपा सरकार की कानून-व्यवस्था ठीक नहीं है। जो भी हो लेकिन कैराना प्रकरण को भाजपा विधानसभा चुनाव में मुद्दा बनाने की तैयारी कर चुकी है और पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भी इस मुद्दे पर चर्चा हुई। इसके लिए अब पार्टी रणनीति बनाने में जुट चुकी है।

विधानसभा चुनाव आते ही भाजपा प्रदेश में माहौल बिगाडऩे में जुट गई है। कैराना के बारे में जो अफवाह फैलाई जा रही है, वह गलत है।

अखिलेश यादव

मुख्यमंत्री, उत्‍तर प्रदेश

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