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सहकारिता के मकडज़ाल में नोटबंदी का जंजाल

नोटबंदी से सहकारी बैंकों में हुआ पैसों का अभाव, किसानों को नहीं मिल रहा है कर्ज
कोआपरेट‌िव

नोटबंदी के जंजाल ने मध्यप्रदेश में सहकारी बैंकों की कमर तोडक़र रख दी है। मध्यप्रदेश के सहकारी बैंकों को न तो यूपीए के दौर में मिले वैद्यनाथन पैकेज का पूरा फायदा मिल सका और न मौजूदा एनडीए सरकार उसकी मदद को तैयार है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 31 दिसंबर को किसानों को 60 दिनों के ब्‍याज की माफी की जो राहत परोसी है, उसके मापदंडों में भी मध्यप्रदेश के किसान फिट नहीं बैठ रहे हैं। हालत यह है कि किसानों को रबी सीजन के दौरान कर्ज देने के लिए भी सहकारी बैंकों के पास पैसों का टोटा है। यही नहीं वाणिज्यिक बैंकों से भी उसे 25 हजार से ज्यादा का कर्ज नहीं मिल पा रहा है।

मध्यप्रदेश में किसानों को खाद-बीज के साथ नकद कर्ज मुहैया कराने का साधन सहकारी बैंक है। प्रदेश में राज्य स्तरीय अपेक्‍स बैंक के साथ ही 38 जिला सहकारी बैंक की 728 शाखा और 4 हजार 520 प्राथमिक कृषि साख सहकारी संस्थाओं का नेटवर्क है। इनमें से 12 जिला सहाकारी बैंक डिफाल्टर हो चुके हैं और 6 डिफाल्टर होने की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं। बदहाल होते सहकारी बैंकों पर नोटबंदी के चाबुक ने और गहरे जख्‍म कर दिए हैं। राज्य के सहकारी बैंकों में 48 लाख किसानों के खाते हैं। लेकिन नोटबंदी के बाद सहकारी बैंकों में पैसा जमा कराने पर लगाई गई रोक के चलते किसानों को पुरानी करेंसी जमा कराने के लिए राष्ट्रीयकृत बैंकों में खाते खोलने पड़े। पैसा जमा कराने पर रिजर्व बैंक ने रोक लगाई। इससे बैंकों की जमा पूंजी नहीं बढ़ी उल्टे निकासी पर पाबंदी थी नहीं। इसके चलते लोगों ने पैसे निकाले जिससे कि बैंकों का डिपाजिट घट गया। गरीब और किसानों को लोन बांटने के लिए पैसों की किल्लत आड़े आ गई।

आंकड़ों के आईने में देखा जाए तो नोटबंदी की तिथि यानी 8 नवंबर 2016 को प्रदेश के सहकारी बैंकों में जमा रकम 13 हजार 588 करोड़ 63 लाख थी। अब यह घटकर 10 हजार 271 करोड़ रह गई है। पिछले साल सहकारी बैंकों ने लोन बांटने के लिए 10 हजार 33 करोड़ उधार लिया था। लेकिन इस साल उसे  8 हजार 467 करोड़ ही मिल सके। पिछले साल सहकारी बैंकों ने किसानों को 19 हजार 158 करोड़ लोन बांटा था। लेकिन इस साल वह 16 हजार 471 करोड़ 37 लाख का ही कर्ज बांट सका है। यहां तक कि किसानों को कमर्शियल बैंकों से 2 और 3 लाख के स्वीकृत कर्ज के एवज में 25 हजार ही मिल सके। इसके चलते प्रदेश में नोटबंदी से रबी की बुवाई का रकबा घटा जिससे किसान अच्छी बारिश के बावजूद ज्यादा फसल लेने का फायदा नहीं उठा सके।

 मध्यप्रदेश में तो खरीफ के कर्ज की अदायगी की तिथि 15 फरवरी और रबी की 15 जून है। हालांकि मध्यप्रदेश सरकार प्रदेश के किसानों के लिए इस छूठ का लाभ दिलाने की कोशिश कर रही है, लेकिन इसके आसार कम ही दिख रहे हैं। यूपीए सरकार के दौरान वैद्यनाथन कमेटी की सिफारिश पर मध्यप्रदेश के सहकारी बैंकों की सेहत संवारने के लिए 1989 करोड़ रुपये का अनुदान केंद्र ने स्वीकृत किया था। मध्यप्रदेश सरकार ने भी 125 करोड़ रुपये अपने अंशदान के रूप में दिए, लेकिन कमेटी और आरबीआई की शर्तों का पालन नहीं करने के चलते मध्यप्रदेश को इसमें से 511 करोड़ 86 लाख रुपये नहीं मिल सके। आरबीआई ने सहकारी बैंकों में फिट-एंड-प्रॉपर क्राइटेरिया का पालन कराने के निर्देश दिए थे। इसके तहत राज्य सरकार को बैंकों में अनुभव, शिक्षा और काबिलियत के आधार पर स्टाफ तैनात करना था जो उसने नहीं किया। आरबीआई की एक शर्त यह भी थी कि जिन सहकारी संस्थाओं को राज्य सरकार ने अपनी गारंटी पर कर्ज दिलाया था उसकी अदायगी वो करे। मध्यप्रदेश में सरकार की गारंटी पर पावर लूम फेडरेशन, बुनकर संघ, उपभोक्‍ता संघ और शुगर फैक्‍ट्री खरगौन पर ब्‍याज सहित 44 करोड़ की देनदारी थी, लेकिन राज्य सरकार ने इसकी पूरी अदायगी करने के बजाय मूल कर्ज के साथ 50 फीसदी ब्‍याज दिया और 50 फीसदी की छूट दिलवा दी, लेकिन 18 करोड़ रुपए बचाने के चक्‍कर में केंद्र से मिलने वाले 667 करोड़ का अनुदान अटक गया। यूपीए की सरकार जाने के बाद मध्यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मौजूदा मोदी सरकार से इस अनुदान की गुहार लगाई लेकिन वित्तमंत्री अरुण जेटली ने इसे सिरे से नकार दिया।

वैद्यनाथन पैकेज से 511 करोड़ 86 लाख  की कटौती नहीं होती तो शायद यह डिफाल्टर होने वाले बैंक संभल जाते, लेकिन इस पैकेज की जिला बैंकों और प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति को स्वायत्ता देने की शर्त ने सहकारी बैंकों को निरंकुश बना दिया। पहले सभी जिला बैंकों में अपेक्‍स बैंक की तरफ से जिला बैंकों का सीईओ तथा चीफ एकाउंटेंट तैनात किया जाता था। सहकारी समितियों में जिला बैंक का प्रतिनिधि होता था। इससे ऊपर से नीचे तक बैंकों में लेनदेन की निगरानी होती रहती थी। अब तो जो जहां था वह वर्षों से वहीं जमा है। आजादी का बेजा फायदा उठाते हुए जिलों में जमकर फर्जी लोन सहकारी समितियों ने बांट दिए। जिन्होंने लोन बांटे उन्हें ही रिकवरी करना है। उन्हें जब पता है कि लोन बंटा ही नहीं है तो रिकवरी कहां से होगी और कौन करेगा? यानी सहकारी बैंकों का सिस्टम ध्वस्त हो चुका है। सहकारी विभाग के अफसर यह बताने की स्थिति में नहीं हैं कि आगे कितना सुधार हो पाएगा। वो इसके लिए 31 मार्च तक के इंतजार की बात कर रहे हैं। सुधार के नाम पर रिकवरी बढ़ाने एनपीए मैनेजमेंट डिपाजिट और शेयर कैपिटल बढ़ाने की बात हो रही है। लेकिन यह कितना हो पाएगा अभी कहा नहीं जा सकता। लेकिन एक बात तय है कि अगर हालात नहीं सुधरे तो अगले दो साल में प्रदेश के आधा दर्जन जिला बैंकों में ताले डल जाएंगे। प्रदेश के सहकारिता मंत्री विश्वास सारंग मानते हैं कि सहकारी बैंकों की हालत ठीक नहीं है। लेकिन उनका दावा है कि वो जल्द ही गाड़ी को पटरी पर ले आएंगे। जिला बैंकों में अपेक्‍स बैंक की निगरानी का पुराना सिस्टम बहाल किया जाएगा। सारंग ने कहा कि मोदी सरकार की नई फसल बीमा योजना के तहत प्रदेश में पहली बार 13 लाख किसानों को 5 हजार 56 करोड़  रुपये का मुआवजा मिला है।

नोटबंदी में मिली तो सिर्फ तोहमत

नोटबंदी की मार झेलते सहकारी बैंकों को सिर्फ तोहमत ही मिली है। सहकारी बैंकों में जिस कथित घोटाले की बात कही जा रही है उसकी जांच के दायरे में ग्रामीण इलाके के सहकारी बैंक नहीं हैं। यह शहरी सहकारी बैंक हैं प्रदेश में 72 नागरिक शहरी सहकारी बैंक आरबीआई से पंजीकृत हैं। इनमें से 54 ही चल रहे हैं। इनमें से कुछ बैंकों में हुए लेनदेन की पड़ताल आयकर विभाग कर रहा है। इसमें सबसे बड़ी हैरानी की बात यह है कि किसानों की सेवा के लिए गठित सहकारी बैंकों की कमर तोडऩे में केंद्र सरकार ने भी कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ी। सहकारी बैंकों ने नोटबंदी के दौरान लेनदेन जारी रखने के लिए हाईकोर्ट की शरण ली थी। लेकिन केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से यह आदेश करा दिया कि सहकारी बैंकों पर आरबीआई का नियंत्रण नहीं है इसलिए इन्हें अनुमति नहीं दी जाती। जबकि हकीकत यह है कि कमशिर्यल और राष्ट्रीयकृत बैंकों की तरह कोऑपरेटिव बैंकों को भी आरबीआई से बैंकिंग का लाइसेंस मिला है और वह बैंकिंग रेगुलेशन एक्‍ट के तहत ही संचालित होते हैं। पांच साल पहले इतना बदलाव हुआ है जिसके तहत सहकारी बैंक रिजर्व बैंक से सीधे नियंत्रित होने के बजाय नाबार्ड के जरिए संचालित हो रहे हैं। लेकिन असली नियंत्रण आज भी रिजर्व बैंक का ही है। नाबार्ड की भूमिका पोस्ट मास्टर वाली है। मध्यप्रदेश का अपेक्‍स बैंक और जिला सहकारी बैंक का कामकाज ऑनलाइन हो रहा है। यदि राज्य सरकार किसी जिला सहकारी बैंक के संचालक मंडल को भंग करना चाहे तो भी उसे रिजर्व बैंक से अनुमति प्राप्त करनी पड़ती है।

 

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